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नीतीश और भाजपा के चेहरों से उतार नकाब

नीतीश कुमार द्वारा महिला डॉक्टर का हिजाब खींचना नीच हरकत है, ये महिलाओं के सम्मान को कुचलने जैसा
News

2025-12-20 16:02:10

संवाददाता

नई दिल्ली। बिहार में 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक मुस्लिम महिला डॉक्टर नुसरत परवीन का हिजाब (नकाब) सार्वजनिक मंच पर जबरन खींचने की घटना अत्यंत निंदनीय, घृणित और शर्मनाक है। यह न केवल एक महिला की व्यक्तिगत गरिमा और स्वतंत्रता का घोर उल्लंघन है, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता तथा संवैधानिक अधिकारों पर सीधा हमला है। एक मुख्यमंत्री, जो राज्य का सर्वोच्च पद पर आसीन है, सार्वजनिक समारोह में इस तरह की गुंडागर्दी और महिला विरोधी हरकत करे, तो सोचिए बिहार की महिलाएं कितनी असुरक्षित होंगी? यह घटना मात्र एक पितृस्नेह या गलतफहमी नहीं है, जैसा कि उनके बचाव में कहा जा रहा है—यह स्पष्ट रूप से महिला की मर्जी के खिलाफ शारीरिक हस्तक्षेप है, जो अपमानजनक और आपराधिक है। हिजाब या नकाब पहनना उस महिला की निजी पसंद और धार्मिक आस्था का हिस्सा है, जिसे कोई भी—चाहे वह कितना बड़ा पदाधिकारी हो—जबरन छीनने का हक नहीं रखता। मंच पर मौजूद लोग हंसते रहे, यह दृश्य बिहार की सत्ता के पतन और संवेदनहीनता को उजागर करता है। नीतीश कुमार की यह नीच हरकत महिलाओं के सम्मान को कुचलने वाली है और मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है। ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। वे तुरंत पद से इस्तीफा दें और सार्वजनिक रूप से बिना शर्त माफी मांगें। यदि नहीं, तो यह साबित हो जाएगा कि उनकी सरकार महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए कितनी खतरनाक है। यह घटना क्षम्य नहीं है—यह बिहार की राजनीति पर कलंक है।

हद तो यह है कि इस घटना पर माफी मांगना तो दूर नीतीश कुमार या उनकी पार्टी जेडीयू या उनकी सहयोगी भाजपा ने अब तक इस पर अफसोस तक नहीं जताया है। बल्कि इसे मामूली घटना बताकर चलता किया जा रहा है। मुख्यमंत्री को बचाने के लिए कहा जा रहा है कि वे यह देख रहे थे कि जिसे नियुक्ति पत्र मिल रहा है, वह सही व्यक्ति है या नहीं। इससे ज्यादा लचर तर्क नहीं हो सकता, क्योंकि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में जाने से पहले बाकायदा कई स्तरों पर सुरक्षा होती है, पहचान पत्र देखे जाते हैं और जिन्हें नियुक्ति पत्र मिलना था, वो कौन हैं, इसकी भी शिनाख्त हुई होगी। अगर नीतीश कुमार को फिर भी पड़ताल करनी थी, तो वे नुसरत परवीन को हिजाब हटाने कह सकते थे, लेकिन खुद बढ़कर हिजाब खींचना अक्षम्य है।

यहीं नहीं रूकी बेशर्म भाजपा

बेशर्म भाजपा और उसके संस्कारी मंत्री नहीं नहीं रूके, भाजपा के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने शुक्रवार को कहा कि युवती नौकरी ठुकरा दे या नरक में जाए, नीतीश जी ने कुछ गलत नहीं किया। वहीं इससे पहले उत्तरप्रदेश में केबिनेट मंत्री संजय निषाद ने तो नीतीश कुमार के बचाव में कह दिया कि बुर्का उतरने पर इतना बवाल हो गया, अगर कहीं और छू देते तो क्या होता। वो भी तो आदमी ही है ना। संजय निषाद के इस बयान पर भी विपक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई है। समाजवादी पार्टी की नेता सुमैया राणा ने इस टिप्पणी को आपत्तिजनक बताते हुए लखनऊ के कैसरबाग थाने में नीतीश कुमार और संजय निषाद दोनों के खिलाफ शिकायत दर्ज करा दी है।

विपक्ष ने की कड़ी निंदा

विपक्ष ने इसकी कड़ी निंदा की है। कांग्रेस ने इसे नीच और घिनौना करार देते हुए नीतीश से तत्काल इस्तीफे की मांग की। आरजेडी ने उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे पूरी तरह सांघी हो गए हैं। जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्लाह, जायरा वसीम, सना खान और जावेद अख्तर ने भी बिना शर्त माफी की मांग की है। कई जगहों पर एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं और प्रदर्शन हो रहे हैं।

पहले भी कर चुके हैं नीतीश कुमार ऐसा

नीतीश कुमार ने पहली बार महिला विरोधी कार्य नहीं किया है। विधानसभा के भीतर उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की अभद्र तरीके से आलोचना की थी, इससे पहले जब वे राजद के सहयोग से मुख्यमंत्री थे, तब नवंबर 2023 में राज्य विधानसभा में जनसंख्या नियंत्रण और महिला शिक्षा के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने विवादित बयान दिया था। उस समय उनके विरोध में बैठी भाजपा ने नीतीश कुमार के बयान को शर्मनाक और भद्दा बताते हुए माफी की मांग की थी, लेकिन आज भाजपा को नीतीश कुमार की हरकत पर कोई शर्मिंदगी नहीं है। महिला आयोग भी इस मुद्दे पर चुप है। कम से कम इन पंक्तियों के लिखे जाने तक राष्ट्रीय महिला आयोग या राज्य महिला आयोग ने नीतीश कुमार पर कोई एक्शन नहीं लिया है।

पीड़ित डॉक्टर नुसरत ने लिया सरकारी नौकरी न करने का फैसला

वहीं इस घटना की पीड़ित डॉक्टर नुसरत ने सरकारी नौकरी न करने का फैसला किया है। और घटना के अगले दिन ही वे बिहार छोड़कर कोलकाता चली गई हैं। उनके भाई ने बताया कि, उसने नौकरी न करने का पक्का मन बना लिया है। लेकिन, मैं और परिवार के सभी लोग उसे अलग-अलग तरीकों से मनाने की कोशिश कर रहे हैं। हम उसे यह भी समझा रहे हैं कि यह गलती किसी और की है। हमारा कहना है कि किसी और की गलती के लिए उसे क्यों बुरा महसूस करना चाहिए या तकलीफ उठानी चाहिए। बता दें कि डॉक्टर नुसरत परवीन के पति एक कॉलेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के तौर पर काम करते हैं। नुसरत परवीन ने कहा कि जो हुआ वह मुझे अच्छा नहीं लगा। वहां बहुत सारे लोग मौजूद थे, कुछ लोग हंस भी रहे थे। एक लड़की होने के नाते वह मेरे लिए अपमान जैसा था। उन्होंने कहा कि मैंने स्कूल से लेकर कॉलेज तक हिजाब में ही पढ़ाई की है। घर, बाजार या मॉल, हर जगह मैं हिजाब पहनकर जाती रही हूं और कभी ऐसी स्थिति नहीं आई। मेरे अब्बू-अम्मी ने हमेशा यही सिखाया कि हिजाब हमारी संस्कृति का हिस्सा है। मेरी गलती क्या थी? यह मुझे समझ नहीं आ रहा। उस दिन को याद करके मैं सहम जाती हूं।

इस घटना के बाद नुसरत परवीन अपना हौसला कमजोर न पड़ने दें, यही दुआ की जा सकती है। लेकिन अब बिहार के लोगों को सोचना होगा कि जीविका दीदी के नाम पर महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए डालकर भाजपा और जेडीयू ने जीत हासिल कर ली। लेकिन हिजाब प्रकरण ने इनके चेहरों से नकाब उतार दिया है।

हरकत पर पर्दा डालने की ओछी कोशिश

प्रशासनिक गलियारों में इस घटना को ‘पिता समान स्नेह’ कहकर बचाना और भी दुर्भाग्यपूर्ण है। यह घटना किसी पितृस्नेह या स्नेह की नहीं, बल्कि सत्ता के नशे में चूर गुंडागर्दी और महिला की सहमति के बिना शारीरिक हस्तक्षेप की है। नकाब पहनना डॉ. नुसरत की व्यक्तिगत पसंद और धार्मिक आस्था का हिस्सा है, जिसे कोई मुख्यमंत्री हो या कोई भी—जबरन छीनने का अधिकार नहीं रखता। एक योग्य डॉक्टर, जो मेहनत से यह मुकाम हासिल कीं, उनका सार्वजनिक अपमान करना नीतीश कुमार की नीच मानसिकता को उजागर करता है। यह दलील न केवल तर्कहीन है, बल्कि मुख्यमंत्री की इस गंभीर गलती पर पर्दा डालने की एक ओछी कोशिश है। ऐसा संघी-भाजपा के लोग हमेशा से करते आये हैं।

सार्वजनिक पद की गरिमा को ठेस

मुख्यमंत्री का पद एक संवैधानिक और गरिमामय पद होता है। जब राज्य का मुखिया ही सार्वजनिक मंच पर एक पेशेवर महिला (डॉक्टर) के साथ ऐसा अशिष्ट व्यवहार करता है, तो यह समाज में बेहद गलत संदेश भेजता है। इससे यह प्रतीत होता है कि सत्ता में बैठे लोग कानून और लोक-मयार्दा से ऊपर हैं।

अल्पसंख्यकों की भावनाओं का अनादर

किसी भी महिला का पहनावा उसकी निजी पसंद और उसकी धार्मिक आस्था का हिस्सा होता है। किसी महिला के हिजाब को जबरन हटाना उसकी शारीरिक और मानसिक गरिमा पर सीधा हमला है। हिजाब या नकाब केवल एक वस्त्र नहीं, बल्कि कई महिलाओं के लिए उनकी पहचान और आस्था का प्रतीक है। मुख्यमंत्री द्वारा इसे उपहास का पात्र बनाना या जबरन हटाना एक विशेष समुदाय की भावनाओं को आहत करने वाला कृत्य है, जो सामाजिक सौहार्द के लिए हानिकारक है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की चुप्पी शर्मनाक



इस घटना को चार दिन बीत चुके हैं, लेकिन राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान, संज्ञान या कार्रवाई नहीं की गई है। यह चुप्पी अत्यंत निंदनीय और संदिग्ध है—क्या महिला आयोग केवल चुनिंदा मामलों में सक्रिय होता है, या सत्ता के दबाव में महिलाओं की गरिमा की रक्षा करने से कतराता है? घटना 15 दिसंबर को हुई, जब नीतीश कुमार आयुष डॉक्टरों को नियुक्ति पत्र बांट रहे थे। इस घिनौने कृत्य की चौतरफा निंदा हो रही है—विपक्षी दल, मुस्लिम संगठन, महिला कार्यकर्ता, यहां तक कि पाकिस्तान तक से आवाजें उठी हैं। हैदराबाद, बेंगलुरु और अन्य जगहों से महिला आयोग में शिकायतें दर्ज की गई हैं, कई लोगों ने स्वत: संज्ञान लेने की मांग की है। लेकिन आयोग की चुप्पी सवाल उठाती है: क्या नीतीश कुमार की सत्ता और एनडीए गठबंधन के कारण महिला आयोग की जुबान बंद हो गई है? यह कोई साधारण घटना नहीं है—यह महिला की व्यक्तिगत स्वतंत्रता, धार्मिक अधिकार और शारीरिक गरिमा पर सीधा हमला है। एक योग्य डॉक्टर का सार्वजनिक अपमान, जिससे वह इतनी आहत हुईं कि उन्होंने बिहार छोड़ दिया और सरकारी नौकरी जॉइन करने से इनकार कर दिया। फिर भी, महिला आयोग, जो महिलाओं के अधिकारों की रक्षा का दावा करता है, खामोश है। यह दोहरा मापदंड घोर शर्मनाक है—अगर कोई विपक्षी नेता ऐसा करता तो शायद तुरंत नोटिस जारी हो जाता। बहुजन स्वाभिमान संघ महिला आयोग की इस संवेदनहीन चुप्पी की कड़ी निंदा की जाती है। आयोग तुरंत स्वत: संज्ञान ले, नीतीश कुमार को नोटिस जारी करे और डॉ. नुसरत परवीन से माफी मंगवाए। यदि नहीं, तो यह साबित हो जाएगा कि महिला आयोग सत्ता के इशारों पर नाचने वाला संस्थान बन चुका है, जो महिलाओं के सम्मान की रक्षा करने में पूरी तरह असफल है। यह चुप्पी क्षम्य नहीं—यह महिलाओं के साथ विश्वासघात है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05