2025-06-06 20:08:45
संवाददाता
नई दिल्ली। दिन प्रतिदिन मोदी सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे गिर रहा है। अमेरिकी दबाव पर युद्ध विराम ने तो इन्हें और नीचे लुढ़का दिया है। जुमलेबाजी का असली रूप अब लोगों के सामने आ रहा है। भारत की विदेश नीति पूरी तरह विफल साबित होती दिख रही है। जिस पाकिस्तान को हमने पूरी तरह से दरकिनार कर दिया था, वो हीरो बना घूम रहा है। उसे फण्ड मिल रहे हैं, संयुक्त राष्ट्र में कमिटो की अध्यक्षता मिल रही है, नरेंद्र मोदी ने पिछले 45 दिनों में कश्मीर की तरफ झांका भी नहीं, लेकिन आज वे फीता काटने के लिए कश्मीर पहुंचे गये। कूटनीति का मतलब फर्जी और खोखले दावे या लाल लेजर आंखों वाली रील बनाना नहीं है- अगर हमारी विदेश नीति सही होती, तो दुनिया के तमाम देश हमारे साथ मुस्तैदी से खड़े रहते।
वहीं कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार की विदेश नीति फेल हो गई है। इसका असर आॅपरेशन सिंदूर के बाद दिखा। किसी भी देश ने पाकिस्तान को आतंकवादी देश नहीं कहा। यह सरकार की विदेश नीति की नाकामी है। पाकिस्तान के साथ शत्रुता के दौरान एक भी देश भारत के साथ खड़ा नहीं हुआ, जिससे देश पूरी तरह अलग-थलग हो गया है। भाजपा नेता संकीर्ण मानसिकता का प्रदर्शन कर रहे हैं और अभी भी तुच्छ राजनीति में लिप्त हैं। विदेश और रक्षा नीति समेत हर चीज को ट्रोल्स को आउटसोर्स कर दिया गया है। यह सरकार ट्रोल्स द्वारा चलाई जा रही है, ट्रोल्स द्वारा संचालित है, ट्रोल्स से प्रेरित है और इसके नतीजे सभी देख सकते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने के बाद, कुवैत और यूएई जैसे मध्य पूर्व के देशों ने भी यही किया। कुवैत ने पाकिस्तानियों पर अपना वीजा प्रतिबंध हटा लिया है और उसके साथ एक श्रम संधि पर हस्ताक्षर कर रहा है। ऐसे घटनाक्रम जो भारतीय श्रमिकों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते हैं, जो वर्तमान में कुवैत के श्रम बल का 21 प्रतिशत हिस्सा हैं। यूएई ने पाकिस्तान को पांच साल की वीजा सुविधा दी है। किसी भी देश ने पाकिस्तान को आतंकवादी देश के रूप में लेबल करने में भारत का समर्थन नहीं किया है, जो देश की विदेश नीति की कमजोरी को दर्शाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में एक भाषण दिया था। इसमें उन्होंने आॅपरेशन सिंदूर का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था कि आॅपरेशन सिंदूर को कैमरे में रिकॉर्ड किया गया है। ताकि कोई भी सबूत न मांगे। मोदी ने कहा था कि अभी तक हम जिसे प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते।
जिन आतंकवादियों को मारा गया, उन्हें पाकिस्तान में सैन्य सम्मान दिया गया। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान सीधे तौर पर आतंकवाद में शामिल है।
मोदी के बयान पर कांग्रेस ने पूछा है कि हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे बड़े आतंकवादियों को क्यों नहीं मारा गया? आज तक हमें इस सवाल का जवाब नहीं मिला है कि पूंछ, गांदरबल, गुलमर्ग और पहलगाम के आतंकवादियों का क्या हुआ? हाफिज सईद और मसूद अजहर कैसे बच गए?
राहुल गांधी ने भी सरकार पर आरोप लगाया था कि सरकार ने हमले से पहले पाकिस्तान को जानकारी दे दी थी। राहुल गांधी ने विदेश मंत्री एस जयशंकर का एक पुराना वीडियो शेयर किया था। 17 मई को उन्होंने लिखा था कि हमारे हमले की शुरूआत में पाकिस्तान को सूचित करना एक अपराध था।
कांग्रेस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक बयान का भी जिक्र किया। ट्रंप ने कहा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने में मदद की थी। जो एक बहुत ही खतरनाक टिप्पणी है। सिंदूर का सौदा होता रहा और प्रधानमंत्री चुप रहे। मतलब आॅपरेशन के दौरान गुप्त बातचीत चल रही थी।
कनाडा ने भारत को जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए नहीं किया आमंत्रित
भारत को अभी तक जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए निमंत्रण नहीं मिला है, जो 15 जून से 17 जून के बीच कनाडा में आयोजित होने वाला है। मोदी ने लगातार पिछले छह वर्षों से इस सम्मेलन में भाग लिया है। यह पहली बार होगा कि भारत इस आयोजन में अनुपस्थित रहेगा। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मेजबान देश को आमंत्रण भेजने, एजेंडा तय करने और सम्मेलन की समग्र दिशा तय करने का विशेषाधिकार प्राप्त होता है। इससे मेजबान देश को सम्मेलन को अपनी प्राथमिकताओं और विदेश नीति के अनुरूप संचालित करने की सुविधा मिलती है। जी-7 दुनिया की सबसे औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं का समूह है—अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा। यूरोपीय संघ (ईयू), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भी सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। प्रधानमंत्री को इसका जवाब देना चाहिए की हम और हमारा भारत कहां खड़ा है?
कनाडा ने भारत को जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए नहीं किया आमंत्रित
भारत को अभी तक जी-7 शिखर सम्मेलन के लिए निमंत्रण नहीं मिला है, जो 15 जून से 17 जून के बीच कनाडा में आयोजित होने वाला है। मोदी ने लगातार पिछले छह वर्षों से इस सम्मेलन में भाग लिया है। यह पहली बार होगा कि भारत इस आयोजन में अनुपस्थित रहेगा। अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मेजबान देश को आमंत्रण भेजने, एजेंडा तय करने और सम्मेलन की समग्र दिशा तय करने का विशेषाधिकार प्राप्त होता है। इससे मेजबान देश को सम्मेलन को अपनी प्राथमिकताओं और विदेश नीति के अनुरूप संचालित करने की सुविधा मिलती ह। जी-7 दुनिया की सबसे औद्योगीकृत अर्थव्यवस्थाओं का समूह है—अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और कनाडा। यूरोपीय संघ (ईयू), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भी सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
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