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सामाजिक एजेंडों को समर्थन दे बहुजन समाज

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2023-05-27 06:45:17

बहुजन समाज का अर्थ है-एससी/एसटी/ओबीसी और अल्पसंख्यक, यहाँ पर अति पिछड़ी जातीय घटकों का अर्थ है-नाई, कुम्हार, गडरिये, बढ़ई, लौहार व अन्य समकक्ष जातियाँ। पिछड़े जातीय घटक में जाट, गुर्जर, अहीर व अन्य जातियाँ भी हैं जो ब्राह्मणी वर्गीकरण के अनुसार शूद्र वर्ण में है। मगर इन जातीय घटकों के पास खेती योग्य जमीन होने के कारण इनके चरित्र में दबंगाई का भाव है और ये अपने आपको अज्ञानतावश उच्च कोटी का हिंदू मानते हैं, जो मिथ्या है और ब्राह्मण उनके इस तर्क से सहमत नहीं है। ब्राह्मणी संस्कृति के लोग समाज में अपनी सर्वोच्चता बनाए रखने के लिए जो दमनकारी षड्यंत्र रचते हैं, उसमें वे इन दबंग जातियों को ही इस्तेमाल करते हैं। ये दबंग जातियाँ दूसरी शूद्र जातियों जैसे-धोबी, चमार, जुलाहे, कोली, धानक, वाल्मीकि, आदि पर अमानवीय अत्याचार करते हैं। ब्राह्मणों द्वारा रचित कथित धर्मग्रंथों में ये सभी दबंग पिछड़ी शूद्र जातियों में वर्गीकृत है, इसलिए ब्राह्मणों द्वारा इन्हें राजा भी नहीं बनाया गया। इन पिछड़ी शूद्र जातियों की स्वकल्पित श्रेष्ठता को हिंदू धर्म ग्रंथ नहीं मानते और समय आने पर इन्हें वे नीच ही मानते हैं। वर्तमान सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए उपरोक्त दबंग जातियों को छोड़कर अन्य सभी शूद्र जातियों को इकट्ठा होकर अपने भाग्य का खुद निर्माण करना चाहिए। किसी अन्य देवी-देवता या भगवान के सहारे नहीं जीना चाहिए। वर्तमान में प्रजातांत्रिक व्यवस्था है जिसमें देश के सभी वयस्क नागरिकों को अपना वोट अपने पसंद के प्रत्याशी को देकर विधायक/सांसद चुनने का अधिकार है और इस तरह चुने गए प्रत्याशी जनता की आवाज बनकर जनता से जुड़े मुद्दे विधान सभा या संसद में उठाते हैं। मगर ऐसा हो नहीं पा रहा है चूंकि जनता अपने सही प्रतिनिधि चुनकर विधान सभा या संसद में नहीं भेज पा रही है। जनता के कथित प्रतिनिधि जनता के एजेंडे पर काम नहीं करते। वे सरकार के एजेंडों पर काम करते हैं इसलिए जनता की किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। वर्तमान समय में जनता के मुद्दे सरकार के मस्तिष्क पटल से गायब है, जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सरकार के एजेंडों के मुताबिक काम करने में व्यस्त है। यही कारण है कि आज भारत में लोकतंत्र परास्त हो रहा है।

बहुजन जनता के सामने अहम मुद्दे होने चाहिए: वर्तमान में ब्राह्मणी संस्कृति की पाखंडवादी सरकार है और यह सरकार जनता को रात-दिन पाखंड परोस रही है। इससे निजात पाने के लिए बहुजन समाज के अग्रणी व बुद्धिमान लोगों को आपसी तालमेल के साथ अपने मुद्दे (एजेंडा) खुद ही तय करने चाहिए। अपने एजेंडे के लिए खुद विचार-विमर्श करें, आपस में मंथन करें और सही मुद्दों को जनता के सामने लायें, जनता को इस बात के लिए तैयार करें कि जो हमारे बताए गए एजेंडों पर काम करने का भरोसा देगा तभी हम उसको अपना प्रतिनिधि चुनेंगे और जो व्यक्ति ब्राह्मणी मानसिकता का होगा और हमारे बताए हुए एजेंडे पर काम करने के लिए तैयार नहीं होगा हम सभी एक मत के साथ उसे चुनाव में हराएंगे। बहुजन समाज का मुख्य एजेंडा होना चाहिए-शिक्षा; स्वास्थ्य; सम्पति; रोजगार; आरक्षण; दलित- मुस्लिम एकता व जनसंख्या के हिसाब से भागीदारी दी जाये। बहुजन समाज को मनुवादियों द्वारा लायी गई नई शिक्षा नीति-2020 से सावधान रहना चाहिए। नई शिक्षा नीति ने बहुजन समाज को मनुवादी षड्यंत्र के तहत शिक्षा से दूर करने का एक सोचा-समझा षड्यंत्र रचा है जिसे बहुजन समाज अज्ञानतावश ठीक से समझ नहीं पा रहा है और मनुवादी सरकारों की हाँ में हाँ मिला रहा है।

शिक्षा का मुद्दा: बाबा साहेब के कथनानुसार ‘शिक्षा शेरनी का वह दूध है जो इसे पियेगा, वही दहाड़ेगा’ शायद इसी दहाड़ को खत्म करने के उद्देश्य से मनुवादियों ने बहुजन समाज को शिक्षा से दूर करने का पूरा इंतजाम नई शिक्षा नीति-2020 से कर दिया है। लेकिन आरक्षित कोटे से चुने गए प्रतिनिधि चुपचाप बैठे हुए हैं। इसके विरुद्ध एक ने भी आवाज नहीं उठाई। सभी ने मौन स्वीकृति दी, यह समाज का दुर्भाग्य है। बहुजन समाज की जागरूक जातियों को इसका संज्ञान लेना चाहिए और समाज को इसके दुष्प्रभावों से अवगत करना चाहिए। किसी बहकावे और राजनैतिक दलालों के झांसे में नहीं फँसना चाहिए। देश में आज एक हजार से ज्यादा विश्वविद्यालय स्तर के शिक्षा संस्थान है, जिनमें बहुजन समाज की भागीदारी नगण्य है। बहुजन समाज की सरकार से माँग है कि देश में जहाँ-जहाँ बहुजन समाज की संख्या अपेक्षाकृत भारी है उन क्षेत्रों में बहुजन समाज के 300-500 विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थान स्थापित किये जायें और इन सभी संस्थानों को ब्राह्मणी पाखंड और उनके कथित देवी-देवताओं व भगवानों से दूर रखना चाहिए। सरकार को ऐसे कार्यों की खुली समीक्षा प्रतिवर्ष जनता के सामने लाकर करनी चाहिए। ये सभी संस्थान अम्बेडकरवादी दर्शन के तहत स्थापित किए जायें और इसी के माध्यम से अम्बेडकर दर्शन को भारत की जमीन पर उतारा जाये। तभी देश में सकारात्मक वैज्ञानिक व मानवतावादी सोच विकसित हो सकती है।

स्वास्थ्य का मुद्दा: मनुष्य का स्वस्थ होना स्वयं और देश के लिए आवश्यक है। जब मनुष्य खुद स्वस्थ होगा तभी उसके श्रम का लाभ खुद को व देश को मिल सकेगा। किसी महापुरूष का कथन है कि ‘सबसे बड़ा सुख निरोगी काया’। निरोगी रहने से ही व्यक्ति का परिवार, आसपास के लोग स्वस्थ रहेंगे और तभी वह दूसरों को मदद कर सकेंगे। आज सरकार का जो रवैया चल रहा है उसमें जनता का स्वास्थ्य प्रमुख एजेंडा नहीं है। आज निजी संस्थानों-दुकानों में स्वास्थ्य के नाम पर भारी लूट है। ब्राह्मणी संस्कृति के डॉक्टर जो करोड़ों का डोनेशन देकर निजी संस्थानों से डॉक्टर बन रहे हैं उनका एकमात्र लक्ष्य पैसा कामना है। उनमें कोई चिकित्सीय विशेषज्ञता भी नहीं है चूंकि वे सिर्फ पैसे के बल पर डॉक्टर बने हैं। ऐसे डॉक्टर बनने वालों में वैश्यों (बनिया) के बच्चों की संख्या अधिक है चूंकि करोड़ों रुपए का डोनेशन देने की क्षमता वैश्यों के पास ही है। अन्य लोग वैश्यों के मुकाबले पैदल ही हैं और वर्तमान समय में उनके लिए स्वास्थ्य सुविधाएँ लेना मुश्किल हो रहा है वे इस स्थिति में नहीं है कि अपना या अपने परिवार के सदस्य का उचित उपचार करा सकें। हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने नागरिकों के लिए 25 लाख तक के इलाज की मुμत सुविधा देने का कानून बनाया है जो एक लोकहित का कदम है और सभी प्रदेशों की सरकारों से अपने-अपने प्रदेशों के नागरिकों को ऐसी सुविधा देने की अपेक्षा की जाती है।

संपत्ति का मुद्दा: बहुजन समाज की सभी जातियाँ शूद्र वर्ग में वर्गीकृत है। मनुवादी धार्मिक विधान में शूद्र, अति-शूद्र और अति-पिछड़ी जातियों को संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था। इसलिए बहुजन समाज की सभी दलित, पिछड़ी व अल्पसंख्यक जातियाँ आज सम्पति विहीन है। उनके पास अपने घर व पशुओं के लिए भी उपयुक्त जमीन नहीं है। इसलिए वे उन लोगों पर आश्रित है जिन लोगों के पास खेती योग्य जमीन है। उनका जमीन के मालिकों पर इस तरह आश्रित रहना उनको अशक्त व गुलाम बनाता है, उनमें गुलामी का भाव भी इसी कमजोरी के कारण है और उनका मनोबल हमेशा कमजोर ही बना रहता है। देश की 40 प्रतिशत संपत्ति एक प्रतिशत लोगों के पास है और बाकी सभी लोग मुश्किल से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। देश की 30 प्रतिशत आबादी प्रतिदिन एक अमेरिकी डॉलर से भी कम कमाती है और इस 30 प्रतिशत जनता को सरकार गरीबी रेखा से नीचे बताकर उनका अपमान करती है। एक डॉलर से कम कमाने वाले का मतलब है उसकी आय करीब 70-80 रुपये प्रतिदिन जिसमें उसे अपने परिवार के चार-पाँच सदस्यों का पालन- पोषण करना होता है। इस तरह का जीवन यापन करना प्रत्येक मनुष्य के लिए दुष्कर है। देश को गरीबी रेखा की नहीं, अमीरी रेखा की जरूरत: सदियों से पनप रही हमारी विषमतावादी आर्थिक नीति को देखते हुए अब सरकारों को गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की लाइन न खींचकर अमीर लोगों की रेखा बनानी चाहिए। आज जनता को उन एक प्रतिशत लोगों की रेखा बतानी चाहिए जिनके पास देश का 40 प्रतिशत धन है। साथ ही सरकार को एक विवेकपूर्ण फैसला करना चाहिए कि जिनके पास एक उचित स्तर से अधिक धन सम्पति है उनको सूचीबद्ध करके जनता को बताना चाहिए कि देश का 80 प्रतिशत धन 10 प्रतिशत लोगों के पास है। देश में इस आर्थिक विषमता का समतलीकरण करने की अधिक आवश्यकता है। इस समतलीकरण प्रक्रिया के दौरान एक उचित स्तर से ऊपर धन रखने वालों का धन सरकारी खजानों में जमा कराया जाये। इस तरह सरकार के खजानों में जमा हुआ धन अमीरी रेखा से नीचे के लोगों के लिए सुरक्षित रखा जाये। इस तरह से इकट्ठा किया हुआ धन गरीब लोगों में मुफ्त में न बांटा जाये बल्कि उन्हें समृद्ध बनाने हेतु इकट्ठा की गई धन राशि से आवश्यक संस्थानों व उद्योगों का निर्माण कराया जाये और इन संस्थानों व उद्योगों में अमीरी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को उनकी योग्यतानुसार रोजगार दिया जाये। उन्हें एक अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए काम देकर आर्थिक रूप से समृद्ध बनाया जाये। देश के मंदिरों में जो अकूत संपत्ति जनता से इकट्ठा है उसे भी इसी तरह से देशहित के काम में लागया जाये।

सेवानिवृतों के लिए रोजगार: आज देश के पास सेवानिवृत हुए लोगों का एक विशाल समूह है जो अपने आपको मनोवैज्ञानिक तौर पर समझ रहा है कि हमने बहुत काम कर लिया। अब हमें आराम करना चाहिए यह भाव नकारात्मक है। ऐसा सोचने वाले लोग समाज के लिए एक अनुपयोगी कचरा है। इस श्रेणी के अधिकतर लोग अपने खाली समय में गली-नालियों, पार्कों के किनारे बैठकर ताश खेलते हैं और अमूमन दारू पार्टी का भी आयोजन करते हैं। इस तरह का समाज अपने पीछे आने वाली पीढ़ी को प्रदूषित कर रहा है और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा भी नहीं दे रहा है। इसका संज्ञान लेते हुए सरकार या सामाजिक समूहों को चीन जैसे देश से सबक लेना चाहिए, चीन में वहाँ की सरकार ने वर्षों पहले एक ऐसे विश्वविद्यालय का निर्माण किया जिसमें सभी श्रेणी के सेवानिवृत लोग अपनी योग्यतानुसार सेवाएं दे सकते हैं सेवानिवृत लोगों को अपने समय में पढ़ने का उचित अवसर न मिला हो और अब उनमें उसे पूरा करने की इच्छा है तो वे अब ऐसे विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर इच्छानुसार उचित शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। जिसके उपरांत वे भी शिक्षा देने में योगदान दे सकते हैं। इस तरह की व्यवस्था इस देश के लिए बहुत ही उपयोगी कदम हो सकता है। यह कार्य ब्राह्मणवादी सरकारें नहीं करेंगी इस कार्य के लिए बहुजन समाज को ही आगे आकर व्यवस्था करनी चाहिए। चूंकि उनके सामाजिक घटकों को इसकी अधिक जरूरत है, मनुवादियों का तो पहले से ही देश के संसाधनों पर उनकी आबादी से अधिक कब्जा है। ये ही लोग बहुजन समाज के आरक्षण व अधिकारों का विरोध करके देश में एक निराधार अपवाह खड़ी करके सत्ता हासिल करना चाहते हैं। बहुजन समाज को वोट कटवा व बाँटने वाले दलों से भी सावधान रहना चाहिए।

अपने एजेंडे के अनुसार दें अपना वोट।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05