2024-09-20 13:36:01
संवाददाता
नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती मिशन 2027 में जुट गई हैं। यूपी में उपचुनाव से पहले मायावती ने एक बार फिर बामसेफ के पुनर्गठन का ऐलान कर दिया है। मायावती ने एक तीर से दो निशाने साधे है। मायावती का यह दांव समाजवादी पार्टी के पीडीए और चंद्रशेखर आजाद की काट के रूप में देखा जा रहा है। मायावती ने कहा कि भाजपा व विपक्षी पार्टियां जातिवादी और सांप्रदायिक राजनीति कर जनता का भरोसा खो रही हैं। इसका फायदा पार्टी को आगामी उपचुनाव में होगा। इसके लिए पदाधिकारियों की जिम्मेदारी में फेरबदल कर तैयारियों में जुटें। मायावती बृहस्पतिवार को प्रदेश कार्यालय में सभी पदाधिकारियों एवं जिलाध्यक्षों की बैठक को संबोधित कर रही थीं।
हर जिले में होगा एक बामसेफ अध्यक्ष
बसपा सुप्रीमो मायावती ने बामसेफ के जरिए संगठन को मजबूत करेंगी। बामसेफ के पुनर्गठन के फैसले से मायावती यूपी में खोई जमीन को वापस पाने की कोशिश करेंगी। मायावती ने कहा कि हर जिले में बामसेफ का एक अध्यक्ष और 10 उपाध्यक्ष बनाए जाएंगे। साथ ही विधानसभा स्तर पर एक संयोजक तैनात किए जाएंगे। इसके अलावा तीन मंडलों पर बनाए गए एक सेक्टर की व्यवस्था को समाप्त करते हुए मंडलीय व्यवस्था लागू की जाएगी।
एक तीर से दो निशाने
मायावती के इस दांव को सपा के पीडीए की काट के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही मायावती ने चंद्रशेखर आजाद को भी झटका दे सकती हैं। चंद्रशेखर आजाद दलित युवाओं में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं, वहीं, सपा पीडीए के जरिए दलित-पिछड़े को साधने में जुटी है।
क्या है बसपा का बामसेफ?
कांशीराम ने वंचित समुदायों के शिक्षित और सरकारी कर्मचारियों को जोड़ाकर बामसेफ की नींव रखी थी। इसका उद्देश्य समता आधारित शासन व्यवस्था और आर्थिक गैर-बराबरी मिटाने के लिए व्यवस्था परिवर्तन था। बसपा को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने में बामसेफ के लोगों की भूमिका अहम थी। हालांकि, कांशीराम ने 1984 में बसपा के गठन के बाद खुद को बामसेफ से अलग कर लिया था। बामसेफ, बसपा की सियायत को पंख देने का काम करता है।
कैसे काम करता है बामसेफ?
बामसेफ यानी बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाई फेडरेशन पूरा नाम है। कांशीराम के समय यह संगठन बसपा के लिए वैसे ही काम करता था, जैसे बीजेपी के लिए आरएसएस करता है। बामसेफ के जरिए समय-समय पर कांशीराम और उनके सार्थियों ने दलितों पर अत्याचार की लड़ाई लड़ी।
एक मंडल में होंगे दो-दो मंडल प्रभारी
प्रदेश के 18 मंडलों को छह सेक्टर में बांटने की व्यवस्था समाप्त कर अब हर एक मंडल को ध्यान में रखते हुए संगठन की पुरानी व्यवस्था को लागू किया गया है। पार्टी सूत्रों के अनुसार हर एक मंडल में दो-दो मंडल प्रभारी होंगे। लखनऊ मंडल के प्रभारी डा. विजय प्रताप और शमसुद्दीन राईन बनाए गए हैं। इसी तरह प्रयागराज मंडल में लालाराम अहिरवार, दिनेश चंद्रा, राजू गौतम, मिजार्पुर में विश्वनाथ पाल व गुड्डू राम, चित्रकूट में घनश्याम खरवार व अशोक गौतम, कानपुर में सूरज सिंह जाटव व घनश्याम खरवार को लगाया गया है।
गौर करने की बात यह है कि प्रत्येक मंडल में जिलों के अनुसार जिलेवार मंडल प्रभारी भी बनाए गए हैं। लखऊ मंडल के सीतापुर, हरदोई, लखीमपुर जिले के अखिलेश आंबेडकर, मौजीलाल गौतम व विनय कश्यप जबकि लखनऊ, उन्नाव व रायबरेली के अतर सिंह राव, राम नाथ रावत व सुशील मुन्ना जिलेवार मंडल प्रभारी बनाए गए हैं। इसी तरह जिलों के चार-चार प्रभारी बनाए गए हैं। लखनऊ जिले में दिनेश पाल, राकेश पाल गौतम, गंगाराम गौतम व राकेश पाल जिला प्रभारी होंगे। इनमें जिले की सभी विधानसभाओं को बराबर-बराबर बांटकर विधानसभा चुनाव तक के लिए प्रभारी बनाए रखा जाएगा।
इससे पहले उन्होंने 11 अगस्त को हुई बैठक में संगठन को मजबूत करने, जनाधार बढ़ाने के दिए निदेर्शों के पालन की रिपोर्ट भी ली। मायावती ने कहा कि यूपी सरकार का विरोधियों के प्रति पक्षपाती रवैया होने से कानून-व्यवस्था की हालत सुधर नहीं रही है। बुलडोजर राज के बजाय केंद्र व राज्य सरकारों को संविधान व कानूनी राज के अमल पर ध्यान देना चाहिए। यूपी सहित पूरे देश में महिला उत्पीड़न, शोषण व असुरक्षा भी चिंतित करने वाला मुद्दा है। उन्होंने कहा कि एनडीए और इंडिया गठबंधन के दल आरक्षण विरोधी हैं। कांग्रेस व भाजपा ने एससी-एसटी आरक्षण को निष्प्रभावी बना दिया है। उनके आरक्षित पदों को नहीं भरा जाता है। ऐसा ही रवैया ओबीसी के प्रति भी है, इसे रोकने के लिए संगठित प्रयास जरूरी हैं। एससी-एसटी से अलग रहकर करीब 52 प्रतिशत आबादी वाला ओबीसी समाज पहले ही अपना अहित करा चुका है। इसलिए जातीय जनगणना को लेकर गंभीर होना जरूरी है।
मायावती ने पार्टी संस्थापक कांशीराम के आगामी 9 अक्तूबर को होने वाले परिनिर्वाण दिवस के कार्यक्रम लखनऊ और नोएडा में परंपरागत तरीके और मिशनरी भावना से करने के निर्देश दिए हैं।
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