2024-07-19 12:42:43
सामाजिक संगठन आम उद्देश्य प्राप्ति के लिए बनते हैं, इन संगठनों में समाज के सभी जागरूक लोगों की भागीदारी होती है। भागीदारी का एहसास उन सभी सदस्यों को होना चाहिए जिनके द्वारा तय उद्देश्य प्राप्ति के लिए संगठन को बनाया गया है। अगर संगठन में कुछेक लोग ही सर्वे-सर्वा बनने लगें और कुछेक लोगों की स्वार्थ पूर्ति के लिए लामबंध होने लगे तो फिर सामाजिक संगठन अपना महत्वपूर्ण उद्देश्य खो बैठते हैं। इस तरह के संगठन कुछेक लोगों को चमकाने, उन्हें आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं तो संगठन अपने मूल उद्देश्य और लक्ष्य से भटक जाते हैं। परिणामस्वरूप जिन कुछेक लोगों को आगे बढ़ाने या चमकाने के लिए काम किया जाता है, वे कुछेक लोग तो बड़े बन जाते हैं और संगठन उद्देश्य विहीन होकर छोटा होने लगता है, अंत में संगठन मृत प्राय: हो जाता है। आज देश में इसी प्रवृति के सामाजिक नेता अधिक दिखाई दे रहे हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सामाजिक कार्य करना तो कम और अपने आपको संस्था के माध्यम से चमकाना अधिक रहता है। वर्तमान में तथाकथित सामाजिक नेता सामाजिक संस्थाओं का निर्माण अपनी इसी तरह की छिपी मानसिकता के तहत कर रहे हैं, जबकि उनके पास संस्था के लिए जरूरी संसाधन नहीं है। परंतु संस्था के माध्यम से अंदर छिपी महत्वपूर्ण इच्छा है कि समाज की कीमत पर अपने आपको कैसे चमकाया जाये? ऐसी इच्छापूर्ति के लिए ये लोग कोई भी अनैतिक समझौता समाज विरोधी ताकतों के साथ कर लेते हैं, जिसे ये समाज की आम जनता को नहीं बताते हैं। आज देश में संघी मानसिकता के लोगों की भरमार है और वे अपने प्रपंचों, असत्य व पाखंडवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए बहुजन समाज के ऐसे ही सामाजिक संगठनों की लताश में रहते हैं। जो मूल रूप में सामाजिक सोच और आर्थिक स्थिति में कमजोर हो, उन्हें ही ये मनुवादी संगठन अपना शिकार बनाने हैं। इनका मुख्य उद्देश्य बहुजन समाज के संगठनों के संचालकों को भ्रमित करके बहुजन समाज विरोधी गतिविधियों को जमीन पर उतारने के लिए प्रेरित करना होता हैं। बहुजन समाज के ज्यादातर संगठन कुछेक व्यक्तियों की इच्छापूर्ति के लिए समाज विरोधी ताकतों से आर्थिक व अन्य सभी संसाधन प्राप्त करके संगठन को आगे बढ़ाने का दावा करते रहते हैं।
निजी वर्चस्व की भावना में छिपा होता है संघी षड्यंत्र: वर्तमान समय में संघी मानसिकता की सरकार ने देश के सार्वजनिक क्षेत्रों को बर्बाद कर दिया है। मौजूदा संघी सरकार ने अपनी इसी मानसिकता के तहत निजीकरण को बढ़ावा दिया है। मनुवादी संघियों का मूल मंत्र है कि देश में सरकारी संस्थान कम से कम हो और जो सार्वजनिक, पब्लिक सेक्टर, आज मौजूद हैं उन्हें भी औने-पौने दाम पर अपने संघी मित्रों के हवाले कर दिया जाये। इसी मानसिकता के तहत मोदी-संघी सरकार ने देश के सभी सार्वजनिक संस्थानों, उपकरणों को निजीकरण की भेंट चढ़ा दिया है। अब इन निजी संस्थानों में एससी, एसटी, ओबीसी आदि के समुदायों को आरक्षण न मिल पाएगा तथा नौकरी पर रखे गए कर्मचारियों को वेतन भी कम और समय ज्यादा देना पड़ेगा। आज देश का युवा वर्ग बेरोजगारी की मार झेल रहा है और इस युवा वर्ग में बेरोजगारी की अधिक मार बहुजन समाज के युवाओं के ऊपर अधिक पड़ रही है। चूंकि इस वर्ग के पास अपने कुछ भी संसाधन नहीं है जिनके बल पर यह युवा वर्ग अपने लिए कुछ-न-कुछ काम-धंधे खड़े कर सकें। बहुजन समाज का संसाधन विहीन युवा वर्ग केवल नौकरी पाने के लिए ही शिक्षा के लिए संघर्ष करता है परंतु जब शिक्षा पाकर, पूरी कोशिश करने के बाद भी इस युवा वर्ग को नौकरियां नहीं मिलेगी तो वह पूरी तरह से अपने मिशन में अपने आपको असफल मानकर हीन भावना का शिकार होने लगता है। समाज के जिन समुदायों के पास सभी प्रकार के संसाधन मौजूद हंै उनके बच्चे विदेश या देश में रहकर मनचाहा व्यवसाय शुरू कर लेते हैं और वे बहुत अच्छे ढंग से अपनी जीविका चलाते हैं। इसलिए बहुजन समाज के युवाओं को अधिक ध्यान अपनी शिक्षा पर ही देना चाहिए ताकि ये लोग अपने विरोधी प्रतिद्वंदियों से बेहतर शिक्षित होकर अपेक्षाकृत श्रेष्ठ बन सके और अपने प्रतिद्वंदियों को पछाड़कर देश के मौजूदा हालात में नौकरी पाने में सक्षम हो सकें। वर्तमान समय में बहुजन समाज के अंदर जो थोड़ी बहुत समृद्धि दिखाई दे रही है वह केवल और केवल आजादी के बाद बहुजन समाज की पहली और दूसरी पीढ़ी के संघर्षों के कारण नौकरियों के माध्यम से पैदा हुई संपन्नता है। अन्यथा बहुजन समाज को देश की विरासत में कुछ भी नहीं मिला है, अधिकांश लोगों के पास खेती योग जमीन भी नहीं है और न उनके पास किसी भी प्रकार के उद्योग धंधे हैं।
देश की सम्पदा में बहुजनों की हो हिस्सेदारी: भारत के सभी नागरिकों को देश की सम्पदा, संस्थानों, उद्योग धंधों आदि में जनसंख्या के अनुसार हिस्सेदारी होनी चाहिए। तभी देश का बहुजन समाज (एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक) इस देश में प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा और देश से गरीबी का कलंक भी मिट सकेगा। मोदी संघी शासन में सरकार द्वारा जो मुफ्त में 5 किलो अनाज गरीब जनता को बाँटने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है उसके पीछे संघी सरकार की मानसिकता लोगों को गरीबी से बाहर निकालना नहीं है। बल्कि अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए बहुजन समाज के ऐसे सभी गरीब लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाना है। आप सभी मोदी-संघी शासन के 10 सालों के कार्यक्रमों को देखकर आसानी से समझ सकते है कि मुफ्त के राशन से कितने लोग समृद्धि के रास्ते पर अग्रसर होकर समृद्ध हुए हैं? वास्तविकता के आधार पर मोदी के शासन के दौरान गरीबी घटने के बजाय बढ़ी है, यह सब आंकड़ा सरकार के द्वारा प्रकाशित है। मोदी-संघी सरकार का चरित्र यह है कि देशवासियों को सच्चाई से दूर रखो, बड़े पैमाने पर झूठ और छलावे परोसकर जनता को ठगते रहो और उनका वोट पाने के लिए झूठे प्रपंच रचते रहो। आज देश का बहुजन समाज इसी प्रपंची दौर से गुजर रहा है। बहुजन समाज के सामाजिक संगठनों में सरकार के इशारे पर मनुवादी-संघियों द्वारा सेंध लगाई जा रही है। इन संगठनों के अग्रणी नेताओं में राजनैतिक महत्वाकांक्षा को बढ़ाकर फंसाया जा रहा है। बहुजन समाज के ऐसे अधिकांश नेता अपने महापुरुषों की शिक्षाओं को भूलकर मनुवादी संघियों की चाल में अपने निजी स्वार्थ के कारण फंस रहे हैं। फँसने के बाद बहुजन समाज के ये तथाकथित नेता मनुवादी-संघियों के इशारे पर ये कुछ भी करने के उनके गुर्गे बने रहते हैं। मनुवादी संघियों ने अभी हाल में बहुजन समाज के ऐसे दो विधायकों को अपने जाल में फंसाया हुआ है जो आम आदमी पार्टी के विधायक और मंत्री भी रह चुके हैं। बहुजन समाज को अपने ऐसे नेताओं से अधिक सावधान रहने की जरूरत है। ऐसे लालची और भ्रष्ट नेताओं को बहुजन समाज अपना नेता न समझे और उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना ही समाज के लिए बेहतर होगा।
बाबा साहब द्वारा स्थापित संगठन कमजोर क्यों? बाबा साहब ने अपने जीवन काल में बहुजनों की प्रगति के लिए कई सारे संगठनों का निर्माण किया। उनका सोचना था कि मेरे समाज के लोग इन संगठनों के माध्यम से अपने समाज के लोगों को शिक्षित-दीक्षित करके उन्हें सही रास्ते पर चलने के लिए अग्रसर करेंगे, लेकिन व्यवहारिक रूप में ऐसा हुआ लगता नहीं है जिसका कारण लगता है कि इन संस्थानों की बागडोर जिन लोगों के हाथों में दी गई वे इन सामाजिक संस्थानों को चलाने में असफल साबित हुए। उनकी इस असफलता का कारण उनमें मौजूद शैक्षिक योग्यता नहीं बल्कि उनमें गहराई तक व्याप्त स्वार्थ और इन संस्थानों को अपनी निजी धरोहर मानकर चलाना ही एक मात्र कारण है। इन सभी तथाकथित अम्बेडकरवादियों ने महापुरूषों की संम्पत्ति को अपनी निजी धरोहर मानकर कब्जा कर लिया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था इन सामाजिक संस्थाओं से समाप्त कर दी गई और उसपर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया जिसके परिणाम स्वरूप बाबा साहब के सभी प्रमुख संस्थान आज कई-कई टुकड़ों में विभाजित हो चुके हैं। इनको चलाने वालों में ईमानदारी और त्याग का घोर अभाव दिखता है। सभी गुट या ग्रुप एक-दूसरे को बेईमान या भ्रष्ट बताकर अपने आपको ईमानदार ठहराने की कोशिश करते हैं। ऐसी हरकतों के कारण जनता का इन तथाकथित अम्बेडकरवादियों से भरोसा उठता जा रहा है। जनता इन सबके व्यवहार और कृत्यों से भ्रमित है, असमंजस में है कि वह किसे सही समझें और किसे सही न समझें? इसी भ्रमित वातावरण के कारण आज समाज इन सभी संस्थाओं को यथासंभव आर्थिक योगदान देने में भी हिचकिचाता है।
सरकार की नजर में बहुजन समाज की घटती प्रतिष्ठा: बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की प्रतिमा को संसद परिसर से हटाया जाना एक अहंकारी और तानाशाही कदम है। वर्तमान की मोदी सरकार बहुजन समाज के तथाकथित बुद्धि जीवियों और सामाजिक नेताओं की मानसिकता को अपने संघी बेरोमीटर से मापकर इस निष्कर्ष पर पहुँच चुकी है कि इस समाज के सामाजिक संगठनों के अधिकांश लोग स्वार्थी और लालची हंै, उन्हें कोई भी लालच का टुकड़ा डालकर खरीदा जा सकता है। सरकार यह भी जानती है कि इस समाज के तथाकथित अग्रणीय नेताओं की कीमत अपेक्षाकृत कम है। ये लोग अधे-पव्वे, बोतल, पार्षद आदि के टिकट के झांसे में आकर बिकने के लिए तैयार रहते हैं और इन सब छोटी-छोटी चीजों को पाने के लिए अपना सर्वस्व दांव पर लगाने के लिए तैयार रहते हैं। पूरा बहुजन समाज अपने महापुरुषों का नाम लेकर मिथ्या बातें और प्रचार करते हैं। उनके द्वारा बताए गए कल्याणकारी रास्तों पर न ये खुद चलते हैं और न उन रास्तों पर चलने के लिए जनता को प्रेरित करते हैं। समाज के ऐसे तथाकथित नेता सामाजिक संस्थाओं को गर्त में पहुँचाने का काम कर रहे हैं। ऐसे तथाकथित सामाजिक नेताओं के कारण ही मोदी-संघी सरकार की हिम्मत इस कदर बढ़ गई है कि उसने 3 जून की रात के अंधेरे में महापुरुषों की प्रतिमाओं को संसद भवन के प्रांगण से सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हटवा दिया और ये सभी तथाकथित बहुजन समाज के संगठन ऐसी जघन्य घटनाओं का संज्ञान लेकर, एकत्रित होकर, सरकार के सामने मरने-मिटने के लिए संकल्प लेने में असमर्थ दिख रहे हैं।
बहुजन समाज के जागरूक लोगों से निवेदन है कि इन तथाकथित सामाजिक संस्थाओं के नेताओं के चरित्र और व्यक्तित्व पर न जायें । समाज के महापुरुषों के लिए एकजुट होकर संघर्ष के लिए कमर कस लें और जबतक ये तानाशाही संघी सरकार महापुरुषों की प्रतिमाओं को उनके मूल स्थान पर स्थापित नहीं करती तब तक पूरी शक्ति के साथ ‘डॉ. अम्बेडकर प्रतिमा पुनर्स्थापना संघर्ष समिति’ के संपर्क में रहे और उनके द्वारा निर्देशित कार्यक्रम के अनुसार इस संघर्ष समिति को हर प्रकार का सहयोग करके महापुरुषों के मान-सम्मान के लिए समर्पित रहने का दिल से संकल्प लें।
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