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‘संस्थागत मनुवाद’ और बहुजनों की हकमारी के पक्के आंकड़े

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी के 80%, दलितों के 64% और आदिवासियों के 83% प्रोफेसर पद खाली
News

2025-07-26 18:47:07

संवाददाता

नई दिल्ली। देश में कई सरकारी संस्थाओं में, निम्न से लेकर उच्च तक, बहुजनों जैसे- दलित, पिछड़े, आदिवासियों की संख्या न के बराबर है। कई संस्थाओं में तो पद वर्षों से खाली पड़े हैं, लेकिन उनपर आजतक नियुक्तियां नहीं हो सकी हैं। संसद में मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए ये आंकड़े बहुजनों की हकमारी और संस्थागत मनुवाद के पक्के सबूत हैं। सरकार ने स्वीकार किया है कि उच्च शिक्षा में आरक्षित वर्गों के लिए आवंटित पदों को भरने में बहुत अधिक देरी हो रही है, जैसा कि संसद के 2006 के अधिनियम में अनिवार्य किया गया है।

प्रोफेसर के पद पर नजर डालें तो यह देरी विशेष रूप से चौंकाने वाली है। सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की नियुक्तियां आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों से ज्यादा हैं, जबकि अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी), दलित और आदिवासी समुदायों के उम्मीदवारों की नियुक्तियों में यह अंतर कहीं ज्यादा है। उदाहरण के लिए, स्वीकृत 423 पदों में से ओबीसी समुदाय के केवल 84 प्रोफेसर ही नियुक्त किए गए हैं। यानी रिक्तियों की दर 80% है। इस बीच, पिछले पांच सालों में दलित समुदाय के केवल 111 प्रोफेसरों की नियुक्ति हुई है, जबकि कम से कम 308 नियुक्तियां होनी चाहिए थीं. यानी रिक्तियों की दर 64% है। इसी तरह, आदिवासी समुदाय से 144 प्रोफेसरों की नियुक्ति होनी थी, लेकिन केवल 24 ही नियुक्त हो पाए. यानी रिक्तियों की दर 83% है।

30 जून, 2025 तक केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी श्रेणियों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए स्वीकृत पदों की कुल संख्या 18,951 थी। इनमें से 14,062 पद भरे जा चुके हैं, जिससे 25% पद रिक्त रह गए हैं। सामान्य श्रेणी में केवल 15% सीटें खाली रह गई हैं, जबकि आरक्षित श्रेणियों में रिक्तियों की दर सबसे ज्यादा है। ओबीसी के लिए कुल 3,688 पद रिक्त थे, जिनमें से 2,197 पद भरे जा चुके हैं, यानी 40% रिक्तियां हैं।

इसी तरह, 2,310 पदों पर नियुक्ति के लिए निर्धारित पदों में से दलित समुदाय से केवल 1,599 नियुक्तियां की गईं. यानी लगभग 30% रिक्तियां। अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय से की गई नियुक्तियों में यह अंतर सबसे ज्यादा है. 1,155 स्वीकृत पदों में से केवल 727 पर ही नियुक्तियां की गईं। यानी 37% सीटें खाली रह गईं।

शिक्षा राज्य मंत्री सुकांत मजूमदार द्वारा राज्यसभा में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, सामान्य श्रेणी के अंतर्गत सबसे अधिक सीटें भरी गईं. उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के प्रोफेसर मनोज कुमार झा द्वारा पिछले पांच वर्षों में पदों और रिक्तियों के आंकड़ों के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी।

पीएमओ में 21 सवर्ण, एसटी/एससी से एक भी नहीं

मंत्रालयों में उच्च पदों (जैसे पीएमओ, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय) पर एससी, एसटी, ओबीसी की प्रतिनिधिता नगण्य है। उदाहरण के लिए, पीएमओ में 21 सवर्णों के मुकाबले एसटी/एससी से कोई नहीं, और ओबीसी से केवल 4 लोग हैं।

राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों (जैसे IITs, IIMs, NITs) और अन्य केंद्रीय सरकारी संस्थानों में भी एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षित पदों में कमी देखी गई है। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार, इन संस्थानों में सवर्ण हिंदुओं की हिस्सेदारी 70.2% थी, जबकि आरक्षित वर्गों की हिस्सेदारी अपेक्षा से कम थी।

रिक्तियों का कारण संस्थागत मनुवाद

कई विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकतार्ओं का मानना है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में संस्थागत मनुवाद के कारण आरक्षित पदों को जानबूझकर खाली रखा जाता है। कोई योग्य नहीं (Not Found Suitable- NFS) का हवाला देकर आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को अस्वीकार किया जाता है, जिसे आरक्षण को खत्म करने की साजिश के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, साक्षात्कार प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और चयन समितियों में सवर्ण वर्चस्व भी एक कारण है। सरकारी संस्थानों में स्थायी नियुक्तियों के बजाय ठेके पर शिक्षक और कर्मचारी रखने की प्रथा बढ़ी है। ठेके और निजी क्षेत्र में आरक्षण नीति लागू नहीं होती, जिससे एससी/ एसटी/ ओबीसी उम्मीदवारों को अवसर नहीं मिलते हैं। टेक्निकली देखा जाए तो, सरकारी भर्तियों में कमी और निजीकरण की नीतियों से भी आरक्षित पदों की रिक्तियों का दायरा बढ़ता जा रहा है। जाहिर है कि, उच्च शिक्षा संस्थानों में दलित और आदिवासी छात्रों और शिक्षकों को जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण कई योग्य उम्मीदवार इन संस्थानों में करियर बनाने से हिचकते हैं। रोहित वेमुला की आत्महत्या (2016) इसका एक प्रमुख उदाहरण है।

ये लापरवाही नहीं, एक सोची-समझी साजिश है: राहुल गांधी

इस मसले पर शुक्रवार को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केंद्र की संघी-मोदी सरकार को घेरते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि, संसद में मोदी सरकार द्वारा पेश किए गए ये आंकड़े बहुजनों की हकमारी और संस्थागत मनुवाद के पक्के सबूत हैं। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के-एसटी के 83% - ओबीसी के 80%-एससी के 64% पद जानबूझकर खाली रखे गए हैं। वहीं एसोसिएट प्रोफेसर के-एसटी के 65%-ओबीसी के 69%-एससी के 51% पद भी रिक्त छोड़ दिए गए हैं। उन्होंने आगे लिखा कि, ये सिर्फ लापरवाही नहीं, एक सोची-समझी साजिश है-बहुजनों को शिक्षा, रिसर्च और नीतियों से बाहर रखने की। विश्वविद्यालयों में बहुजनों की पर्याप्त भागीदारी नहीं होने से वंचित समुदायों की समस्याएं रिसर्च और विमर्श से जानबूझकर गायब कर दी जाती हैं। (Not Found Suitable- NFS) के नाम पर हजारों योग्य एससी, एसटी, ओबीसी उम्मीदवारों को मनुवादी सोच के तहत अयोग्य घोषित किया जा रहा है और सरकार कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं।

ये पूरी तरह से अस्वीकार्य है। सभी रिक्त पद तुरंत भरे जाएं-बहुजनों को उनका अधिकार मिलना चाहिए, मनुवादी बहिष्कार नहीं।

राहुल गांधी द्वारा उठाए गए यह सवाल तो ठीक वैसे हैं जैसे सवालों के सागर से मात्र एक लोटा भरकर ही सवाल उठाए गए हैं। असल में इसकी गंभीरता और भी चौंकाने वाली है। शिक्षा मंत्रालय के अनुसार, केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुल 6,549 शिक्षक पद रिक्त हैं, जिनमें 3,669 आरक्षित श्रेणियों (एससी, एसटी, ओबीसी) के हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय (900 रिक्तियां), इलाहाबाद विश्वविद्यालय (622 रिक्तियां), और बीएचयू (532) में सबसे अधिक रिक्तियां हैं।

राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों (जैसे IITs, IIMs, NITs) और अन्य केंद्रीय सरकारी संस्थानों में भी एससी, एसटी, ओबीसी के लिए आरक्षित पदों में कमी देखी गई है। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार, इन संस्थानों में सवर्ण हिंदुओं की हिस्सेदारी 70.2% थी, जबकि आरक्षित वर्गों की हिस्सेदारी अपेक्षा से कम थी।

मंत्रालयों में उच्च पदों (जैसे पीएमओ, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय) पर एससी, एसटी, ओबीसी की प्रतिनिधिता नगण्य है। उदाहरण के लिए, पीएमओ में 21 सवर्णों के मुकाबले एसटी/एससी से कोई नहीं, और ओबीसी से केवल 4 लोग हैं।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05