2024-04-13 10:02:49
बोधिसत्व डॉ. अम्बेडकर एम.ए, एम.एस-सी, पी. एच-डी, डी.एस-सी, एल.एल-डी, डी.लिट, बार एट-लॉ एक महान समाज शास्त्री, अर्थशास्त्री, शिक्षा शास्त्री, दार्शनिक, प्रशासक, राजनेता, कानूनविद तथा संविधान विद दूरदृष्टा तथा भविष्य वक्ता थे। वे भारतीय संविधान के निर्माता तथा आधुनिक भारत के एक महान निर्माता भी थे। उनके नाम रिकॉर्डस की सूची बहुत लम्बी है। वे विश्व के एक श्रेष्ठ विद्वान, ज्ञान के प्रतीक, भारत के प्रथम कानून मंत्री, विश्व के एक श्रेष्ठ संविधान के निर्माता, 20 करोड़ शूद्र, अछूत महिलाओं तथा पिछड़ों के उद्वारक, अद्भुत तर्कशास्त्री, व्यक्तिगत विशाल पुस्तकालय के मालिक, भारत में मृतप्राय बुद्ध धर्म को पुनर्जीवित करने वाले... आदि-2, एक शिखर स्वरूप व्यक्तित्व के धनी थे। वे मानवीय मूल्यों समानता, स्वतंत्रता, बंधुता तथा सबके लिए न्याय आधारित समता मूलक समाज के एक महानतम पुरोधा थे तथा वे जीवन पर्यन्त अथक इन मूल्यों के लिए संघर्ष करते रहे। डॉ. अम्बेडकर ने सभी भारतीयों के लिए विशेषत शूद्रों, अछूतों तथा पिछड़े वर्ग के लोगों को ऊपर उठाने तथा देश की मुख्यधारा में लाने के लिए हर यत्न किया, हर अवसर का उपयोग किया तथा अपने प्रयत्न में कोई कसर नहीं छोड़ी।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जिन्हें बाबासाहेब के नाम से भी जाना जाता है, के जन्म दिन 14 अप्रैल को विशेष त्याौहार के रूप में भारत समेत पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इस दिन को समानता दिवस और ज्ञान दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि जीवन भर समानता के लिए संघर्ष करने वाले प्रतिभाशाली डॉ. भीमराव अम्बेडकर को समानता के प्रतीक और ज्ञान के प्रतीक भी कहा जाता है। भीमराव विश्व भर में उनके मानवाधिकार आंदोलन, संविधान निर्माण और उनकी प्रकांड विद्वता के लिए जाने जाते हैं और यह दिवस उनके प्रति वैश्विक स्तर पर सम्मान व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर की पहली जयंती सदाशिव रणपिसे जिन्होंने 14 अपैल 1928 में पुणे शहर में मनाई थी। रणपिसे अम्बेडकर के अनुयायी थे। उन्होंने ही अम्बेडकर जयंती की प्रथा शुरू की थी। उनके जन्मदिन पर हर साल उनके लाखों अनुयायी उनके जन्मस्थल भीम जन्मभूमि महू (मध्य प्रदेश), बौद्ध धम्म दीक्षास्थल दीक्षाभूमि, नागपुर और उनकी समाधि स्थल चैत्य भूमि, मुंबई में उन्हें श्रृद्धा सुमन अर्पित करने के लिए इकट्टा होते है। सरकारी कार्यालयों और भारत के हर बौद्ध विहार में भी अम्बेडकर की जयंती मनाकर उन्हें नमन किया जाता है। वहीं विश्व के 65 से अधिक देशों में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती धूम-धाम से मनाई जाती है।
संयुक्त राष्ट्र ने भी पहली बार डॉ. अम्बेडकर की 125वी जयंती मनाई जिसमें 156 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र ने डॉ. अम्बेडकर जी को विश्व का प्रणेता कहा था। संयुक्त राष्ट्र के 70 वर्ष के इतिहास में वहां पहली बार भारतीय व्यक्ति डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती मनाई गई, भीमराव के अलावा विश्व में केवल दों ऐसे महापुरूष हैं जिनकी जयंती संयुक्त राष्ट्र ने मनाई है। मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला। अम्बेडकर, किंग लूथर और मंडेला ये तीनों महापुरूष मानवाधिकार संघर्ष के सबसे महान नेता रहे हैं।
डॉ. अम्बेडकर का जन्म
भारत के लोगों के लिये बाबासाहेब का जन्म दिवस और उनके योगदान को याद करने के लिये 14 अप्रैल को एक उत्सव से कहीं ज्यादा उत्साह के साथ मनाया जाता है। ये भारत के लोगों के लिये एक बड़ा क्षण था जब वर्ष 1891 में महू छावनी इंदौर में उनका जन्म हुआ था। उनके पिताजी का नाम रामजी मालोजी सकपाल तथा उनकी माता का नाम भीमाबाई था। इस दिन को पूरे भारत वर्ष में सार्वजनिक अवकाश के रूप में घोषित किया गया है। नयी दिल्ली, संसद भवन परिसर में उनकी मूर्ति पर हर वर्ष भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (दूसरे राजनैतिक पार्टियों के नेताओं सहित) सम्माननीय श्रद्धांजलि देते हैं। अपने घर में उनकी मूर्ति रखकर भारतीय लोग भगवान की तरह उनकी पूजा करते हैं। इस दिन उनकी मूर्ति को सामने रख लोग परेड करते हैं व ढोल बजाकर नृत्य व गाने का भी आनन्द लेते हैं।
क्यों मनायी जाती है अम्बेडकर जयंती?
डॉ. भीमराव अंबेडकर भारतीय संविधान के पिता थे जिन्होंने भारत के संविधान का ड्रॉफ्ट (प्रारुप) तैयार किया था। वो एक महान मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उन्होंने भारत के निम्न स्तरीय समूह के लोगों की आर्थिक स्थिति को बढ़ाने के साथ ही शिक्षा की जरुरत के लक्ष्य को फैलाने के लिये 1923 में बहिष्कृत हितकारणी सभा की स्थापना की थी। इंसानों की समता के नियम के अनुसरण के द्वारा भारतीय समाज को पुनर्निर्माण के साथ ही भारत में जातिवाद को जड़ से हटाने के लक्ष्य के लिये शिक्षित करना-आंदोलन करना-संगठित करना के नारे का इस्तेमाल कर लोगों के लिये वो एक सामाजिक आंदोलन चला रहे थे।
अस्पृश्य लोगों के लिये बराबरी के अधिकार की स्थापना के लिये महाराष्ट्र के महाड में वर्ष 1927 में उनके द्वारा एक पैदल मार्च का नेतृत्व किया गया था जिन्हें सार्वजनिक चाबदार तालाब के पानी का स्वाद या यहाँ तक की छूने की भी अनुमति नहीं थी। जाति विरोधी आंदोलन, पुजारी विरोधी आंदोलन और मंदिर में प्रवेश आंदोलन जैसे सामाजिक आंदोलनों की शुरूआत करने के लिये भारतीय इतिहास में उन्हें चिन्हित किया जाता है। वास्तविक मानव अधिकार और राजनीतिक न्याय के लिये महाराष्ट्र के नासिक में वर्ष 1930 में उन्होंने कालाराम मंदिर में प्रवेश के लिये आंदोलन का नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा कि दलित वर्ग के लोगों की सभी समस्याओं को सुलझाने के लिये राजनीतिक शक्ति ही एकमात्र तरीका नहीं है, उन्हें समाज में हर क्षेत्र में बराबर का अधिकार मिलना चाहिये। 1942 में वाइसराय की कार्यकारी परिषद में उनकी सदस्यता के दौरान निम्न वर्ग के लोगों के अधिकारों को बचाने के लिये कानूनी बदलाव बनाने में वो गहराई से शामिल थे।
भारतीय संविधान में राज्य नीति के मूल अधिकारों (सामाजिक आजादी के लिये, निम्न समूह के लोगों के लिये समानता और अस्पृश्यता का जड़ से उन्मूलन) और नीति निदेशक सिद्धांतों (संपत्ति के सही वितरण को सुनिश्चित करने के द्वारा जीवन निर्वाह के हालात में सुधार लाना) को सुरक्षा देने के लिए उन्होंने अपना बड़ा योगदान दिया। उनके द्वारा बुद्ध धर्म ग्रहण करने व अपने जीवन के अंत तक उनकी सामाजिक क्रांति जारी रही। भारतीय समाज के लिये दिये गये उनके महान योगदान के लिये 1990 के अप्रैल महीने में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
अम्बेडकर जयंती कैसे मनायी जाती है?
पूरे भारत वर्ष में वाराणसी, दिल्ली, लखनऊ, आगरा, नागपुर, मुंबई आदि सभी बड़े शहरों, गांवों व कस्बों में बेहद जुनून के साथ अंबेडकर जयंती मनायी जाती है। अंबेडकर के जन्मदिवस उत्सव के लिये अनेक कार्यक्रम आयोजित होते हैं जैसे चित्रकारी, सामान्य ज्ञान प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, नृत्य, निबंध लेखन, परिचर्चा, खेल प्रतियोगिता और नाटक जिसके लिये पास के स्कूलों के विद्याथीर्यों सहित बहुत से लोग भाग लेते हैं।
विश्व में अम्बेडकर जयंती कहां-कहां मनाई जाती है
अम्बेडकर जयंती संपूर्ण विश्व में मनाई जाती हैं। अधिकांश रूप से अम्बेडकर जयंती भारत में मनाई जाती है, भारत के हर राज्य में, राज्य के हर जिले में और जिले के लाखों गावों में मनाई जाती हैं। भारतीय समाज, लोकतंत्र, राजनीति आदि में भीमराव अम्बेडकर का गहरा प्रभाव पड़ा हैं।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की जयंती मनाने वाले देश
भारत, अमेरिका, आॅस्ट्रिया, बहरीन, ब्राजील, डेनमार्क, बांग्लादेश, मिस्र, जर्मनी, ग्वाटेमाला, हांगकांग, इंडोनेशिया, इराक, आयरलैण्ड, सउदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, जापान, मेडागास्कर, मंगोलिया, नेपाल, ओमान, फ्रÞान्स, श्रीलंका, सेशेल्स, दक्षिण सूडान, स्पेन, स्विट्जरलैण्ड, तंजानिया, यूनाइटेड किंगडम (ग्रेट ब्रिटेन, लंदन), युक्रेन, कनाडा, हंगरी, म्यान्मार, कुवैत, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, न्यूजीलैण्ड, थाईलैण्ड, चीन, पाकिस्तान, दुबई, कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को आदी 65 से अधिक देशों में हर वर्ष डॉ. अम्बेडकर जी की जयंती मनाई जाती हैं।
संयुक्त राष्ट्र में अम्बेडकर जयंती
संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष अधिकारी ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को हाशिए पर जी रहे लोगों के लिए एक वैश्विक प्रतीक करार दिया और उनके विजन को पूरा करने के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने की वैश्विक निकाय की कटिबद्धता प्रदर्शित की।
यूएनडीपी की प्रशासक हेलेन क्लार्क ने भारत के स्थायी मिशन द्वारा इस वैश्विक निकाय में डॉ. अम्बेडकर की 125 वीं जयंती पर पहली बार आयोजित विशेष समारोह में अपने संबोधन में कहा कि ‘‘संयुक्त राष्ट्र में इस महत्त्वपूर्ण वर्षगांठ को मनाए जाने पर मैं संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से भारत की सराहना करती हूं।’’ संयुक्त राष्ट्र के अगले महासचिव पद के उम्मीदवारों में शामिल क्लार्क ने कहा, ‘‘हम वर्ष 2030 के एजंडे और दुनिया भर के गरीब एवं वंचित लोगों के लिए डॉ. अम्बेडकर की सोच को हकीकत में बदलना सुनिश्चित करने के लिए भारत के साथ अपनी बेहद करीबी साझेदारी को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’
भारतीय संविधान के शिल्पी, दलित मसीहा, बोधिसत्व बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंती 14 अप्रैल 2016, बुधवार को इस वैश्विक संस्था में मनाई गई थी। उसका आयोजन नागरिक समाज के समूहों कल्पना सरोज फाउंडेशन और फाउंडेशन आॅफ मून होराइजन के साथ मिलकर किया गया था। संयुक्त राष्ट्र विकास समूह की अध्यक्ष क्लार्क ने राजनयिकों, विद्वानों और डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों को अपने संबोधन में कहा कि ‘‘यह अवसर ऐसे बहुत महान व्यक्ति की विरासत को याद करने का है जिन्होंने इस बात को समझा कि अनवरत चली आ रही और बढ़ती असमानताएं देशों और लोगों की आर्थिक और सामाजिक कल्याण के समक्ष मूल चुनौतियां पेश करती हैं।
न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री क्लार्क ने कहा कि ‘‘डॉ. भीमराव अम्बेडकर के आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे 60 साल पहले थे। वंचित समूहों के समावेश और सशक्तीकरण, श्रम कानूनों में सुधार और सभी के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने पर अम्बेडकर की ओर से किए गए काम ने उन्हें भारत और अन्य देशों में हाशिए पर जी रहे लोगों के लिए प्रतीक बना दिया।
इस मौके पर संपोषणीय विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए असमानता से संघर्ष विषयक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें डॉ॰ अम्बेडकर से जुड़े कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर स्टान कचनोवस्की और एसोसिएट प्रोफेसर अनुपमा राव एवं हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विख्याता क्रिस्टोफर क्वीन ने हिस्सा लिया। डॉ. भीमराव अम्बेडकर को असमानताएं दूर करने के लिए जरूरी दूरगामी उपायों की गहरी समझ थी।
डॉ. अम्बेडकर के योगदान
डॉ. भीमराव अंबेडकर का भारत के विकास में बड़ा योगदान रहा है। एक अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् और कानून के जानकार के तौर पर अंबेडकर ने आधुनिक भारत की नींव रखी थी। निम्न वर्ग समूह के लोगों के लिये अस्पृश्यता के सामाजिक मान्यता को मिटाने के लिये उन्होंने काम किया। बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत करने के दौरान उनकी सामाजिक स्थिति को बढ़ाने के लिये समाज में अस्पृश्यों को ऊपर उठाने के लिये उन्होंने विरोध किया। दलित वर्ग के जातिच्युतता लोगों के कल्याण और उनके सामाजिक-आर्थिक सुधार के लिये अस्पृश्यों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये बहिष्कृत हितकरनी सभा कहे जाने वाले एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। मूक नायक, बहिष्कृत भारत और जनता समरुपता जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा उन्होंने दलित अधिकारों की भी रक्षा की। दलित वर्ग के अस्पृश्य लोगों के लिये सीट आरक्षित करने के लिये पूना संधि के द्वारा उन्होंने अलग निर्वाचक मंडल की माँग की।
15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा देने के लिये उन्हें काँग्रेस सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था। डॉ॰ अंबेडकर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बने। उन पर आधुनिक भारत का संविधान बनाने की जिम्मेदारी थी और उन्होंने एक ऐसे संविधान की रचना की जिसकी नजरों में सभी नागरिक एक समान हों, धर्मनिरपेक्ष हो और जिस पर देश के सभी नागरिक विश्वास करें। एक तरह से भीमराव अंबेडकर ने आजाद भारत के डीएनए की रचना की थी। उन्होंने भारत के नये संविधान का ड्रॉफ्ट तैयार किया जिसे 26 नवंबर 1949 में संवैधानिक सभा द्वारा अंगीकृत किया गया। यह विश्व का एक श्रेष्ठ संविधान है।
भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना में इन्होंने एक बड़ी भूमिका निभायी क्योंकि वो एक पेशेवर अर्थशास्त्री थे। अर्थशास्त्र पर अपने तीन सफल अध्ययनशील किताबों जैसे प्रशासन और ईस्ट इंडिया कंपनी का वित्त, ब्रिटिश इंडिया में प्रान्तीय वित्त के उद्भव और रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और समाधान के द्वारा हिल्टन यंग कमीशन के लिये अपने विचार देने के बाद 1934 में भारत के रिजर्व बैंक को बनाने में वो सफल हुये।
इन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की योजना में अपनी भूमिका निभायी क्योंकि उन्होंने अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री न्यूर्याक से हासिल की थी। देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिये औद्योगिकीकरण और कृषि उद्योग की वृद्धि और विकास के लिये लोगों को बढ़ावा दिया। खाद्य सुरक्षा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने सरकार को सुझाव दिया था। अपनी मूलभूत जरुरत के रूप में इन्होंने लोगों को अच्छी शिक्षा, स्वच्छता और समुदायिक स्वास्थ्य के लिये बढ़ावा दिया। इन्होंने भारत की वित्त कमीशन की स्थापना की थी। भारत के जम्मू कश्मीर के लोगों के लिये विशेष दर्जा उपलब्ध कराने के लिये भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 के खिलाफ थे। क्योंकि वे भारत के कानून मंत्री थे और उनके नजर में सब भारतीय एवं सब राज्य एकसमान थे। मानवीय मूल्यों के पुरोधा डॉ. अम्बेडकर के योगदान के लिये जितना भी लिखा जाये, वह कम ही रहेगा।
(बाबासाहेब द्वारा देश के करोड़ो-करोड़ो लोगों को मानवीय अधिकार दिलाने के लिए उनको उनकी 133वीं जयंती पर कोटि-कोटि नमन)
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |