2022-08-21 17:22:29
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों पर दुख जताते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने शनिवार को कहा था कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से कोई उम्मीद नहीं बची है, सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा कर भी कैसे सकते हैं जब वह ऐसे कानूनों को बरकरार रखता है। गौरतलब है कि शनिवार (6 अगस्त) को सिब्बल एक जन अदालत (पीपुल्स ट्रिब्यूनल)में शामिल हुए थे, जिसका आयोजन न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान (सीजेएआर), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और नेशनल अलायंस आॅफ पीपुल्स मूवमेंट द्वारा किया गया था। इसमें चर्चा का विषय सुप्रीम कोर्ट के हालिया दो फैसले, 2002 के गुजरात दंगे और 2009 में छत्तीसगढ़ में हुआ आदिवासियों का नरसंहार, थे।
खबर के मुताबिक, सिब्बल ने दो मामलों को केंद्र में रखकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की. दोनों ही मामलों में उन्होंने वकील के तौर पर पैरवी की थी. पहला मामला गुजरात दंगों के मामले में राज्य के पदाधिकारियों को एसआईटी द्वारा दी गई क्लीन चिट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका खारिज करने से संबंधित था, जबकि दूसरा मामला मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने का था जो प्रवर्तन निदेशालय को असीमित शक्तियां प्रदान करते हैं। सिब्बल ने अपने संबोधन की शुरूआत करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पचास साल तक प्रैक्टिस करने के बाद उन्हें संस्थान से कोई उम्मीद नहीं बची है। उन्होंने कहा कि यदि एक ऐतिहासिक फैसला भी दिया जाता है, तो भी यह मुश्किल ही है कि वह कभी जमीनी हकीकत बदल पाता हो. कई प्रगतिशील फैसले देने के बावजूद जमीनी हकीकत नहीं बदली है और समान ही रही है। गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले सिब्बल ने अदालती बहस के बारे में बात करते हुए बताया कि उन्होंने सिर्फ रिकॉर्ड पर मौजूद सरकारी दस्तावेज और आधिकारिक रिकॉर्ड पेश किए थे, कोई निजी दस्तावेज पेश नहीं किया था। उन्होंने कहा कि दंगों के दौरान कई घरों को जला दिया गया. सामान्य तौर पर खुफिया एजेंसी आग बुझाने के लिए फायर बिग्रेड को कॉल करतीं, लेकिन उनके दस्तावेज और पत्राचार दिखाते हैं कि किसी फायर ब्रिगेड ने फोन नहीं उठाया। उन्होंने आगे कहा कि इस पर बहस की गई कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने ढंग से इस बात की जांच नहीं की कि क्यों फायर ब्रिगेड ने फोन नहीं उठाया. यह बताने के बावजूद भी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नहीं किया।
उन्होंने कहा कि एसआईटी ने आरोपों का सामना कर रहे कई लोगों को सिर्फ उनके बयान पर भरोसा करके बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के सामने इन बिंदुओं को उठाया गया, लेकिन कुछ नहीं हुआ. यहां तक कि एक कानून का छात्र भी जानता होगा कि एक आरोपी को उसके बयान के आधार पर छोड़ा नहीं जा सकता है।
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