




2025-12-13 16:16:01
नई दिल्ली। पूरी दुनिया में माइंडफुलनेस और आध्यात्मिक जागृति को ओर रुझान बढ़ रहा है। इसका गवाह सोमवार को बिहार महाबोधि मंदिर परिसर का बोधिवृक्ष बना, जहां अमेरिका, नीदरलैंड व आॅस्ट्रेलिया समेत पांच देशों के नागरिकों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी गई। उन्हें बौद्ध भिक्षु के रूप में एक माह के लिए दीक्षा दी गई। थाईलैंड के इंटरनेशनल मोनास्टिक आॅर्डिनेशन प्रोजेक्ट के द मॉन्क लाइफ प्रोजेक्ट इंडिया के तहत यह दीक्षा दी गई, जिसमें वे बौद्ध मठ के जीवन का अनुभव लेगें। वे ध्यान, अनुशासन, सादगी और गहन आध्यात्मिक प्रशिक्षण में पूरी तरह तल्लीन होंगे। अपने एक महीने के प्रशिक्षण के दौरान भिक्षु ध्यान, जप, बौद्ध साहित्य अध्ययन, भिक्षाटन और सजग जीवन में संलग्न रहते हैं, जो अनुभव आमतौर पर आम लोगों, विशेष रूप से पश्चिमी देशों से आने वाले लोगों के लिए दुर्लभ रूप से उपलब्ध होता है। समारोह को थाईलैंड नरेश भूमिबोल अदुल्यादेज व रानी सिरीकित को समर्पित किया गया। दीक्षा बोधगया के रॉयल थाई मंदिर के मुख्य भिक्षु फ्रा वीरयुद्ध की देखरेख में हुआ। सभी को सिर मुंडन के बाद चीवर दिए गए। महाबोधि मंदिर में नीदरलैंड से अरिज देहह्यन, आॅस्ट्रेलिया से प्रज्ञा चकमा, थाईलैंड से सिड्डी कान उंचित, संयुक्त राज्य अमेरिका से स्टीवन मार्क्स व आॅस्ट्रेलिया से जॉर्डन सेंगर ने भिक्षु की दीक्षा ली। सभी ने विनय पिटक के नियमों के पालन की प्रतिज्ञा ली। इंटरनेशनल फॉरेस्ट मोनास्ट्री चियांग माई की पहल पर 23 देशों के 230 से अधिक नागरिकों को बौद्ध भिक्षु के रूप में दीक्षा दी गई।
दीक्षा सांसारिक जीवन का है त्याग
बौद्ध धर्म में, दीक्षा मोनास्ट्री व्यवस्था या संघ का सदस्य बनने की औपचारिक प्रक्रिया है, जिसमें अनुष्ठान, प्रतिज्ञाएं और मोनास्टिक नियमों के प्रति प्रतिबद्धता शामिल होती है। इसके सामान्यत: दो चरण होते हैं- मोनास्टिक जीवन में नए लोगों के लिए श्रामणेर की दीक्षा व पूर्ण भिक्षुओं या भिक्षुणियों के लिए उच्च दीक्षा। दीक्षा आध्यात्मिक साधना के प्रति समर्पण और सांसारिक जीवन के त्याग का प्रतीक है।
जरा कल्पना कीजिए...
जिन देशों को हम सिर्फ तकनीक, धन और भौतिकता के लिए जानते थे, उन देशों के युवा आज सुबह उठकर मौन साधना कर रहे हैं, और कहते हैं: सच्ची शांति बाहर नहीं, भीतर है। यही बौद्ध धर्म की अनुपम महानता है: वो किसी को जबरदस्ती नहीं, सिर्फ सत्य की खोज का निमंत्रण देता है, वो तलवार से नहीं, करुणा और मैत्री से जीतता है। वो कहता है: ‘अप्प दीपो भव’ अर्थात् अपना दीपक खुद बनो, किसी और पर निर्भर मत रहो। आज की न्यूरोसाइंस भी यही कहती है कि माइंडफुलनेस और अहिंसा ही असली मानसिक स्वास्थ्य है, बुद्ध ने ये 2600 साल पहले बता दिया था। जब पूरी दुनिया तनाव, युद्ध और अहंकार की आग में जल रही है, तब बोधगया का यह दृश्य एक जोरदार संदेश है। शांति अभी भी संभव है। मानवता अभी भी बच सकती है। और वो रास्ता भीतर से होकर जाता है। बहुजन स्वाभिमान संघ की तरफ से इन पाँच नए भिक्षुओं को कोटि-कोटि प्रणाम और उस करुणामय बुद्ध को अनंत नमन, जिनकी रोशनी आज भी दुनिया कोने-कोने तक पहुँच रही है।
आस्ट्रेलिया में तेजी से बढ़ता बौद्ध समुदाय :
1970 के दशक से आॅस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म ने एक नया मोड़ लिया। वियतनाम युद्ध और एशिया में राजनीतिक अस्थिरता के कारण बड़ी संख्या में शरणार्थी आॅस्ट्रेलिया आए, खासकर वियतनाम और कंबोडिया से। 1973 में कातूम्बा में न्यू साउथ वेल्स का पहला बड़ा मठ स्थापित हुआ, और 1975 में सिडनी में पहला थाई मंदिर खुला। 1980 के दशक में विपश्यना आंदोलन, जेन बौद्धिज्म और तिब्बती बौद्ध परंपरा तेजी से फैलने लगी। 1983 में दलाई लामा की सिडनी यात्रा ने आॅस्ट्रेलियाई नागरिकों को बौद्ध विचारों की ओर आकर्षित किया। जैसे-जैसे माइंडफुलनेस, मेडिटेशन और मानसिक स्वास्थ्य पर वैश्विक चर्चा बढ़ी, आॅस्ट्रेलिया में बौद्ध धर्म का प्रभाव और भी व्यापक होता गया।
क्यों बढ़ रहा है बौद्ध धर्म का असर?
बौद्ध धर्म का असर आॅस्ट्रेलिया में लगातार बढ़ रहा है, और इसके पीछे कई कारण माने जाते हैं। आधुनिक, तनावपूर्ण जीवनशैली में मेडिटेशन और माइंडफुलनेस ने लोगों को शांति और संतुलन प्रदान किया है, जिससे बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता बढ़ी है। इसके अलावा, शरणार्थी और एशियाई देशों से बढ़ती प्रवासी आबादी ने भी बौद्ध समुदाय को मजबूत किया है।





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