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बहुजनों को अंधकार युग में धकेल रहा बढ़ता ब्राह्मणवाद

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2025-03-07 11:36:59

वर्तमान समय में ब्राह्मणवाद का बोलबाला है, जनता में तार्किकता और वैज्ञानिकता घट रही है। विश्व के सभी देश बौद्धिकता के आधार पर ही आगे बढ़े हैं। जिन देशों में बौद्धिकता और वैज्ञानिक उत्पादकता का स्तर घटा है, वहाँ-वहाँ पर मानवीय विकास कमजोर हुआ है। वहाँ की जनता में समझ और वैज्ञानिकता भी घटी है। अगर हम विश्व के इतिहास में यूरोप को उसके पुनर्जागरण काल से पहले के समय को देखें, तो पता चलता है कि वहाँ की स्थिति भी भारत जैसे अन्य धर्मांध देशों की तरह ही थी। तब यूरोप में चर्च का शासन होता था, चर्च के शासन में धर्मांधता थी, वैज्ञानिकता और वैज्ञानिक सोच का नामो-निशान नहीं था, उस समय यूरोप में जो लोग ज्ञान और वैज्ञानिकता की बात करते थे उन्हें वहाँ के धर्मांध लोग चर्च की मान्यताओं से उत्पीड़ित करके दंडित करते थे। गैलीलियो गैलिनी धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति थे। अपने प्रयोग के माध्यम से वे खगोलीय पिंडों की गति का अध्ययन कर रहे थे। अपने प्रयोगों में गैलीलियो ने पाया कि संसार में पहले से व्याप्त मान्यताओं के विपरीत ब्रह्मांड में स्थित पृथ्वी समेत सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं इससे पूर्व कॉपरनिक्स वैज्ञानिक ने भी यही कहा था। उस समय तक सर्वमान्य सिद्धांत था कि ब्रह्मांड के केंद्र में पृथ्वी स्थित है। सूर्य और चंद्रमा सहित सभी आकाशीय पिंड लगातार पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। इस मान्यता को चर्च के धमार्चारियों का समर्थन प्राप्त था। जब गैलीलियो ने अपने अन्वेषित सिद्धांत को सार्वजनिक किया तो चर्च ने इसे अपनी अवज्ञा माना और गैलीलियो को चर्च की ओर से कारावास की सजा सुनाई गई। गैलीलियो के द्वारा दिये गए विचार ने मनुष्य के चिंतन को नई दिशा दी और उसे मानने के लिए विवश कर दिया। परंतु धर्मांध चिंतकों ने उन्हें उनके द्वारा दिये गए विचार के लिए माफ नहीं किया और उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल में ही उनकी मृत्यु हुई थी। उनके द्वारा दिया गया सिद्धांत आज पूरी दुनिया में सर्वमान्य व वैज्ञानिकता का आधार है।

भारत की स्थिति: भारत विश्व में आज एक धर्मांध देश है। विश्व के जो देश धर्म को अधिक महत्व देते हैं, वैज्ञानिक सोच और समझ को दरकिनार करते हैं, वे सभी देश आज विश्व भर में सभी देशों के मुकाबले अविकसित हैं। उनका आर्थिक और तकनीकी विकास भी कमजोर है। उदाहरण के तौर पर विश्व भर में करीब 54-55 देशों में इस्लामिक शासन है, जहाँ पर धार्मिक अंधता दूसरे देशों के सापेक्ष अधिक है हम जब इन देशों का मुकाबला संसार के दूसरे समृद्ध व विकसित देशों से करते हैं तो ये सभी 54-55 इस्लामिक देश उन विकसित देशों के सामने कहीं भी खड़े होने लायक नहीं दिखते। भारत जैसे देशों को ऐसे उदाहरण देखकर समझ जाना चाहिए कि देश में धर्मांधता को बढ़ावा देने से देश की जनता अंधकार के भंवर में फँसेगी और उसका कोई भी मानवीय विकास नहीं होगा। भारत की वर्तमान सरकार धर्मांधता के संक्रमण (कोढ़) से पीड़ित है। यह सरकार 2014 से भारत की शासन सत्ता में हैं, तभी से यह अपने प्रपंचकारी अवैज्ञानिक कार्यों से इस देश की जनता को यह मानने के लिए विवश कर रही है कि देश में हिन्दू धर्म को प्रतिपादित करना है। देश को समृद्ध और विश्व गुरु बनाना है। सरकार का इस तरह का प्रचार तथ्यहीन, अवैज्ञानिकता भरा है। देश में किसी भी धर्म की सत्ता आने से देश विश्व गुरु नहीं बन सकता है, यह मत शत-प्रतिशत सही और सार्वभौमिक है।

भारत कब विश्व गुरु था? भारत विश्व गुरु रहा है लेकिन वह तथाकथित हिन्दू धर्म (ब्राह्मण धर्म) के काल में विश्वगुरु कभी नहीं रहा। बौद्ध काल के शासन में भारत विश्वगुरु था। बौद्ध शासन काल में यहाँ करीब 13 विश्व स्तर के विश्वविद्यालय थे। विश्व से अनेकों लोग इन विश्वविद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने आते थे और यहाँ पर ज्ञान अर्जन के बाद वापस अपने देश लौट जाते थे। उस समय में कई चीनी पर्यटकों ने भारत का भ्रमण किया था, जिनमें प्रमुख फाहियान, सुंग यून, ेन त्सांग और इत्सिंग आदि थे। इन सभी पर्यटकों ने भारत में अपने बिताए गए समय का वर्णन किया है और उन सभी का मत रहा है कि भारत उस समय एक बहुत ही समृद्धशाली व विकसित देश था। यहाँ पर बौद्धिक सत्ता स्थापित थी। विचार-विमर्श के लिए खुला माहौल था। सभी को जीवन में आगे बढ़ने का खुला अवसर प्राप्त था। यहाँ के इसी प्रकार के वातावरण से आकर्षित होकर भारत के पड़ोसी देशों के लोग यहाँ पर शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। इतना ही नहीं, मध्य एशिया और यूरोप के छात्र भी यहाँ शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। शिक्षा के ऐसे वातावरण, शिक्षिकों की योग्यता, छात्रों में विचार-विमर्श, संवाद का खुला वातावरण, सभी प्रकार के ज्ञान अर्जित करके छात्र अपने देश और दुनिया को रोशन करते थे। भारत में उस समय 13 विश्वविद्यालय थे। जैसे तक्षशिला विश्वविद्यालय, जो आधुनिक पाकिस्तान के इस्लामाबाद के पास है। (सातवीं सदी ईपू से-460 ईसवी तक); नालंदा विश्वविद्यालय, आधुनिक बिहार की राजधानी पटना से 55 मील दक्षिण-पूर्व (450 ईसवी पूर्व से-1193 इसवी); उदांतपुरी, बिहार में। (550 ईपू-1040); सोमपुरा, अब बांग्लादेश में (गुप्त काल से भारत में इस्लाम के आगमन तक।; जगददला, पश्चिम बंगाल में (पाल राजाओं के समय से भारत में अरबों के आने तक; नागार्जुन कोंडा, आंध्र प्रदेश में।; विक्रमशिला विश्वविद्यालय, बिहार में (800 ईपू-1040); वल्लभी गुजरात में; वाराणसी उत्तर प्रदेश में (आठवीं सदी से आधुनिक काल तक); कांचीपुरम, तमिलनाडु में; मणिखेत, कर्नाटक; शारदा पीठ, कश्मीर में; पुष्पगिरी, उड़ीसा में। आज भारत में कहने के लिए 1000 से ज्यादा विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षण संस्थान है परंतु ब्राह्मणी संस्कृति के वर्चस्व ने इन संस्थानों का स्थान विश्व के मुकाबले इतना नीचे कर दिया है कि विश्व के 500 उच्च रेंक वाले शैक्षिक संस्थानों में नामात्र के सिर्फ 4-5 संस्थान ही है। देश की जनता में आज धर्मांधता को मनुवादी सोच से बढ़ाया जा रहा है। देश की जनता को विश्वगुरु बनने का झूठा सपना दिखाकर मोदी-संघी सरकार ठग रही है। देश विश्वगुरु तो नहीं बन पा रहा है, मगर मोदी-संघी शासन इस देश में कुछ ओर समय तक चलता रहा तो देश का स्तर धर्मांधता में शायद सबसे ऊपर आ जाएगा। मोदी ने अपने झूठों से देश को विश्वगुरु बना दिया है। देश के करीब 8 लाख छात्र प्रतिवर्ष विदेशों में पढ़ने जा रहे हैं, तब भी देश विश्व गुरु है। देश की सरकार और शैक्षणिक वातावरण को संघी मानसिकता ने ऐसा बना दिया है कि यहाँ का हर छात्र और उनके अभिभावक यही सोच रखते हैं कि विदेशों में पढ़ने से बच्चे अधिक योग्य और सक्षम बनेगे।

अब समय आ गया कि देश की जनता को मोदी-योगी-शाह-भागवत व उनके अनेकों लफरझंडीसों से पूछना चाहिए कि जब आप देश को विश्वगुरु बनाने जा रहे है तो देश के छात्रों को बाहर भेजने की क्या जरूरत है? साथ ही उनको यह भी पूछना चाहिए कि आपके संघी शासन में विदेशी शोध पत्र व पत्रिकाओं को देशी शोध पत्र-पत्रिकाओं के मुकाबले उत्तम क्यों माना जा रहा है? इसके साथ ही आपने जो इन शैक्षणिक संस्थानों में संघी मानसिकता के लोग स्थापित कर दिये हैं क्या ये सभी लोग इन संस्थानों से अवैध रूप से धन लूट रहे हैं? दूसरी तरफ क्या ये सभी लोग विदेशी शैक्षणिक संस्थानों, शोध पत्र व पत्रिकाओं को देशी पत्र-पत्रिकाओं से अच्छा बताकर विदेशी प्रकाशकों से अवैध धन लेकर उनका यहाँ प्रचार करके उनको भारत में स्थापित करके अवैध धन कमा रहे हैं? अगर ऐसा है तो ये आपकी सरकार राष्ट्रवादी है या राष्ट्रद्रोही?

संघियों का पाखंड पर जोर क्यों? वर्तमान समय में मोदी-संघी शासन, प्रदेशों की संघी सरकारों के साथ मिलकर पिछले 18 महीनों से देश के संसाधनों को अवैध रूप से हिंदुत्व की वैचारिकी को बढ़ाने के प्रचार-प्रसार में लगा हुआ था। देश की जनता के मस्तिष्क में यह बैठा दिया गया कि महाकुंभ का यह पर्व 140 वर्षों के बाद आया है इस मौके को जाने न दें क्योंकि यह पर्व आपके जीवन में दोबारा नहीं आने वाला। इस प्रचार-प्रसार को जनता के मस्तिष्क में गहराई तक उतारने के लिए संघी मानसिकता के प्रचारकों, धर्माचारियों, कथित साधु-संत कहे जाने वाले लपर झंडिसो को 18 महीने से प्रचार में उतरा हुआ था जिसके बल पर आये दिन नई-नई घोषणाएँ की जाती थी कि प्रयागराज के महाकुंभ में 60-70-80 करोड़ लोग स्नान कर चुके हैं। महाकुंभ में जनता से भीड़ जुटाने का जिम्मा कथित धमार्चारियों व संघियों का ही रहा। इस अनैतिक प्रचार-प्रसार के कारण प्रयागराज में कई लाखों की भीड़ जुट गई और वहाँ पर भीड़ के मुताबिक कोई प्रशासनिक बंदोबस्त न होने के कारण दर्जनों बार भगदडेंÞ हुई, जिसमें हजारों लोगों के मारे जाने की संभावना भी है। उत्तर प्रदेश का शासन और प्रशासन प्रयागराज में मरने वालो की कोई सटीक संख्या नहीं बता पा रहा है। जबकि 117 लापता व्यक्तियों की एफआईआर दर्ज हुई है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और केंद्र में बैठी मोदी सरकार ब्राह्मणी संस्कृति से ओत-प्रोत है जो इस बीमारी से ग्रस्त होकर पूर्णरूप से अंधी है। मोदी-योगी सरकार में प्रयागराज के कुंभ में गए लोगों की कोई सुध लेने वाला नहीं और न मरने वालों की कोई सटीक संख्या बताने के लिए जिम्मेदार। ऐसे हालात को देखकर भारत के दलितों व अति पिछड़े लोगों को कुंभ जैसे धर्मांध आयोजन में नहीं जाना चाहिए और न उन्हें अपने आपको ‘हिन्दू’ समझना चाहिए। चूंकि अपने आपको हिन्दू कहना व मानना ही एक सभ्य तार्किक और ज्ञानवान व्यक्ति का अपमान है।

मौतों के लिए अन्धश्रद्धा जिम्मेदार: भारत के सभी प्रबुद्ध जनों से आग्रह है कि वे अन्धश्रद्धा वाले आयोजनों में न जाये। तथाकथित धार्मिक अन्धश्रद्धा ने अतीत से आज तक लोगों का सर्वनाश ही किया है उससे किसी को कुछ लाभ नहीं हुआ है। उन्हें जो बताया जा रहा कि महाकुंभ में स्नान करने से मोक्ष मिलेगा, और यह 140 साल बाद आया है, यह तुम्हारे जीवन में दोबारा नहीं आएगा, यह सब झूठ, छलावा और पाखंड है। देश की भोली-भाली जनता को हिंदुत्ववादी अन्धश्रद्धा में फंसाए रखने का एक ब्राह्मणी संस्कृति का षड्यंत्र है। देश की भोली-भाली जनता से आग्रह है कि वे ऐसे अतर्किक धार्मिक आयोजनों में अपनी आहुती देने के लिए न जायें इससे आपको और आपकी आने वाली पीढ़ियों को कोई लाभ नहीं मिलने वाला है। तर्क और वैज्ञानिक सोच वाले बनों, अपना दीपक स्वयं बनों भगवान बुद्ध का यही उपदेश हैं। आप अपने बुद्धिबल से अपना उद्धार कर सकते हैं दूसरा कोई भी कथित देवी-देवता, भगवान या अन्य कोई आपका कल्याण करने के लिए नहीं आएगा।

जय विज्ञान, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05