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खतरनाक साबित होगी बहुजन समाज की अनदेखी

बिहार में बहुजन समाज व अल्पसंख्यक समुदायों के साथ टिकट बंटवारे में भेदभाव, नीतीश का सीएम बनना मुश्किल
News

2025-10-25 15:51:19

संवाददाता

नई दिल्ली। वर्तमान शासन सत्ता की लोकसभा में 131 आरक्षित वर्ग के सांसद है और केंद्र सरकार में कानून मंत्री भी अर्जुनराम मेघवाल जो एक दलित है उनके मंत्रित्वकाल में बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्य) मनुवादी संघी संस्कृति के रणनीतिकारों का हमेशा से एक छिपा षड्यंत्र रहा है कि अगर बहुजन समाज के किसी भी जातीय घटक का अहित करना है तो उस कार्य के लिए उन्हीं के समाज के ऐसे व्यक्ति को सुपारी दी जाये जो किसी न किसी तरह से लालची हो, स्वार्थी हो और अपने लालच में कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हो। मनुवादी संघी संस्कृति के लोग कभी भी स्वयं या अपने से जुड़े व्यक्तियों के द्वारा बहुजन समाज पर हमला नहीं कराते। वर्तमान और अतीत को देखने से पता चलता है कि बहुजन समाज के ऊपर जो उत्पीड़न और अत्याचार की घटनाएँ हो रही है, उसके लिए वे बहुजन समाज के लालची व्यक्ति को ढूंढते हैं और इस काम को करने की जिम्मेदारी उन्हें ही देते हैं।

ऐसे प्रतिनिधियों को चुने जो आनुपातिक हिस्सेदारी सुनिश्चित करें: वर्तमान समय में बिहार विधान सभा के चुनाव चल रहे हैं जिसमें चुनावी जमात दो बड़े हिस्सों में बंटकर चुनाव लड़ रही है। एक का नाम है महागठबंधन और दूसरे का नाम है एनडीए। इन दोनों गठबंधनों में देखने को मिल रहा है कि गठबंधन के प्रमुख नेता अपने-अपने समुदाय के कोर मतदाताओं को अपने साथ एकजुट करने के उद्देश्य से अधिक संख्या में उन्हें ही चुनाव लड़ने का टिकट दे रहे हैं। इससे साफ होता है कि बहुजन समाज की चुनाव में दाबेदारी किसी भी गठबंधन के मुख्य एजेंडे में नहीं है। बहुजन समाज के जातीय घटकों से जिनको भी बिहार चुनाव में उतारा जा रहा है वे मनुवादी संघी संस्कृति के मानसिक रूप से गुलाम है। बहुजन समाज के उद्धार के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है और न उनके पास उनसे लड़ने की इच्छा है। पिछले 20 वर्षों से बिहार में नीतीश कुमार की शासन सत्ता है, मूल रूप से नीतीश कुमार की आंतरिक संरचना में मनुवादी संघी संस्कृति का गहरा प्रभाव है। वाजपेयी से लेकर आजतक जितनी भी मनुवादी संघी सरकारें केंद्र और प्रदेशों की विधान सभाओं में रही है उन सभी में नीतीश कुमार एक प्रमुख अंग रहे हैं। जिसने कभी भी आनुपातिक हिस्सेदारी की बात को मजबूती से मनुवादी संघी मानसिकता की सरकारों में न रखा और न मनवाया। आज भी केंद्र और बिहार की राज्य सत्ता नीतीश और संघियों के घालमेल के साथ चल रही है। नीतीश कुमार को अगर बहुजन समाज के जातीय घटकों का कोई ख्याल होता तो वे मोदी संघी सरकार के सामने शर्त रखकर कहते कि बहुजनों को शासन सत्ता में उनकी संख्या के आधार पर आनुपातिक हिस्सेदारी दो वरना मेरा मोदी सरकार को समर्थन नहीं होगा। अभी हाल ही में सुनने को आया है कि नीतीश बिहार में फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए मनुवादियों की शरण में गए हैं लेकिन वहाँ पर चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह ने महागठबंधन के फैसले में तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने के बाद अमित शाह ने बिहार का मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने से मना कर दिया है, और उन्होंने कहा कि विधायकी से जीतकर आए विधायक इस बात का फैसला स्वयं करेंगे। बहुजन समाज को उनके जातीय घटकों से अधिक खतरा: बहुजन समाज को पूर्व के अनुभव के आधार पर अपने जातीय घटकों से अधिक सावधान रहना होगा। बिहार चुनाव में पूर्व के अनुभव बता रहे हैं कि बहुजन समाज के जातीय घटक जैसे चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और बीएसपी की सुप्रीमो बहन मायावती से भी सावधान रहना चाहिए। चूंकि इनकी छिपी आंतरिक रणनीति से हमेशा मनुवादी-संघीयों को ही फायदा होता आ रहा है। समाज के लोगों को लगता है कि ये तीनों मनुवादी संघी संस्कृति के लोगों से चुनाव के लिए आवश्यक ऊर्जा अर्जित करके अपनी छिपी रणनीति के तहत मनुवादी संघी उम्मीदवारों को ही फायदा पहुंचाते हैं। चिराग पासवान को तो समाज के प्रबुद्ध लोगों को उनकी वेषभूषा देखकर ही अंदाजा लगा लेना चाहिए कि उनके अंदर क्या छिपा है? और वे चुनाव में किसको सहायता पहुंचाएंगे? बहुजन समाज के किसी भी जातीय घटक का नेता चिराग पासवान जैसा लंबा तिलक नहीं लगा रहा है। माथे पर तिलक लगाने की प्रतिस्पर्धा में चिराग पासवान ने कट्टर ब्राह्मणों को भी पीछे छोड़ दिया है। शायद उनका यह लंबा तिलक बहुजन समाज को दर्शा रहा है कि मैं दलित समाज की पासवान जाति का अंग नहीं हूँ, बल्कि मैं ब्राह्मण वर्ग की माँ से पैदा हुआ शंकर प्रजाति का व्यक्ति हूँ और मैं राजनीति में संघी ब्राह्मणों की राजनीति करके ही शिखर पर पहुँच सकता हूँ। चिराग पासवान के पिता स्व. रामविलास पासवान भी हमेशा अपनी स्वार्थी तिगड़मबाजी के कारण सभी प्रकार की सरकारों में मंत्री बने रहे, और उससे शायद परिवार को ही उन्नत बनाया, बहुजन समाज का उससे कोई फायदा नहीं हुआ। रामविलास पासवान जी बहुजन समाज की राजनीति में सिर्फ एक लंबे खजूर के पेड़ की तरह ही बने रहे जिससे न समाज को छाया मिली और न ही फल। बहुजन समाज के जातीय घटकों से उम्मीद की जाती है कि वे चिराग पासवान की छिपी रणनीति को पहचाने और उनके द्वारा चुनाव में उतारे गए प्रत्याशियों को हर कीमत पर हराएँ।

जीतनराम मांझी भी एक बार नीतीश कुमार की कृपा से बिहार के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन वे जिस समाज से आते हैं उसे वे यह तो बताए कि उन्होंने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में समाज को अपनी कितनी आनुपातिक हिस्सेदारी दी। वे बिहार के मुसहर समाज से आते हैं, वे अपने समाज को यह भी बताएं कि उन्होंने अपने समाज के लिए कितने स्कूल, शिक्षण-संस्थान, उद्योग धंधे आदि बनाए, अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया है तो वे फिर किसी मुंह से अपने समाज से वोट मांग रहे हैं। बहुजन समाज के जागरूक लोगों को यह अच्छी तरह से पता है कि जीतनराम मांझी मनुवादी संघियों के मानसिक गुलाम है। बहुजन समाज को अपने ऐसे छिपे आस्तीन के साँप को पालकर वोट नहीं करना चाहिए, उन्हें सिर्फ अपने सच्चे अम्बेडकरवादी प्रत्याशी को ही वोट करना चाहिए चाहे व किसी भी गठबंधन का हिस्सा हो।

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती जी जिनकी राजनीति का मजबूत क्षेत्र उत्तर प्रदेश रहा है वे वहाँ पर चार बार मुख्यमंत्री भी बन चुकी है लेकिन जब से केंद्र में मोदी संघी सरकार और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आई है तब से उनकी चुनावी रणनीति विषाक्त होकर बहुजन समाज को हराने का ही काम कर रही है। पूरा बहुजन समाज जानता है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव और उनका परिवार कभी भी बहुजन समाज का समर्थक नहीं रहा। बल्कि अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव की मानसिकता में मनुवादी और सामंतवादी विचारधारा हमेशा प्रबल रही है, दलित समाज के ऊपर जितने अत्याचार मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल में हुए उतने किसी अन्य मुख्यमंत्रित्व के काल में नहीं हुए।

राजनीति का खेल पैतरेबाजी का खेल है, बहुजन समाज की बहन जी जैसी राजनीतिक नेताओं को इसे समझना चाहिए और बहुजन समाज की हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेसी व समाजवादी पार्टी से परहेज भी नहीं करना चाहिए। बिहार में जाकर बीएसपी का अकेले चुनाव लड़ना सिर्फ यह दर्शा रहा है कि वहाँ पर बहुजन समाज की वोटों का बंटवारा करके मनुवादी संघियों को सत्ता में लाना है, इसलिए बहन जी के समर्थकों से निवेदन है कि वे आपस में बंटकर वोट न करें वे सभी एक मत होकर सच्चे अम्बेडकरवादियों को ही अपना वोट दे और उसे ही जिताए। बहन जी ने जो आधिकारिक तौर पर बीएसपी के प्रत्याशी उतारे हैं वे सभी अंदर से मनुवादी-संघियों के कट्टर समर्थक होंगे और चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बनाने के लिए उनका ही समर्थन करेंगे। आज देश में बहन जी के समर्थकों का मन तो बहन जी के साथ है लेकिन उनका मस्तिष्क बहन जी की चुनावी रणनीति से मेल नहीं खा रहा है, इसी आधार पर बहुजन समाज बिहार के मतदातों से अपील करता है बहन जी द्वारा उतारे गए आधिकारिक प्रत्याशियों को वोट न देकर उन्हें हराने का कार्य करे। साथ ही उत्तर प्रदेश में बहन जी को जो समर्थन समाज का मिल रहा है वे उसका दुरुप्रयोग करके योगी का आभार व्यक्त न करें अन्यथा बहुजन समाज आपकी राजनीति खत्म कर देगा।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05