2025-08-16 17:22:45
बहुजन स्वाभिमान डेस्क
नई दिल्ली। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका कार्य संविधान के अनुसार देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव करना है। पिछले दो दशकों में जब से मोदी संघी सरकार भारत की सत्ता में स्थापित हुई है तभी से मोदी-संघी शासन ने संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा करके अपने गुलाम मानसिकता के लोगों को वहाँ बैठा दिया है। मोदी जब से केंद्र की सत्ता में स्थापित हुए है तभी से वे इस जुगाड़ में हैं कि देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर संघी मानसिकता के गुलामों को कैसे स्थापित किया जाए ताकि जैसा मोदी चाहे वैसा ही वे करें? मोदी के द्वारा आज देश के सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में संघी मानसिकता के लोगों को स्थापित किया जा चुका है जिनके माध्यम से देश में खुला भ्रष्टाचार चल रहा है। बिना संघी मानसिकता के व्यक्ति की सहमति के सरकारी दफ्तरों में चपरासी भी भर्ती नहीं हो सकता।
लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने के लिए संविधान में चुनाव प्रक्रिया को रखा गया है जिससे जनता अपना प्रतिनिधि बिना किसी डर, भय व लालच के खुद चुन सके। इसी चुनाव प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने और सुदृढ़ करने के लिए चुनाव आयोग बनाया गया। चुनाव आयोग 3 सदस्य संस्था है। जिसमें निष्पक्षता बनाए रखने के उद्देश्य से उच्चतम न्यायालय के तब के न्यायधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ ने व्यवस्था दी थी कि आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक 3 सदस्य कमेटी होगी, जिनमें एक सदस्य प्रधानमंत्री खुद या उनके द्वारा नामित किया गया व्यक्ति होगा, दूसरा सदस्य उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायधीश होगा, तीसरा सदस्य संसद में विपक्ष का नेता होगा, और ये तीनों चुनाव संबंधी प्रक्रिया का फैसला बहुमत के आधार पर करेंगे। उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई यह व्यवस्था मोदी के मस्तिष्क में छिपी बेईमानी को पसंद नहीं आई उन्होंने इस व्यवस्था को पटलकर संसद में भाजपा के बहुमत के आधार पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कानून बनाया और अपने संख्या बल के आधार पर उसे संसद से पारित करवाया। इस कानून में नियुक्ति के लिए 3 सदस्य समिति ही रखी, जिसके सदस्य प्रधानमंत्री या उनके द्वारा नामित व्यक्ति को रखा और दूसरा सदस्य अपने मंत्री मण्डल के प्रधानमंत्री द्वारा नामित मंत्री को रखा और तीसरा सदस्य संसद में विपक्षी दल के नेता को रखा। इससे साफ दिखाई देता है कि पूरी की पूरी चुनाव आयुक्तों को चुनने वाली कमेटी मोदी की हाँ में हाँ मिलाने वाले चापलूसों की कमेटी है जो किसी भी दृष्टि से न्यायिक दिखाई नहीं पड़ती। इस प्रक्रिया से चुनाव आयोग कभी भी निष्पक्ष नहीं हो सकता। पिछले साल मोदी ने आनन-फानन में चुनाव आयोग में दो आयुक्तों की नियुक्ति की जिसके फैसले का प्रभाव अब जनता में दिखाई दे रहा है और उनके फैसलों में निष्पक्षता कहीं भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही है। पूरा का पूरा चुनाव आयोग मोदी का आयोग बन गया है। चुनाव आयोग वोटरों की लिस्ट तो मांगने पर देता है लेकिन वह उसे डिजिटल फॉर्मेट में नहीं देता है, फिजिकल फॉर्मेट में देता है। फिजिकल फॉर्मेट में मतदाताओं को पहचानना, गणना करना, और उसका कई-कई मतदान केन्द्रों पर वोट का होना और उसे पहचानना मुश्किल ही नहीं असंभव है। राहुल गांधी ने चुनावी धांधली को पकड़ा: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने दो दशक से मोदी-संघियों की चली आई धांधली को पकड़ने के लिए कर्नाटक और महाराष्ट्र की एक-दो विधान सभा की सीटों पर मतदाता सूचियों का फिजिकल रूप से विश्लेषण किया तो उन्होंने पाया कि वोटर लिस्टों में बड़े पैमाने पर हेरा-फेरी और धांधली है। उन्होंने पाया कि वोटर लिस्ट में 5 प्रकार की विसंगतियां है। पहला, डुप्लीकेट वोटर, मतलब एक ही मतदाता के नाम मतदाता सूची में 5-6 जगह पर है; दूसरा, फेक एड्रेस मतलब एड्रेस है ही नहीं या फिर हाऊस नंबर जीरो; तीसरा, बल्क वोटर एंड सिंगल एड्रेस मतलब एक छोटे से घर में 40-50 से लेकर 200 लोग रहते हैं; चौथा, इनवेलिड फोटोज मतलब छोटी सी फोटो है या फोटो है ही नहीं और जो छोटी फोटो है वह दिखती भी नहीं है कि वह कौन है? किसका चेहरा है? नहीं पता; पांचवा, मिस यूज आॅफ फॉर्म 06, फॉर्म 06 फस्ट टाइम वोटर के लिए होता है मतलब जिनकी आयु 18-20 साल की हो, वे वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने के लिए फॉर्म 06 भरेंगे लेकिन राहुल की टीम ने पाया कि 90 साल के लोग फॉर्म 06 का प्रयोग कर रहे हैं। चुनाव में 6,59,826 वोटर थे उसमें से 1,00, 250 चोरी के थे। अपनी बात को और अधिक स्पष्टता से बताने के लिए राहुल गांधी ने गुरकिरत सिंह का उदाहरण दिया और बताया की इस मतदाता का नाम एक ही विधान सभाओं की कई बूथों पर आता है अब कोई चुनाव आयोग से पूछे कि ये कैसे हुआ और क्यों हुआ? एक और उदाहरण, विशाल सिंह का वाराणसी की वोटर लिस्ट में नाम है और वह बैंगलोर में दो बार वोटर लिस्ट में है क्या ये वाराणसी में वोट कर रहे हैं या बैंगलोर में वोट कर रहे हैं या दोनों जगह वोट कर रहे है?; एक और उदाहरण देखिये हाऊस नंबर जीरो क्या आपने कभी सुना है कि हाउस नंबर जीरो हो सकता है, मगर बैंगलोर में हजारों हाऊस नंबर वोटर लिस्ट में जीरो हैं; बैंगलोर में हाऊस नंबर 35 की कहानी और भी विचित्र है यह एक छोटा सा मकान है जिसमें ज्यादा से ज्यादा 4 लोग रह सकते हैं इस मकान में 80 से 100 मतदाता इसी एड्रेस पर दर्शाए गए हैं, कर्नाटक के एक बूथ पर एक महिला वोटर की उम्र 129 साल दर्शाई गई है दूसरी जगह उसी महिला की उम्र दूसरी जगह कुछ और दर्शाई गई है, तीसरी जगह पता अलग दर्शाया गया है। वोटर लिस्ट में फोटो बहुत छोटी-छोटी हंै जो दिख भी नहीं सकती लेकिन ऐसे मतदाताओं की संख्या लाखों में है। इन्ह सभी विसंगतियों को छिपाने के लिए मोदी के चुनाव आयुक्त द्वारा राहुल गांधी को सीसीटीवी कैमरे का डेटा नहीं दिया जा रहा है। इस प्रकार मतदाता सूची में भारी विसंगतियाँ हैं जो मोदी संघी शासन के तंत्र ने चुनाव में भाजपा की जीत को सुनिश्चित करने के लिए की हुई है। वर्तमान में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार हैं, चुनाव आयुक्त बनने से पहले वे अमित शाह के सचिव व बेहद करीबी व्यक्ति थे जिनके माध्यम से आज पूरी चुनाव प्रक्रिया को धता बताया जा रहा है। इससे पहले मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार थे वे भी मोदी-शाह के पक्के गुलाम थे और उनकी मानसिकता के अनुरूप चुनाव परिणाम का कृत्रिम निर्माण करते थे। ज्ञानेश कुमार को भी राजीव कुमार की तरह काम करने की दीक्षा दी गई है और वे शायद मोदी-शाह को ऐसा भरोसा दिलाकर ही चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त बने हैं। मतदाता सूचियों को लेकर आज पूरे देश में जोरों से बबाल मचा हुआ है लेकिन चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक प्रतिष्ठा के अनुरूप काम नहीं कर रहा है। वह उसमें पूरी तरह से घालमेल कर रहा है। देश के मतदाताओं को चुनाव आयोग पर अब बिल्कुल भी भरोसा नहीं है, इसलिए चुनाव परिणामों में निष्पक्षता दिखाने के लिए निष्पक्ष मानसिकता के चुनाव आयुक्तों का होना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होता है तो मोदी के चुनाव आयुक्तों से देश के लोकतंत्र को गहरा खतरा है। अभी हाल ही में बिहार विधान सभा के चुनाव होने है उससे पहले निष्पक्ष चुनाव आयुक्तों को चुनाव आयोग में स्थापित किया जाये। बिहार की मतदाता सूची में 6 लाख से अधिक मतदाता गायब बताए जा रहे हैं, चुनाव आयोग इस पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दे रहा है और न इसे संगीन मामला मानकर उचित कार्रवाई करने का मन बना रहा है। मामला साफ है कि चुनाव आयोग मोदी-संघी सत्ता के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर चुनाव में धांधली करने की मंशा बना चुका है। पिछले दो दशको में मोदी-संघी मानसिकता के लोग विधान सभा और लोकसभा के चुनाव जीतें हैं। अब साफ तौर पर कहा जा सकता है कि 2014 में जब से मोदी केंद्र की सत्ता में स्थापित हुए है, उन्होंने अपने आपको देश का चौकीदार बताया था परंतु अब चौकीदार ही वोटों की चोरी करवा रहा है ताकि युगों-युगों तक संघी मानसिकता की सरकार इस देश की सत्ता में स्थापित रह सके।
उपरोक्त तथ्यों को संज्ञान में रखते हुए आज यह साफ-साफ दिखाई देने लगा है कि जब तक मोदी संघी सत्ता चल रही है तब तक कोई भी कार्य संविधान के अनुसार होना असंभव है। देश में जो आज जनता की स्थिति है वह सभी मानवीय मापदण्डों पर निम्नतर स्तर पर है फिर भी मोदी संघी मानसिकता के अंधभक्त देश की जनता को बार-बार अपना पाखंडी अलाप करके दर्शा रहे हैं कि विश्व में मोदी का डंका बज रहा है। वह यह देखने में भी असमर्थ हो रहे हैं कि मोदी शासन में पहलगाम की घटना ने मोदी संघियों की कृत्रिम रूप से बनाई गई छवि को पूर्णतया ध्वस्त कर दिया है। आज देश की विदेश नीति पूर्णतया ध्वस्त है, चुनाव आयोग की विश्वसनीयता धरातल पर पहुँच चुकी है। मोदी के सरकारी तंत्र और चुनाव आयोग ने देश की छवि को नुकसान पहुंचाया है। अगर आज देश की जनता को अपने देश की छवि को बचाना है तो वे मोदी संघियों के छलावे में न फंसे और आने वाले आगामी बिहार चुनाव में मोदी-संघियों को अपना वोट न देने का संकल्प ले। मोदी संघियों की सत्ता को हटाकर ही देश प्रगति के पथ अपर अग्रसर हो सकता है।
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