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बुद्धिस्ट इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम: सिरपुर, छत्तीसगढ़

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2022-11-03 08:18:38

भारत के छत्तीसगढ़ राज्य स्थित सिरपुर एक ऐतिहासिक नगर है, जिसके नाम अतीत के कई महत्वपूर्ण पन्ने दर्ज हैं। यह प्राचीन नगर राज्य के महासमुंद जिले का अभिन्न अंग है। यहां से होकर गुजरती महानदी इस पूरे क्षेत्र को संवारने का काम करती है। माना जाता है कि गौतम बुद्ध के काल के दौरान यह एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था, ‘अवादानशतक’ नामक पवित्र ग्रंथ में बताया गया है कि जब उत्तरी कोसल नरेश प्रसेनजित तथा दक्षिण कोसल नरेश के मध्य युद्ध की स्थिति बन गई तब यहां गौतम बुद्ध रूके थे। उसके पश्चात् अशोक कालीन इतिहास ने भी इस क्षेत्र से बुद्ध के संबंध को पुन: स्थापित किया इसलिए आज भी यहां बौद्ध धर्म से जुड़े कई महत्वपूर्ण साक्ष्य देखे जा सकते हैं। बुद्धकालीन साहित्य में भारत के संपूर्ण मध्य क्षेत्र को दक्षिणी कोसल (अब छत्तीसगढ़) के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म को लेकर छठी से दसवी शताब्दी के मध्य इस नगर की भूमिका अग्रणी बताई जाती है। इस स्थल के धार्मिक महत्व के कारण यहां दलाई लामा का आगमन भी हो चुका है। लोगों का मानना है कि 12 शताब्दी के दौरान यह स्थल मिट्टी में दफन हो गया था, जिसे बाद में खोजा गया। ऐतिहासिक नगर सिरपुर स्थित प्राचीन तथा ऐतिहासिक महत्व के विभिन्न स्मारकों, मूर्तियों आदि के विषय में आगे देखतें हैं। आकर्षक प्राचीन लक्ष्मण मंदिर ईंटों की बड़ी संरचना पर खड़ा लाल पत्थरों का मंदिर यहां देखे जाने वाले स्थानों में शामिल है। मंदिर की वास्तुकला खासकर दीवारों पर उकेरी गई नक्काशी देखने लायक हैं। इस मंदिर को देखकर आपके प्राचीन भवन निर्माण शैली को समझ सकते हैं। यह एक मजबूत संरचना है जो अपने बड़े आधार के साथ आज भी खड़ी है। शिरपुर भ्रमण के दौरान आप यहां आ सकते हैं। यह एक संयोग है कि ऐतिहासिक महत्व का प्राचीन नगर सिरपुर अधिक प्रसिद्ध नहीं हो पाया जबकि यह नगर बुद्धकालीन प्राचीन इतिहास व स्मारकों की दृष्टि से एक समृद्ध विरासत है। यह विरासत दस (10) किलोमीटर के विशाल घेरे में फैली हुई है। क्षेत्र की खुदाई करने पर यहाँ बुद्धकालीन इतिहास का विशाल भंडार सामने आया। चीनी विद्वान तथा पर्यटक हृेनसांग ने भी 639 ई. में यहां का भ्रमण किया था। उसने बताया था कि कलिंग की राजधानी से उत्तर-पश्चिम में 300/317 मील यात्रा के बाद वह कोसल पहुँचा। हृेनसांग ने यह भी बताया था कि अशोक ने दक्षिण कोसल की राजधानी सिरपुर के निकट स्तूप तथा अन्य भवनों का निर्माण कराया था। उसके अनुसार विख्यात बौद्ध विद्वान तथा दार्शनिक भिक्षु नागार्जुन सिरपुर के निकट एक बुद्ध विहार में निवास करते थे। सिरपुर क्षेत्र की खुदाई में 700 टीले, स्तूप, 100 बुद्ध विहार व चैत्य; बुद्ध, मैत्रेय तथा पदमपाणि अवलोकितेश्वर आदि की 79 कांसे की मूर्तियाँ, बुद्ध के पवित्र अवशेष व अन्य प्राचीन मूर्तियाँ मिली है। यहाँ 2600 वर्ष पूर्व प्रयोग में आने वाले मिट्टी के तराजू-बाट भी मिले हैं तथा 2200 वर्ष पुराना भिक्षा पात्र भी मिला है। आरांग नगर में पाण्डुवामसी वंश के राजा भवदेव रनकेसरी द्वारा पत्थर का शिलालेख यह दर्शाता है कि उसने बुद्ध के निवास का निर्माण कराया था। यह शिलालेख स्पष्टत: यह रिकार्ड करता है कि भवदेव रनकेसरी स्वयं बुद्ध का अनुयायी था। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ के सभी शिलालेख यह पुख्ता सूचना देते हैं कि दक्षिण कोसल में लम्बे समय तक बुद्धिज्म का प्रभाव था। बुद्धकालीन अवशेषों के अध्ययन से पता चलता है कि बुद्धिस्ट संस्कृति इस क्षेत्र में खूब फलीभूत हुई। बुद्धिस्ट कला के कार्यकलाप 13 वीं ई.तक चलते रहे। धातु की मूर्तियाँ बनाने में 7/8 वीं ई. में प्रभुत्व था। ये धातु की मूर्तियाँ अमेरिका, जर्मनी तथा इंग्लैंड में प्रदर्शित की जा चुकी हंै। यह आयुर्वेदिक उपचार का केंद्र था तथा यहाँ 6 छठी शताब्दी का आयुर्वेदिक स्नान कुंड भी मिला है। यह अनेक वर्षों तक प्रख्यात वाणिज्य केंद्र रहा। यहाँ एक किलोमीटर क्षेत्र में फैला मार्केट स्थल मिला है। पहले समय में यह नालंदा से भी पुराना शिक्षा केंद्र रहा है। बुद्ध विहार जैसा की आपको बताया गया है कि यह स्थल बौद्ध धर्म से संबंध रखता है, इसलिए यहां इस धर्म से जुड़े कई प्रसिद्ध स्थल मौजूद है, जिनमें आप सबसे ज्यादा देखे जाने वाले बुद्ध विहार की सैर कर सकते हैं। यह स्थल बौद्ध धर्म से जुड़े अनुयायियों के लिए एक तीर्थ स्थल माना जाता है। यहां प्राप्त के की गई मूर्तियों और पत्थरों से पता चलता कि यह स्थल किसी वक्त बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। बुद्ध विहार इतिहासकारों को भी अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां आप बौद्ध वास्तुकला को भी करीब से जान सकते हैं। पुरातत्व संग्रहालय आप शिरपुर के एक और सबसे प्रसिद्ध स्थान पुरातत्व संग्रहालय की सैर कर सकते हैं। एएसआई का यह म्यूजियम इतिहासकरों, कला प्रेमियों और इतिहास के खोजियों के लिए काफी ज्यादा मायने रखता है। यहां बहुत से लोग हिन्दू और बौद्ध धर्म से जुड़े साक्ष्यों की तलाश में आते हैं। यह पुरातत्व संग्रहालय लक्ष्मण मंदिर के परिसर में स्थित है। आप यहां हिन्दू, बौद्ध धर्म के अलावा जैन धर्म से जुड़े हस्तशिल्पों को भी देख सकते हैं। बरनवापारा ऐतिहासिक स्थलों के अलावा आप यहां के खूबसूरत प्राकृतिक स्थलों की सैर का भी प्लान बना सकते हैं। शिरपुर से 15 किमी की दूरी पर स्थित बरनवापारा एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है जो हरे भरे माहौल के लिए काफी प्रसिद्ध है। बरनवापारा अपने वन्यजीव अभयारण्य के लिए जाना जाता है, जहां आप कई दर्लभ वनस्पतियों और जीवों को देख सकते हैं। इस स्थल का नाम यहां के दो जंगलों (बार और नवारापा) के नाम पर पड़ा है। एक रोमांचक सैर के लिए आप यहां का भ्रमण कर सकते हैं। बरनवापारा वन्यजीव अभयारण्य अपने शानदार अनुभवों के लिए काफी लोकप्रिय है। सिरपुर विश्व का विशालतम बुद्धिस्ट धरोहर एवं स्मारक स्थल है। यहाँ का बहुत बड़ा क्षेत्र अभी भी बिना खुदा तथा बिना तलाशे पड़ा हुआ है और यह बहुत महत्वपूर्ण है की यहां व्यापक खुदाई की आवश्यकता है। इसे भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल अन्य बुद्धिस्ट धरोहर स्थलों तथा प्रस्तावित बुद्धिस्ट सर्किट के साथ आगे लाने के लिए बहुत बड़े शैक्षिक प्रलेखन की आवश्यकता है। यहाँ पर अंतरराष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉनक्लेव तथा सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन हो चुका है। आशा है निकट भविष्य में सिरपुर विशाल बुद्धिस्ट धरोहर व ऐतिहासिक स्थल के उन्नत रूप में उभरेगा तथा यह बौद्धों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन जाएगा। कैसे पहुंचे: सिरपुर जाने के लिए रायपुर निकटतम हवाई अड्डा है जो कि मुंबई, दिल्ली, कोलकत्ता, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर, विशाखापटनम तथा नागपुर से पूरी तरह जुड़ा हुआ है। रायपुर ही निकटतम रेलवे जंक्शन है। महासमुंद से सिरपुर के बस सेवायें भी उपलब्ध है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05