2024-08-30 12:15:15
किसी भी संस्था या संगठन के लिए यह आवश्यक है कि संस्था के लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक सक्षम नेता होना चाहिए, बिना सक्षम नेता के संस्था या संस्थान अपने लक्ष्य प्राप्ति के उद्देश्यों से भटक सकता है। इसलिए सभी सामाजिक संगठनों के निर्माण के वक्त संस्था से जुड़े प्रारम्भिक प्रबुद्ध लोग संस्था के उद्देश्यों को लिखित रूप में जनता के सामने रखकर, गंभीर विचार-विमर्श के बाद तय करते हैं। संस्था से जुड़े सभी लोगों को उसकी पूरी जानकारी भी देनी चाहिए। इस प्रक्रिया में एक से अधिक बार विचार-विमर्श करके संस्था के उद्देश्यों में पूर्ण स्पष्टता लायी जाती है। जिस पर संस्था से जुड़े सभी लोग अपनी सहमति व्यक्त करते हैं। संस्था किसी व्यक्ति विशेष से जुड़े उद्देश्यों के हित के लिए नहीं बनायी जाती है। संस्था का कोर उद्देश्य सामाजिक हित होता है व्यक्ति विशेष या क्षेत्र का नहीं होता है।
बहुजन समाज के नेताओं की स्थिति: वर्तमान में बहुजन समाज के नेताओं की कार्यशैली के कारण समाज अपने आपको चौहराहे पर खड़ा पा रहा है। नेताओं की कथनी और करनी में तालमेल नहीं है। जिस उद्देश्य के लिए व्यक्ति संगठन या पार्टी से जुड़ते है अधिकतर लोगों को पार्टी या संस्था के उद्देश्यों का पता भी नहीं होता है। उद्देश्यों का पता न होने का कारण सदस्यों में अपने स्वार्थ की सर्वोपरियता और जिज्ञासा की कमी दिखती है। स्वार्थ सर्वोपरीयता के कारण ही नेताओं की आँखे और बुद्धि दोनों बंद रहते हैं। वे अपने स्वार्थ के आगे कुछ भी सोचने और समझने की शक्ति नहीं रखते। बहुजन समाज के सभी सामाजिक और राजनैतिक संगठन इसी स्वार्थ के वशीभूत होकर सामाजिक और राजनीतिक रूप से बीमार है। आज सभी नेता अपने समाज के हित के लिए काम नहीं करते वे अधिकतर ब्राह्मणवादी आकाओं के लिए काम करते हैं और उनके इशारे पर ही उनकी खुशी के लिए आगे बढ़ते हैं। ऐसे नेताओं को न समाज का पता है और न समाज की आवश्यकताओं का पता है, न ही ऐसे नेताओं में किसी भी सामाजिक बीमारी का समाधान सुझाने की क्षमता होती है।
वर्तमान परिपेक्ष्य में सक्षम नेताओं की आवश्यकता: वर्तमान में समाज के पास सक्षम नेताओं की घोर कमी है। पूरा समाज आज अपने आपको चौराहे पर खड़ा पा रहा है। समाज की यह स्थिति नेताओं के स्वार्थ की सर्वोपरियता के कारण बनी है। आज समाज के अधिकांश व्यक्तियों के पास न स्पष्ट उद्देश्य है और न ही उद्देश्य पूर्ति के लिए उनके पास न कोई समाधान है। समाज के सभी राजनेताओं की आंतरिक भावना में समाज को आँख बंद करके अपने पीछे चलाने की प्रबल इच्छा है। ऐसे नेताओं में समाज के लिए कोई भी काम करने की न क्षमता है न दूरदृष्टि है और न उनमें समाज के लिए संघर्ष करने का माद्दा है। पूरानी संसद के प्रांगण से बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा को चुपचाप चोरों की तरह संघी सरकार द्वारा 3-4 जून 2024 की रात को विस्थापित कर दिया गया। इस घटना को लेकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों में बहुत आक्रोश पैदा हुआ है और प्रतिमा विस्थापन को लेकर 26 जून 2024 को एक सांकेतिक प्रदर्शन जंतर-मंतर पर किया गया था जिसका सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया और न ही समाज को कोई आश्वासन दिया। इसके उपरांत 9 अगस्त 2024 को एक बड़ा प्रदर्शन जंतर-मंतर पर किया गया। जिसमें बाबा साहेब के अनुयायियों की स्पष्ट माँग थी कि बाबा साहेब की प्रतिमा जहाँ से हटाई गई है उस प्रतिमा को उसी स्थान पर बिना विलंभ वहीं पर लगाया जाये। 9 अगस्त के आंदोलन में बाबा साहेब के अनुयायियों ने लाखों की संख्या में भाग लिया। देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्षों को लिखित ज्ञापन सौंपे। लेकिन अभी तक उपरोक्त व्यक्तियों ने इसका संज्ञान लेकर बाबा साहेब के अनुयायियों को कोई जवाब नहीं दिया है। 9 अगस्त के दिन आक्रोशित अम्बेडकरवादियों ने मोदी संघी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा संसद में उसी स्थान पर नहीं लगी तो वह 14 अक्टूबर 2024 को देशव्यापी आंदोलन करेंगें और उसमें सभी बाबा साहेब के अनुयायी हिन्दू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लेंगे। अनुयायियों का तो यहां तक कहना था कि वे बाबा साहेब के लिए धर्म ही नहीं जान भी गंवाने को तैयार है।
बहुजन नेताओं की मानसिकता में खोट: बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा विस्थापन के मुद्दे पर समाज से जुड़ी हुई किसी भी राजनैतिक पार्टी ने प्रतिमा विस्थापन के अपराध का संज्ञान लेकर आगे आने की पहल नहीं की है। जबकि यह बहुजन समाज के मान-सम्मान से जुड़ा मुद्दा है। बहुजन समाज को इस मुद्दे को अपनी मानहानि और अस्मिता से जोड़कर देखना चाहिए। समाज के मन में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठ रहा है कि 14 अप्रैल बाबा साहेब की जन्म जयंती के अवसर पर देशभर से लाखों देशवासी वहाँ जाकर अपने श्रद्धासुमन वर्षों से अर्पित करते आ रहे हैं और साथ ही 6 दिसम्बर बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस पर भी वहाँ पर हजारों की संख्या में अम्बेडकरवादी लोग संसद भवन में बाबा साहेब की प्रतिमा पर जाकर 1967 से लगातार पुष्पांजलि अर्पित करते आ रहे हैं। दिन-प्रतिदिन बाबा साहेब के चाहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है जिसे देखकर शायद मनुवादी सरकारें भयभीत है। वे अंदर से नहीं चाहती कि भारतीय जनता में अम्बेडकरवाद के प्रति श्रद्धा बढ़े। मनुवादी-ब्राह्मणी सरकारें तो अम्बेडकरवाद को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानती है। बाबा साहेब के मिशन को जनता से ओझल करने के लिए संघी मानसिकता की सरकारें अपने छिपे कार्यक्रम अदृश्य तरीके से चलाती रहती है। बहुजन समाज को लगता है कि जनता में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के मिशन को बढ़ता हुआ देखकर संघी भाजपा भयभीत है। इसलिए संघी मानसिकता की सरकार अम्बेडकरवाद को इस देश में स्थापित नहीं होने देना चाहती। अम्बेडकरवाद और संघी मिशन में वैचारिकी स्तर पर छत्तीस का आंकड़ा है। सौ वर्ष के अथक परिश्रम से संघी मानसिकता के लोगों की सरकार केंद्र और कुछेक राज्यों में स्थापित हो पाई है। वे अब उसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते और देश में वैज्ञानिकता को पनपने भी नहीं देना चाहते। संघियों की मानसिकता में मनुवाद और जातिवाद है जो समाज को अधिकांशत: बाँटकर रखने के लिए काम करते हैं और दलितों, आदिवासियों, अति पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों व देश की सभी महिलाओं को मनुस्मृति के आधार पर अधिकार नहीं देना चाहती। अपनी इसी स्वार्थ सिद्धि के लिए मनुवादी सरकारें भिन्न-भिन्न छलावों की रचना हर दिन करते रहते है और समाज में उसका प्रचार-प्रसार भी करते रहते हैं।
नेताओं में क्या गुण होने चाहिए? नेता बनने के लिए हर मनुष्य में कुछ आवश्यक लक्षण जरूरी है। जैसे नेता बनने वाले व्यक्ति के पास समाज में काम करने के लिए एक मजबूत लक्ष्य होना चाहिए, नेता बनने की चाह रखने वाला व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से परे सोचने की क्षमता रखता हो; नेता बनने वाला व्यक्ति साहसी, ईमानदार व जागरूक हो; उसमें करुणा, सम्मान, और परिस्थिति के मुताबिक लचीलापन भी हो; नेता में समाज हित की दूरदृष्टि, सीखने की प्रवृति, कृतज्ञता और समाज के लोगों को निरंतरता के साथ लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रेरित करने की क्षमता हो; लोगों को सुनने की क्षमता हो, निर्णायक सोच और लोगों के प्रति जवाबदेही हो। नेता बनने वाले व्यक्ति में जनता के दर्द और उसकी जरूरत को समझने की क्षमता हो, नेता बनने वाला व्यक्ति जनता में भरोसा कायम करने का लक्ष्य रखता हो; जनता के दर्द और पीड़ा को देकर उसमें करुणा का भाव व तुरंत खड़े होकर संघर्ष करने की क्षमता हो। नेता बनने वाला व्यक्ति आया राम-गया राम की प्रवृति से मुक्त हो। आज के परिदृश्य में उपरोक्त सभी गुण बहुजन समाज के किसी भी नेता में देखने को नहीं मिलते हैं और न ही उनमें जनता के लिए काम करने की भावना है। ऐसी परिस्थिति और समाज के तथाकथित नेताओं को देखकर मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने कहा था कि बहुजन समाज को बने-बनाये, घिसे-पीटे स्वार्थ से परिपूर्ण नेताओं की जरूरत नहीं है, हमें अपने नेता समाज से पैदा करने चाहिए और उन्होंने इसी सिद्धांत को अपनाकर बहुजन समाज पार्टी में नए-नए व्यक्तियों को लाकर उन्हें चुनाव का प्रशिक्षण देकर बहुजन समाज में नेता बनाये। ऐसे लोगों को ही मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने चुनाव में उतारकर अपनी ताकत के बल पर जीतना भी सिखाया और जनता के लिए सभी समस्याओं के प्रति संघर्षरत रहना भी सिखाया। लेकिन मान्यवर साहेब कांशीराम जी के परिनिर्वाण के बाद आज बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो बहन मायावती जी ने ऐसी हालत कर दी है कि पूरे देश में एक भी अम्बेडकरवादी व्यक्ति जीतना नहीं चाहिए।
इसलिए समाज के प्रबुद्धजनों से निवेदन है कि समाज से जुड़े हुए नेताओं को अच्छी तरह से जांचे-परखें और उनमें समाज के लिए अगर कोई उपयोगिता नजर आये तभी उनका समर्थन करें अन्यथा बहुजन समाज विरोधी बीमारी से ग्रस्त नेताओं का समाज हित में तुरंत त्याग करें।
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |