2025-05-31 16:54:21
मनुष्य समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और बिना समाज के मनुष्य अपने जीवन में कुछ नहीं कर सकता। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने मनुष्य के राजनैतिक विकास के लिए कहा था कि राजनैतिक सत्ता के लिए समाज की सामाजिक जड़े मजबूत होनी चाहिए। इसलिए समाज को अगर अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित करनी है तो उसे पहले अपनी सामाजिक जड़ों को मजबूत करना पड़ेगा। बहुजन समाज के महापुरुषों ने समय-समय पर समाज को जागरूक व संगठित करने के लिए बहुत परिश्रम और त्याग किये हैं। समाज को जागरूक करने के लिए उन्होने सामाजिक संस्थाओं का निर्माण भी किया। जैसे-महात्मा ज्योतिबा फुले ने समाज को शिक्षित व सुसंस्कृत बनाने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना 24 सितम्बर 1873 में की थी। इसके बाद बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने समाज को शिक्षित, जागरूक व संघर्षशील बनाने के लिए तीन मंत्र दिये-‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ इनके लिए उन्होंने भिन्न-भिन्न प्रकार के सामाजिक संगठनों का निर्माण किया। समता सैनिक दल, 24 सितंबर 1924; दि. बुद्धिस्ट सोसाइटी आॅफ इंडिया, 4 मई 1955; रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया, 3 अक्टूबर 1957, इन तीनों संस्थाओं का निर्माण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने इसी उद्देश्य के लिए किया था कि इन संस्थाओं के माध्यम से दलित समाज की सामाजिक जड़े मजबूत करके उन्हें राजनीतिक सत्ता में लाया जा सकेगा।
मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने अपना सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष 1964 से शुरू किया। शुरूआत में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया के साथ मिलकर काम किया लेकिन कुछ ही महीनों में उन्हें एहसास हो गया कि रिपब्लिकन पार्टी को चलाने वाले लोग मनुवादी कांग्रेस के साथ अपने लिए राजनीतिक समझौता करने में व्यस्त है। कांग्रेसी सत्ता में मलाई चाटने के लिए वे कथित अम्बेडकरवादी, कांग्रेसी नेताओं के औजार (चमचे) बन चुके हैं। इन सब बातों के कारण मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने अपने संघर्ष का रास्ता अलग किया और उन्होंने अपने सामाजिक संघर्ष को आगे बढ़ाते हुए 6 दिसम्बर 1978 को बामसेफ नामक संगठन बनाया। जिसका मुख्य उद्देश्य था देश के पिछड़े, अल्पसंख्यक, दलित व अन्य समकक्ष जातीय घटकों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करके संघर्ष के लिए तैयार करना। बामसेफ के माध्यम से अधिकतर सरकारी कर्मचारियों को एक साथ लाने का सतत: प्रयास किया गया। बामसेफ के माध्यम से कांशीराम जी ने देशभर में घूम-घूमकर समाज के नौकरी पेशा लोगों को जागरूक व संगठित करने के लिए कैडर कैंप लगाए। कैडर कैंपो के माध्यम से देशभर में फैले बहुजन समाज को उनके महापुरुषों के संघर्ष से अवगत कराया।
इसी कड़ी में कांशीराम जी ने 6 दिसम्बर 1981 को डीएस-4 (दलित शोषित संघर्ष समिति) नामक संस्था की स्थापना की, इसी के माध्यम से पूरे देश में कांशीराम जी ने कश्मीर से कन्याकुमारी तक साइकिल से यात्रा की और समाज को जागरूक व संघर्षशील बनाया। साथ में डीएस-4 के माध्यम से कुछेक प्रदेशों में चुनाव लड़ाया और इसी माध्यम से उन्होंने बहुजन समाज में राजनैतिक नेताओं को पैदा किया। डीएस-4 के माध्यम से बड़ी संख्या में कांशीराम जी के सामाजिक आन्दोलन से लोग जुड़े और उनके सामाजिक और राजनीतिक अभियान को एक सशक्त दिशा में परिवर्तित किया।
14 अप्रैल 1984 को कांशीराम जी ने बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की जो पूर्ण रूप से एक राजनैतिक संस्था बनी। बहुजन समाज से उनका तात्पर्य था-दलित, शोषित, पिछड़े व अति पिछड़े तथा सभी प्रकार के अल्पसंख्यक। कांशीराम जी ने देश में पहले से स्थापित ब्राह्मणवादी व मनुवादी ताकतों से मुकाबला करने के लिए सभी अधिकार विहीन जातीय घटकों को इकट्ठा किया और संगठन का नाम ‘बहुजन समाज’ रखा। कांशीराम जी ने जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के द्वारा बताई गई समाज की सामाजिक जड़ों को खोजना शुरू किया तो उन्होंने पाया कि दलित समाज की सामाजिक जड़े कहीं भी दिखाई नहीं देती। पूरा अधिकार विहीन समाज (बहुजन समाज) जड़ विहीन ही है। उन्होंने अपने वक्तव्यों में कई बार दोहराया कि मैं जड़ विहीन समाज में उसकी जड़े पैदा करने की कोशिश कर रहा हूँ। यह बात सत्य है कि किसी भी समाज की राजनीति के लिए उस समाज की सामाजिक जड़ें मजबूत होनी चाहिए, मगर हमें लगता है कि दो हजार वर्षों की सतत: ब्राह्मणी व्यवस्था की गुलामी के कारण बहुजन समाज अधिकार विहीन, संसाधन विहीन, जड़ विहीन और ज्ञान विहीन होकर अपनी सुध-बुद और दिशा खो बैठा है।
वर्तमान का दलित समाज: वर्तमान समय में दलित समाज बाबा साहेब व अन्य महापुरुषों के अथक प्रयासों व संघर्षों के कारण कुछ हद तक शिक्षित व समृद्ध हुआ है। लेकिन जितना समाज शिक्षित और समृद्ध हुआ है उसमें एकता का भाव उतना ही कमजोर हुआ है। जो सामाजिक संगठन दलित समाज के महापुरुषों ने स्थापित किये वे अधिकतर आज निष्क्रिय है। किसी भी संगठन में समाज से जुड़े दुख-दर्द में साथ खड़े होने का दम नहीं है। इन सभी सामाजिक संस्थाओं के संचालकों में आत्म बल, नैतिक बल, निस्वार्थ समाज सेवा की भावना खत्म हो चुकी है। संस्थाओं के सभी संचालक स्वार्थी हो चुके हैं, और वे ब्राह्मणवादी/मनुवादी राजनैतिक पार्टियों की गुलामी करके अपने लिए वहाँ पर कुछ राजनीतिक लाभ के लिए छिपे रूप में चिपके हुए हैं। दलित समाज के सामाजिक संगठनों के सिरमोर अपने समाज की कीमत पर समाज के संख्या बल को दिखाकर अपने लिए इन ब्राह्मणवादी/मनुवादी पार्टियों में स्थान खोजने के लिए उनके औजार बने हुए हैं। सीधे तौर पर अगर यूँ कहें कि दलित समाज के नेता मनुवादी/संघी पार्टियों के राजनैतिक दलाल बने हुए है तो यही सही होगा। दलित वर्ग भोला-भाला समाज है और इसीलिए वह इन चालाक व स्वार्थी किस्म के राजनैतिक दलालों के चंगुल में फँसकर इन तथाकथित नेताओ को समाज की दलाली करने का बार-बार मौका दे रहा है।
सरकार से ठकराने में डरते है दलित संगठनों के नेता: प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जनता और समाज के अधिकारों को सुरक्षित करने व समय-समय पर सरकार को जगाने के लिए विभिन्न लोकतांत्रिक माध्यमों का सहारा लेना पड़ता है। समाज से जुड़ी समस्याओं को ज्ञापन आदि देकर सरकार को अवगत कराया जाता है और सरकार से उन ज्ञापनों पर सकारात्मक कारवाही की उम्मीद भी की जाती है। मगर जब सरकार द्वारा जनता से जुड़े मुद्दों पर कोई सकारात्मक कदम न उठाया जाये तो सामाजिक संगठनों के संचालकों को और राजनीतिक दलों के नेताओं को सड़क पर उतरकर अपने हक अधिकारों के लिए आंदोलन भी करने पड़ते हैं। डॉ. राममनोहर लोहिया ने एक बार अपने वक्तव्य में कहा था-‘जब सड़कें खामोश हो जाए तो संसद आवारा हो जाती है।’ प्रजातांत्रिक व्यवस्था में उनका यह कथन सही और सार्थक है। आज बहुजन समाज के सामाजिक सगठनों के सर्वे-सर्वा बने हुए तथाकथित नेता मनुवादी संघी सरकार से ठकराने के लिए आत्मबल, नैतिक बल और संघर्ष बल खो चुके हैं। पिछले साल 2024 में बाबा साहेब की प्रतिमा संसद भवन के परिसर से विस्थापित करने के मुद्दे पर समाज से जुड़े करीब 50 संगठनों ने मिलकर अम्बेडकर भवन पर एक संयुक्त बैठक करके बताया था कि बाबा साहेब की प्रतिमा जहाँ से हटाई गई है, उसे वहीं पर पुन: स्थापित कराने के लिए समाज को तन-मन-धन से पूरा सहयोग करना होगा। बाबा साहेब की प्रतिमा को उसी स्थान पर लगवाने के लिए सभी सामाजिक संगठनों ने अंतिम सांस तक लड़ने का भरोसा दिया था। बाबा साहेब के सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए हम सभी प्रकार की कुर्बानी के लिए तैयार रहेंगे।
इस संघर्ष के लिए समाज ने आर्थिक सहयोग भी दिया और 9 अगस्त 2024 को जंतर-मंतर पर एक विशाल प्रदर्शन का आयोजन भी किया गया। यह आंदोलन समता सैनिक दल की अगुवाई में चलाने का फैसला सर्वसम्मति से हुआ था। 9 अगस्त 2024 को हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए और आंदोलन के संचालकों को जनता ने पूरा सहयोग देने का वायदा किया। परंतु दलाल प्रवृति के समता सैनिक दल से जुड़े अध्यक्ष (पूर्व और वर्तमान) व मुख्य सचेतक व अन्य सचेतकों, राष्ट्रीय भागीदारी मोर्चा, वेलफेयर एसोशिएसन आॅफ एलआईसी अन्य बीमा कंपनियों के महासचिव, मिशन जय भीम के कर्ता-धर्ता आदि ने अपने व्यक्तिगत स्वार्थवश इस पवित्र आंदोलन को अदृश्य तरीके से भाजपा संघियों, कांग्रेस आदि के दलालों से मिलकर विफल किया। जिसके कारण पूरा दलित समाज आज अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रहा है। वास्तव में इस प्रकार के कथित सामाजिक नेता सामाजिक संगठनों में घुसकर मनुवादी संघियों की दलाली कर रहे हैं और समाज की संख्या बल के आधार पर अपने लिए व अपने परिवार से जुड़े व्यक्तियों के लिए राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने में लगे हुए हैं।
महापुरुषों के सम्मान के लिए सरकारों से टकराना होगा: पूर्व में बाबा साहेब की प्रतिमा संसद भवन के प्रांगण में लगवाने के लिए समाज ने संगठित होकर माननीय बुद्धप्रिय मौर्य जी के नेतृत्व में 6 दिसम्बर 1964 से आन्दोलन शुरू किया था और इस आंदोलन में बहुजन समाज से जुड़े सभी जातीय घटकों के लोगों ने अपना सहयोग दिया था। इस आंदोलन में करीब 3 लाख से अधिक लोग जेल गए थे। महिला कार्यकर्ताओं ने भी इस आंदोलन में बड़ी संख्या में भाग लिया। आंदोलन के दौरान गर्भवती महिलाओं ने अपने बच्चों को जन्म भी जेल में ही दिया था और उन बच्चों के नाम, उनके माता-पिता ने जेल सिंह रखे थे। यह आन्दोलन करीब तीन साल चला। बुद्धप्रिय मौर्य को उस समय की कांग्रेसी सरकार ने अनेक यातनाएँ दी थी और उन्हें जेल में रखाकर सजा के तौर पर बर्फ की सिल्लियों पर भी लिटाया गया था। आज बुद्धप्रिय मौर्य जी इस दुनिया में नहीं है, उनके द्वारा बाबा साहेब के सम्मान में किये गए आंदोलन को आज का बहुजन समाज याद करके और उनके संघर्ष की गाथा को पढ़कर व सुनकर गर्व महसूस करता है। बुद्धप्रिय मौर्य जी के इस सफल आन्दोलन के प्रति आज भी पूरा समाज नमन करता है।
नेता विहीन दलित समाज: देश का बहुजन समाज आज नेता विहीन है। समाज में स्वार्थहीन, समर्पित व निष्ठावान नेताओं की घोर कमी है। कांशीराम जी के जाने के बाद समाज ने बहन जी को अपना नेता मान लिया था परंतु वह भी अब परिवारवाद और छिपे ढंग से मनुवादियों की मदद करने में अपना इकबाल खो बैठी है। समाज आज ऐसे नेताओं की तलाश में हैं जो बहुजन समाज से जुड़े मुद्दों के लिए मनुवादी संघी सरकारों से हर प्रकार से निपटने के लिए संकल्पित और समर्पित हो। बहुजन समाज को आज स्वार्थी और ठग किस्म के नेताओं की जरूरत नहीं है। चूंकि स्वार्थी और ठग किस्म के नेता समाज को मूर्ख समझते हैं और समाज के संख्या बल पर वे अपने लिए और अपने परिवार से जुड़े लोगों के लिए संरक्षण व राजनीतिक लाभ उठाने में लगे हैं। विभिन्न सूत्रों से सुनने में आ रहा है कि जिन स्वार्थी और दलाल किस्म के व्यापारी प्रवृति के नेताओं ने बाबा साहेब की प्रतिमा के आंदोलन को विफल कराया अब उनमें से कुछेक आगे आकर जनता को बता रहे हैं कि हम बोध गया में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित महाबोधि मंदिर को ब्राह्मणों के कब्जे से मुक्त कराएंगे। हमारी जनता से अपील है कि वे ऐसे स्वार्थी व ठग किस्म के कथित नेताओं के छलावों में न फँसे तथा अपनी बुद्धि से तथ्यों का स्वयं आंकलन करें और सही लगने पर ही किसी को समर्थन दें।
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