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‘न्यायिक गरिमा’ और ‘स्वतंत्रता’ का अपमान

News

2024-09-14 10:21:11

प्रधानमंत्री का जस्टिस के घर धार्मिक आयोजन में भाग लेना सिर्फ एक धार्मिक या सामाजिक मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई राजनीतिक और सांस्थानिक इरादे छिपे हो सकते हैं। क्या चीफ जस्टिस का प्रधानमंत्री को अपने घर पर धार्मिक पूजा में आमंत्रित करना उस न्यायिक गरिमा और स्वतंत्रता का अपमान नहीं है, जिसकी हर जज शपथ लेता है? एकओर देशभर में जनहित याचिकाएं और सरकार के खिलाफ मामले सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं और दूसरी ओर प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस का इतना करीब आना संविधान के मूल सिद्धांतों को ठेंगा दिखा रहा है। ये घटना भारतीय न्याय व्यवस्था में गहरी दरार की ओर इशारा करती है। क्या अब हमें यह मान लेना चाहिए कि न्यायालय के फैसले राजनीतिक दबाव में होंगे? क्या जनता अब न्याय के मंदिरों में भी सत्ता का हस्तक्षेप देखेगी? सवाल यह भी है कि अगर आज चीफ जस्टिस और प्रधानमंत्री धार्मिक आयोजनों में मिलकर काम करेंगे, तो कल अदालतों के फैसले क्या सत्ता के इशारे पर नहीं होंगे? क्या चीफ जस्टिस का यह कृत्य यह नहीं दशार्ता कि न्यायपालिका अब कार्यपालिका के सामने झुकने लगी है?

यह मामला सिर्फ धर्म या परंपरा का नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र और न्यायपालिका की निष्पक्षता के ताने-बाने को उधेड़ने वाला है। जिन संस्थाओं को संविधान ने स्वतंत्र और निष्पक्ष बनाए रखने की जिम्मेदारी दी है, वे अब एक-दूसरे के इतने करीब कैसे आ गईं? क्या अब अदालतों के फैसले गणपति की आरती के आधार पर होंगे या संविधान और न्याय के आधार पर? प्रधानमंत्री मोदी और चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के इस कदम ने जनता के मन में गहरी शंका पैदा कर दी है कि आखिरकार न्यायपालिका का भविष्य क्या होगा। क्या आने वाले समय में न्यायालय सत्ता के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाएगा? ये आरती सिर्फ गणपति की नहीं थी, बल्कि देश के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था की आत्मा पर एक प्रहार था!

भले ही यह पहली बार ना हो लेकिन देश के दो प्रमुख संस्थाओं के दो पावरफुल लोग का ऐसे साथ आना क्या उचित है। पहले ही देश में सबसे पावरफुल कौन, इसको लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट कई बार आमने सामने आए हैं। कार्यपालिका और न्यायपालिका एक-दूसरे के पूरक तभी तक हैं, जब तक वे अपनी-अपनी सीमाओं में रहकर काम करें। जनता की नजर में ये सीमाएं धुंधली होंगी तो भरोसा कैसे कायम रहेगा? न्यायपालिका को कार्यपालिका से दूरी बनाए रखनी होगी, ताकि उस पर कोई सवाल न खड़ा हो लेकिन यह एक प्रचलन बन जाएगा भारत के राजनीति में, इनके बाद यदी कांग्रेस या फिर किसी और पार्टी की सरकार आएंगी तो, वह मोदीजी के सरकार का हवाला देकर ऐसे ही काम करना जारी रखेंगी।

यह आचार संहिता का उल्लंघन है: प्रशांत भूषण

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह चौंकाने वाला है कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निजी मुलाकात के लिए अपने आवास पर आने की अनुमति दी। इससे न्यायपालिका को एक बहुत बुरा संकेत गया है। कार्यपालिका से नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा करने और संविधान के दायरे में सरकार काम करे, ये सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी न्यायपालिका को सौंपी गई है। और इसलिए कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच दूरी बनाए रखनी जरूरी है। न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता: एक न्यायाधीश को अपने पद की गरिमा के अनुरूप एक हद तक दूरी बनाए रखनी चाहिए। उनके द्वारा ऐसा कोई कार्य या चूक नहीं होनी चाहिए, जो उनके उच्च पद और उस पद के प्रति सार्वजनिक सम्मान के लिए अशोभनीय हो। आचार संहिता का उल्लंघन।

संजय राउत बोले, हमें संदेह है कि क्या हमें न्याय मिलेगा?

शिवसेना के सांसद संजय राउत ने भी इस मामले को लेकर सीजेआई पर निशाना साधा है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा कि गणपति उत्सव चल रहा है, लोग एक-दूसरे के घर जाते हैं। मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है कि पीएम अब तक कितने घरों में गए हैं। लेकिन पीएम सीजेआई के घर गए और उन्होंने आरती की अगर संविधान का संरक्षक राजनेताओं से मिलता है, तो इससे लोगों के मन में संदेह पैदा हो सकता है।

संजय राउत ने आगे कहा कि महाराष्ट्र के हमारे मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पहले से चल रही है और ये सीजेआई चंद्रचूड़ जी के सामने चल रहे हैं। हमारे केस में केंद्र सरकार दूसरी पार्टी है और उसके मुखिया हैं प्रधानमंत्री मोदी हैं। सीजेआई के इनसे दोस्ताना संबंध हैं। इसलिए हमें संदेह है कि क्या हमें न्याय मिलेगा। मुख्य न्यायाधीश को इस मामले से खुद को दूर कर लेना चाहिए, क्योंकि उनका संबंध दूसरे पक्ष से है। मामला खुलेआम दिख रहा है। क्या ऐसे में सीजेआई चंद्रचूड़ हमें न्याय दे पाएंगे? हमें तारीख पर तारीख मिल रही है और अवैध सरकार चल रही है।

वहीं शिवसेना की एक और सांसद प्रियंका चतुवेर्दी ने भी इस मामले को लेकर सीजेआई चंद्रचूड़ पर तंज कसते हुए कहा कि हमें उम्मीद है कि उत्सव समाप्त होने के बाद सीजेआई उचित समझेंगे और महाराष्ट्र में संविधान के अनुच्छेद-10 की घोर अवहेलना पर सुनवाई समाप्त करने के लिए थोड़ा स्वतंत्र होंगे। अरे रुकिए, वैसे भी चुनाव नजदीक हैं, इसे किसी और दिन के लिए स्थगित किया जा सकता है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05