2023-10-28 07:55:59
भारत कभी भी हिन्दू राष्ट्र न था, न आज है और न ही आगे बन सकेगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत जी ने अशोक विजयदशमी के अवसर पर अपने संबोधन में देश के लोगों को अज्ञान और मूर्ख समझकर घोषणा की कि भारत ‘हिन्दू राष्ट्र’ है। भागवत जी ने कहा कि हिन्दू राष्ट्र की मूल अवधारणा का आधार ‘हिंदुत्व’ है। संघ का मानना है कि हिंदुत्व भारतीय जीवन शैली की अभिव्यक्ति है जो सनातन धर्म पर आधारित है। मोहन भागवत जी का ऐसा कहना भारत के लोगों को बरगलाना है। संघ के द्वारा ऐसी बयानबाजी पहली बार नहीं की जा रही है। भारतीय संविधान लागू होने के पश्चात से संघियों द्वारा ऐसी बयानबाजी निरंतरता के साथ की जा रही है। संघियों का ऐसा मानना है कि अगर किसी भी झूठी बात को समाज में बारम्बारता के साथ दोहराएंगे तो अधिकांश जनता कुछ समय अंतराल बाद उसे सच मानने लगेगी। उनके द्वारा ऐसा करना अतीत में की गई काल्पनिक अवतारों की उत्पत्ति जनता में बारम्बारता से ही स्थापित की गई है। इन सभी काल्पनिक देवी-देवताओं, भगवानों आदि का कोई साक्ष्य परख इतिहास नहीं है और न ही ये घटनाएँ सत्य पर आधारित है। झूठ, फरेब और छलावों के आधार पर सभी का निर्माण काल्पनिक है। भारत के अधिसंख्यक बहुजन समाज को अशिक्षित रखने के पीछे का कारण उन्हें अज्ञानता के भंवर में धकेलना ही था ताकि वे पढ़-लिखकर तर्कशक्ति से निर्मित न हो पाये। पंडे-पुजारियों द्वारा फैलाए जा रहे पाखंड को सच माने और उसे जनता में बार-बार प्रसारित करें।
आरएसएस नामक संस्था का इतिहास 100 वर्ष का होने वाला है परंतु संघी मानसिकता (हिंदुत्व) की उपद्रवी व विषमतावादी भावना से बीमार लोग यहाँ पर बुद्ध से पहले से ही मौजूद थे और तब ये सभी लोग अपने आप को आर्य (ब्राह्मण) कहते थे। यहाँ की सिंधु व हड़प्पा सभ्यता जो उस समय बहुत विकसित थी उसे इन आर्यों ने अपने स्व: निर्मित छलावों से ध्वस्त किया और आर्य (ब्राह्मणी) संस्कृति को समाज में स्थापित किया। यहाँ के मूलनिवासियों के राज्यों को मनुवादी छलावों और प्रपंचों से नष्ट किया।
वैज्ञानिक तथ्यों व विश्लेषणों से पता चलता है कि भारत में आर्य (ब्राह्मण) यूरेशिया से आये थे। इसलिए तब यहाँ के आर्यों के व अन्य भारतीयों के डीएनए में भिन्नता थी जो आज यहाँ के समाज के डीएनए में नहीं मिलती। इसका कारण है कि भारत के पाँच हजार साल के इतिहास में इतना अधिक सामाजिक मिश्रण हुआ है कि अब यहाँ की किसी भी रेस के डीएनए को अलग करके देखना संभव नहीं है। इसलिए आज डीएनए आधारित विश्लेषणों के आधार पर आर्य (ब्राह्मण) और अनार्य (मूलनिवासी) के डीएनए के विश्लेषण से कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता। संघ के तथाकथित विद्वान इन्हीं तथ्यों के आधार पर देश के रहने वाले सभी लोगों को जानबूझकर हिन्दू कहकर बरगलाते रहते हैं। संघी मानसिकता के हजारों कार्यकर्ता यहाँ के एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक आदि समुदायों के मोहल्ले बस्तियों में घुसकर हिंदुत्व का प्रचार कर रहे हैं। उन्हें हिंदुत्व पर गर्व करने और उसकी रक्षा करने की बात सीखा रहे हैं, जबकि सत्य इसके विपरीत है। मनुवादी पंडे, पुजारी व मंत्री-संतरियों के बच्चों को हिंदुत्व की रक्षा में नहीं लगाया जा रहा है, इस कार्य के लिए मनुवादियों द्वारा पिछड़ी जाति के बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। बहुजन समाज के लोगों आप सभी मनुवादियों के इस खेल को समझो।
भारत में विभिन्न धर्मों, संप्रदायों के लोग है ंंंउन सभी की अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताएं हैं, सभी की अपनी-अपनी सांस्कृतिक पहचान है। इसलिए भारत किसी एक धर्म की मान्यता वाला ‘हिन्दू राष्ट्र’ नहीं कहला सकता। भारत के संविधान निर्माण के समय में भी इसी तरह की फिरंगी ताकतें (मनुवादी लोग) हिन्दू राष्ट्र की बात कर रहे थे। परंतु संविधान सभा ने ऐसे सिरफिरे हिंदुत्व वालों की माँग को नहीं माना था। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने हिन्दू राष्ट्र के मुद्दे पर इस देश की जनता को चेताया और आदेशित किया था कि इस देश को कभी हिन्दू राष्ट्र नहीं बनने देना। देश में आज शूद्र वर्ग के लोगों का जितना अहित नजर आता है वह हिन्दू धर्म के तथाकथित शास्त्रों में लिखित आदेशों के कारण ही है। इस देश में जितनी उपेक्षा और जातिगत अपमान भारत की महिलाओं और शूद्रों का हुआ है उतना दुनिया में किसी का भी नहीं हुआ है। अगर हिंदुत्व की विचारधारा वाले पाखंडी लोग देश को हिंदुत्वमय बनाने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने तथाकथित धर्मग्रंथों जिन पर वे गर्व करते हैं और समाज में उनका प्रचार-प्रसार भी करते हैं उन सभी को समूल नष्ट करना होगा नहीं तो बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को कभी स्वीकार नहीं करेगा।
आज देश का बहुजन समाज व सभी वर्गों की महिलाएँ भी पढ़-लिखकर तर्कवादी बन रहे हैं जो हिंदुत्व के खोखले, काल्पनिक व तर्कहीन छलावों पर विश्वास नहीं कर पायेंगे। वास्तविकता के आधार पर आज इस देश में हिन्दू सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ही है बाकी और कोई भी हिंदू नहीं है, इनके अलावा अगर और कोई अपने आपको ‘हिन्दू’ कहता है तो वह ऐसा अज्ञानता के कारण करता है, उसे इसे अभी और समझना होगा। बहुजन समाज की पिछड़ी जातियाँ जो हिन्दू धर्म को अपना धर्म मानने के कारण अपेक्षाकृत अधिक पीछे रह गयी है आज वे ये सोचने को मजबूर है कि हिन्दू बनकर उन्हें क्या मिला है? देश की संपत्ति और सम्पदा में अति पिछड़ी जातियों का हिस्सा क्यों नहीं है?
अति पिछड़ी जातियों ने हिन्दू बनकर हमेशा उपेक्षा और प्रताड़ना ही सही है। आज के वास्तविक हिन्दू सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ही हैं जिनके पास देश का धन व संपत्ति उनकी जनसांख्यिकी से अधिक है। आज बहुजन समाज को देश के धन व संपत्ति में उनका प्राकृतिक व संवैधानिक अधिकार दिया जाये। इसके लिए अब बहुजन समाज और ज्यादा दिनों तक हिंदुत्व के बहकावे में फंसा नहीं रहेगा। भारत की अति पिछड़ी जातियों का यह समूह अब कह रहा है कि हमें भारत के शिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयों, औद्योगिक क्षेत्रों और मंदिरों के पुजारियों में जनसांख्यिकी के आधार पर आरक्षण चाहिए उसे अब बिना देरी किये दिया जाये। आज देश की सम्पदा की मलाई चाटने वाले ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य ही हिन्दू है। देश की इन अति पिछड़ी जातियों का संवैधानिक हिस्सा सदियों से ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य वर्ग के लोग ही खा रहे हैं। जिसका ज्ञान मनुवादी सरकारों द्वारा इन अति पिछड़ी जातियों को नहीं होने दिया। इसलिए संघी इनको जबरदस्ती हिन्दू खांचे में रखना चाहते हैं और उन्हें देश की सम्पदा में कुछ भी हिस्सा नहीं देना चाहते। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत जी कह रहे हैं कि राष्ट्र और राज्य में अन्तर होता है। राज्य एक राजनैतिक संघ है जबकि राष्ट्र का अर्थ है लोगों का संघ। मोहन भागवत जी लोगों को बरगलाना बंद करो यह समझों कि राज्य हो या राष्ट्र दोनों ही लोगों से मिलकर बनते हैं। भारत में इस्लाम, ईसाई, पारसी, यहूदी, जैन व बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग भी रहते हैं सबकी अपनी-अपनी पूजा पद्धति, अलग-अलग है, सभी की संस्कृति अलग-अलग है। सभी के अपने-अपने रीति-रिवाज है और ये सभी यहीं के लोग है, यहीं पर पैदा हुए हैं इसलिए उनका यहाँ रहना प्राकृतिक अधिकार है, वे यहाँ के प्राकृतिक रूप से नागरिक है। मोहन भागवत जी का उनको हिन्दू बताना एक भ्रामक छलावा है, वे बेरों में गुठली मिला रहे हैं। ऐसे भ्रामक जाल को देखकर देश के सभी धर्मावलंबलियों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के असंगत और अपुष्ट विचारों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। चूंकि उनका मकसद सभी को दिग्भ्रमित करना है। सभी को जोड़कर हिन्दू बताना देश में हिंदुओं की संख्या को अधिक दिखाकर जनता पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का यह सोचा-समझा एक षड्यंत्र है।
आरएसएस को देश की जनता को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि देश में जातिवाद और विषमतावाद क्यों है, यह किसने और क्यों पैदा किया है और इससे किसको लाभ है? अगर आरएसएस देश की जनता को यह स्पष्टीकरण देने में विफल रहता है तो सबको समझ लेना चाहिए कि उनकी करनी और कथनी में अन्तर है, वे देश के लोगों को मूर्ख समझ रहे हैं और उनके जहन में सिर्फ हिंदू धर्म की श्रेष्ठता को ही कायम रखना ही उनका एकमात्र उद्देश्य है। अगर एक ही धार्मिक व्यवस्था को मानने वाले लोग मानव कल्याण के लिए श्रेष्ठ व पर्याप्त होते तो फिर क्या विश्व के लोगों को अन्य धर्मों की शरण में जाने की जरूरत होती? ये सभी धर्म लोगों की मानसिकता से उपजे विचार है, इन्हें किसी देवी-देवता या भगवान ने पैदा नहीं किया। दुनिया में सभी पुस्तकें धार्मिक हो या अन्य, सभी मनुष्यों ने ही लिखी है। दुनिया में कोई भी पुस्तक भगवान, अल्लाह या ईसा द्वारा नहीं लिखी गई है। इस तरह का वक्तव्य महात्मा ज्योतिबा फुले जी ने 1873 में ही बहुजन समाज के लोगों को बताकर समझाया और जगाया था। उन्होंने पूरे बहुजन समाज को आगाह किया था कि सभी सामाजिक व धार्मिक व्यवस्थाएं मनुष्यों द्वारा ही निर्मित की गई है। समाज के हर एक व्यक्ति का आज कर्तव्य है कि वे समाज में प्रचारित, लिखित व मौखिक व्यक्तव्यों को अपनी बुद्धि की कसौटी पर तोले, उसे जाने और तभी माने, बिना जाँच-पड़ताल के किसी भी चीज को न मानें।
देश के वर्तमान वातावरण में मनुवादी सरकारों ने समाज में जहर घोला हुआ है किसी को भी आज अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। मनुवादी गुंडों द्वारा सड़कों पर धार्मिक उन्माद मचाया जा रहा है। देश के हरेक नागरिक की सुरक्षा खतरे में हैं। आम जनों को सरेआम सड़क पर पीटा जा रहा है, बेज्जत किया जा रहा है। संविधान की धज्जियाँ हर रोज तार-तार की जा रही है। मोदी संघी शासन में संविधान सिर्फ एक कागजी दस्तावेज बनकर रह गया है।
संविधान व नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना देश के प्रत्येक उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय का मूल अधिकार है। लेकिन आज विडंबना यह है कि देश के 25 उच्च न्यायालयों और देश के उच्चतम न्यायालय में बैठे न्यायधीश मनुवादी संस्कृति की मानसिकता के कारण अपने में निहित संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। जिसके कारण मनुवादी गुण्डे सड़कों पर खुले सांड की तरह धार्मिक जलूस लेकर घूम रहे हैं। देश में कहीं भी कानून का राज नजर नहीं आ रहा है। पंडे, पुजारी खुले आम हिंदूवादी धार्मिक कथाएँ व धार्मिक संसद चलाकर समाज में नफरत फैला रहे हैं। पूरा देश मनुवादी पाखंडियों के सामने शक्तिहीन दिख रहा है। बहुजनों संकल्प लो मनुवादी, ‘ब्राह्मणवादी लोगों को दान-मान-मतदान न किजिए।
आपको अपनी गुलामी खुद खत्म करनी होगी। इसे खत्म करने के लिए किसी देवी-देवता या भगवान पर निर्भर रहना या विश्वास करना व्यर्थ है। -बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर
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