2023-08-12 10:23:07
नई दिल्ली। राज्यसभा में गुरुवार को सरकार ने चुनाव आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और अन्य दूसरे निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यकाल के रेगुलेशन के लिए एक बिल पेश किया। इस बिल को लेकर विपक्ष ने कहा कि यह चुनाव आयोग को पूरी तरह से प्रधानमंत्री (Prime Minister) के हाथों की कठपुतली बनाने का एक प्रयास है। ये विधेयक सुप्रीम कोर्ट (Suprim Court) की ओर से मार्च में दिए गए उस आदेश के महीनों बाद आया है, जिसमें कहा गया था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए संसद की ओर से कानून न बनाए जाने तक प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस (CJI) की सदस्यता वाली समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा इन चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी।
कांग्रेस ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति पर मोदी सरकार के विधेयक का उद्देश्य ‘भारत के चुनाव आयोग’ को ‘मोदी चुनाव आयोग’ में बदलना है, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया कि यह कदम चुनावों की निष्पक्षता को प्रभावित करेगा।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के विधेयक में कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों का चयन प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली समिति करेगी, जिसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे। इससे पहले इस साल मार्च में शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के उस फैसले के बाद आया है कि जिसमें कहा गया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) की समिति की सलाह के आधार पर की जानी चाहिए।
विधेयक के अनुसार, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर की जाएगी जिसमें निम्न शामिल होंगे:
(1.) प्रधानमंत्री, अध्यक्ष;
(2.) लोक सभा में विपक्ष के नेता, सदस्य;
(3.) प्रधान मंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री, सदस्य.
ये एकदम अतार्किक और न्याय शास्त्र के सिद्वांतों के विपरीत है चूंकि इसमें एक सदस्य प्रधानमंत्री और दूसरा सदस्य प्रधानमंत्री के द्वारा नामित केबिनेट मंत्री और विपक्ष का नेता है। यहां पर प्रधानमंत्री स्वयं एक सदस्य होंगे और उनके द्वारा नामित सदस्य कैबिनेट मंत्री उनका ही प्यादा होगा इसका मतलब साफ है की प्रधानमंत्री के पास 1 के बजाये 2 वोट अपने आप में ही बन जायेंगी। तीन सदस्य समिति में जब दो वोट खुद प्रधानमंत्री की होंगी तो फि र तीसरे वोट की जरूरत ही नहीं होगी चूंकि फैसला 2-1 से होना है। इस प्रकार प्रधानमंत्री जिसे चाहेगा उसी को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जायेगा। जिसके बाद अब यह नहीं कहा जा सकता है की आगे इस देश में चुनाव निष्पक्ष होंगे? और प्रजातंत्र बचा रहेगा?
इसकी आलोचना करते हुए कांग्रेस सांसद और प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक विस्तृत ट्वीट में कहा कि सरकार का कदम 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आया है और कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में हार के बाद मोदी सरकार पर हार का खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने लिखा, निर्वाचन आयोग अब एक तानाशाह प्रधानमंत्री द्वारा हरसंभव तरीके से सत्ता पर कब्जा करने की कोशिश ने खत्म होने वाली अंतिम संवैधानिक संस्थाओं में से एक होगी। यह विधेयक संविधान, न्यायपालिका और लोगों के निष्पक्ष तरीके से अपनी सरकार चुनने के अधिकारों पर हमला है। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित चयन समिति में चेक एंड बैलेंस सिद्धांत का पालन नहीं है और यह एक ‘खाली औपचारिकता’ होगी क्योंकि एक भी कैबिनेट मंत्री उस प्रधानमंत्री के खिलाफ मतदान नहीं करेगा जिसने उसे नामित किया है।
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने भी इसी बात को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा, ह्यसुप्रीम कोर्ट के मौजूदा फैसले के बारे में क्या, जो एक निष्पक्ष समिति की बात कहता है? प्रधानमंत्री को एक पक्षपाती चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की जरूरत क्यों महसूस होती है? यह एक असंवैधानिक, मनमाना और अनुचित विधेयक है- हम हर मंच पर इसका विरोध करेंगे।
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