2022-11-24 11:42:11
सर्वविदित है कि मोदी हिंदुत्व को बढ़ाने वाले आज अग्रणीय पुरुष है और साथ ही केजरीवाल ने भी जनता को यह बता दिया है कि वह और उनका परिवार संघी शाखाओं में जाकर प्रशिक्षित हुए हंै। केजरीवाल और मोदी दोनों जातीय आधार से भी बनिये (वैश्य) है। दोनों अपने वक्तव्यों में बहुजन समाज के श्रेष्ठतम महापुरुष बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर को अपना आदर्श बताते हैं। यह बहुजन समाज को ठगने का संघी मंत्र है। चूंकि संघी मानसिकता वाले किसी भी संघी ने डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान को न तो अपनाया और न माना। हमेशा भारतीय संविधान को हिंदुत्व के विरुद्ध बताया और पूरे देश को संविधान न मानने के लिए मनुवादियों को बर्गलाया भी। संघियों के ऐसे कृत्यों को देखकर बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) के सभी घटकों को वस्तु स्थिति का अवलोकन करके मोदी भाजपा और केजरीवाल को नि:संदेह बहुजन समाज का शत्रु मानना चाहिए। चूंकि ये दोनों षड्यंत्रकारी माहौल पैदा करके बहुजन समाज की पीठ में छुरा घौपने का काम कर रहे हैं, ये बाबा साहेब के गले में माला डालते है और उनके विचारों पर ताला डालने का षड्यंत्र प्रपंच रचते हैं।
वर्तमान में दिल्ली एमसीडी और देश के कई अन्य प्रदेश में विधान सभाओं के चुनाव चल रहे हैं जिनमें मोदी और केजरीवाल अपने तथ्यहीन वायदों और प्रपंचो से जनता को बहलाने व फुसलाने का काम कर रहे हैं। देश की भोली-भाली जनता दोनों के पिछले कृत्यों से समझ रही है कि दोनों में पाखंड और झूठ को फैलाने की महारथ है। मोदी देश के प्रधानमंत्री है मगर दिल्ली के एमसीडी चुनाव या किसी अन्य नगर पालिका के चुनाव में उनका उतरना शोभा नहीं देता, मगर वे संघी हिंदुत्व से निर्मित व प्रशिक्षित है जिसमें मर्यादा विहीन बेशर्मी की प्रकाष्ठा होती है। मोदी भाजपा और केजरीवाल की आंतरिक संरचना और विचारधारा में कोई फर्क नहीं है दोनों एक ही है; दोनों जनता को मूर्ख समझते हैं; दोनों ही जनता को झूठ और पाखंड में लिप्त रखते हैं; दोनों ही जनता में छोटी-छोटी मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँटकर गुलाम बनाए रखकर सत्ता चाहते हैं। बहुजन समाज का असली कल्याण मुफ्त की रेवड़ियों में नहीं है; और न ही उनका कल्याण मोदी द्वारा प्रायोजित टीवी पर बाबाओं की कथाओं में है; और न ही केजरीवाल की बुजुर्गों की तथाकथित धार्मिक यात्राओं में है; समाज का कल्याण नागरिकों को उत्कृष्ट शिक्षा और संविधान के प्रावधानों को आत्मसात करने में ही है; जिसे मोदी भाजपा और केजरीवाल जनता को आत्मसात नहीं करने दे रहे हैं।
मोदी भाजपा और केजरीवाल दोनों उत्कृष्ट श्रेणी के भ्रष्टाचारी है, दोनों भ्रष्टाचार करने और करवाने में इतने शातिर है। उनका भ्रष्टाचार इतना अपारदर्शी है जो किसी को दिखाई नहीं पड़ता। मोदी भाजपा के भ्रष्टाचार के अनेकों उदाहरण होंगे मगर गुजरात के मोरबी में पुल के गिर जाने का दृश्य भारत ने ही नहीं पूरी दुनिया ने देखा जो मोदी के समर्थक व चेलों द्वारा किये गये भ्रष्टाचार का सर्वश्रेष्ठ ताजा उदाहरण है। इसी तरह केजरीवाल के दिल्ली सरकार में बैठे मंत्रियों पर भ्रष्टाचार को लेकर ईडी और सीबीआई के केस चल रहे हैं। दिल्ली सरकार में केजरीवाल के जातीय भाई सतेन्द्र जैन पिछले चार महीनों से अधिक से जेल में हैं। लेकिन जातीय भाई और उनके द्वारा कराए गए भ्रष्टाचार में शायद खुद सहभागी होने के कारण उन्हें आजतक मंत्री पद से नहीं हटाया गया है जबकि इसके ही समांतर राजेन्द्र पाल गौतम जो अनुसूचित जाति के कोटे से मंत्री बनाए गए थे उनको बाबा साहेब की बुद्ध धम्म की 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराने के आरोप मात्र में मोदी भाजपा के कहने मात्र से तुरंत हटा दिया गया। हालांकि इस प्रकरण में राजेन्द्र पाल गौतम की अहम गलती यह है कि उनको केजरीवाल के कहने पर इस्तीफा नहीं देना चाहिए था उन्हें केजरीवाल को ही उन्हें मंत्री पद से हटाने के लिए कहना चाहिए था। राजेन्द्र पाल गौतम ने अपनी कम समझ का परिचय देते हुए जनता के सामने अपने को दोषी मानकर और केजरीवाल को अपना नेता माना यही राजेन्द्र पाल गौतम का बहुजन समाज के समक्ष अक्षमय अपराध है। केजरीवाल के दूसरे मंत्री मनीष सिसोदिया जो केजरीवाल के साथ उप-मुख्यमंत्री है उन पर आबकारी नीति को लेकर और दिल्ली के स्कूलों में सिविल कार्यों को लेकर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप है जिन पर ईडी और सीबीआई की जाँच चल रही है। फिर भी उनको मंत्री पद से नहीं हटाया जा रहा है इन सब घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि केजरीवाल इन तथाकथित भ्रष्टाचारों में खुद प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप में लिप्त हैं।
भारत का इतिहास साफतौर पर यह दर्शाता है कि देश में भ्रष्टाचार के जितने भी घोटाले सामने हुए उनके मूल में हमेशा एक वैश्य (बनिया) समाज का व्यक्ति अवश्य पाया गया। किसी भी समाज के शत-प्रतिशत लोग खराब न है और न सही है। समाज में किसी चीज की अधिकता की प्रवृति को ही मापा और देखा जाता है, उसी के आधार पर धारणायें बनती है। इन्हीं प्रचलित धारणाओं के आधार पर आर्य समाज के प्रचारक महाशय पृथ्वी सिंह बेधड़क अपने प्रचार के माध्यम से जनता को बताते थे कि-‘पुजारी (ब्राह्मण) और व्यापारी (बनिया) देश भक्त नहीं हो सकते’ यह पूरी तरह से भारतीय जीवन में चरित्रार्थ है। यहाँ तक की फर्नांडिस और बहन मायावती पर जिन पर संघियों ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे उनके मूल में भी गुप्ता और जैन समाज के व्यक्ति पाये गए थे। ये सब तथ्य इन अवधारणाओं को मजबूत करते हैं कि बहुजन समाज के लोग अन्य समाज के सापेक्ष ईमानदार है, भ्रष्टाचारी नहीं उन्होंने इस देश के निर्माण में बहुत योगदान दिया है। बहुजन समाज देश की कामगार जातियों से मिलकर बना है। जो परिश्रम करके जीवन यापन करने में ही विश्वास रखता है। उनके परिश्रम से ही देश समृद्धि की तरफ अग्रसर है।
वर्तमान में देश संघी मनुवाद की बीमारी में फंसा है, नित नए पाखंड और प्रपंचों को जन्म दिया जा रहा है ताकि भोली-भाली जनता इन संघी मनुवादी प्रपंचों में फंसी रहे और उनके बच्चे अपनी शिक्षा और समृद्धि के लिए कोई कार्य न कर सके। ब्राह्मणी संस्कृति कल्पित पौराणिक कथाओं से बहुजन समाज में स्थापित किया जा रहा है; उनको वास्तविक शिक्षा से हटाया जा रहा है; धार्मिक प्रपंचों में फंसाया जा रहा है। मोदी जो 2021 में जो नई शिक्षा नीति लेकर आये और उसे देश के विद्यालयों व विश्वविद्यालयों में स्थापित करने का प्रस्ताव पारित किया उससे समाज में ब्राह्मणी संस्कृति के गुरुकुलों की शिक्षा पद्धति की झलक साफ दिखती है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने बहुजन समाज को जोर देकर कहा था-‘शिक्षा शेरनी का वह दूध है जो पियेगा वह दहाड़ेगा’। मनुवादी शिक्षा से शिक्षित-प्रशिक्षित मोदी-भाजपा बहुजन समाज की जातियों को विशेषकर अनुसूचित जाति/जनजाति के बच्चों को मनुवादियों के सामने दहाड़ने से वंचित करने का तंत्र बना रहे हैं। नई शिक्षा नीति के तहत प्रावधान किये गए हैं कि समाज के विभिन्न जातियों के लोग अपने परंपरागत पेशों की ही शिक्षा ले। जैसे-बढ़ई लड़की का काम करने की शिक्षा में पारंगत बने, कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने की शिक्षा में ही उत्तम बने; लौहार लोहे से बनने वाले रोजमर्रा के औजारों का निर्माण करे; नाई बाल काटने की विद्या में ही शिक्षा लेकर उत्कृष्ट बने; चमड़े की वस्तुएं बनाने वाले चर्मकार इसी में उत्कृष्ट शिक्षा हासिल करे, आदि। इन शिक्षाओं को जमीनी स्तर पर लागू करने के मकसद से कई प्रदेशों की मनुवादी सरकारों ने इसी प्रकार के कार्यों से जुड़े नाम पर ऐसे ही आयोगों की स्थापना की है। जैसे चर्मकार आयोग, बर्तन कला आयोग; साफ-सफाई आयोग; आदि। इस तरह के आयोगों के पीछे का मकसद संघी मानसिकता से जुड़ा है जो चाहता है कि इन जातियों के लोग और उनकी आने वाली पीढ़ियों के बच्चे अपने जाति से जुड़े परंपरागत कार्यों की शिक्षा ले और सवर्ण समाज की सेवा में लगे रहे। वे पढ़ने के लिए स्कूलों में न जाये और उच्च शिक्षा हासिल न करे। जिन प्रदेशों में मोदी भाजपा की संघी सरकारें है वहाँ पर इसी तरह की शिक्षा स्थापित करने के लिए जोर-शोर से काम चल रहा है। हम हरियाणा के उदाहरण से समझे कि वहाँ पर मोदी भाजपा की संघी सरकार आदेश पारित कर चुकी है कि जो बच्चे पब्लिक स्कूल में पढ़ेंगे उन्हें प्रतिमाह 1000 रुपए छात्रवृति दी जाएगी और जो बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ने जाएँगे उनसे प्रतिमाह 500 रुपए फीस ली जाएगी। इससे संघी मानसिकता की भाजपा सरकार सरकारी स्कूलों को बर्बाद करना चाहती है और बच्चों को निजी स्कूलों में कुछ सालों के लिए भेजकर सरकारी स्कूलों को बंद कराना चाहती है कि जब स्कूलों में बच्चे ही नहीं होंगे तो इन स्कूलों को सरकार क्यों चलाए? संघी सरकारें इस एक तीर से दो शिकार कर रही हैं। पहला निजी स्कूलों द्वारा 1000 छात्रवृति प्रतिमाह का लालच देकर यह दिखाना चाहते है कि सरकारी स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं तो स्कूलों को बंद कर देना चाहिए। इन पर व्यर्थ में शिक्षक रखकर और बिल्डिंगों के रख-रखाव में सरकार का खर्च क्यों बढ़ाया जाये? इसलिए बंद कर देना ही उचित होगा। दूसरा जब स्कूल नहीं होंगे तो शिक्षक रखने की जरूरत भी नहीं होगी जिसके आधार पर मनुवादी संघी सरकारों को दलितों और पिछड़ों को आरक्षण देने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। मनुवादी संघी सरकारों का खेल आम जनता की समझ से हमेशा दूर रहता है और वे अपनी कम समझ और भोले पन में फँसकर ये ही अच्छा समझने लगते हैं कि निजी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई होती है और 1000 रुपए भी प्रतिमाह मिलते हैं। परंतु यह निजीकरण शिक्षा मॉडल कुछ ही दिन चलाकर जब सरकारी स्कूल बंद होकर उनका विकल्प जनता के लिए मौजूद नहीं होगा तो ये निजी स्कूल ही आम जनता से मनमानी अधिक से अधिक फीस की माँग करेंगे जिसे आम जनता वहन करने में सक्षम नहीं होगी और वे अपने आप ही अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजना बंद कर देंगे।
मोदी भाजपा और केजरीवाल की ‘आप’ से बहुजन समाज को अधिक सावधान रहने की जरूरत है चूंकि ये दोनों ही मनुवादी शिक्षा को आम जनता में अदृश्य तरीके से स्थापित कर रहे हैं। इससे बहुजन समाज का भविष्य अंधकार की तरफ जाएगा इसलिए अभी से बहुजन समाज की सभी जातियों को चेतना चाहिए और मोदी/केजरीवाल की संघी मानसिकता की सरकारें किसी भी नगर-निकायो, प्रदेशों में स्थापित नहीं होनी चाहिए। बहुजन समाज को संकल्प लेकर सुनिश्चित करना चाहिए कि बहुजन समाज के दो बड़े शत्रु मोदी भाजपा और केजरीवाल (आप) को अपना वोट न दें। अगर बहुजन समाज इन दोनों को अपना वोट देता है तो वह अपनी वर्तमान पीढ़ी का ही नहीं भविष्य में आने वाली पीढ़ी का भी नुकसान करेगा। बहुजन समाज से निवेदन है कि वे अपने महापुरुषों की शिक्षाओं पर अमल करे, बाबा साहब की शिक्षा पर अमल करे।
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