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बिबेक देबरॉय के नए संविधान लेख पर भड़कीं मायावती, बोलीं

संघी, स्वार्थी, संकीर्ण व जातिवादी तत्वों को पसंद नहीं ‘संविधान’
News

2023-08-19 10:51:31

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद चेयरमैन बिबेक देबरॉय (vivek debroy) के नए संविधान (indian constitution) लेख पर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। बिबेक देबरॉय के लेख पर बसपा सुप्रीमो मायावती (mayawati) ने कड़ी नाराजगी जताई है। मायावती ने लेख को उनके अधिकार का खुला उल्लंघन बताया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार से तुरंत संज्ञान लेकर कार्रवाई करने की अपील भी की है।

मायावती ने शुक्रवार को दिन में ट्वीट कर बिबेक देबरॉय के लेख पर गुस्सा व्यक्त किया। मायावती ने लिखा कि आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय द्वारा लिखे गए लेख में देश में नए संविधान (New Indian Constitution) की वकालत करना। उनके अधिकार क्षेत्र का खुला उल्लंघन है जिसका केंद्र सरकार को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए। ताकि इस तरह की अनर्गल बातें कोई और ना कर सके।

मायावती ने आगे लिखा कि देश का संविधान इसकी 140 करोड़ गरीब पिछड़ी और उपेक्षित जनता के लिए मानवतावादी और समतामूलक होने की गारंटी है जो स्वार्थी सनकी और जातिवादी तत्वों को पसंद नहीं और यह इसको जन विरोधी वी धन्नासेठ समर्थकों के रूप में बदलने की बात करते हैं जिस का विरोध करना सभी की नैतिक जिम्मेदारी है।

दरअसल, बिबेक देबरॉय प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल) के चेयरमैन हैं। देबरॉय ने एक अखबार में एक लेख लिखा, ‘देयर इज केस फॉर वी द पीपल टु एंब्रेस अ न्यू कॉन्स्टिट्यूशन’। उनके कहने का कुल लब्बोलुआब यह था कि एक नया संविधान अपनाने का आधार दिख रहा है और इस बारे में विचार किया जाना चाहिए। उनकी इस राय के चलते काफी लोग नाराज हो गए। देबरॉय को अरेस्ट करने की मांग की जाने लगी। ट्विटर (twitter) पर लिखा जाने लगा कि देबरॉय भारतीय संविधान के खिलाफ हैं। वह इसे नष्ट करना चाहते हैं।

अपने लेख में देबरॉय ने लिखा है, संविधान जिसे हमने 1950 में अपनाया था, वह अब वैसा ही नहीं रह गया है। इसमें संशोधन किए गए हैं और संशोधन भी हमेशा अच्छे काम के लिए ही नहीं हुए हैं। हालांकि 1973 से हमें बताया जाता रहा है कि इसका बेसिक स्ट्रक्चर नहीं बदला जा सकता, भले ही संसद के जरिए लोकतंत्र की जो भी इच्छा हो। अगर इसके खिलाफ कुछ होगा, तो अदालतें उसकी व्याख्या करेंगी। जहां तक इस बात को मैं समझ रहा हूं, 1973 का जजमेंट मौजूदा संविधान में संशोधनों पर लागू होता है, न कि नए संविधान पर।

देबरॉय ने लिखा है, 2002 में संविधान की वर्किंग की समीक्षा करने वाले एक आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। लेकिन वह आधे अधूरे मन से की गई कोशिश थी। लॉ रिफॉर्म के कई पहलुओं की तरह, यहां-वहां कुछ बदलाव करने से बात नहीं बनेगी। हमें इस बात पर विचार करना होगा कि 2047 में भारत को कैसे संविधान की जरूरत है। देबरॉय अपने लेख का समापन इस बात से करते हैं कि हम लोगों को एक नया संविधान बनाना होगा। ऐसी राय के चलते सोशल मीडिया पर देबरॉय की तीखी आलोचना हो रही है। उन्हें पद से हटाए जाने की मांग की जा रही है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने देबरॉय की बात का हवाला देते हुए कहा,इस 77वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को बदलने का संकेत दिया है, जिसके निमार्ता डॉ आंबेडकर (Dr. Bheemrao Ambedkar) थे। वे चाहते हैं कि देश एक नए संविधान को अंगीकार करे। यह हमेशा से संघ परिवार का एजेंडा रहा है। सावधान रहें।

साफ है कि देबरॉय की बात पर राजनीतिक विवाद शुरू हो गया है। लेकिन इससे पहले भी संविधान की समीक्षा का कदम उठाया जा चुका है, जिसका जिक्र देबरॉय ने भी किया। देबरॉय ने लिखा है, 2002 में संविधान की वर्किंग की समीक्षा करने वाले एक आयोग ने अपनी रिपोर्ट दी थी। लेकिन वह आधे अधूरे मन से की गई कोशिश थी। लॉ रिफॉर्म के कई पहलुओं की तरह, यहां-वहां कुछ बदलाव करने से बात नहीं बनेगी। हमें इस बात पर विचार करना होगा कि 2047 में भारत को कैसे संविधान की जरूरत है। देबरॉय अपने लेख का समापन इस बात से करते हैं कि ह्यहम लोगों को एक नया संविधान बनाना होगा। ऐसी राय के चलते सोशल मीडिया पर देबरॉय की तीखी आलोचना हो रही है। उन्हें पद से हटाए जाने की मांग की जा रही है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने देबरॉय की बात का हवाला देते हुए कहा,इस 77वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने संविधान को बदलने का संकेत दिया है, जिसके निमार्ता डॉ आंबेडकर थे। वे चाहते हैं कि देश एक नए संविधान को अंगीकार करे। यह हमेशा से संघ परिवार का एजेंडा रहा है। सावधान रहें। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा की बैठक में कहा था, ‘संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, अगर इसे लागू करने वाले अच्छे नहीं हुए, तो यह खराब साबित हो जाएगा। संविधान चाहे जितना भी बुरा हो, अगर इसे लागू करने वाले अच्छे हुए तो यह भी अच्छा साबित हो सकता है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05