Friday, 15th November 2024
Follow us on
Friday, 15th November 2024
Follow us on

सामाजिक जड़ें मजबूत करे बहुजन समाज

News

2023-04-28 12:10:51

वर्तमान परिदृश्य में विरोधी राजनैतिक दलों के गठबंधन की चर्चा चारों तरफ जोरों पर है। परंतु इस गठबंधन का मुख्य सूत्रधार कौन बनेगा? या कौन अन्य सभी को मान्य होगा यह अभी तक तय होता नहीं दिख रहा है। राजनीति में स्वयं का स्वार्थ हमेशा सर्वोच्च होकर सर्वोपरि रहता है जिसके निर्धारण में तर्क और बुद्धिबल काम नहीं आता। यह सिर्फ चालबाजी और पैंतरेबाजी से ही तय होता है। जिसमें ब्राह्मण वर्ग की मानसिकता अपेक्षाकृत हमेशा अधिक सक्षम रही है। बहुजन वर्ग राजनैतिक पैंतरेबाजी और मौकापरस्त चालाकियों में हमेशा पीछे ही रह जाता है। हाल ही में जो राजनैतिक दलों के गठबंधन की कवायदें चल रही है उनमें बहुजन वर्ग के नेतृत्व की उपस्थिति कहीं पर भी दिखाई नहीं पड़ रही है। यह देखकर नजर आता है कि विभिन्न राजनैतिक दल जैसे-तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, एनसीपी, समाजवादी, जेडीयू, बीजु जनता दल, डीएमके, आरजेडी, लोकदल आदि सभी राजनैतिक पार्टियाँ इस कवायद में जुटी है कि विरोधी राजनैतिक दलों का संघी-भाजपा के विरुद्ध एक सशक्त साझा गठबंधन बनाकर देश की जनता के सामने विकल्प के रूप में पेश किया जाये ताकि संघी-भारतीय जनता पार्टी को लोकहित में देश की सत्ता से दूर किया जा सके। परंतु इस कवायद में बहुजन समाज (एससी+एसटी+ओबीसी+अल्पसंख्यक) जिनकी संख्या देश में करीब 90 प्रतिशत हैं वे गठबंधन के केंद्रीय बिन्दु से नदारद क्यों है? कहने के लिए अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, जयंत का लोकदल, जातीय घटकों के आधार पर बहुजन समाज का ही अंग है। मगर इन सबकी मानसिकता और संस्कृति ब्राह्मणी व सामन्ती भावना से ओत-प्रोत है। जिसकी वजह से समाज के विभिन्न घटकों के मतदाताओं को उनकी आंतरिक भावनात्मक कार्यशैली और एकता के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों पर यकीन नहीं हो पा रहा है। बल्कि अगर यूँ कहा जाये कि इन राजनैतिक दलों की ब्राह्मणी, सामन्तवादी सोच के कारण बहुजन समाज की सरकारें इनके सामाजिक घटकों की जनता द्वारा सत्ता से दूर की जा रही है तो गलत नहीं होगा। मुलायम सिंह के बाद उनके उत्तराधिकारी अखिलेश कुमार यादव की संस्कृति का आंकलन करके देखा जाये तो वहाँ पर ब्राह्मणी संस्कृति का ही बोलबाला दिखता है। वैसे भी मुलायम सिंह के परिवार की संस्कृति ब्राह्मणों की पोषक संस्कृति रही है। मुलायम और अखिलेश के शासन में बहुजन समाज के दलित वर्गों का जितना उत्पीड़न हुआ उतना ब्राह्मणवादी संघी सरकारों में भी नहीं हुआ है। यह दर्शाता है कि अखिलेश को बहुजन समाज के नेतृत्व के लिए अपना मानसिक शुद्धिकरण करना पड़ेगा और उसके अनुसार आचरण करके जनता को दिखाना पड़ेगा। उसने जो पहले मुलायम सिंह व ब्राह्मणी संस्कृति के प्रभाव के कारण गलतियाँ की हैं और दलितों का उत्पीड़न किया है उसके लिए उसे अब बहुजन समाज से माफी मांगनी चाहिए और यह सिर्फ वक्तव्यों में ही नहीं दिखनी चाहिए बल्कि उन्हें खुलेआम यह घोषणा करनी चाहिए कि जो पहले हुआ वह ब्राह्मणी संस्कृति के प्रभाव के कारण हुआ और अब मेरी आँखे खुल गई हैं, मैं अब बहुजन समाज के समक्ष यह प्रतिज्ञा करता हूँ कि भविष्य में अब ऐसी गलियाँ दोबारा नहीं दोहराऊंगा और हर कीमत पर बहुजन समाज को सशक्त बनाकर सत्ता में लाने का अपना अथक प्रयत्न करूँगा। इसी तरह अगर बहन मायावती जी बहुजन समाज का मुद्दा लेकर जनता के बीच जाती है तो उन्हें भी इस प्रकार की प्रतिज्ञा दोहरानी चाहिए कि मैं मान्यवर साहेब कांशीराम जी द्वारा प्रतिपादित प्रजातंत्र के मूल सिद्धांत-‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ के आधार पर बहुजन समाज के विभिन्न घटकों को पार्टी के टिकट वितरण, सरकार के गठन और संगठन स्तर पर ईमानदारी से उचित हिस्सेदारी दूँगी। बहुजन समाज को सशक्त बनाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करूँगी। बहन मायावती जी के वर्तमान में चल रहे वक्तव्यों और कृत्यों से बहुजन समाज के मुख्य घटक ज्यादातर उदासीन दिख रहे हैं उन्हें अपने मुख्य घटकों को साधने के लिए उनके साथ विमर्श के दरवाजे खोलने चाहिए। विमर्श के आधार पर ही आगे की रणनीति तय करनी चाहिए। समाज के नेता का लंबे समय तक चुप व अक्रियाशील रहना नकारात्मक संदेहों को जन्म देता है। इसलिए उन्हें इस स्थिति से जल्द से जल्द बाहर आना चाहिए, उन्होंने अपने चारों तरफ जो राजनैतिक गुलाम व दलाल बैठाये हुए हैं उन्हें तुरंत वहाँ से भगाना चाहिए। बहन मायावती जी के लिए पूरा बहुजन समाज सर्वोच्च व सर्वोपरि होना चाहिए न कि कुछेक स्वार्थी राजनैतिक दलाल।

विपक्षी दलों में स्वार्थ सर्वोपरि: आमतौर पर राजनीति मौकापरस्ती का खेल है। मौका मिलने पर हर दल अपने आप को किसी भी तरह सत्ता में शामिल या स्थापित करना चाहेगा। यही काम आज संघी मोदी-भाजपा सत्ता मशीन और पैसे के बल पर धड़ल्ले से कर रही है। नैतिकता के आधार पर तो यह गलत है लेकिन राजनीति का खेल आज इसे सही मानता है, चूंकि हर राजनीतिक दल का प्रथम और अंतिम लक्ष्य शाम-दाम-दंड-भेद के आधार पर अपने-आपको सत्ता में स्थापित करना है। भारत में वैसे भी ब्राह्मणी संस्कृति की लंबी गुलामी ने समाज की नैतिकता को खत्म कर दिया है। समाज में जब नैतिकता बची ही नहीं है तो वह इसे लाये कहाँ से? समाज का नैतिक बल अधिकांशत: खत्म है सिर्फ वे दल ही भारतीय राजनीति में चमक रहे हैं जो सत्ता, पैसा, ईवीएम के सहारे कुर्सी तक पहुँच रहे हैं। इस तकनीक में संघी भाजपा ही सबसे उपयुक्त व सशक्त बनकर सामने आ रही है। बहुजन समाज इस तरह के छल व कपटी माध्यमों से अतीत से ही कोशों दूर रहा है इसलिए धीरे-धीरे अम्बेडकरवाद की पोषक और मान्यवर साहेब कांशीराम द्वारा स्थापित बहुजन समाज पार्टी अपनी गलतियों के कारण कुर्सी तक नहीं पहुँच पा रही हैं। जिसके कारण इसे अपनी आंतरिक शल्य चिकित्सा करने की सख्त जरूरत है।

सामाजिक गठबंधनों की सार्थकता: भारत वर्ष विभिन्न संप्रदायों व जातीय समूहों का प्रमुख केंद्र है। यहाँ पर सभी जातीय घटक अपने-अपने जातीय घटकों के नेताओं को मजबूत बनाने के लिए काम करते हैं। उसी के कारण बहुजन समाज ने तो बनता है और न मजबूत होता है। मान्यवर साहेब कांशीराम जी जनता के साथ अपने विमर्श व वक्तव्यों में आमतौर पर कहा करते थे कि ‘बहुजन समाज बनता तो है लेकिन टिकता नहीं’। उनका यह कथन समाज की व्यवहारिकता में एकदम सत्य है कि जब बहुजन समाज के जातीय घटकों को तर्क और वास्तविकता के तथ्यों के आधार पर बताया जाता है तो उन्हें तुरंत बात समझ में आ जाती है और वे बहुजन समाज को मजबूत करने के लिए कसमें खाने पर उतारू हो जाते है। परंतु उसके उपरांत यदि कोई ब्राह्मण संस्कृति का नेता उनका दिमाग ब्राह्मणी संस्कृति से धो दे तो वे सिर्फ ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों की बात वे उसे ही श्रेष्ठ मानने लगते हैं। इसका मतलब साफ है कि बहुजनों में संकल्प शक्ति का घोर अभाव है। वे थाली के बैंगन की तरह इधर-उधर भटकते व मटकते रहते हैं और अंतत: सत्ता में ब्राह्मणवादियों को ही बैठा देते हैं।

मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने बहुजन समाज के विभिन्न सामाजिक घटकों के नेताओं की पहचान करके उन्हें राजनीति में लाने की कवायद जमीनी स्तर से की थी और वे अपनी इस मुहिम में कामयाब भी हुए थे। ऐसे नेताओं को समाज में काम करने, चुनाव लड़ने, इत्यादि की शिक्षा भी दी गई थी। जिसके फलस्वरूप बहुजन समाज इकट्ठा हुआ और अपने सामूहिक वोट से सत्ता हासिल की। सत्ता के आधार पर उत्तर प्रदेश जैसे बिगड़ेल जातिवादी प्रदेश का नेतृत्व करते हुए बहजन समाज के महापुरुषों की शिक्षा के आधार पर लोक उपयोगी कार्य किये। बहन मायावती जी उत्तर प्रदेश की चार-चार बार मुख्यमंत्री रहीं। यह कमाल मान्यवर साहेब कांशीराम जी की सामाजिक गठबंधन की युक्ति का ही था। लेकिन कांशीराम जी के चले जाने के बाद बहुजन समाज के सामाजिक गठबंधन अक्रियाशील होकर शून्यता की तरफ बढ़ गये। जिसके कारण बहुजन समाज ने सत्ता की चमक और अपनी शक्ति खो दी। साल दर साल होने वाले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक घटता नजर आया। इसलिए अगर बहुजन समाज को सत्ता की कुर्सी तक पहुँचना है तो सामाजिक संगठनों को विशेष महत्व देकर उन्हें सत्ता में भागीदारी का सपना दिखाना होगा और अपनी सामाजिक जड़े मजबूत करनी पड़ेगी। इसके बिना बहुजन समाज राजनैतिक स्थायित्व प्राप्त नहीं कर सकता।

हम पचास वर्ष पूर्व देखें तो पाते हैं कि उस समय के लोग अपने वरिष्ठों की बातों को सुनते थे, मानते थे और महत्व भी देते थे। मगर आज यह सब जनता के बीच से नदारद है। कोई भी किसी की बात सुनने और मानने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए आज इस जमाने में अपनी बात कहने और मनवाने के लिए वातावरण को ध्यान में रखकर अपनी बात रखनी होगी। बहुजन समाज अधिकतर अपनी रूढ़िवादिता और अदूरदृश्यता में फंसा हुआ नजर आता है। समाज के नेतृत्व को ऐसी अवस्थाओं का आंकलन करके उन्हें एक सटीक समाधान बताना होगा। तभी बहुजन समाज अपनी कारगरता के साथ कार्य कर सकेगा।

बहुजन समाज को साझा घटकों की जरूरत: गैर ब्राह्मण राजनैतिक दलों की जमीनी व्यवहारिकता और सामाजिक संगठनों की यथा-संभव भागीदारी के महत्व को ध्यान में रखकर बृहद विचार के बाद बहुजन समाज के घटकों का निर्बाध गठबंधन बनना चाहिए। यह गठबंधन सारे समाज का हो, जनता में भी इसका यही संदेश पहुँचना चाहिए। गठबंधन किसी एक विशेष समाज के जातीय घटक का न बने उसमें सभी जातीय घटकों की जनसंख्या के आधार पर भागीदारी हो। सभी जातीय घटकों को यह महसूस कराया जाये कि यह गठबंधन आप सभी का है और आप अपना वोट इसी को दें किसी भी बहकावे या छलावे में न आयें। बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को अपनी सामाजिक जड़ों को मजबूत करना होगा तभी कोई राजनैतिक दल सफल हो पायेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने अपने सामाजिक विमर्शों में यह बताया था कि हमें सबसे ज्यादा ध्यान अपनी सामाजिक जड़ें मजबूत करने पर लगाना चाहिए। लेकिन उनका यह संदेश जमीन पर ठीक से नहीं उतर पाया और जिनको मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने अपनी विरासत सौंपी वे अब इस संदेश के अनुसार बहुजन समाज की पृष्ठभूमि से गायब हैं। जिसके कारण समाज का पार्टी से मोहभंग होता दिख रहा है। बहुजन समाज के जागरूक, चिंतन व क्रियाशील विचारकों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि अगर हम इसी तरह उदासहीन होकर बैठे रहेंगे तो अतीत में हमारे महापुरुषों द्वारा किया गया संघर्ष व्यर्थ ही चला जाएगा। हमारी वर्तमान पीढ़ी को इसे गंभीरता से सोचकर लोगों को जागरूक करने की गंभीर कवायद शुरू करनी चाहिए और महापुरुषों के त्याग और बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। इन सब बातों का तात्पर्य यह है कि बहुजन समाज को ब्राह्मणी संस्कृति के नेताओं द्वारा बनाए जा रहे गठबंधनों पर ज्यादा ध्यान न देकर अपने समाज के जातीय घटकों की एकता और उनकी सामाजिक जड़े मजबूत करनी चाहिए।

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05