2023-08-01 10:46:45
भारत में जबसे यूरेशियन ब्राह्मणों का आगमन हुआ है तभी से उन्होंने यहाँ की धरती पर झूठ, फरेब, प्रपंच व समाज में अपनी सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए उसे यहाँ उगाकर लहलाया है। शुरूआती दिनों में यहाँ की मूलनिवासी जनता उनके छल-कपटी चरित्र से अवगत नहीं थी। उन्होंने अपने भोले-भाले स्वभाव के मुताबिक इन यूरेशियन ब्राह्मणों को यहाँ की धरती पर बसने और रहने का विरोध नहीं किया। जिसका फायदा उठाकर इन यूरेशियन ब्राह्मणों (आर्यों) ने यहाँ के मूलनिवासियों को अपने पाखंड व प्रपंच में फँसाने के षड्यंत्र रचे। मूलनिवासियों को झूठ-मूठ के अगले-पिछले जन्म के डर को उनके मन में बैठाया और उसी से उन्हें डराया। इन यूरेशियन ब्राह्मणों से पहले यहाँ के समाज में न कोई भगवान था और न अगले-पिछले जन्म की धारणा। सभी मूलनिवासी आज जैसी जातिवादी व्यवस्था में विभक्त नहीं थे। वे सभी प्रकृति के उपासक थे और आपस में मिल-जुलकर रहते थे और उनके अपने शासक भी थे, जो आज के शासकों की तरह नहीं थे। वह समय मानव सभ्यता के विकास का प्रारम्भिक या मध्य प्रारम्भिक काल था। ये सभी लोग एक ही समाज से जाने जाते थे और मनुष्य की आवश्यकतानुसार जो व्यक्ति जिस काम को कर रहा था वे उसी से जाने जाते थे।
तकनीकी ज्ञान का उद्भव: विश्व में तकनीकी ज्ञान का उद्भव व्यवहारिक तकनीकी काम करने वाले लोगों से ही शुरू हुआ है। शुरूआती दौर में मनुष्य के तन पर न कपड़ा होता था, न उसके पैरों में जूते-चप्पल होते थे, न उसको खाना पकाने की चीजों का ज्ञान था, न उसे अन्य मनुष्य उपयोगी पशुओं का ज्ञान था। इन मानव उपयोगी वस्तुओं के ज्ञान का उद्भव मनुष्य में अंतर्निहित आवश्यकता और उसके लिए आवश्यक समाधान खोजने की प्रक्रिया से ही हुआ है। शुरूआती दौर में मानव अपना शरीर पेड़ों की छाल से ही ढकता था उसके बाद मनुष्य अपना शरीर मरे हुए जानवरों के चमड़े से ढकने लगा और इसी प्रक्रिया से मरे हुए पशुओं के चमड़े को परिष्कृत करके मनुष्य उपयोगी अन्य वस्तुएं भी बनाने लगा। इस प्रक्रिया में सम्मिलित मनुष्यों ने अपने पैर की रक्षा के लिए चमड़े का कवर बनाया और फिर उसमें निरंतर सुधार के साथ उसे जूते या जूती का नाम दिया। इस तरह का कार्य करके मानव विकास में जूते का आविष्कार हुआ। ये जूते का आविष्कार करने वाले लोग यहाँ के मूलनिवासी ही थे। यूरेशियन आर्यों का इसमें कोई योगदान नहीं था। इसी तरह जूता तो एक उदाहरण मात्र है अन्य क्षेत्रों में भी आविष्कार यहाँ के कामगारों ने ही किया। खेती का काम करने वाले कामगारों ने अपने लिए आवश्यक चीजों हल व अन्य उपकरणों का आविष्कार खेती का काम करने वाले कामगारों व उनसे पैदा हुए तकनीशियनों ने किया। हल का आविष्कार व निर्माण लकड़ी से खेती उपयोगी औजार बनाने वाले बढ़ई या लौहार समुदाय के पूर्वजों ने ही किया। मनुष्य को समाज में आकर्षक व सुंदर दिखने के लिए प्रकृति से प्राप्त केश (बाल) उगते आए हैं उनका भी विकास व सौंदर्यकरण नाई कहे जाने वाले समुदाय ने ही किया है। मनुष्य उपयोगी बर्तनों का आविष्कार भी मिट्टी के बर्तनों से शुरू होकर धातुओं के बर्तनों तक का सफर देश के मूलनिवासी कुम्हार (प्रजापति) कहे जाने वाले समुदाय के पूर्वजों ने ही किया है। यूरेशियन आर्यों (ब्राह्मणो) का इन मनुष्य उपयोगी तकनीकी विकास में कोई योगदान नहीं है। इस संक्षिप्त ऐतिहासिक तथ्य से यह साबित होता है कि भारत में जो भी मनुष्य उपयोगी वस्तुओं का आविष्कार/निर्माण हुआ है वह सभी देश के बहुजन समाज (मूलनिवासी) तकनीसियनों से ही हुआ है। इसमें यूरेशियन आर्यों (ब्राह्मण) का कोई भी योगदान नहीं है। हिंदुत्व के प्रचारक व मनुवादी गुण्डे जो हिंदुत्व का प्रचार करके ये कहते हैं कि हमारी संस्कृति और इतिहास महान है वह कोरा झूठ और पाखंड है। ऐसा कहने वालों ने आजतक कोई भी मनुष्य उपयोगी आविष्कार नहीं किया है। इनका सारा इतिहास छल, फरेब, झूठ और काल्पनिकता पर आधारित है ये ब्राह्मणी संस्कृति के मनुवादी लोग असली ऐतिहासिक तथ्यों को जनता से छिपाकर काल्पनिक देवी-देवताओं का निर्माण करके उनके अस्तित्व व निर्माण को सनातन कहकर करोड़ों साल पुराना बताकर लोगों को भ्रमित करते हैं। जबकि ऐतिहासिक सत्य यह है कि जिस राम को ये दशरथ और कौशल्या का पुत्र बताकर उसको हिंदुत्व का आदर्श बताते हैं यह पूर्णतया काल्पनिक है। इन्होंने यहाँ के मूलनिवासियों को अतीत से लेकर अब तक छला है। वास्तविकता के आधार पर रामायण एक काल्पनिक कथा है जिसमें दसवें बौद्ध राजा बृहद्रत का जंगल में शिकार के बहाने धोके से कत्ल करने वाले उसी के ब्राह्मण मंत्री पुष्यमित्र शुंग ने किया और इसी पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध शासक बृहद्रत का कत्ल करने के बाद उस समय के पाखंडी ब्राह्मणों द्वारा रामायण और मनुस्मृति नामक अमानवीय तथाकथित ग्रंथों की रचना कराई थी। रामायण नामक नाटक में खुद पुष्यमित्र शुंग राम बना और उसे जनता में दशरत और कौशल्या का पुत्र बताकर स्थापित किया। इस तरह रामायण की संपूर्ण कथा काल्पनिक है इसमें जरा भी सत्यता व वैज्ञानिकता नहीं है देश में एक नहीं बल्कि अनेकों प्रकार की रामायणे लिखी गई है जिन सभी में दशरथ, कौशल्या, राम और सीता के बारे तथ्यात्मक भिन्नताएं हैं जो यह सिद्ध करती है कि रामायण की कथा कोरे झूठ व काल्पनिकता से निर्मित है।
महिलाओं व दलितों के शोषण का स्रोत: हिंदुत्व का तथाकथित धार्मिक ग्रंथ मनुस्मृति को बताया जाता है। इस मनुस्मृति में महिलाओं (सभी वर्ग) और दलितों के साथ शोषण और उनके तिरष्कार को जिस हद तक जाकर लिपि बद्ध करके उसको हिन्दू धर्म का संविधान घोषित किया गया है। वह सिद्ध करता है कि इस देश का बहुजन (शूद्र) समाज, यूरेशिया से आए आर्यों से भिन्न है वे किसी भी प्रकार से इन यूरेशियन ब्राह्मण की संस्कृति से पैदा नहीं हुए हैं। पूरा शूद्र (बहुजन) समाज जो अब 6743 जातियों में बंटा हुआ हैं वह इस देश का असली मूलनिवासी है। यह पूरा यूरेशियन संस्कृति का ब्राह्मणी समाज यहाँ के मूलनिवासी (शूद्रों) से भिन्न है। यूरेशियन ब्राह्मणों का डीएनए भारत के शूद्र (बहुजनों) से भिन्न है। आज समाज में बहुत सारे समुदाय हिंदुत्व के छलावे में फँसकर अपने आप को हिन्दू बता रहे हैं जो तथ्यहीन और असत्य है। वास्तविकता के आधार पर भारत का संपूर्ण शूद्र (बहुजन) समाज परिस्थितिकी और वैज्ञानिकता के आधार पर हिन्दू नहीं है। इसलिए सभी शूद्र समाज की जातियों को अपने को हिन्दू न कहना चाहिए और न इन सबको मानना चाहिए। यह सारा शूद्र समाज यहाँ का मूलनिवासी है जिसका जातियों में विभाजन यूरेशियन (आर्यों) ब्राह्मणों ने किया है ताकि ये लोग अपने जातीय घटकों में बंटे रहे और इकट्ठा होकर ये शक्तिशाली बनकर ब्राह्मणों के लिए खतरा न बने। प्रजातंत्र में चुनाव के दम पर बहुमत के आधार पर इनकी सत्ता भी न आ पाये। भारत के बहुजन समाज व नारियों के शोषण का अस्त्र-शस्त्र ब्राह्मणी मानसिकता के दस्तावेज मनुस्मृति में लिपिबद्ध है उसे पढ़कर और समझकर ऐसे अपमानित करने वाले अवैज्ञानिक ग्रंथों को देश व दुनिया से मूल सहित मिटा देना चाहिए। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने इसे पढ़कर और समझकर नारियों और बहुजनों की समझ हेतु विरोध स्वरूप 25 दिसम्बर 1927 को तथाकथित मनुस्मृति (धार्मिक ग्रंथ) को जलाकर सारे बहुजन व बाकी समाज को यहीं संदेश दिया था।
हिंदुत्व के अचंभे व महा झूठ: गणेश का आधा शरीर आदमी और आधा हाथी का है, जिसकी सवारी चूहा है; हिंदुत्व के कई देवी-देवताओं की चार से लेकर बीस भुजाएँ तथा दस सिर हैं; ब्राह्मा की नाभी से 100 पुत्र पैदा हुए; हनुमान के पिता पवन को बताया गया है जो योनि द्वारा से नहीं कान से पैदा हुए; राजा दशरथ की तीन रानियों से चार पुत्रों का जन्म फल व खीर खाने से हुआ; पांडु ने नपुंसक होने पर भी पाँच पुत्र पैदा किये; द्रोणाचार्य दोना से पैदा हुए; मंदोद्री मेंढकी से और मकरध्वज मछ्ली से पैदा हुए; सीता जी राजा जनक के द्वारा हल चलाने पर जमीन के अंदर घड़े से निकली; मनु सूर्य के पुत्र थे और उनको छींक आने पर एक लड़का नाक से निकला जो इंक्षाकू राजा के नाम से जाना जाता है; चंद्रमा मुर्गा बनकर जमीन पर उतर आया; हनुमान जी ने सूर्य को मुँह में डालकर निगल लिया; प्राशर ऋषि ने नदी की बीच धारा में नाव पहुँचने पर मल्लाह की पुत्री सरस्वती से संभोग के लिए कोहरा पैदा कर दिया और संभोग से जो पुत्र पैदा हुआ वह व्यास कहलाया। हिंदुत्व में ऐसे अनेक बिना सिर-पैर के उदाहरण हैं। ये सभी अवैज्ञानिक व असत्य है लेकिन अधिकतर शूद्र समाज तर्कहीनता, अशिक्षा व अज्ञानता के कारण हिंदुत्व द्वारा रोपित किये गए इन सभी काल्पनिक भगवानों व देवताओं को सत्य मानकर अपने पूर्वजों के हत्यारों की पूजा कर रहा है। हिंदुत्व के द्वारा इस देश में 33 करोड़ देवी-देवता बताए जाते हैं इनमें से न कोई मरा न कोई और पैदा हुआ। अन्यथा आज इन काल्पनिक देवताओं की संख्या कितनी हो गई होती? पिछड़े वर्ग की जनसंख्या 52.5 प्रतिशत है फिर भी वह आजतक पिछड़ा ही बना हुआ है। क्योंकि पिछड़ा वर्ग जब तक 15 प्रतिशत हिंदुत्ववादी (सवर्ण) लोगों की सेवा करते रहेंगे तब तक वे पिछड़े ही रहेंगे। 15 प्रतिशत हिंदुत्ववादी लोग गाय को माँ कहते हैं परंतु उसके सांड को पिता क्यों नहीं मानते? देश के 75 प्रतिशत शूद्रों (बहुजनों) को हिन्दू तो कहा जाता है परंतु उन्हें तथाकथित धार्मिक पुस्तकें पढ़ने व सुनने का अधिकार नहीं है। देश के 15 प्रतिशत हिन्दूवादी लोगों ने शूद्रों (बहुजन समाज) में एकता व संगठन के विपरीत विघटन, परस्पर ईर्ष्या व संघर्ष की भावना को उत्पन्न किया है। जिसके कारण एक शूद्र समाज का आदमी अपने दूसरे शूद्र समाज के भाई को दुश्मन मानता है और वह 15 प्रतिशत हिंदूवादी लोगों की चापलूसी करके उन्हें मालिक समझता है। 15 प्रतिशत हिन्दूवादी लोगों के तीन वर्ण और तीन जातियाँ है परंतु 75 प्रतिशत शूद्रों का एक वर्ण और 6743 से भी अधिक जातियाँ है।
तथ्यों को जानकर और समझकर 75 प्रतिशत शूद्रों को अज्ञानता और हिंदुत्व पर विश्वास न करके अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए सिद्धांतों पर चलना चाहिए। उन्हें एक साथ व एक झंडे के नीचे खड़े होकर अपनी उन्नति और खुशहाली का रास्ता अपनाना चाहिए। शूद्र (बहुजन) समाज अपना वोट अपनी राजनैतिक पार्टी को न देकर अगर अपना वोट मनुवादी राजनैतिक पार्टी को देता है तो वह अपना और अपने (शूद्र) समाज का पतन ही करता है। सभी शूद्र (बहुजन) समाज से निवेदन है वे अपनी आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचें कि आप उन्हें क्या देकर जा रहे हैं। तब वह पीढ़ी यह भी आंकलन करेगी की हमारे पुरखे क्या कर रहे थे? जब हमारे भविष्य को नष्ट करने का यूरेशियन ब्राह्मणों द्वारा षड्यंत्र रचे जा रहे थे। अगर हम सब कुछ जानकर भी नहीं जागे तो हम खुद ही अपने वर्तमान और भविष्य की बर्बादी के लिए जिम्मेदार होंगे।
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