2023-05-22 06:00:26
बहुजन शब्द का चलन बुद्ध काल से अस्तित्व में है और भगवान बुद्ध ने सबसे पहले ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ का जनता को उपदेश दिया था। ब्राह्मणी संस्कृति के काल में यह शब्द मृत प्राय: रहा और भगवान बुद्ध के करीब 25 सौ वर्ष बाद यह शब्द मान्यवर साहेब कांशीराम जी के सामाजिक संघर्ष के साथ फिर से जीवित हुआ। बहुजन शब्द का शाब्दिक अर्थ है कि बहुसंख्यक लोग। यह शब्द किसी धर्म, जाति से संबंधित नहीं है। यह जनता के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी दुनिया में न कोई भी चीज सौ प्रतिशत अच्छी है और न सौ प्रतिशत खराब है। भगवान बुद्ध ने भी शायद इस शब्द का इस्तेमाल इसी परिपेक्ष्य में किया होगा। जिसका साधारण मतलब निकलता है कि विश्व के अधिसंख्यक लोगों का हित हो और अधिसंख्यक लोग सुखी रहें यह धारणा और वक्तव्य वैज्ञानिक स्तर पर पूर्णत: सही है।
मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने 70 के दशक से अपना सामाजिक संघर्ष शुरू किया। उन्होंने समाज में पहले से चल रहे सामाजिक संगठनों जैसे-रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया को जाँचा-परखा और उनके साथ मिलकर काम करने का प्रयास किया। परंतु वहाँ पर पहले से बैठे अति-महत्वाकांक्षी दलाल प्रवृति के लोग थे जिनमें अधिक महाराष्ट्रीयन थे। उन्हें वहां से निराशा ही हाथ लगी, उन्होंने उन सभी को छोड़कर अपना अलग रास्ता चुना। सबसे पहले उन्होंने बामसेफ बनाया, बामसेफ में अधिकतर नौकरी पेशा लोग थे उन्हीं को संगठित करके समाज को संगठित किया।चूंकि इस संगठन में अधिकतर कर्मचारी वर्ग के लोग थे जो समाज में अपेक्षाकृत सम्पन्न भी थे। संगठन चलाने के लिए जो धन शक्ति चाहिए थी वह उन्होंने इन्हीं नौकरी पेशा कर्मचारियों से ली और संगठन को आगे बढ़ाया। शुरू में उन्होंने बड़ी-बड़ी स्टेज न लगाकर गली-मौहल्ले, गाँव-गाँव व शहरों की गलियों में नुक्कड़ बैठके कीं और लोगों को बहुजन समाज में जन्में महापुरुषों के बारे में बताया। इन छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाओं के बाद वे साल में एक या दो बड़ी बैठकों का भी आयोजन करते थे। उनके द्वारा बहुत सारी बैठकें दिल्ली के वोट कल्ब पर हुई थी और उन मीटिंगों में देश के विभिन्न प्रदेशों से सामाजिक कार्यकर्ता जुटते थे। ये मीटिंग अधिकतर दो या तीन दिन चलती थी। इन मीटिंगों में समाज के मुददों पर गहन विचार-विमर्श किया जाता था और समाज की चुनौतियों का समाधान व उपाय भी सुझाये जाते थे।
मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने पहले‘बामसेफ’ और उसके बाद ‘डीएस-4’ का गठन किया था, जिसके तहत बहुजन समाज के लोगों को इकट्ठा होकर चुनाव लड़ने और लड़ाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता था। डीएस-4 के बैनर तलेकई स्थानों पर चुनाव भी लड़ा था तथा बहुजन समाज के विभिन्न घटकों को डीएस-4 के संगठन में शामिल कर चुनाव लड़ने के लिए प्रशिक्षित भी किया था। 14 अप्रैल 1984 को ‘बहुजन समाज पार्टी’ का गठन हुआ। उसके बाद चुनाव लड़ने वालों को बसपा के बैनर तले चुनाव लड़ाने का फैसला किया गया और देश में सभी चुनाव बसपा के झंडे के नीचे हुए। बीएसपी ने देश के विभिन्न प्रदेशों में भी चुनाव लड़ा और उनके विधायक और सांसद भी बने। बहन मायावती जी मान्यवर साहेब कांशीराम के नेतृत्व में उनकी कोर टीम का हिस्सा रहीं। साल 1989 में मायावती पहली बार बिजनौर से सांसद बनी। 15 दिसम्बर 2001 को लखनऊ में एक रैली को संबोधित करते हुए मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। इसके बाद 18 सितम्बर 2003 को उन्हें बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। तभी से आजतक बहन मायावती जी बसपा की अध्यक्ष व सुप्रीमो है। उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने जो कार्य किये वे सर्वसमाज के हित में थे। उनका शासन-प्रशासन एकदम चुस्त-दुरुस्त था उनके द्वारा बहुजन समाज में पैदा हुए महापुरुषों के इतिहास और कामों को समाज में रचाया-बसाया गया। प्रदेश की कानून व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त की गयी थी लेकिन मान्यवर साहेब कांशीराम जी का 9 अक्टूबर 2006 को परिनिर्वाण हो जाने के बाद बसपा अपना प्रभाव खोने लगी। बहन मायावती के इर्द-गिर्द सामाजिक, राजनैतिक दलाल, और चापलूस इकट्ठे होकर बसपा को चोट पहुँचाने लगे।
ब्राह्मणी संस्कृति के वर्गीकरण के अनुसार संपूर्ण शूद्र वर्ग की सभी जातियाँ और सभी अल्पसंख्यक बहुजन समाज का अंग हैं। देश की दबंग जातियों-जैसे जाट, गुर्जर, अहीर खेती योग्य जमीन के कारण अन्य बहुजन समाज के भुमिहीनों पर अमानवीय अत्याचार करते हैं जबकि ये सभी जातियाँ शूद्र वर्ग की जातियों में ही वर्गीकृत हैं। इनकी दबंगाई मानसिकता का फायदा उठाकर मनुवादी मानसिकता के लोग बहुजन समाज पर अत्याचार करने की प्रवृति रखते हैं। इन सभी को समझ नहीं आ पाया है कि तुम भी बहुजन समाज के अंग हो। इनको यह देखकर कि ब्राह्मणवादी संस्कृति के लोगों ने छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति शाहूजी महाराज का राज्याभिषेक शूद्र वर्ग का होने के कारण नहीं किया था। ब्राह्मणों का कहना था कि शूद्र वर्ग के किसी भी व्यक्ति का हम राज्याभिषेक नहीं कर सकते। चूंकि राजा बनने का अधिकार केवल क्षत्रिय वंश के लोगों को ही है।
जाट, गुर्जर, अहीर आदि शूद्र वर्ग के भूमिहीन लोगों पर अत्याचार न करके बल्कि उनके साथ मिलकर सत्ता पाने की राजनीति में शामिल होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है, इसके लिए दबंग जातियाँ ही दोषी हैं। आपस में मिलकर एकता की प्रक्रिया के लिए पहल दबंग जातियों को ही करनी होगी। ठीक से विश्लेषण करने पर निष्कर्ष यहीं निकलता है कि देश में ब्राह्मणवाद को बढ़ावा व पोषित करने का काम ये दबंग जातियाँ ही कर रही है। जिसके परिणामस्वरूप बहुजन समाज सत्ता पाने में असमर्थ हो रहा है।
भारत वर्ष में आज ब्राह्मण संस्कृति की जनता बहुजन समाज का अर्थ शायद देश के दलितों व अतिपिछड़ी जातियों जैसे-नाई, कुम्हार, गडरिये, तेली, लौहार, बढ़ई, कुशवाहा, मौर्य, आदि को ही समझा जाता है। ऐसा समझने के पीछे ब्राह्मणों का समाजशास्त्र है चूंकि वे अपने समाजशास्त्र के अनुसार पूरे शूद्र वर्ग के जातीय घटकों को टुकड़ों में बाँटकर ही रखना चाहते हैं ताकि वे इकट्ठा होकर एक सामाजिक व राजनैतिक शक्ति न बन पाये। बहुजन समाज के ऊपर ब्राह्मणी समाजशास्त्र के दुष्प्रभाव को समझने के लिए हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव सटीक उदाहरण है। वैसे तो इससे पूर्व के सभी स्तर के चुनावों में ब्राह्मणवादी सामाजशास्त्र का परिणाम ही देखने को मिलता रहा है। इस चुनाव में बहुजन समाज के वोटरों में तो उत्साह दिखा मगर समाज तोड़क व वोट कटवा लोगों में अधिक उत्साह देखने को मिला। इस चुनाव में मतदाताओं के रुझान को देखकर लगा कि सबसे पहले बहुजन समाज में पनप रहे दलालों, समाज तोड़कों और छिपे मनुवादियों को डंडे से ठीक करना पड़ेगा।
बहुजन समाज के असली प्रत्याशी छोटे स्तर के चुनावों में भी कामयाब नहीं हो पा रहे हैं। इसके पीछे का कारण बहुजन समाज में अपने जातीय घटकों में बिखराव, व्यक्तिगत लालच,अतिमहत्वाकांक्षी प्रवृति, समाज के साथ मिलकर काम न करने का जन्मजात गुण, गुलाम मानसिकता, मनुवादियों की बैशाखी पर चुनाव जीतने की मानसिकता आदि अनेकों कारण हैं। जो बहुजन समाज में अधिकता में हैं और शक्तिशाली बनते जा रहे हैं। अगर बहुजन समाज को सत्ता की कुर्सी तक पहुँचना है तो इन सभी बिखराववादी लक्षणों पर ध्यान देना होगा। जातीय घटकों के अलग-अलग सामाजिक संगठन न बनाने का भी संकल्प लेना होगा। वर्तमान समय में बहुजन समाज के अंदर आंतरिक बिखराव, उनकी कम समझ और कम बुद्धि ही है। जिसका फायदा ब्राह्मण संस्कृति के लोग उठा रहे हैं उदाहरण के तौर पर अनुसूचित जाति के अंतर्गत 100 से अधिक छोटे-छोटे जातीय घटक है जिन सभी को मिलाकर अनुसूचित जाति की जनसांख्यिकी 18-20 प्रतिशत के आसपास है। इनमें से कुछेक जातीय घटक 10-12 प्रतिशत है, बाकी के सभी जातीय घटकों की भागीदारी एक-दो प्रतिशत से लेकर 0.34 तक भी है। सरकार में बैठे मनुवादी मानसिकता के लोग जनसंख्या का सांख्यिकीय आंकलन करके यह पता लगाते हैं कि अनुसूचित जाति में कौन-कौन से जातीय घटक अल्प संख्या में हैं और इस वर्ग के उन अल्पसंख्यकों में राजनैतिक भावना को कैसे बलवती बनाया जाये। उन्हें चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया जाये। चुनाव लड़ने के लिए धन सहित अन्य संसाधनों को उन्हें दिया जाये तथा इन जातीय घटकों में वे कौन-कौन से जातीय घटक है जो आपस में ईर्ष्या रखते हैं और दूसरे घटकों के साथ दुश्मनी की मानसिकता रखते हैं। ये सारा विश्लेषण मनुवादी लोग निरंतरता के साथ करते हैं और उनका इन पर विचार-विमर्श अघोषित तरीके से चुपचाप चलता रहता है। इसी आधार पर उनकी कुछेक शोध संस्थायें आँकड़ों का विश्लेषण करके अपने राजनैतिक आकाओं को लगातार फीडबैक देते रहते हैं ताकि बहुजन समाज को मनुवादी रणनीति से परास्त किया जा सके। उनका यही कार्यक्रम पिछले पाँच हजार वर्षों से निरंतरता के साथ चल रहा है। ब्राह्मण वर्ग देश की जनसंख्या में सिर्फ तीन प्रतिशत के आसपास है जो विभिन्न राजनैतिक दलों के अध्यक्ष या प्रभारी हैं। यहाँ तक की वामपंथियों के भी अधिकतर नेता ब्राह्मण ही रहे और आज भी है। देश की राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए बहुजनों को सत्ता में लाना होगा समाज के सामाजिक व राजनैतिक दलालों के चलते यह मुश्किल लगता है। आज देश में ब्राह्मणी संस्कृति की कई राजनैतिक पार्टियाँ है परंतु उनमें से कोई भी एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ती।यथासंभव जरूरी संसाधन भी मुहैया कराते हैं। इसके विपरीत बहुजन समाज के सभी राजनैतिक दल मनुवादी सत्ताधारियों के इशारे पर बहुजन समाज के दूसरे राजनैतिक दलों का खुला विरोध करते हैं। बहुजन समाज के सभी सामाजिक व राजनैतिक दलों में स्वार्थ सर्वोपरि है। बहुजन समाज के कथित अम्बेडकरवादियों को दूसरे राजनैतिक दलों के अम्बेडकरवादियों से ही खतरा है। आज देश में अम्बेडकरवाद को कमजोर करने के लिए अम्बेडकरवादी ही जिम्मेदार है और अम्बेडकरवाद को अम्बेडकरवादियों से ही खतरा है।
इन चुनावों में सबसे विस्मयकारी कृत्य यह है कि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती जी मोदी की तरह गंभीर मसलों पर मौन ही रहतीं हैं। वे पूरे चुनाव के दौरान जनता से दूर रहीं और पता नहीं कहाँ छिपी रही। उनकी यह प्रवृति पिछले कई चुनावों से देखी और समझी जा रही है जिससे लगता है कि वह कहीं न कहीं मनुवादियों को मजबूत करने का काम कर रही हैं। वजह कुछ भी हो सकती है यह उनका कैसा अम्बेडकरवाद है? उनको जनता के सामने आकर बताना चाहिए कि इस सबके पीछे क्या रहस्य है? अन्यथा जनता में संदेश यही जा रहा है कि वे मौन रहकर और समाज से छिपकर मनुवादी सत्ताधारियों को फायदा पहुँचा रही है।
जय भीम, जय संविधान
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |