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2024 चुनाव के लिए बहुजन समाज के मुद्दे

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2023-06-10 05:55:58

बहुजन समाज भारत का अधिसंख्यक समुदाय है जो देश के एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यकों से मिलकर बनता है। जनसंख्या के आधार पर लगभग 90 प्रतिशत आबादी बहुजन समाज की है। यह पूरा समाज अतीत से लेकर संविधान लागू होने तक और कुछ हद तक उसके बाद भी मानवीय अधिकारों से वंचित व उपेक्षित रहा है। इस समाज में एकता, सोच व समझ का अभाव दिखता है जिसके कारण यह समाज हमेशा ब्राह्मणी/मनुवादी संस्कृति के छलावों व प्रपंचों में फंसा रहता है। अगर इस 90 प्रतिशत वाले विशाल जनसमूह में से खेती की जमीन का मालिकाना अधिकार रखने वाली कुछेक दबंग जातियों जैसे-जाट, गुर्जर, अहीर, भूमिहार व अन्य समकक्ष जातियों को बहुजन समाज में से घटा भी दिया जाये तब भी बाकि बचे समुदाय की जनसंख्या 85 प्रतिशत से शायद कम नहीं है। अगर इस 85 प्रतिशत जनसमूह से 5-10 प्रतिशत समाज के गद्दारों को भी निकाल दिया जाये तो भी बचे हुए बहुजन समाज के जातीय अंगों की जनसंख्या 75 प्रतिशत से कम नहीं है। देश में प्रजातांत्रिक व संवैधानिक व्यवस्था है, इसके बावजूद भी देश में 3.5 से 5 प्रतिशत जनसंख्या वाले ब्राह्मणी संस्कृति के लोग देश की सत्ता में निरंतरता के साथ बने हुए हैं। इस मुद्दे पर आजतक बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर व मान्यवर साहेब कांशीराम जी को छोड़कर अन्य किसी ने कोई चिंतन या आपत्ति नहीं की है और न ही इसे लेकर समाज को जागरूक करने का अभियान चलाया है। यह पूरा वर्ग मनुवादी संस्कृति के आधार पर शूद्र वर्ग है परंतु यह कई हजार जातियों में बंटा हुआ है। मनुवादी लोग आज के इस वैज्ञानिक युग में भी जाति को धर्म का अभिन्न अंग मानते हैं इससे बड़ी मूर्खता दूसरी और कोई नहीं हो सकती। इस संदर्भ में अभी कुछ दिन पहले जातिवादी मानसिकता को लेकर न्यूयार्क में जो कानून बनाया गया मनुवादियों ने वहाँ पर भी उसके खिलाफ अपना विरोध प्रदर्शन किया। पूरा बहुजन समाज (शूद्र) पिछले करीब दस वर्षों से हिंदुत्व की मानसिकता के जहर और अत्याचार को तो झेल ही रहा है वहीं मोदी-संघी शासन के मनुवादियों द्वारा प्रायोजित नफरत को भी झेलने को मजबूर है। प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता की पीड़ा का उपचार जनता विरोधी ताकतों को चुनाव में हराकर ही किया जा सकता है। देश में आम संसदीय चुनाव 2024 में होने जा रहा है। शूद्र (बहुजन) जातियों का अपना एक चुनावी एजेंडा तय करना चाहिए जिसके आधार पर बहुजन समाज मिलकर सामूहिकता के साथ मतदान करें और बहुजन समाज को बहुमत के साथ जीत दिलायें। बहुजन समाज के चुनावी एजेंडे का प्रारूप इस प्रकार हो सकता है जिस पर सभी विचार-विमर्श करके समाज व देशहित में काम की शुरूआत करें।

बहुजन समाज का चुनावी एजेंडा: चुनावी एजेंडा समाज की सभी प्रकार की विषमताओं को ध्यान में रखकर बना होना चाहिए। अधिकांश लोग एजेंडे पर सहमत हों, उसी आधार पर मतदान करें। किसी ब्राह्मणी/मनुवादी छलावे में न फँसें। चूंकि मनुवादी ताकतों का प्रपंचकारी छलावा, बहकावा और समाज को असंगठित करने का काम उनके द्वारा सदियों से किया जा रहा है जिसके कारण मनुवादी समाज हमेशा से सत्ता में स्थापित है।

शिक्षा का मुद्दा: बाबा साहेब के कथनानुसार ‘शिक्षा शेरनी का वह दूध है, जो इसे पियेगा, वही दहाड़ेगा’ शायद बहुजन समाज की इसी दहाड़ को खत्म करने के उद्देश्य से मनुवादियों ने बहुजन समाज को शिक्षा से दूर करने का पूरा इंतजाम नई शिक्षा नीति-2020 लाकर कर दिया है। आरक्षित कोटे से चुने गए विधायक व सांसद चुपचाप बैठे हुए हैं। बहुजन समाज के बच्चों के विकास के लिए शिक्षा का मुद्दा अहम है इसलिए ऐसे व्यक्तियों को चुनो जो समाज की स्थिति और जरूरत को देखकर ऐसी शिक्षा की नीतियाँ बनाएं और उन्हें भी लागू करवायें जिससे समाज में शिक्षा समृद्ध और बलवती बनें।

स्वास्थ्य का मुद्दा: मनुष्य का स्वस्थ होना स्वयं और देश के लिए आवश्यक है। आज जो सरकार की स्वास्थ्य नीति जनता के लिए बनायी गयी है उससे जनता का शोषण और अधिक बढ़ा है। आज की स्वास्थ्य नीति से बहुजन समज को कोई लाभ नहीं है। वर्तमान सरकार द्वारा बनायी गयी नीति से निजी संस्थानों-दुकानों द्वारा स्वास्थ्य के नाम पर भारी लूट की जा रही है। ब्राह्मणी संस्कृति के डॉक्टर जो करोड़ों का डोनेशन देकर निजी संस्थानों से डॉक्टर बन रहे हैं उनका एकमात्र लक्ष्य पैसा कामना है। हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने नागरिकों के लिए 25 लाख तक के इलाज की मुμत सुविधा देने का कानून बनाया है जो लोकहित में एक अहम कदम है। सभी प्रदेशों की सरकारों को अपने-अपने प्रदेशों के नागरिकों को ऐसी सुविधा देने की शुरूआत करनी चाहिए।

संपत्ति का मुद्दा: मनुवादी विधान में शूद्र, अति-शूद्र और अति-पिछड़ी जातियों को संपत्ति रखने का अधिकार नहीं दिया गया था। इसलिए बहुजन समाज की सभी दलित, पिछड़ी व अल्पसंख्यक जातियाँ आज सम्पति विहीन है। उनके पास अपने घर व पशुओं के लिए भी उपयुक्त व पर्याप्त जमीन नहीं है। वे उन लोगों पर आश्रित है जिन लोगों के पास खेती की जमीने हैं। उनका जमीन के मालिकों पर इस तरह आश्रित रहना उनको अशक्त व गुलाम बनाता है, उनमें गुलामी का भाव भी इसी कमजोरी के कारण है और उनका मनोबल हमेशा कमजोर ही बना रहता है। इस हालात को देखते हुए बहुजन समाज के सभी जातीय व धार्मिक अंगों को देश की चल- अचल संपत्ति में अपनी जनसंख्या के हिसाब से हिस्सा माँगना चाहिए और जो चुने हुए जन प्रतिनिधि बहुजनों की इस माँग से सहमत हों और उसे कार्यान्वयन कराने के लिए संघर्ष करे उन्हें ही अपना वोट दें और जीताकर संसद में भेजें। अपने प्रतिनिधि द्वारा इस दिशा में किये गए काम का समय-समय पर आंकलन भी करते रहें।

देश को गरीबी रेखा नहीं, अमीरी रेखा की जरूरत: सदियों से पनप रही विषमतावादी आर्थिक नीति को देखते हुए अब सरकारों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 80 करोड़ लोगों को मुफ़्त का राशन बाँटने की लाइन न खींचकर अमीर लोगों की रेखा बनानी चाहिए। आज जनता को उन एक प्रतिशत लोगों की रेखा बतानी चाहिए जिनके पास देश का 40 प्रतिशत धन है। साथ ही सरकार को एक विवेकपूर्ण फैसला करना चाहिए कि जिनके पास एक उचित स्तर से अधिक धन सम्पति है। देश का 80 प्रतिशत धन 10 प्रतिशत लोगों के पास है। देश में इस आर्थिक विषमता का समतलीकरण करने की अधिक आवश्यकता है। इस समतलीकरण प्रक्रिया के दौरान एक उचित स्तर से ऊपर धन रखने वालों का धन सरकारी खजानों में जमा कराया जाये। सरकार के खजानों में जमा हुआ धन अमीरी रेखा से नीचे के लोगों के लिए रखा जाये। इस तरह से इकट्ठा किया हुआ धन गरीब लोगों में मुμत में न बांटा जाये, उन्हें राशन न बांटा जाये बल्कि उन्हें समृद्ध व उत्पादक बनाने हेतु इकट्ठा की गई धन राशि से आवश्यक संस्थानों व उद्योगों का निर्माण कराया जाये और इन संस्थानों व उद्योगों में अमीरी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को उनकी योग्यतानुसार रोजगार दिया जाये और उन्हें इन उद्योग धंधों का मालिक भी बनाया जाये। देश के मंदिरों में जो अकूत व अवैध संपत्ति इकट्ठा है उसे भी इसी प्रकार अमीरी रेखा से नीचे के लोगों के लिए व्यवसाय सर्जन करने में लगाया जाये। इन उद्योगों में कुशलता और दक्षता लाने के लिए सरकार आवश्यक तकनीकी ज्ञान व अन्य जरूरी सामग्री उपलब्ध कराये। इस प्रकार स्थापित किये गए उद्योगों व संस्थानों में कर्मचारियों को काम के अनुसार प्रशिक्षिण देकर दक्ष बनाया जाये।

समाज तोड़क राजनैतिक दलालों को दूर करो: आज बहुजन समाज में बिना किसी सामाजिक कार्य के राजनीति में घुसकर समृद्ध बनने की लालसा अधिक है इसी के कारण आज बहुजन समाज में दिन-प्रतिदिन सामाजिक संगठन व राजनीति दल मनुवादियों की ताकत से बनवाये जा रहे हैं। जिसका मकसद समाज की वोटों में बिखराव करके मनुवादियों को चुनाव जीतवाना है इनमें ओम प्रकाश राजभर, चन्द्रशेखर रावण, भानूप्रताप जैसे सैकड़ों ऐसे लोगों को समझें और उन्हें वोट न दें।

रोजगार सभी को मिले: आज देश में दिन- प्रतिदिन बेरोजगारी बढ़ रही है, पिछले दस वर्षों के मोदी संघी काल में बेरोजगारी अधिक बढ़ी है। देश के नौजवानों को मोदी ने सत्ता में आने के लिए जो वायदे किये वे सभी झूठ और छलावे निकले। इस बेरोजगारी का सबसे बुरा असर बहुजन समाज के नौजवानों पर पड़ रहा है। चूंकि यह समाज साधन और सम्पति विहीन है इनके पास अपना कोई व्यवसाय या उद्योग भी नहीं है तथा उद्योग लगाने व व्यवसाय के लिए उनके पास जरूरी संसाधन भी नहीं है। इसलिए अब मोदी-सांघी भाजपा के छलावे न फँसे और न इन्हें वोट दें ।

भारत में भ्रष्टाचार: यूं तो भारत और भ्रष्टाचार का नाता काफी पुराना है लेकिन 2014 के मोदी संघी शासन के बाद से भारत में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। जहां-जहां 2014 के बाद भाजपा की सरकारें हैं वहां पर भ्रष्टाचार अधिक रहा है। भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए ब्राह्मणी/मनुवादी सत्ता को हटाओ और भ्रष्टाचार से मुक्ति पाओ।

लोकतंत्र की समृद्धि के लिए ईवीएम को हटाओ: लोकतंत्र में जनता का विश्वास और भरोसा अहम होता है परंतु भारत की जनता सरकार की चुनाव प्रक्रिया जो ईवीएम के द्वारा चल रही है उस पर जनता का भरोसा दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। ईवीएम इलैक्ट्रोनिक मशीने हैं जिनको दूरस्थ बैठकर भी गणितीय गणना के लिए आदेशित किया जा सकता है। देश व विदेश के विभिन्न विशेषज्ञों ने ईवीएम मशीन पर सवाल उठाए हैं और ईवीएम मशीनों से डेटा मैनुप्लेशन (हेरा-फेरी) की संभावना जतायी है। इसलिए चुनाव में जनता का भरोसा कायम रखने के लिए ईवीएम से चुनाव न कराया जायें।

आरक्षित सीट पर आरक्षित समाज द्वारा सुझाये गए व्यक्ति को ही चुनाव लड़ाया जाए: आमतौर पर सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणी संस्कृति के गुलामों को टिकट देकर आरक्षित सीट से चुनाव लड़ाते हैं जो आरक्षित समाज के लिए काम न करके मनुवादियों की मंशा के मुताबिक काम करते हैं। बहुजन समाज ऐसे व्यक्तियों को चुनाव में जीताने का समर्थन नहीं करता। इस प्रकार जहां-जहां अल्पसंख्यक व पिछड़ी जातियां अधिसंख्यक हैं वहां के उम्मीदवारों को भी उपरोक्त प्रक्रिया से चुनाव में उतारा जाये और सामूहिक रूप से वोट दिलाकर जिताया जाये।

जय भीम, जय भारत, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05