2024-09-14 09:55:06
देश में महापुरुष कहे जाने वाले बहुत सारे व्यक्ति पैदा हुए हैं लेकिन समाज को यह भी जाना चाहिए कि महापुरुष हम किनकों कहें? समाज में भेड़ चाल है, चालाक और षड्यंत्रकारी प्रवृति के लोग किसी भी छदम से छदम व्यक्ति को महापुरुष कहने लगते हैं, बिना यह जाने कि उसमें महापुरुष के कौन-कौन से लक्षण है, समाज को उनसे क्या शिक्षा मिल रही है और समाज में व्याप्त किस बीमारी का उनकी शिक्षाओं से निदान हो रहा है? बहुजन समाज में जन्में बहुत सारे महापुरुषों ने समय-समय पर समाज में व्याप्त अंधकार का विश्लेषण करके सकारात्मक समाधान समाज को दिया है जिसका समाज पर गहरा प्रभाव भी पड़ा और असंख्य लोगों को महापुरुषों के बताये हुए रास्ते पर चलकर लाभ भी हुआ है। उदाहरण के तौर पर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर से पहले महात्मा ज्योतिराव फुले जी ने बहुजन समाज में व्याप्त अंधकार के रोग को गहराई से समझा और उसका विश्लेषण और आंकलन किया, निष्कर्ष निकालने पर उन्होंने पाया कि बहुजन (शूद्र) समाज में व्याप्त सारे रोगों की जड़ उनमें अशिक्षा है। इसी रोग को समझकर महात्मा ज्योतिराव फुले जी ने बहुजनों (शूद्रों) को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और इस पर काम करने के लिए महात्मा ज्योतिराव फुले जी ने अपनी पत्नी माता सावित्रीबाई फुले जी को पहले शिक्षित किया, उन्हें शिक्षिका बनने का आवश्यक परिक्षण भी दिलाया। उन्होंने अपने जीवन काल में करीब 50 स्कूलों की स्थापना की। 1848 में उन्होंने पहला स्कूल पुणे में खोला। जिसमें माता सावित्रीबाई फुले ने समाज के सभी वर्गों की लड़कियों तथा विशेषकर शूद्रों के लिए शिक्षा द्वार खोले। ऐसा करके माता सावित्रीबाई फुले जी ने देश की प्रथम शिक्षिका बनने का गौरव प्राप्त किया। शूद्रों की शिक्षा के अभियान में उन्होंने जो समाज की उपेक्षा और कष्ट झेले वे सभी हिंदुत्ववादी वैचारिकी के जहर के कारण थे। हिंदुत्ववादी जहरीली वैचारिकी के कारण ही समाज के अज्ञान लोग उनके स्कूल जाने के रास्ते पर चलते समय गोबर, कीचड़, कंकर-पत्थर फेंक रहे थे, मगर इतनी सामाजिक उपेक्षा और अपमान सहने पर भी फुले दंपत्ति ने शूद्रों में शिक्षा फैलाने के मिशन से न विचलित हुए और न अपना संकल्प छोड़ा। यह उनका संकल्प दर्शाता है कि और उन्होंने शूद्रों की सभी समस्याओं की जड़ ‘अशिक्षा’ को जाना। जिसे उन्होंने अपने वक्तव्यों में व्यक्त किया है।
‘‘विद्या बिना मति गई,
मति बिना नीति गई,
नीति बिना गति गई,
गति बिना वित्त गया,
वित्त बिना शूद्र गये,
इतने अनर्थ,
एक अविद्या ने किये’’
महात्मा ज्योतिराव फुले जी के अदम्य साहस से चलाये गए शूद्रों में शिक्षा के अभियान से शूद्रों में शिक्षा और जागरूकता शुरू हुई। समाज के नेताओं को मूल रूप से समाज की बीमारियों को पहचाना और जानना चाहिए तभी स्थायी निदान हो पाएगा। महात्मा ज्योतिबा फुले जी के बाद बहुजन समाज में दूसरे महापुरुष बाबा साहेब अम्बेडकर जी पैदा हुए जिन्होंने अपने असीम ज्ञान के बल पर शूद्रों की समस्याओं को बारीकी से समझा और इन सारी बीमारियों का निदान भारत के समाज को समतावादी संविधान देकर किया। तत्कालीन कांग्रेस सरकार से वैचारिक मतभेद होने के बाद भी उन्होंने बहुजन समाज के हित को सर्वोपरि मानकर भारत के संविधान निर्माण की जिम्मेदारी उठाई। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान में विशेष बात यह है कि यहाँ पर बसने वाले सभी नागरिकों को महिलाओं सहित सभी क्षेत्रों में समान अधिकार सुनिश्चित करना है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की इस देश में गहराई तक व्याप्त ब्राह्मणवाद के खिलाफ यह बड़ी क्रांति थी। जिसका यहाँ के तथाकथित ब्राह्मणों ने पुरजोर विरोध किया और जनता में ऐलान भी किया था कि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान को हम नहीं मानते चूंकि इसमें हमारा कुछ भी नहीं है। इस संविधान में हमारे पूर्व के विधान ‘मनुस्मृति’ का कहीं पर भी कोई जिक्र नहीं है। ब्राह्मणवाद के समर्थकों, पंडे-पुजारी व पाखंडी ब्राह्मणवादियों ने पूरे देश में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के संविधान के खिलाफ आंदोलन चलाया, प्रदर्शन किये और देश के भोले-भाले लोगों को संविधान न मानने के लिए प्रेरित भी किया। जैसा आज मोदी-भाजपा व संघी भी कर रहे हैं।
बहुजन समाज में जन्में महापुरुषों ने हमेशा कठिन सामाजिक परिस्थितियों के बावजूद भी समाज में गहराई तक व्याप्त बीमारियों को समझा, उसका बौद्धिक विश्लेषण किया, सकारात्मक निदान सुझाया, और उस पर काम करने के लिए शोषित वर्ग को प्रेरित किया। इसीलिए बहुजन समाज में जन्में महापुरुष सवर्ण समाज में जन्में तथाकथित महापुरुषों से श्रेष्ठ है। चूंकि उन्होंने समाज की विषम परिस्थितियों के बावजूद भी शोषित समाज को असाधारण सहज निदान सुझाए। उन्होंने अपनी शिक्षाओं से समाज को हिंसक नहीं बनाया और न ही उन्होंने अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध हिंसा को बदले के रूप में प्रेरित किया। इस सबका तात्पर्य यह है कि बहुजन समाज के नायकों ने सभी के लिए मानवतावादी काम किया। सभी को समान हक-अधिकार दिलाने की बात की। इसके विपरीत हिंदुत्ववादी विचारधारा से प्रेरित तथाकथित संघी मानसिकता के महापुरुषों ने सिर्फ समाज के कुछेक व्यक्तियों या समूहों को सक्षम व श्रेष्ठ बनाने व मानने की वकालत करते रहे हैं जो प्राकृतिक रूप में अवैज्ञानिक तथा मानवता विरोधी है।
बहुजन समाज के सामाजिक संगठन: बहुजन समाज में अनेक जातीय घटक है जिनमें से कुछेक जाट, गुर्जर, अहीर तो अपने आपको शूद्र (बहुजन समाज) मानते ही नहीं हंै बल्कि वे अपने आपको सवर्ण समाज का अंग रक्षक मानते हैं और इसी मानसिकता के तहत निरंतरता के साथ बहुजन समाज की अति पिछड़ी जातियों के ऊपर प्रताड़नायें व अत्याचार करते हैं। देश में आज बहुजन समाज के साथ जितनी भी अपराधिक घटनाएँ घट रही है उनमें अधिकांश हिस्सा जाट, गुर्जर, अहीर व उन जैसी अन्य समकक्ष जातियों का ही रहता है। आज जो इस देश में जातिवादी मानसिकता के तहत घटनाएँ हो रही हैं उनमें ब्राह्मण नहीं के बराबर है। कथित पिछड़ी जातियाँ ही ऐसी असभ्य, असंवैधानिक घटनाओं को अंजाम दे रहीं है। बहुजन समाज ने हमेशा पिछड़ी जाति के सभी जातीय घटकों को पिछड़ा वर्ग मानकर उनका साथ दिया है और बहुजन महापुरुषों ने सभी पिछड़ी जातियों के लिए न्याय की गुहार लगाई है और उनके लिए देश के सभी संसाधनों, शिक्षण संस्थानों में संख्या के हिसाब से उनकी हिस्सेदारी सुनिश्चित कराने की बात की है। लेकिन अब इन तथाकथित पिछड़ी जातियों के साथ बहुजन समाज न जाने की बात कर रहा है और वह चाहता है कि कुछेक फर्जी कथित पिछड़ी जातियों के साथ मिलकर सामाजिक न्याय के आंदोलन को आगे न बढ़ाया जाये बल्कि इन्हें अलग-थलग करके उनके हाल पर छोड़ देना ही बेहतर होगा। वास्तविकता के आधार पर ये कथित सामंतवादी पिछड़ी जातियाँ ब्राह्मणवादी मानसिकता से बीमार है ये ब्राह्मणों को ही अपने से श्रेष्ठ मानती है इसलिए इन कथित सामंतवादी पिछड़ी जातियों के लोग ब्राह्मणवाद से लड़ने में कमजोर हैं। उनसे किसी भी सामाजिक न्याय की लड़ाई की उम्मीद नहीं की जा सकती।
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