2023-08-12 09:50:39
नई दिल्ली। देश के वर्तमान सामाजिक व राजनैतिक परिदृश्य को देखकर यह आवश्यक लगता है कि देश में जातिगत जनगणना जरूर होनी चाहिए। क्योंकि बहुजन समाज के सभी जातीय घटक यह नहीं जानते की उनकी देश में कितनी जनसंख्या है और उनका देश की सत्ता में कितना हिस्सा है। जातीय जनगणना होने के बाद सभी घटकों (शूद्रों) को उनकी वास्तविक संख्या का पता चल जायेगा और साथ ही वह यह भी जान पायेंगे की शासन-प्रशासन में उनके जातीय घटकों की हिस्सेदारी कितनी है? जो सरकार जातीय जनगणना का विरोध कर रही है। उनकी हिन्दुत्व की मानसिकता से संक्रमित है और वह सिर्फ सवर्ण समाज (ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य) को ही शासन-प्रशासन में अधिक भाग देकर उन्हें ही आगे बढ़ाने का खेल जारी रखना चाहती है। जो सामाजिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है। बहुजन समाज को आज मान्यवर साहेब कासीराम जी के सिद्धांत ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी’ का ही पालन करना चाहिए और उसी आधार पर बहुजन समाज (शूद्र) को शासन-प्रशासन में उनकी संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी मिल पायेगी। बहुजन समाज को किसी भी छलावे या बहकावे में न आकर जातीय जनगणना का समर्थन करना चाहिए और अगर इसके लिए आंदोलन भी करना पडेÞ तो वह भी पूरे जोर-शोर से करना चाहिए। सामाजिक न्याय के लिए जातीय जनगणना बहुत ही आवश्यक व महत्वपूर्ण कदम है। पूरा बहुजन समाज इसके समर्थन में है और अगर केन्द्र सरकार इसे करने में आनाकानी करती है तो आने वाले 2024 के संसदीय चुनाव में सभी बहुजन घटकों को एक साथ आकर भारी मतों से केन्द्र सरकार को हराना चाहिए। बहुजन समाज को सदियों से सभी प्रकार के मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया है और वे इसी कारण शिक्षा व अन्य क्षेत्रों में सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। उन्हें हिन्दू सिर्फ तब बनाया या कहा जाता है जब मनुवादियों को मुसलमानों से लड़ने की जरूरत होती है या फिर जब इनको सत्ता हासिल करने के लिए इनके वोटों की जरूरत होती है। बहुजन समाज अब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के विचारों व उनके द्वारा संविधान में दिये गये अधिकारों की बदौलत कुछ पढ़-लिखकर समझदारी की तरफ बढ़ा है और उसे ये ज्ञान होने लगा है की उनकी साझेदारी शासन सत्ता के सभी संस्थानों में नहीं है जिसे पाने के लिए उन्हें एकजुट होकर संघर्ष करना पडेगा। इस जातीय जनगणना से समाज को सटीक जानकारी मिल सकेगी की समाज में कौनसा जातीय घटक दूसरे जातीय घटक का हिस्सा खा रहा है। अभी तक समाज में दुश्प्रचार करके यही फैलाया गया था कि आरक्षण के द्वारा आरक्षण वाली जातियां (एससी, एसटी) अति पिछड़ी जातियों का हिस्सा खा रहीं है। जबकि वास्तविकता इसके उलट है, आरक्षण प्राप्त जातियां तो 15% और 7.5% के अंदर ही सीमित हो रही हैं। जबकि समाज में जिनकी संख्या 3.5% है वे समाज का 75 से 80 प्रतिशत हिस्सा खा रहीं हैं। देश में ब्राह्मणों की जनसंख्या 3.5% है जबकि देश की सम्प्रदा और सरकारी संस्थानों में उनकी मौजूदगी 75 से 80 प्रतिशत है। इससे यह साफ हो जाता है कि अगर समाज की अति पिछड़ी जातियों का हिस्सा कोई खा रहा है तो वह सवर्ण समाज ही है। पिछड़ी जातियां मंडल कमीशन के आंकलन के अनुसार देश में 60% से अधिक संख्या में हैं। उनके लिए आरक्षण का प्रावधान सिर्फ 27% किया गया है। जो अतार्किक और अन्यायिक है। इन सभी पिछड़ी जातियों को हमेशा यह बताकर बरगलाया जाता है कि आप सबका हिस्सा आरक्षण प्राप्त जातियां खा रही हैं। जातीय जनगणना से देश के सभी समुदायों को यह सटीक जानकारी मिल जायेगी कि किसकी जाति का प्रतिशत समाज में कितना है और उसको शासन-सत्ता व देश की संप्रदा में कितना हिस्सा मिल रहा है। वर्ममान मनुवादी सत्ता इसी बात से भयभीत है कि अगर देश के सभी समुदायों को उनकी जनसंख्या और उनका देश की सम्प्रदा और सत्ता में हिस्सेदारी का पता लग जायेगा तो वे जिन सवर्ण समाज की जातियों को अभी तक मालिक, भूदेव और देवता समझकर व्यवहार कर रहे थे वे उनके विरूद्ध बड़ा आंदोलन खड़ा करके अपनी जनसंख्या के हिसाब से उचित हिस्सेदारी की मांग करेंगे और वे उसे लेकर ही दम लेंगे।
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