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‘5 किलो मुफ्त राशन’ से जनता को बनाया जा रहा मानसिक गुलाम

News

2025-08-30 17:00:44

संवाददाता

नई दिल्ली। आमतौर पर देश का शासक वर्ग बड़े फर्क के साथ देश की जनता को बता रहा है कि हम करीब 85 करोड़ लोगों को मुफ्त का राशन देकर उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं। इस संदर्भ में समाज के सभी व्यक्तियों से निवेदन है कि जिसे आज बहुजन समाज कहा जा रहा है वह ही समाज ब्राह्मणी वर्गीकरण के द्वारा शूद्र कहा गया। शूद्रों में एक बड़े वर्ग को अछूत बना दिया गया जिसके लिए देश के आम रास्तों पर चलना और सार्वजनिक कुंओं व तालाबों से पानी भरना भी प्रतिबंधित था। इस तरह की अमानवीय प्रताडनाएं झेलकर भी शूद्र वर्ग की अछूत कहीं जाने वाली जातीय घटकों के लोगों ने कभी भी मनुवादी लोगों से कुछ भी समान मुफ्त में लेने की चेष्टा नहीं की थी। वे हमेशा अपने परिश्रम के बल पर ही जिंदा रहे, दिनभर अथक परिश्रम किया। खेती का काम करने वाले लोगों ने भी जमीन के मालिक न होकर जमीन में खाद्य पदार्थ पैदा किए। बंटाई प्रथा के तहत पैदा किए गए खाद्यानों से अपने हिस्से में आने वाले खाद्यान को लिया और उसी से अपना और अपने परिवार का जीवन यापन किया। लेकिन उन्होंने कभी भी मांगकर खाना उचित नहीं समझा। शूद्र समाज में पैदा हुए मध्य काल के संत कबीर दास जी ने कहा था कि ‘‘मांगन मरण समान है, मत मांगों कोई भीख। मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख॥’’

वर्तमान स्थिति: वर्तमान समय में मुफ्त के राशन का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि जिन लोगों को मुफ्त में राशन मिल रहा है वे लोग राशन लेकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। उनकी महिलाएं भी समाज में आपसी कानाफूसी के द्वारा प्रचारित कर रही है कि सरकार हमारा ख्याल रख रही है और हमें पेट भर राशन मुफ्त दे रही है। इस तरह की सामाजिक स्थिति यह इंगित करने के लिए पर्याप्त है कि अछूत कहे जाने वाले शूद्र लोगों के आत्मसम्मान और मानसिकता में बदलाव आया है जो पहले अपने श्रम से कमाए गए धन से ही गौरवान्वित महसूस करते थे, आज उनमें से अधिकांशतया लोग मुफ्त का राशन खाकर गुलामी महसूस न करके गौरवान्वित हो रहे हैं। पूर्व में इसी समाज के लोग मुफ्त में कुछ भी लेना शर्मनाक मानते थे और उन्होंने अपने समय के लोगों में उसी तरह का प्रचार-प्रसार किया था। पूर्व में अछूत कहे जाने वाला समाज तकनीकी और सफाई इत्यादि का काम करके भी अपने आपको आत्म बल और नैतिक बल के साथ समाज में प्रतिष्ठित मानता था। अछूत कहे जाने वाले जातीय घटकों के बहुत सारे परिवार चर्मकार का कार्य करते थे। वे चमड़े के मनुष्य उपयोगी उत्पाद बनाने में दक्ष थे। जिनको वे बाजारों में बेचकर अपना जीवन यापन करके, समाज में कृषक लोगों की तुलना में अधिक सुखी थे।

दलितों की लूटी जा रही वोट: भारतीय संविधान में वोट का अधिकार बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपने कठिन परिश्रम और बौद्धिक बल के आधार पर सभी वयस्क नागरिकों के लिए सुनिश्चित कराया। उन्होंने प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट और उसकी एक कीमत का सिद्धान्त निर्धारित किया। बाबा साहेब द्वारा दिये गए एक वोट और उसकी एक कीमत को लेकर मनुवादियों ने उनका घोर विरोध किया। पूरे देश में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के विरुद्ध प्रदर्शन किए गए। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के विरुद्ध मनुवादी मानसिकता से संक्रमित भारत के सभी जातीय घटकों के लोगों ने भी विरोध किया। परंतु इस सबके बावजूद भी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने देश के सभी वयस्क नागरिकों के लिए संविधान में उनको वोट देने का अधिकार देकर, सभी को सत्ता में भागीदार बना दिया। वोट का अधिकार सभी नागरिकों के लिए एक महत्वपूर्ण अधिकार है। यह अधिकार कितने संघर्ष और कठिनाइयों से प्राप्त हुआ है, उसे समझने के लिए सभी देशवासियों से निवेदन है कि वे अपने वोट के इतिहास को जाने और समझें कि यह अधिकार तुम्हें आसानी से नहीं मिला है। बाबा साहेब के समकालीन सभी ब्राह्मणी संस्कृति से ओत-प्रोत और संक्रमित राजनीतिक क्षेत्र में बड़े नेता समझे जाने वाले जैसे बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, महात्मा कहे जाने वाले गांधी, लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार बल्लभभाई पटेल, व अन्य सभी संघी मानसिकता के लोग सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्षधर नहीं थे। ये सभी लोग गांधी सहित कह रहे थे कि वोट देने का अधिकार शिक्षा और संपत्ति वाले आदमियों तक ही सीमित किया जाए और इसके साथ उनका तर्क था कि कुंबी, तेली, कुर्मी आदि समाज के लोग संसद और विधानसभाओं में पहुँचकर वहाँ क्या हल चलाएँगे? संविधान सभा की बैठक में इस मुद्दे को लेकर जोरदार बहस चली जिसमें बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का मत था कि जैसा गांधी, तिलक और पटेल कह रहे हैं उसके अनुसार देश की अधिसंख्यक जनता वोट देने के अधिकार से बाहर हो जाएगी तो फिर प्रजातंत्र की स्थापना कैसे होगी?

बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के बौद्धिक तर्कों के आधार पर संविधान सभा में मतदान हुआ और उनके तर्कों से सहमत होकर संविधान सभा के दूरदर्शी नेताओं ने इस प्रस्ताव को वोट देकर पारित किया। इसी प्रावधान के तहत भारत में सभी वयस्क पुरुषों और महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के मतदान का अधिकार मिला। ब्राह्मणी संस्कृति के मनुवादी लोग देश की महिलाओं को भी वोट का अधिकार देना नहीं चाह रहे थे लेकिन बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने किसी भी वयस्क पुरुष और महिला में कोई भेदभाव नहीं रखा और सभी को समान अधिकार दिये। आज देश की सभी घटकों की महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि यहाँ पर महिलाओं को वोट का अधिकार बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के द्वारा ही दिलवाया गया। इस देश के मनुवादी मानसिकता के लोग जिनको महिला आज भी श्रेष्ठ समझती है वे उनको न वोट का अधिकार देना चाहते थे और न पैतृक सम्पत्ति में अधिकार देना चाहते थे। सभी वर्गों की महिलाओं को बाबा साहेब द्वारा समान अधिकार दिलाने के लिए उनका ऋणी होना चाहिए और उनके प्रति श्रद्धा भाव भी रखना चाहिए।

भावी पीढ़ियाँ झेलेंगी मुफ्त के राशन का दुष्प्रभाव: समाज के कम समझ पुरुष और महिलाएं आज मुफ्त का राशन खाकर मनुवादी संघियों की सरकार का गुणगान कर रही है और उन्हें ही अपनी वोट देकर सत्ता में बैठा रही है। जबकि इसका दुष्परिणाम समाज की भावी पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा। आज देश की संघी सरकारों ने अप्रत्यक्ष रूप से सभी सरकारी संस्थाओं का निजीकरण करके उनमें मिलने वाला आरक्षण लगभग खत्म कर दिया है। मुफ्त का राशन बांटने के पीछे भी उनका यही लक्ष्य है कि इस समाज को मानसिक रूप से इतना गुलाम बनाओ कि वह अपने अधिकार और हक को समझने के लायक ही न बन पाये। उन्हें सिर्फ मुफ्त का राशन खिलाकर जिंदा रखो, वोट देने के लिए और हमारी मनुवादी सरकार निरंतर सत्ता में बनी रहे। धीरे-धीरे इस समाज को शिक्षा से भी दूर करो और गहराई तक उनकी मानसिकता में मनुवाद को उतार दो। उनके जो मानसिक और आर्थिक हालात मनुवादी व्यवस्था में थे अंतत: उन्हें वहीं पहुंचाने का लक्ष्य रखो। मनुवाद हरी घास में हरा साँप है जो आसानी से ऊपर न दिखाई देता है और न उसकी कारस्तानी किसी को समझ आती है मगर वह मौका आने पर डंसता जरूर है। आज समाज के जो लोग यह समझ रहे हैं कि हम हमेशा ऐसे ही रहेंगे जैसे आज है तो यह उनका भ्रम है, चूंकि मनुवादियों से पहले भारत में यहां के मूलनिवासियों का ही शासन था। मनुवादी लोग जो यूरेशिया से आए थे उन्होंने धीरे-धीरे अपने षडयंत्रों और छलावों से उनके राज्यों को ध्वस्त किया। उनके साथ अपनी बहन-बेटियों की शादी करके संबंध स्थापित किए और फिर अपनी धोखाधड़ी, छल-कपट से उनके राज्यों को हड़प लिया। आज जो समाज में आंशिक संपन्नता और शिक्षा दिखाई दे रही है उसके पीछे बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले, रामास्वामी पेरियार जैसे महान नायकों का बड़ा योगदान है, जिसे मनुवादियों द्वारा धीरे-धीरे समाज के सभी जागरूक लोगों से ओझल किया जा रहा है। समाज को अपने सम्मान और प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए हमेशा याद रखना होगा कि समाज अपने पूर्व के महानायकों द्वारा बताए गए रास्तों पर चलकर उनकी शिक्षाओं का अनुशरण करें, अपने संघर्ष और बुद्धिबल, अपने आपको स्वाभिमानी, स्वावलंबी बनाने का भरसक प्रयत्न करे और मुफ्त के राशन की तरफ न जाएँ।

शिक्षा पर मनुवादियों का प्रहार: मनुवादी सरकार ने नई शिक्षा नीति-2020 लाकर अपनी मंशा साफ कर दी है कि अब देश में केवल उसी समाज के बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं जो आर्थिक रूप से सबल है और जो लोग आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है वे शिक्षा इसलिए नहीं पा पाएंगे चूंकि शिक्षा पाने के संस्थानों में मनमानी फीस और ढोनेशन बढ़ाया जा रहा है। बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं इन्हीं सरकारी स्कूलों में दलित समुदाय के बच्चे शिक्षा पाकर सरकार में नौकरी पायी और अपने लिए मकान इत्यादि भी बनाए। यह प्रयास आजादी के बाद पहली और दूसरी पीढ़ी का रहा लेकिन तीसरी पीढ़ी आते-आते दलित समाज के नौकरी पेशा व्यक्तियों की मानसिकता में मनुवादी व्यवस्था भी घुसने लगी जिन लोगों को अच्छी शिक्षा के बल पर अच्छी-अच्छी नौकरियाँ मिल गई और उन्होंने वैध और अवैध धन कमाकर वे अपने आपको समाज से अलग की श्रेणी में मानने लगे। इससे भी बुरी बात उनके मस्तिष्क में यह घुस गई कि हमने जो कुछ पाया है वह अपनी बुद्धि और क्षमता से पाया है, ऐसे लोग अपनी और अपने बच्चों की शादियाँ भी ब्राह्मण-वैश्य समाज में करने की कोशिश करने लगे। कुछेक चालाक किस्म के वैश्य और ब्राह्मणों ने उनके ऐसे बच्चों को अपने फायदे का सौदा माना और उन्होंने अपने बच्चों की दलित होनहार बच्चों से शादी करने में कोई परहेज नहीं किया। लेकिन समाज को ऐसे सोच के व्यक्तियों से काफी नुकसान हुआ। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सोचते थे कि मेरे समाज के होनहार बच्चे समाज को आगे बढ़ाने का काम करेंगे। लेकिन बाबा साहब के जाने के बाद समाज के होनहार बच्चों से समाज को फायदा न होकर मनुवादी समाज को फायदा होता दिख रहा है। यहाँ पर हम यह भी बताना चाहते हैं कि हम अंतजार्तीय विवाह के विरोधी नहीं है, बल्कि हम इसके समर्थक है। हम दोनों तरफ के समाज की भलाई के लिए यह जरूर चाहते हैं कि दोनों तरफ का समाज अपनी योगता और वैभवता के आधार पर सहजीवी बनकर दोनों तरह के समाज को मजबूत करें।

समाज से निवेदन है कि वे अपने परिवार और सगे-संबंधियों को बाबा साहेब की शिक्षाओं के आधार पर जागरूक करें और उन्हें किसी भी मुफ्त के प्रलोभनों में न फँसने दे। उन्हें अपने महापुरुषों के द्वारा बताए गए सिद्धान्त ‘अपना दीपक स्वयं बनो’ को पूरी तरह से आत्मसात करके अपने और अपने सगे-संबंधियों को आत्मनिर्भर और श्रमजीवी बनने की प्रेरणा दें।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05