2024-07-05 11:20:19
मोदी-संघी शासन के दौरान पाखंडी प्रचारकों द्वारा तथाकथित धार्मिक आयोजनों को बढ़ावा मिला है। जिसके कारण हर रोज देश के किसी न किसी कोने में भोली-भाली जनता को अपनी जान गवानी पड़ रही है। तथाकथित धार्मिक प्रचारकों, कथावाचकों, पुजारियों, सत्संग कतार्ओं आदि के कार्यक्रम मोदी-संघी शासन में बेतहाशा बढ़े हैं। मोदी-संघी मानसिकता के लोग इन्हीं के माध्यम से जनता में तथाकथित अन्ध श्रद्धा के बीज बो रहे हैं। जिससे जनता में अन्धभक्त व अतार्किक लोग अधिक पैदा हो रहे हैं। भोली-भाली जनता में तार्किक ज्ञान घट रहा है और अंधभक्ति बढ़ रही है। देश के हर गाँव, कस्बे, व शहरों में धार्मिक आयोजनों की बाढ़ सी आ गई है। सरकार अपने प्रचार तंत्र के माध्यम से बाबाओं का प्रचार करा रही है। आज हालात ये बन चुके हैं कि हर गली, पार्क आदि में धार्मिक पाखंडों का आयोजन चलता दिखता रहता है। इन धार्मिक आयोजनों में भाग लेने वाले लोग बहुजन समाज की अति पिछड़ी जातियों से आने वाले अधिक होते है। इन धार्मिक आयोजनों में जाने वाले लोगों में करीब 70 प्रतिशत महिलाएँ होती हैं और 30 प्रतिशत के लगभग पुरुष होते है। पिछड़ी जातियों की महिलाओं की यह आम दिनचर्या बन चुकी है कि सुबह घर के पुरुषों के काम पर निकलने के बाद महिलायें इन बातों पर कोई ध्यान नहीं रखती हंै कि उसके बच्चे कहाँ हैं? वे स्कूल गए हैं या नहीं? उन्होंने खाना खाया है या नहीं? वह सिर्फ इसी बात में मुग्ध रहती है कि वह सत्संग में भाग लेकर अपने अगले जन्म को सुधार रही है। उसे यह भी ज्ञान नहीं कि अगला-पिछला जन्म कुछ नहीं होता है, जो कुछ भी करना है मनुष्य को इसी जन्म में करना है। उनको यह भी नहीं पता होता है कि दुनिया में न कहीं भगवान है और न भाग्य से कुछ मिलता है। मनुष्य को इस दुनिया में जो भी कुछ प्राप्त होता है वह उसको अपने परिश्रम से ही प्राप्त होता है। अगला-पिछला जन्म भाग्य और भगवान की मान्यताएं अतार्किक और अवैज्ञानिक है। इसलिए उन्हें भगवान को नहीं मानना चाहिए और न किसी को भगवान समझकर पूजा करनी चाहिए। बहुजन समाज की यह विडंबना है कि वह भगवान, धर्म, अगला-पिछला जन्म के चक्कर में अधिक विश्वास रखता है और यही पाखंड भरा विश्वास घर की महिलाओं से होता हुआ बच्चों में हस्तांतरित हो जाता है जिसके कारण बहुजन समाज का मानसिक विकास अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पा रहा है। आज देश में पिछड़े वर्ग की जितनी जनसंख्या है उसके अनुरूप सत्ता में पिछड़े वर्ग की भागीदारी नगण्य है। भागीदारी बढ़ाने के लिए पिछड़े वर्ग की जातियों में जागरूकता के कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर कहा था कि ‘‘मैं किसी भी समाज की प्रगति उसकी महिलाओं की प्रगति से मापता हूँ’’ उनका यह कथन एकदम सत्य है चूंकि घर की महिलाओं से ही परिवार के बच्चों का वातावरण विकसित होता है और अगर घर का वातावरण तार्किक और वैज्ञानिक है तो घर के बच्चे पाखंड और अतार्किक बातों में नहीं फँसते। उनका विकास समग्रता के साथ वैज्ञानिक और तर्क के आधार पर होता है। इसलिए देश के बहुजन समाज से आशा की जाती है कि वह अपने विकास के लिए अपने घर की महिलाओं को विकसित करें और अपने बच्चों को भी उसी वातावरण के साथ विकसित करके दुनिया की सभी चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें सक्षम बनाए। बहुजन समाज से यह अपील की जाती है कि वे अपनी घर की महिलाओं और बच्चों को पाखंडी आयोजनों, कथाओं, सत्संग आदि में न जाने दें। महिलाओं को इन पाखंडों में फँसने से रोकने के लिए किसी भी तरह का बल प्रयोग न करें बल्कि उन्हें जागरूक करके सत्यता से अवगत कराएं। साथ ही घर की महिलाओं को अपने महापुरुषों की शिक्षाओं से अवगत कराके उन्हें महापुरुषों के कार्यक्रमों में व्यस्त रखे। ताकि उनके मस्तिष्क का विकास सही दिशा में हो। मंदिरों, कथाओं, सत्संग द्वारा जो पाखंड समाज में फैलाया जा रहा है उसमें महापुरुषों का ज्ञान नहीं है। इसलिए ऐसे आयोजनों से बहुजन समाज की महिलाओं को दूरी बनाकर रखना चाहिए। ऐसे तथाकथित धार्मिक आयोजनों, कथाओं, सत्संगों आदि से महिलाओं का आर्थिक, मानसिक, शारीरिक शोषण होता है। ब्राह्मणी संस्कृति के द्वारा किया जा रहा शोषण महिलाओं को पता ही नहीं लग पाता कि उनका शोषण हुआ है? तथाकथित हिन्दू मंदिरों में महिलाओं के यौन शोषण के घटनाएँ भी आमतौर पर सामने आती रहती है। ऐसी घटनाओं को देखकर और सुनकर भी महिलाएँ अगर मंदिरों में जाने से विरक्त नहीं हो रही है तो फिर इसे उनमें बुद्धि की कमतरता ही कहेंगे।
धार्मिक आयोजनों में हर वर्ष भगदड़ की घटनाओं के कारण कई सौ लोगों के मरने की खबरें आती रहती है मगर फिर भी लोग इन घटनाओ से सबक न सीखकर इन तथाकथित धार्मिक आयोजनों में जाना नहीं छोड़ रहे हैं, इसे क्या कहे? हर वर्ष काँवड़ व अन्य धार्मिक यात्राओं में सैकड़ों की संख्या में लोगों की जान जाती है जिसे देखकर लोग अपने आपको रोकने और समझाने में असफल हो रहे हैं। तथाकथित हिन्दू धर्म के अंधभक्त ऐसी घटनाओं के प्रेरक हंै और उन्हें लगता है कि धार्मिक आयोजनों से उनका और उनके परिवार का कल्याण हो रहा है।
‘यह संसार सोये हुए लोगों की भीड़ है, और सोये हुए लोग जागे हुए आदमी को बर्दास्त नहीं करते।’ महात्मा ज्योतिबा फुले का यह कथन एकदम सही है। आज समाज में चारों तरफ द्वंद है। इसीलिए देखकर लगता है कि बहुजन समाज के अधिसंख्यक लोग आज भी गहरी नींद में सोये हुए हैं।
मंदिरों, सत्संगों, कथाओं, धार्मिक आयोजनों में भगदड़ की घटनाओं का कालक्रम
<3 जुलाई 2024 को यूपी के हाथरस जिले के फूलगढी गाँव में नारायण सरकार हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के बाद, मची भगदड़ में करीब 150 से अधिक की मौत और 250 से अधिक घायल हुए।
<31 मार्च 2023 को इंदौर के एक मंदिर में राम नवमी के अवसर पर हवन के दौरान मंदिर की बाबड़ी के ऊपर बनी स्लेप ढ़ह जाने से ही कम से कम 36 लोगों की मौत।
<1 जनवरी 2022 जम्मू कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर में भारी भीड़ के कारण भगदड़ में कम से कम 12 लोगों की मौत और एक दर्जन से ज्यादा घायल।
<14 जुलाई 2015 आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी जिले में पुष्षकर्म उत्सव के पहले दिन गोदावरी नदी के तट पर भगदड़ से हुई 27 लोगों की मौत और 20 से अधिक घायल।
<3 अक्तूबर 2014 दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में हुई 32 लोगों की मौत, और 36 से ज्यादा घायल।
<13 अक्तूबर 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया में रत्नगढ़ मंदिर के पास नव रात्री उत्सव के दौरान भगदड़ में 15 लोगों की मौत, और 100 से ज्यादा घायल।
<19 नवम्बर 2012 पटना में गंगा नदी के तट पर छठ पूजा के दौरान अस्थाई पुल के ढ़ह जाने से 20 लोगों की मौत, और 20 से अधिक हुए घायल।
<8 नवम्बर 2011; हरिद्वार में गंगा नदी के तट पर भगदड़ में 20 लोगों की हुई मौत और दर्जन भर हुए घायल।
<14 जनवरी 2011; केरल इडुकी में एक जीप के सबरी बाला मंदिर के दर्शन से लौट रहे तीर्थ यात्राओं से टकराएँ जाने की भगदड़ में 104 की मौत हुई और इतने ही लोग घायल हुए।
<4 मार्च 2010 उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ से 13 लोगों की मौत और इतने ही लोग घायल।
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