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व्यक्ति को नहीं, संस्थाओं को मजबूत करने की जरूरत

प्रभावी नेतृत्व के लिए दलित समाज को स्वयंभू व पूंजीवादी मानसिकता के नेताओं को नकारना होगा
News

2025-05-31 16:59:16

प्रकाश चंद

नेतृत्व एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसे पहचानना भी जरूरी है। नेतृत्व को अक्सर इस बात से परिभाषित किया जाता है कि नेता क्या करता है या उसके पास क्या क्षमताएँ हैं? जबकि व्यक्तिगत नेताओं के कौशल और व्यवहार महत्वपूर्ण हैं, नेतृत्व का सही अर्थ यह है कि लोग एक साथ क्या करते हैं?

वास्तव में नेतृत्व क्या है? हम नेतृत्व को एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जो व्यक्तियों को एक साथ मिलकर काम करने में सक्षम बनाती है ताकि वे ऐसे परिणाम प्राप्त कर सकें जिन्हें वे अकेले काम करके कभी प्राप्त नहीं कर सकते।

अच्छे नेतृत्व के गुण: व्यक्तियों को अपने भीतर नेतृत्व विशेषताओं को मजबूत करने के लिए इंतजार करने की जरूरत नहीं है। यदि आप तय करते हैं कि आप अपने नेतृत्व गुणों और कौशलों को विकसित करने के लिए सक्रिय रूप से काम करेंगे तो आप सफल होंगे। मनुष्य लगातार अपनी गलतियों से ही सीखता है, और मजबूत होता है। सामाजिक चुनौतियाँ से निपटने एवं तर्कसंगत समाधान देने से नेतृत्व में कारगरता बढ़ेगी और जनता का भरोसा भी बढ़ेगा। सिर्फ चुनाव जीतने से सामाजिक नेता नहीं बनते। जनता आपको चुने तभी आप समाज के नेता बन पायेंगे।

आमतौर पर नेता बनाए नहीं जाते, वे स्वाभाविक रूप से पैदा होते हैं। परंतु वर्तमान समय में विभिन्न क्षेत्रों में कुशल नेता पैदा करने के लिए बहुत सारे प्रशिक्षण केंद्र व विश्वविद्यालय खुल चुके हैं। हमारे अनुभव के अनुसार नेता बनने के गुण मनुष्य में बचपन से ही होते हैं, परंतु बदलते वातावरण और समाज में उभरती चुनौतियों के अनुसार स्वाभाविक रूप से मिले नेतागिरी के गुणों को उचित शिक्षण व प्रशिक्षण व्यवस्था के द्वारा जन्म से मिले गुणों को तराशा और चमकाया जाता है। सामाजिक नेतृत्वकर्ताओं में इन तत्वों का होना आवश्यक है। जैसे- ईमानदारी, प्रखर वक्ता, आत्म जागरूकता, साहस, सम्मान, करुणा, लचीलापन, समर्पित भाव का होना। सीखने की प्रबल इच्छा, दूरदृष्टि, कृतज्ञता का भाव, समाज के महापुरुषों के संघर्ष की जानकारी, निर्णयात्मक इृष्टिकोण, समाज से जुड़ी समस्याओं का ज्ञान व उसका हल निकालने की योग्यता। इन सभी गुणों में मनुष्य बदलती परिस्थितियों के अनुसार सुधार व बदलाव कर सकता है और समाज का प्रभावी नेता बन सकता है।

1. ईमानदारी: सामाजिक संगठनों के नेताओं में का ईमानदार होना एक बहुत बड़ी पूंजी है, जो समाज के साधारण सदस्यों को संगठन के साथ जुड़ने के लिए आकर्षित करती है। बहुजन समाज (एससी, एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यक) आज कारगर व ईमानदार नेतृत्व के अकाल से जूझ रहा है। चूंकि बहुजन समाज में आज लाखों की संख्या में सामाजिक संगठन खड़े हो चुके हैं। बहुजन समाज के सभी जातीय घटक अपने-अपने जातीय घटकों के दर्जनों सामाजिक संगठन खड़े कर रहे हैं। करीब से देखने पर पता चलता है कि ऐसे संगठनों का निर्माण करने वालों के पास न कोई सटीक उद्देश्य है, न दूरदृष्टि है, और न ही उनमें उद्देश्य प्राप्ति के लिए कोई तय रास्ता है। अधिक संख्या में संगठनों के निर्माण का कारण कुछेक लोगों में राजनीतिक ललक की प्रबलता का होना भी है। मनुवादियों ने बहुजन समाज के नौजवानों पर राजनैतिक ललक इस कदर हावी करा दी है कि वे बिना किसी समझ, अध्ययन, त्याग, समर्पण के राजनैतिक नेता बनने की चाह पाले हुए हैं। लेकिन उनमें उपरोक्त तत्वों का न होना उन्हें नेता बनने के हर मोर्चे पर विफल कर रहा है। ऐसे व्यक्ति राजनैतिक दलों के नेताओं के औजार (चमचा) बनकर समाज में अपनी चमक-दमक दिखाकर अपने अंदर की इच्छा को संतुष्ट कर रहे हैं। इस प्रकार के नेताओं में ईमानदारी का घोर अभाव होता है और वे अपनी इच्छा पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जाकर समाज के साथ धोखा करने को तैयार रहते हैं।

2024 के बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर प्रतिमा विस्थापन आंदोलन में देखा गया कि जिन लोगों को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा गया, उनमें से अधिकतर लोग बेईमान ही निकले और अंतत: यह आंदोलन फेल हो गया।

2. प्रखर वक्ता: नेताओं में प्रखर वक्ता गुण होना एक आवश्यक तत्व है। लोग जन्म से प्रखर वक्ता नहीं होते हैं लेकिन वे संस्थानों में अध्ययन, प्रशिक्षण के माध्यम से अपने आपको प्रखर वक्ता बना सकते हैं। दुनिया में बहुत सारे ऐसे उच्च कोटी के उदाहरण है जो स्वाभाविक तौर पर प्रखर वक्ता नहीं थे, परंतु उन्होंने उपयुक्त प्रशिक्षण के द्वारा अपने आपको प्रखर वक्ता बनाया। उदाहरण के तौर पर विंसटन चर्चिल जो ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे और वे एक अच्छे प्रखर वक्ता भी थे, कहा जाता है कि वे अपना कोई भी भाषण बिना किसी तैयारी के नहीं देते थे। बहुत सारे उदाहरण है जो प्रखर वक्ता बनने के लिए अपने कमरे में चारों तरफ शीशे लगवाकर, भाषण देने का अभ्यास करते हैं; उसका आंकलन करते हैं कि मैं कैसा बोलता हूँ, मेरे हाव-भाव कैसे है, उसका आंकलन करके उसमें सुधार करते है। बहुजन समाज में बाबा साहब एक बड़ा उदाहरण हंै। जो एक प्रखर वक्ता के साथ-साथ उच्च कोटी के विद्वान भी थे। बहुजन समाज में प्रखर वक्ता के रूप में दूसरा नाम बी.पी. मौर्य जी का आता है जो नि: संदेह एक प्रखर वक्ता व निडर प्रकृति के नेता थे।

3. आत्म जागरूकता: आत्म जागरुकता का अर्थ है स्वयं को जानना। नेता बनने वाले व्यक्ति को जनता में जाने से पहले उसे अपने बारे में पूर्ण जागरूक होना चाहिए। अगर किसी भी मनुष्य में कोई कमतरता है तो उसकी पूर्ति के लिए नेता बनने वाले व्यक्ति को प्रयास करना चाहिए। आत्म जागरूकता और विनम्रता नेतृत्व के सर्वोपरि गुण हैं, जितना बेहतर आप खुद को समझेंगे और अपनी ताकत और कमजोरियों को पहचानेगे, आप उतने ही अच्छे नेता बन पायेंगे।

4. साहस व निडरता: नेतृत्व के लिए व्यक्ति में साहस व निडरता का होना आवश्यक है। नेता साहस दिखाकर ही जनता को प्रभावित व सामाजिक मुद्दों को हल कर सकता है। संगठनों के नेताओं में सामाजिक समस्याओं को लेकर संबंधित अधिकारियों और सरकार से टकराने का साहस भी होना चाहिए। अगर कोई सामाजिक संगठनों का नेता संबंधित टकराव से बचने के लिए आना-कानी करता है, अपनी भीरुता दिखाता है तो वह समाज का नेतृत्व करने के लिए उपयुक्त नहीं है। 2024 में बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा विस्थापन पर चले आंदोलन को लेकर जिन व्यक्तियों के हाथ में आंदोलन की बागडोर सौंपी गई थी उनकी व्यक्तिगत भीरुता के कारण आंदोलन अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच सका। इसलिए किसी भी सामाजिक आन्दोलन को लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए स्वार्थ विहीनता, ईमानदारी और साहस सबसे अहम तत्व है। इनके बिना कोई भी सामाजिक आंदोलन सफल नहीं हो सकता।

5. सम्मान: जब कोई समाज की समस्याओं से जुड़ा व्यक्ति लगातार संघर्ष को प्रदर्शित करता है तो समाज भी उसे सम्मान देता है। सम्मान जब लगातार प्रदर्शित किया जाता है तो यह सबसे महत्वपूर्ण चीजों में से एक है जो एक नेता कर सकता है। सम्मान की संस्कृति बनाना केवल आदर की अनुपस्थिति से कहीं अधिक है।

6. संघात्मक करुणा: करुणा को आत्मसात करने व उसे प्रदर्शित करने के लिए नेताओं को जो कुछ भी सीखना है, उस पर काम करना जरूरी है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि जब कोई व्यक्ति किसी चिंता को साझा करता है या किसी चीज के बारे में बोलता है, तो उसे ऐसा महसूस होता है कि उसकी बात सही से सुनी नहीं गई है। करुणा सामाजिक नेतृत्व का मूल हैं, यह संगठनों में विकास बढ़ाने, सहयोग बढ़ाने, और सहयोगात्मक प्रक्रिया में मदद करता है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित तीनों संस्थायें समता सैनिक दल, बुद्धिस्ट सोसाइटी आॅफ इंडिया, रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया में करुणामयी भावना का घोर अभाव है। बहुजन समाज के सभी सामाजिक संगठनों के संचालनकर्ताओं में करुणामयी भाव नहीं है जिस वजह से इन संगठनों के प्रति जनता का विश्वास दिन प्रतिदिन घट रहा है। मूल रूप से बाबा साहब के द्वारा निर्मित सभी संस्थायें बुद्ध धम्म की अवधारणा पर निर्मित हैं और बुद्ध धर्म में भगवान बुद्ध ने करुणा को बहुत महत्व दिया है। लेकिन भारत में बुद्ध धर्म की अवधारणा पर बनी संस्थायें करुणा मुक्त होकर आगे चल रही है इसलिए वे आज अपने हर संघर्ष में विफल हैं।

7. हालात के मुताबिक लचीलापन: संस्थाओं में लचीलापन होना सफलता के लिए आवश्यक तत्व है। लचीलापन बाधाओं और असफलताओं से उभरने में मदद करता है। लचीले नेतृत्व का मतलब ढीलापन नहीं बल्कि संगठन की सफलता के लिए एक सकारात्मक दृष्टिकोण है। जो दूसरों को साझा दृष्टिकोण के लिए आवश्यक भावनात्मक शक्ति व आगे बढ़ने में मदद करता है। अच्छा नेता भिन्न-भिन्न प्रकार के अच्छे व्यक्तियों से मिलता है उनकी समस्याओं को सुनता है और सुनकर सभी को सकारात्मक भाव से सुलझाने की कोशिश करता है। वह अपने सहकर्मियों को सुनने व उनकी भलाई को प्राथमिकता देता है।

8. समर्पित भाव का होना: सामाजिक संगठनों को सशक्त और प्रभावशाली बनाने के लिए नेताओं को समर्पण भाव से काम करना चाहिए। जिन सामाजिक संगठनों के नेता समाज के लिए समर्पण भाव से काम नहीं करते, कुछ ही दिनों के बाद ऐसे नेता समाज के सामने बेकार साबित हो जाते हैं। जनता उनका नेतृत्व मानने के लिए तैयार नहीं रहती है। अंतत: ऐसे नेताओं को समाज बाहर का रास्ता दिखा देता है।

9. संगठन में पारदर्शिता: सामाजिक संगठनों के नेतृत्वकर्ताओं में पारदर्शिता, स्पष्टवादिता, ईमानदारी व समाज का भरोसा जीतने के लिए आवश्यक तत्व है। अगर कोई नेता पारदर्शिता और स्पष्टवादिता का जनता में प्रदर्शन करता है तो जनता भी उसे सम्मान देकर संस्था में जुड़े रहने की प्रतिबद्धता जाहिर करती है और संस्था के सभी कार्यक्रमों को सफल बनाने में वह तन-मन-धन से उसके साथ जुड़ी रहती है।

10. नेताओं की मानसिकता में पूंजीवाद की झलक: बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अथक प्रयासों से ही दलित समाज शिक्षित हो सका, सक्षम बना और कुछ हद तक संपत्तिवादी भी हुआ। इन तत्वों की उपलब्धता के कारण दलित समाज में दो वर्ग हुए, शोषक और शोषित। बाबा साहेब के अथक प्रयासों के कारण ही दलित समाज के लोगों को सरकार में नौकरियां मिली, कुछेक लोग अपनी योग्यता के आधार पर अच्छे पदों पर आसीन हुए जिसकी बदौलत उन्होंने सवर्ण समाज की कालोनियों में अपने लिए अच्छे मकान-दुकान बनवाये। इनमें से कुछेक लोगों ने सरकार में मलाईदार पदों पर रहकर खूब अवैध धन कमाया। इन लोगों ने बाकि समाज से कटकर अपने लिए एक अलग धनाड््य (पुंजीवादी) समाज का निर्माण किया। ऐसी प्रवृति के बहुत सारे लोग मूल समाज से कट गए। लेकिन फिर भी उन्होंने कुछेक गुणगान करने वाले (चमचों, गुर्गों) को पाल लिया। ऐसे लोगों ने सामाजिक संस्थाओं में घुसकर साम-दाम-दंड-भेद के आधार पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। जिसके कारण आज सभी सामाजिक संस्थायें निष्क्रिय और मृतप्राय हो चुकी हैं। ये सभी संस्थायें जनता का भरोसा खो चुकी हंै। बिना जनता के समर्थन के कोई भी संस्था जीवंत नहीं रह सकती।

11. सामाजिक संस्थाओं का जीवंत रहना आवश्यक: सामाजिक संस्थाओं को प्रभावशाली ढंग से संचालित करने के लिए उनमें सतत: जीवंत प्रक्रिया का होना आवश्यक तत्व है। संस्थाओं को जीवंत बनाने के लिए हमारे अनुभव के आधार पर संस्था से जुड़े जिम्मेदार व्यक्तियों की उम्र 40-50 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए। बूढ़े व्यक्तियों को संस्था की जिम्मेदारी नहीं देनी चाहिए चूंकि उनमें नेतृत्व के लिए लचीलापन नहीं रहता और उनमें एक पीढ़ी का अन्तर हो जाता है। जिसके कारण वर्तमान में सभी सामाजिक संस्थाओं में नवयुवकों का अभाव है। पीढ़ी के अन्तर के कारण वे समयानुकूल अद्यतन (अपडेट) नहीं रह पाते। साथ ही उम्र दराज व्यक्तियों में एक मनोवैज्ञानिक सोच भी पैदा हो जाती है कि जो हम कह रहे हैं वही सत्य है, उसे ही माना जाना चाहिए। जबकि सामाजिक संगठनों के नेतृत्व के लिए सभी के बातों को सुनकर सामूहिक निष्कर्ष निकालकर समाधान देना चाहिए।

बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित तीनों सामाजिक संस्थाओं में बूढ़े, अक्षम, दूरदृष्टि-विहीन और बहुजन समाज को संस्थाओं के हित में पूंजीवादी सोच रखने वाले लोगों को संस्थाओं से बाहर रखना चाहिए। वास्तविकता के आधार पर बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संस्थाओं को ध्वस्त करने के लिए, शहरों में बैठे, समृद्ध लोग ही जिम्मेदार हैं। समाज में पनपते नए पूंजीवादियों को संस्थाओं से बाहर करके संस्थाओं को पुनर्जीवित करना चाहिए।

12. लोकतांत्रिक भावना का होना आवश्यक: सामाजिक संस्थाओं की चुनाव प्रक्रिया गोपनीय व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा सम्पन्न करानी चाहिए। वर्तमान समय में बाबा साहेब द्वारा निर्मित समता सैनिक दल जैसे संस्थाओं में दबंग प्रवृति के गुर्गों द्वारा दलित पूंजीवादियों को संस्था के अहम पदों पर नामित कराया जाता है जिसके कारण इन संस्थाओं से जनता का भरोसा घट रहा है। संस्थायें दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। स्वार्थी किस्म के दलित पूंजीवादी प्रवृति के नेता वर्तमान में समता सैनिक दल की कार्यकारिणी के उच्च पदों पर रहने के लिए षड्यंत्र रच रहे हैं। समाज और संस्था के हित में हमारा निवेदन है कि जिन लोगों की वजह से बाबा साहब द्वारा निर्मित संस्थाओं में भ्रष्टाचार और बेईमानी को बढ़ावा मिला है उन्हें हर कीमत पर संस्था से दूर ही रखा जाए।

13. सामाजिक संगठनों में बने-बनाए नेता नहीं चाहिए: बहुजन समाज के महानायक मान्यवर साहेब कांशीराम जी हमेशा अपने समर्थकों को आगाह करते थे कि हमें अपने सामाजिक मिशन में बने-बनाए नेताओं को नहीं लेना है। चूंकि बने-बनाए नेताओं की वफादारी हमेशा संदिग्ध ही रहती है। इसलिए हमें सामाजिक नेता अपने समाज से ही संघर्ष द्वारा पैदा करने होंगे। मेरा सभी सामाजिक संगठनों को सुझाव है कि संगठन से जुड़े व्यक्तियों की कार्य, क्षमता, प्रदर्शन व समर्पण भावना को देखकर ही संगठन का सदस्य बनाया जाये।

14. उच्च पदों से रिटायर व्यक्तियों को अहम पदों पर न रखा जाये: आमतौर पर समाज में देखा जा रहा है कि समाज के जो व्यक्ति उच्च सरकारी पदों से रिटायर हो रहे हैं वे अपने उसी पद के अहंकार के अनुसार समाज से सम्मान की भावना रखते हैं। ऐसे व्यक्तियों को सामाजिक संगठनों में जोड़ने के लिए उनके पूर्व के कार्यों, जैसे- सामाजिक जुड़ाव, सामाजिक दु:ख-दर्द की भावना और समाज के कष्टों के निवारण की भावना का होना आवश्यक है। ऐसे व्यक्तियों को समाज को केवल हाँकने के लिए उच्च पदों पर आसीन नहीं किया जाना चाहिए।

15. संचार व्यवस्था: आज संचार क्रांति का युग है। संचार क्रांति के माध्यम से समाज में घटी किसी भी घटना को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचा सकते हैं। संचार तकनीक का इस्तेमाल करके समाज को जागरूक व सावधान भी कम से कम समय में किया जा सकता है। समाज से जुड़े उम्र दराज व्यक्तियों में संचार तकनीक के उपयोग की जानकारी अपेक्षाकृत कम हो सकती है। इसलिए इस कार्य को तत्परता से कराने के लिए सामाजिक संगठनों में नवयुवकों का जुड़ना समय की माँग है। सामाजिक संगठनों से जुड़े सभी व्यक्तियों के पास वाट्स-अप, ईमेल आदि की सुविधा वांछनीय होनी चाहिए। कम से कम जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्तियों के पास यह सुविधा अवश्य होनी चाहिए।

16. सहयोग की भावना: सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों में सहयोगात्मक भावना का होना आवश्यक तत्व है। इसलिए जो व्यक्ति सामाजिक भावना के तहत संगठन से जुडते है उनमें सबसे पहले संगठन और संगठन से जुड़े व्यक्तियों के लिए सहयोग की भावना होनी चाहिए। सहयोग की भावना से ही समाज में अच्छे नेता उभरकर निकलते हैं। अगर सामाजिक संगठन के कार्यकलापों व कार्यक्रमों में अबाध्य सहयोग की भावना हो तो समाज के सभी कार्यक्रम सफल होंगे।

17. कर्तज्ञता: कर्तज्ञता सामाजिक संगठनों में उत्साहवर्धक भावना है अगर सामाजिक संगठन किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से सहयोग प्राप्त करता है तो संगठनों के संचालकों को उस व्यक्ति के प्रति कर्तज्ञ होना चाहिए। ईमानदारी के साथ आभार व्यक्त करने से आप समाज में एक बेहतर नेता बन सकते हैं। हमने अपने अनुभव में पाया है कि बहुजन समाज सवर्ण समुदाय के प्रति तो अपनी कर्तज्ञता जाहिर करता है परंतु अपने समाज के व्यक्तियों के प्रति ऐसा महसूस नहीं करता। मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने समाज के ऐसे गुणों को देखकर कहा था कि- ‘हमारा आदमी हमारे ऊपर ही सबसे ज्यादा पहलवानी दिखाता है।’ समाज में अच्छे नेता पैदा करने के लिए इस तरह की भावना का होना आवश्यक है।

18. महापुरुषों की शिक्षाओं को आत्मसात करना जरूरी: भारत में सिख समाज बाकी समाजों की संख्या में कम है मगर फिर भी वह बलवती और समृद्ध है। हर संघर्ष का सामना सिख समाज अपने समाज की ताकत के बल पर करता है। ऐसा वह इसलिए करता है चूंकि उनमें अपने गुरुओं के प्रति आदर, समर्पण, निष्ठा व सेवा भाव है। इसके विपरीत दलित समाज के लोग अपने महापुरुषों की न शिक्षाओं पर चलते हैं और न अपने महापुरुषों के प्रति आदर व समर्पण का भाव रखते हैं। समाज की ऐसी अवस्था को देखकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि-अगर हमारा आदमी हमारी बात मान ले तो इससे बढ़कर कोई सुधार हो नहीं सकता। मगर हमारा आदमी पंडित जी (ब्राह्मण) की बात मानता है। इसलिए आज पूरा समाज लक्ष्यहीन व दिशाहीन है। जो समाज लक्ष्यहीन और दिशाहीन होता है वह सत्ता की कुर्सी तक नहीं पहुँच सकता।

19. फरेबी किस्म के नेताओं को संस्थाओं में न रखा जाये: आज समाज में बहुत सारे फरेबी किस्म के नेता पैदा हो चुके हैं। वे अपनी फरेब बाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। अगर कोई फरेबी किस्म का नेता दिल्ली में रहकर सफल नहीं बन पा रहा है तो वह महाबोधि विहार के प्रदर्शन में जाकर वहां पर एकत्र हुई समाज की जनता को बरगला रहा है कि हम महाबोधि विहार के लिए अंतिम सांस तक संघर्ष करेंगे। ये वही नेता हैं जिनकी वजह से दिल्ली में बाबा साहेब की प्रतिमा विस्थापन का आंदोलन विफल हुआ। इन नेताओं का अंतिम लक्ष्य सिर्फ समाज की जनता के संख्याबल को दिखाकर राजनीति में स्थान प्राप्त करना होता है। महाबोधि के आंदोलनकर्ताओं से निवेदन है कि वे ऐसे फरेबी नेताओं की चालाकियों में न फंसें और अपनी बुद्धि बल से सब चीजों का आंकलन करें और आगे बढ़ें। बहुजन स्वाभिमान संघ शुभकामनाओं के साथ यह आश्वसन भी देता है कि आपके आंदोलन को कोई भी जरूरत पड़ने पर यथा संभव सहायता का प्रयास किया जायेगा।

20. व्यक्ति को नहीं, संस्थाओं को मजबूत करने की जरूरत: समाज की सभी संस्थाओं से चमचों को बाहर का रास्ता दिखाना होगा। जो लोग सामाजिक संस्थाओं में अपने चमचे, गुर्गे और औजार पाल रहे हैं उन्हें सामाजिक संगठनों में कोई स्थान नहीं देना चाहिए। ये जिम्मेदारी हम सबकी बनती है कि हमें किसी भी संस्था में बैठे किसी चहेते व्यक्ति को मजबूत नहीं बनाना है बल्कि संस्था की मजबूती के लिए काम करना है जिसके लिए उचित कदम उठाने होंगे। ऐसा करके ही सामाजिक संस्थाएं सुदृढ़ और सम्पन्न बन पायेंगी।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05