2024-03-18 09:56:48
ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षित कोटे में सम्पन्न जातियों में यादव, अहीर, जाट, कुर्मी, सोनार और चौरसिया सरीखी जातियाँ शामिल है, कमेटी ने इन्हें 7 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिस की है। अति पिछड़ी जातियों में गिरी, गुर्जर, गोसाई, लोध, कुशवाहा, कुम्हार, माली, लोहार समेत 65 जातियों को 11 प्रतिशत और मल्लाह, केवट, निषाद, राई, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है।
उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना अभी तक नहीं कराई गई है जिसके कारण यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि किस जातीय घटक की कितनी संख्या है। मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने 90 के दशक में नारा दिया था कि ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ परंतु मनुवादी मानसिकता वाली राज्य व केंद्र सरकारें इसका पालन नहीं करना चाहती चूंकि उनकी मानसिकता में गहराई तक मनुवाद और ब्राह्मणवाद है। वे इन जातीय घटकों को इसी मनुवादी अवस्था में देखना चाहती है। इसी कारण मनुवादी और ब्राह्मणवादी मानसिकता की सरकारें पिछड़ी जाति के जातीय घटकों को उनकी जनसांख्यिकी के आधार पर हिस्सेदारी नहीं देना चाहती बल्कि वे इन जातीय घटकों को बड़े पैमाने पर अजागरूक रखकर बरगलाती रहती है, उन्हें भ्रम में डालती है कि आपके हिस्से का आरक्षण अनुसूचित जाति के जागरूक जातीय घटक जाटव खा रहे हैं। इस तरह का कथन असत्य, भ्रामक और अतार्किक है। पिछड़ी जातियों के ये जातीय घटक अपने मस्तिष्क से आंकलन नहीं करते कि हमारा हिस्सा वे कैसे खा रहे हैं? मनुवादी और ब्राह्मणवादियों के इसी प्रकार के अतार्किक छलावे में फँसकर मनुवादी संघी सरकारों की बात को सही समझकर उसे ही सही मानते हैं। ये लोग उन्हीं के जाल में फँसकर अपना वोट ज्यादातर भाजपा-संघियों को देकर उन्हें देश की सत्ता में बैठा रहे हैं। मोदी-संघी भाजपा आज इन अति व अत्यंत पिछड़ी जातियों के अजागरूक लोगों की कमसमझ का फायदा उठाकर इन सबका 5-7 प्रतिशत वोट इकट्ठा करके अपने पाले में करने में सफल हो रहे हैं। इस 5-7 प्रतिशत वोटों के इजाफे से मनुवादी संघियों की सरकार पिछले 10 साल से लगातार बन रही है। 90 के दशक में मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने जब इन सबकी हिस्सेदारी का नारा दिया था तो इन जातीय घटकों के कुछ लोग जागरूक हुए, इकट्ठा होकर वोट डालने की आदत पड़ी और इन जातीय घटकों से कुछेक विधायक, एमएलसी, मंत्री इत्यादि भी बने। इसी को भाँपकर मनुवादी संघियों ने इस 5-7 प्रतिशत वोटों के संगठन को उनकी छोटी-छोटी संख्या वाली जातियों में विभाजित करने का काम किया। मोदी-संघी सरकार इस कार्य को करने में सफल रही है और इन घटकों को उनके मूल जातीय टुकड़ों से विभाजित करके मा. कांशीराम जी के मंत्र को मनुवादी-संघी मोदी ने फेल कर दिया है। इन अति पिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातियों के नौजवानों को हिंदुत्व का अफीम चटाकर हिन्दू-मुस्लिम आधार पर बाँटकर उन्हें उन्मादी बनाया जा रहा है ताकि अगर कोई साम्प्रदायिक दंगा होता है तो इन अति पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जाति के युवक संघी-मनुवादियों की रक्षा के काम आएँगे। इसलिए आज संघी उन्हें हिन्दू बनाने व बताने पर अधिक जोर दे रहे हैं। जबकि वास्तविकता के आधार पर न ये कभी हिन्दू थे और न आज है। अगर ये हिन्दू थे तो सवर्ण कहे जाने वाली जातियाँ इन्हें नीच क्यों मान रही थी। मनुवादी तथाकथित सवर्ण समाज इन अति पिछड़ी व अंत्यन्त पिछड़ी जाति के नौजवानों को हिंदुत्व के जाल में फंसाकर अपना सुरक्षा कवच बनाए हुए है। इन अत्यंत पिछड़ी जातियों के टुकड़ों की जनसंख्या 0.1 से 1.9 प्रतिशत के बीच है। जो देखने और गिनने में छोटा सामाजिक भाग है। परंतु इनके 6-7 घटकों को मिलाकर ये 3 से 5 प्रतिशत बनकर मारक क्षमता का टुकड़ा बन जाता है।
उत्तर प्रदेश के 74 जिलों की दलित-मुस्लिम वोटों की संख्या को देखकर लगता है कि इन 74 सीटों पर मुस्लिम व दलितों वोटों की आबादी 30-64 प्रतिशत के बीच है। अगर इन 74 सीटों पर पिछड़ी जातियों का 3 से 5 प्रतिशत वोट मिल जाये तो इन 74 सीटों पर मतदाताओं की संख्या 40-74 प्रतिशत होकर जिताऊ संख्या बन जाती है। हम अगर यहाँ यह भी मान ले की मुस्लिम व दलित वोट 100 प्रतिशत अम्बेडकरवादी मिशन (बहुजन समाज) को नहीं मिलेगा, चूंकि भ्रमित वोटरों की संख्या हमेशा ही सभी सामाजिक घटकों में 5-7 प्रतिशत हो सकती है तब भी अम्बेडकरवादी प्रत्याशियों को 35-69 प्रतिशत के बीच मत मिलने की प्रबल संभावना बनी रहेगी। इस प्रकार इन 74 सीटों में कम से कम 60 सीटें जीतने में अम्बेडकरवादी दलित, मुस्लिम, पिछड़ी जातीय घटक का प्रत्याशी सफल हो सकेंगा। इसके लिए सभी अम्बेडकरवादियों को अति पिछड़ी व अत्यंत पिछड़ी जातीय घटकों से जागरूक कार्यकर्ताओं को साथ लेकर एक संगठनात्मक रूप में कार्य दल बनाकर सभी 74 सीटों पर जागरूकता कार्यक्रम निरंतरता के साथ चलाना होगा। सभी जातीय घटकों की चाहे वे संख्या के आधार पर छोटे हो या बड़े ऊँचे हो या नीचे हो सभी को एक साथ लेकर प्रचार-प्रसार करना होगा। अपने जातीय घटक की श्रेष्ठता या नीचता का भाव छोड़कर अबाध्य रूप से एक होकर स्वार्थ का त्याग करके जो भी प्रत्याशी चुनाव में सबने मिलकर उतारा हो उसी को वोट देकर सफल बनाना होगा। ऐसी नीति अपनाकर ही बहुजन देश में सत्ता स्थापित कर सकता है।
बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों (एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक) को बिना मनुवादी संघी जाल में फँसे अपने आपको वास्तविकता के आधार पर जान-समझकर तथा अपने जातीय समूह में अंदर के ऊँच-नीच के भाव को त्यागकर पूरे समूह को दिल से एक परिवार मानकर एक अबाध्य अनौपचारिक सामाजिक गठबंधन बनाकर, बिना आपस में बटे आपसी सहमति के आधार पर एक ही प्रत्याशी को अपना कीमती वोट देना और दिलवाना चाहिए। आपकी आपसी फूट और मनुवादी आधार पर जातियों में विभाजन ब्राह्मणवादियों और मनुवादियों की जीत का असली कारण हैं। आमतौर पर दो ब्राह्मण या दो वैश्य, या अन्य दो सवर्ण समुदाय के लोग आपस में चुनाव नहीं लड़ते जबकि शूद्र जातियों के लोग आपस में चुनाव लड़ते हैं। सभी शूद्र जातीय घटकों के वोट उनकी जातियों में बंटकर ब्राह्मणवादी सवर्ण जाति का प्रत्याशी जीत जाता है। यह ही शूद्र जातियों की कमसमझ और मूर्खता है। इसी को आप (शूद्र) सबको समझना होगा।
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