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‘चौकीदार’ ही निकला लोकतंत्र का ‘चोर’

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2025-08-16 16:37:32

संघी मानसिकता के शासन में निरंकुशीकरण का प्रभाव बढ़ा है जो भारत के लोकतांत्रिक पतन कों दर्शाता है। विपक्ष का कानूनी उत्पीड़न, मीडिया को डराने-धमकाने का खुला खेल चल रहा है। भारत के करीब 300 सांसदों ने मोदी शासन के खिलाफ 12 अगस्त को सड़क पर उतरकर प्रदर्शन किया जो मीडिया के लिए सबसे बड़ी खबर होनी चाहिए थी, मगर संघी व जातिवादी मानसिकता के मीडिया ने इतनी महत्वपूर्ण खबर को अपने अखबारों के पहले पेज पर स्थान नहीं दिया। कहने के लिए मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है मगर भारत में चौथा स्तम्भ पूर्णतया धाराशाही है। मीडिया हाउसिस के मालिक संघी मानसिकता से प्रेरित और डर में है। किसी भी कीमत पर देश की मुख्य मीडिया सच्ची तस्वीर को अपने अखबारों में जगह नहीं देना चाहते हैं। आज का पूरा मीडिया तंत्र संघी व धार्मिक मानसिकता से संक्रमित होकर देश की सच्ची तस्वीर दिखाने में पूर्णतया असफल है। ऐसा करके वह लोकतंत्र को खतरें में डाल रहा है। ऐसी स्थिति में देश का सोशल मीडिया, ही मुख्यधारा के मीडिया की जगह ले रहा है। आम लोगों का मीडिया से भरोसा उठ रहा है और वे सोशल मीडिया की तरफ अधिक आकर्षित होकर उसे सच मानने के लिए बाध्य दिख रहे हैं।

1947 में जब भारत आजाद हुआ तो इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री सर विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि भारत में लोकतंत्र बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सकता। मगर उनके इस कथन को भारत में 78 वर्षो से चले आ रहे लोकतंत्र की व्यवस्था ने असत्य सिद्ध कर दिया है। इस कथन को असत्य सिद्ध करने में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का महत्वपूर्ण योगदान है। चूंकि भारत के संविधान का निर्माण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की विद्वता और उनकी दूरदर्शिता की सोच से हुआ। आजादी के 78 वर्षों के दौरान भारत पर कई मुसीबतें भी आई, देश ने सीमा पार से हुए कई हमलों को भी झेला, पाकिस्तान का बंटवारा होकर बंग्लादेश बना, 1962 में भारत और चीन का युद्ध भी हुआ। इन सब घटनाओं के बावजूद भी भारत संगठित और अखंडित रहा। विदेशी ताकतों व घरेलू मनुवादी षडयंत्रों के चलते वह विखंडित नहीं हो पाया, जिसका श्रेय भारत के संविधान को जाता है।

लोकतांत्रिक पतन: भारत ने अपनी आजादी के दौरान दो महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक पतन देखे हैं। जून 1975 से मार्च 1977 तक का 21 महीने के कालखंड को घोषित आपातकाल के नाम से जाना जाता है। 2014 से देश में मोदी-संघी शासन शुरू हुआ जो संघी-मनुवादी मानसिकता के तहत छिपे ढंग से लोकतंत्र कों ध्वस्त करने में लगा हुआ है। इस काल में लोकतांत्रिक संस्थाएं औपचारिक रूप से बनी हुई तो हैं मगर लोकतंत्र को आधार प्रदान करने वाले मापदंड और प्रथाएँ काफी हद तक मोदी शासन में ध्वस्त हो चुकी हैं। जिन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि मोदी संघी शासनकाल में अघोषित आपातकाल चल रहा है। भारत के घोषित आपातकाल में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने औपचारिक रूप से लगभग सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं कों समाप्त कर दिया था, चुनाव पर प्रतिबंध लगा दिया, विपक्ष को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया था, नागरिक स्वतंत्रता का हनन हुआ था, स्वतंत्र मीडिया पर अंकुश लगाया हुआ था, इस सबके बावजूद भी लोकतंत्र के प्रहरी इस बात पर सहमत है कि भारत आज पूर्ण लोकतंत्र और निरंकुशता के बीच फँसकर वह मृत प्राय: हो चुका है। मोदी-संघियों का यह शासनकाल 2021 में फ्रÞीडम हाऊस की रेटिंग को घटाकर दिखाया गया। 2021 में वैरायटी आॅफ डेमोक्रेसी परियोजना ने भारत को बंद निरंकुशता, चुनावी निरंकुशता की श्रेणी में डाल दिया है। भारत के लोकतांत्रिक पतन ने दुनिया के 8 अरब लोगों में से भारत के 1.4 अरब लोगों को निरंकुश देशों की श्रेणी में डाल दिया है। स्वतंत्र देशों में रहने वाले विश्व के लोगों की संख्या लगभग आधी हो गई है। भारत जो दुनिया का सबसे आबादी वाला देश है, जहां लोकतंत्र के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। लोकतंत्र एक ऐसी अवधारणा है जो इब्राहिम लिंकन के शब्दों में, जनता की, जनता द्वारा और जनता के लिए शासन प्रणाली का प्रतीक है। किसी देश को लोकतांत्रिक घोषित करने के लिए पाँच संस्थाएं मुख्य होती है। इन पाँच संस्थाओं में से विधायिका के चुनाव सबसे महत्वपूर्ण है। लोकतंत्र का दूसरा स्तम्भ वास्तविक राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है। ऐसे देश जहां व्यक्तियों को चुनाव का अधिकार है, लेकिन सत्ताधारियों द्वारा विपक्ष को कमजोर किया जा रहा है, उन्हें आमतौर पर ऐसे देशों को लोकतांत्रिक नहीं माना जा सकता। लोकतंत्र में कार्यपालिका नियंत्रण एक निर्वाचित सरकार को यह घोषित करने से रोकता है, कि मैं यही चाहता हूँ। लोकतंत्र संस्थाओं का एक समूह है जो सरकारी जवाबदेही की प्रथा को अंतर्निहित करता है। एक निर्वाचित सरकार कार्यपालिका को नागरिकों की स्वतंत्रताओं को कुचलने से रोकती है।

भारत में घटती नागरिक स्वतंत्रताएं: भारत का लोकतंत्र कभी भी बहुत उच्च गुणवत्ता वाला नहीं रहा जिसका कारण यहाँ पर व्याप्त मनुवादी/ब्राह्मणवादी व्यवस्थाओं का होना है। अगर किसी देश में भारत जैसी अंधश्रद्धा वाली मान्यताओं का विरोध करते हुए लोकतंत्र को स्थापित किया जाता है तो वहाँ पर अंधभक्तों में बसी धार्मिक अंधश्रद्धाएं और वास्तविक लोकतंत्र की संस्थाओं में टकराव बना ही रहेगा। यहाँ पर भारत के प्रधानमंत्री मोदी पश्चिमी देशों में जाकर भारत को लोकतंत्र की जननी बताते हैं मगर वापिस आकर भारत में लोकतंत्र की जड़ों में मट्ठा डालने का काम करते हैं। उनकी यह कार्यशीलता भारत में लोकतंत्र को मजबूत नहीं होने देगी। वास्तविकता के आधार पर मोदी एक संघी संस्कृति के व्यक्ति है जिनमें गहराई तक ब्राह्मणवाद और मनुवाद है। मनुवाद/ब्राह्मणवाद और लोकतंत्र दोनों एक साथ नहीं चल सकते। जिसके कारण भारत के लोकतंत्र का तेजी से पतन हो रहा है। अपने अध्ययन के दौरान बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने भारत में लोकतंत्र की जड़ों को यहां के इतिहास में पाया था और भारत में लोकतंत्र कभी भी नहीं था, ऐसे कथनों को उन्होंने सिरे से खारिज किया था। उन्होंने कहा था कि मेरे अध्ययन में भारत में पहले से ही एक जीवित लोकतंत्र रहा है, इस संदर्भ में उन्होंने विनय पिटक का संदर्भ दिया था और बताया था कि बुद्ध काल में विनय पिटक के अनुसार लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं थी और चुनाव की प्रथाएँ भी थी जिनके द्वारा लोगों को चुना जाता था। परंतु आज मोदी-संघी शासन, ब्राह्मणी संस्कृति से संक्रमित है उसके कारण भारत का लोकतंत्र आज आघात झेल रहा है।

मोदी की मानसिकता लोकतांत्रिक नहीं: मोदी संघी संस्कृति के व्यक्ति हंै जिनमें अहंकार, झूठ और पाखंड की पराकाष्ठा है। ऐसे व्यक्तियों का चरित्र कभी भी लोकतांत्रिक नहीं हो सकता। जब उनका चरित्र लोकतांत्रिक नहीं है तो उनके शासन में एक स्वतंत्र लोकतंत्र की कल्पना करना असंभव है। भारत को अगर अपने लोकतंत्र को जीवंत रखना है तो उसके लिए भारत की जनता को सबसे पहले मोदी-संघियों की सत्ता को भारत से हटाना होगा। वर्तमान में कुछेक प्रदेश में विधान सभा के चुनाव होने हैं जिनके लिए मोदी और उसके संघी साथी अदृश्य रूप से वैध नागरिकों के वोट काटने और अवैध नागरिकों के नाम जोड़ने के जुगाड़ में लगे हुए हैं। इस संबंध में विपक्ष ने काफी जोर से मोदी सत्ता के समाने विद्रोह का विगुल बजाया हुआ है और विपक्षी राजनैतिक दलों ने उच्चतम न्यायालय और चुनाव आयोग के सामने चुनाव में मोदी सरकार द्वारा बरती गई धांधली को साक्ष्यों के साथ उजागर किया है कि मोदी वोटों की चोरी करके देश के प्रधानमंत्री बने हुए हैं। जिन्हें स्वतंत्र लोकतंत्र के आधार पर भारत का प्रधानमंत्री नहीं होना चाहिए। लेकिन मोदी संघी मानसिकता के कारण एक बहुत ही बेर्शम और बेलिहाज मानसिकता के धनी है उनको अपने द्वारा बरती जा रही बेशर्मी और निम्न स्तर की बेलिहाजी से कोई फर्क नहीं पड़ता। चूंकि मोदी ने चुनाव आयोग और अन्य संवैधानिक संस्थाओं, यहाँ तक की न्यायालयों में भी अपने भरोसे के बेईमान लोगों को स्थापित कर दिया है, जिनको इस्तेमाल करके वे भारत के लोकतंत्र को ध्वस्त करने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं।

भारतीय लोकतंत्र के लिए कुछेक अच्छे संकेत: भारत की आम जनता मोदी के अलोकतांत्रिक चरित्र से काफी हद तक अवगत हो चुकी है और अब वह इसका संज्ञान लेकर, मोदी शासन के अलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं को बरर्दस्त करने के मूंढ में नहीं है। आज भारतीय जनता मोदी के अलोकतांत्रिक चरित्र को देखकर जोर-जोर से कहने लगी है कि ‘देश का चौकीदार ही लोकतंत्र का चोर है’ इसलिए उसे जल्द से जल्द सत्ता से हटाना आवश्यक हो चला है। जिस तरह अब देश और प्रदेशों में राजनैतिक घटनाएँ करवटें ले रही है उन्हें देखकर यह निश्चित होता दिख रहा है कि मोदी-संघी शासन अब बहुत दिनों तक देश में टिकने वाला नहीं है। इस प्रकार के संकेत संघ और मोदी अंधभक्तों को भी नजर आने लगे हैं। इसलिए उनमें से कई अब मोदी विरोधी बयान भी देने लगे हैं। जैसे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बयान दिया जो नवभारत टाइम्स में भी छपा कि देश की सरकार ने शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे पर अच्छा काम नहीं किया है। मोदी और संघ के बीच भाजपा में होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर भी विरोधाभाष चल रहा है। मोदी जिसे भाजपा का अध्यक्ष नियुक्त करना चाहते हैं उसे संघ करने देना नहीं चाहता। संघ चाहता है कि भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष संघ से निकला व्यक्ति होना चाहिए।

भाजपा और संघ की जो अंदरूनी रस्साकशी चल रही है उससे देश को कोई लेना-देना नहीं है। परंतु जिस तरह मोदी सरकार देश में गलत आंकड़े पेश करके देश की भोली-भाली जनता को उल्लू बनाने का कार्यक्रम चला रहे हैं उससे देश की जनता अधिक आहत है। 13 अगस्त के एनबीटी में छपा कि देश में महंगाई दर निचले स्तर पर है परंतु यह तथ्य जनता के गले से नीचे नहीं उतर रहा है। देश में खाद्य सामग्री, दवाईयाँ, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य रोजमर्रा की चीजें जनता की जेब की पहुँच से बाहर हो चली है। देश की जनता अब यह कहने लगी है कि देश का नौटंकीबाज प्रधानमंत्री देश की जनता के ‘टैक्स’ से ऐशों-आराम, अयासी की जिंदगी गुजार रहा है। उसे नहीं पता कि देश की कितनी जनता हर रोज एक वक्त भी पेट भर भोजन नहीं करती और न उनके बच्चों को शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधाएं मिलती है। देश का चौकीदार देश की चौकीदारी में विफल है और वह यह देखकर भी अपने झूठी ढिंगे मारने से बाज नहीं आ रहा है। देश के आज कई करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार करीब 50 हजार सरकारी स्कूल बंद कर दिये गए हैं इसके पीछे संघी मानसिकता की सरकारों का छिपा खेल यह है कि जब स्कूल ही नहीं होंगे तो सरकारों को स्कूलों के लिए आवश्यक अध्यापकों की नियुक्ति नहीं करनी पड़ेगी और न आरक्षण के आधार पर दलित व पिछड़े समाज के व्यक्तियों को रोजगार देना पड़ेगा। इस प्रकार मोदी संघी सरकार मूल रूप से बहुजन समाज विरोधी मानसिकता वाली है, इसको उखाड़ फेंकना बहुजन समाज हित में होगा।

मोदी के बारे में आम लोगों की धारणा: चुनाव आयोग के जरिए वोट चुराता है; पीएम केयर के जरिए फंड चुराता है; डिजिटल इंडिया के जरिए डेटा चुराता है; पेरासस के जरिए विपक्ष का डेटा चुराता है; जीएसटी के जरिए जनता का पैसा चुराता है; आर्मी से क्रेडिट चुराता है; चुनाव बॉन्ड के जरिए पैसा चुराता है, चुनावों में हेरा-फेरी के लिए अवैध धन जुटाता है; देश में पाखंडी बाबाओं को पालकर, जनता में अवैज्ञानिकता को बढ़ाता है; बाबाओं के जरिए काले धन का शोधन करवाता है।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05