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सनातन की आड़ में मनुवादियों का सीजेआई पर षड्यंत्रकारी हमला

News

2025-10-11 17:24:18

भारत के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश की अदालत में राकेश किशोर नाम के वकील ने अपने एक्शन में दर्शाया कि वह अपना जूता सीजेआई की तरफ उछालने वाला है। इस घटना के पीछे मनुवादी-संघियों का एक गहरा षड्यंत्र नजर आता है, एक बौद्ध सीजेआई के ऊपर जूता उछालना विश्वजगत को यह दिखाना है कि भारत के फर्जी हिन्दुत्ववादी मानसिकता के आतंकवादी लोग सनातन की आड़ लेकर देश के बड़े से बड़े संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को भी बेज्जत कर सकते हैं। दूसरा, फर्जी हिन्दुत्व के आतंकवादी लोग देश की भोली-भाली, न्यायप्रिय जनता में एक डर पैदा करना चाहते हैं कि जब एक मामूली आतंकी मानसिकता का वकील ऐसा कर सकता है तो हम इस पूरे देश के दबे-पिछड़े दलितों और अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार करके उनमें डर निहित क्यों नहीं कर सकते?

भारत की जनता से हम नम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं कि भगवान बुद्ध को मानने वाले लोग सिर्फ भारत व कुछेक अन्य देशों में ही नहीं है। बुद्ध धम्म को मानने वालों की संख्या सनातन के पाखंडियों की संख्या से विश्व में कई गुना ज्यादा है। विश्व के कई देशों जैसे श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, चीन, कोरिया, कम्बोडिया, नेपाल आदि अनेक देशों में बुद्ध धम्म का शासन है। वैश्विक रुझान को देखते हुए अब नजर आने लगा है कि बुद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार यूरोप व अमेरिका की तरफ भी बढ़ रहा है और वहाँ पर बड़ी संख्या में लोग बुद्ध धम्म की तरफ आकृषित हो रहे हैं।

मनुवादियों-संघियों का उद्देश्य है कि देश की जनता में हिन्दुत्व का भय पैदा कैसे किया जाये? हिन्दुत्व की वैचारिकी वाले आतंकवादियों को हम बता देना चाहते हैं कि बुद्ध का एक संदेश है कि ‘बैर से बैर नहीं घटता, बल्कि बैर से बैर बढ़ता है।’ इस घटना के बाद देश का मनुवादी मीडिया यही दिखाने की कोशिश कर रहा है कि मुख्य न्यायाधीश के ऊपर जूता उछाला गया या फेंका गया जो साक्ष्यविहीन है।

सनातन शब्द हिन्दुत्व का नहीं है, यह बौद्ध संस्कृति का शब्द है। बुद्ध ने अपने एक उपदेश में ‘न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं। अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो॥’ अर्थात बुराई से बुराई कभी खत्म नहीं होती, घृणा को तो केवल प्रेम से ही समाप्त किया जा सकता है, यह शाश्वत सत्य है। इस प्रकार सनानत शब्द हिन्दुत्व की वैचारिकी का शब्द नहीं है चूंकि जिन ग्रन्थों को हिन्दू कहे जाने वाले लोग इन्हें पवित्र ग्रंथ मानते हैं उनमें न हिन्दू शब्द मिलता है और न सनातन शब्द मिलता है। इस प्रकार हिन्दुत्व की शब्दावली समय-समय पर मौके और उनमें छिपे स्वार्थ के अनुसार बदलती रही है।

गैर हिन्दूओं के मस्तिष्क में डर बैठाने की साजिश: देश के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश के न्यायालय में ऐसा निंदनीय प्रदर्शन करना हिन्दुत्व की वैचारिकी की नीचता को प्रदर्शित करता है। आज की जनता तथ्यों और तर्कों पर आधारित विश्वास करके सब समझने लगी है कि हिन्दुत्व की सारी कपोल कल्पित घटनाएँ, पौराणिक कथाएँ व इनके द्वारा प्रदर्शित किए जा रहे काल्पनिक भगवान व देवियां सिर्फ देश की भोली-भाली जनता को ठगने का माध्यम है। हिन्दुत्व की शब्दावली में वर्णित कथाएँ आज के पढ़े-लिखे जागरूक लोगों की समझ से परे है। जिसे देखकर मनुवादी संघी ब्राह्मणों को अब डर सताने लगा है कि अगर हमारी कपोल कल्पित पौराणिक कथाओं पर से जनता का विश्वास उठ गया तो मंदिर में बैठे पुजारियों, सत्संगकर्ताओं, बाबाओं, का धंधा चौपट हो जाएगा। फिर हम इस देश की भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाकर लंबे समय तक सत्ता में नहीं रह सकेंगे।

हिन्दुत्व की वैचारिकी की उम्र सौ वर्ष से भी कम: जिस प्रकार से देश की शासन सत्ता लफरझंडिसों को पाखंडी धर्म का चोला पहनाकर शक्ति दे रही है, उसका जीवन लंबा होने वाला नहीं है। विश्वभर में वे ही मान्यताएँ, परम्पराएँ अधिक समय तक जिंदा रह सकती हैं जिनमें वैज्ञानिकता है, वहाँ की जनता में वैज्ञानिक सोच, तार्किक सत्यता है, वहाँ की जनता शोध और तकनीकी ज्ञान को बढ़ावा दे रही है। देश की जनसंख्या विश्वभर में आज सबसे अधिक हो चुकी है। लेकिन इस देश की जागरूक जनता को यह भी समझना होगा कि करीब 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या में बौद्धिक व जागरूक जनता का कितना हिस्सा है? इस सत्य को सरल रूप में समझने के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले वैज्ञानिकों की संख्या से समझा जा सकता है कि मेडिसन का नोबल पुरस्कार तीन वैज्ञानिकों ने ‘इम्यून शैल’ के हमले रोकने वाली टी-सेल खोजी है। शरीर की टी-सेल तय करते हैं कि ‘इम्यून शैल’ हमारे अंगों पर हमला न करे। मेडिसन में इस 2025 के नोबल पुरस्कार की घोषणा सोमवार को हुई जिनमें तीनों वैज्ञानिकों के नाम है-मैरी ई ब्रको, शिमोन साकागुची और फ्रेड राम्सडेल। मैरी ई ब्रको अमेरिकी वैज्ञानिक का जीन के काम पर रिसर्च, शिमोन साकागुची जापानी वैज्ञानिक टी-सेल की वैज्ञानिक खोज के लिए मशहूर, फ्रेड राम्सडेल अमेरिकी वैज्ञानिक, इम्यून सिस्टम के एक्सपर्ट। ये तीनों वैज्ञानिक अमेरिका और जापान से हैं। जहां पर वैज्ञानिक और तकनीकी शोध को प्राथमिकता दी जाती है और उनके देश उसी आधार पर सम्पन्न और शक्तिशाली बनने का प्रदर्शन करते हैं। भारत के अधिकतर लोगों की मानसिकता में अतार्किकता और अंधविश्वास, गाय, गोबर, भगवाकरण आधारित पाखंड भरी बातें इतनी गहराई तक भर दी गई है कि अब उनमें शोध और तकनीकी क्षेत्र में काम करने की क्षमता मनुवादी मानसिकता के लोगों ने छोड़ी ही नहीं है।

भारत में घट रही वैज्ञानिक और तकनीकी शोध क्षमता: भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। उस वक्त के राजनैतिक नेताओं ने देश में एक मजबूत वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों की नींव रखी थी जो कमोवेश 1990 के दशक तक कायम रही। उस वक्त के सभी प्रधानमंत्रियों ने वैज्ञानिक और तकनीकी शोध के आधार को मजबूत किया और देश को आगे बढ़ाने के प्रयास भी किए। लेकिन उसके बाद की सरकारों ने देश के शिक्षण व शोध संस्थानों में मनुवादी संघियों की घुसपैठ कराई। ये मनुवादी संघी मानसिकता के लोग शिक्षा, वैज्ञानिक सोच और शोध के चिरकाल से ही घोर विरोधी है। मूलत: संघी मनुवादी लोग देश की अधिकांश जनता को अशिक्षित और अवैज्ञानिक बनाना चाहते हैं। उनकी सोच का आधार है कि देश के कम-से-कम लोग ही शिक्षित बनें और व्यापार आदि करके धनवान बनें, बाकि देश की सारी जनता गरीब और असहाय बनी रहे। ऐसी स्थिति में ही देश की अधिकांश जनता मनुवादी-संघियों को वोट देकर सत्ता में निरंतरता के साथ बनाए रखेगी।

सीजेआई जूता उछालने से हैरान था, परंतु अब वह बीता हुआ अध्याय: भारत के चीफ जस्टिस बीआर गवई ने गुरुवार को कहा कि वे और जस्टिस के. विनोद चंद्रन उस समय स्तब्ध रह गए थे जब सोमवार को एक वकील ने उनपर जूता फैंकने की कोशिश की, लेकिन अब यह मुद्दा एक भुलाया हुआ अध्याय है। मुख्य न्यायधीश ने यह टिप्पणी एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान की। हालांकि बेंच में शामिल जस्टिस उज्ज्वल भुईंया ने दोषी वकील के खिलाफ की गई कार्रवाही से असहमति जताई और कहा यह घटना सुप्रीम कोर्ट का अपमान है। जिसपर उचित कार्रवाही की जानी चाहिए। सॉलिसीटर जरनल तुषार मेहता ने कहा, आरोपी वकील को माफ नहीं किया जा सकता। महाराष्ट्र के ठाणे में अम्बेडकरवादी संगठनों ने घटना को न्यायपालिका का अपमान और संविधान पर हमला बताते हुए गुरुवार को प्रदर्शन किया। इसके साथ ही आरोपी वकील किशोर पर सख्त कार्रवाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने ठाणे नगर और महाराष्ट्र के कई अन्य शहरों में इस घटना को लेकर प्रदर्शन हुए और उन्होंने मांग की कि ऐसे ब्राह्मणवादी, पाखंडी वकीलों के विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया जाये।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोशिएशन ने इस प्रकरण में शामिल वकील राकेश किशोर को गंभीर कदाचार का दोषी मानते हुए उसकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से खत्म कर दी है। सुप्रीम कोर्ट की बार एसोशिएसन ने वकील राकेश किशोर के व्यवहार को निंदनीय, अव्यवस्थित, असंयमित, न्याय स्वतंत्रता पर हमला, पेशेवर नैतिकता, शिष्टाचार और सर्वोच्च अदालत की गरिमा का गंभीर उल्लंघन बताया।

मोदी सरकार में शामिल केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि इस प्रकरण में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज हो। बहुजन समाज के सभी सामाजिक संगठन आज 75 वर्षों के बाद भी एससी/एसटी समुदाय की प्रगति को लेकर मानसिक रूप से पूरी तरह से बीमार हैं। बहुजन समाज से आने वाले सीजेआई बीआर गवई है, उनकी प्रगति को देखकर देश में रह रहे मनुवादी-संघी मानसिकता के लोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं जो संविधान का सबसे का और सभी बहुजन समाज के जातीय घटकों का अपमान है। आज 75 वर्षों के बाद भी ब्राह्मणवादी मानसिकता के जहरीले नाग दलितों, अति पिछड़ी जातियों और मुस्लिम समुदाय से आने वाले व्यक्तियों के खिलाफ मनुवादी षड्यंत्र हर रोज रच रहे हैं।

सीजेआई गवई एक बौद्ध न्यायधीश: भारत का प्राचीन इतिहास बताता है कि मनुवादी बौद्धों के कट्टर शत्रु हैं। भारत में मनुवाद और ब्राह्मणवाद से पहले बौद्ध धम्म सर्वोपरि था। उस समय भारत में विश्व के प्रसिद्ध विश्वविद्यायल नालंदा, तक्षशिला, औदांतपुरी आदि में पढ़ने के लिए विश्वभर से हजारों की संख्या में विद्यार्थी आते थे तब यह देश वास्तव में विश्वगुरु था। आज जिसको छलावामयी प्रचार और झूठ से विश्वगुरु बताया जा रहा है वह संघी मानसिकता अज्ञान और मानवता की विरोधी है। जिसे छल-कपट से भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया है तभी से यह व्यक्ति देश के शिक्षण व शोध संस्थानों में भगवाकरण को घुसाने के लिए प्रयास कर रहा है। देश के इतिहास को बदला जा रहा है, देश के शहरों, कस्बों, गलियों आदि के नाम भी बदले जा रहे हैं। देश के विकास के लिए कुछ भी वैज्ञानिक शोध और तकनीकी शोध संस्कृति को नहीं बढ़ाया जा रहा है। बल्कि जो शिक्षण संस्थान इस दिशा में पहले से काम कर रहे थे उनको आवश्यक संसाधन मुहैया न कराकर कमजोर किया जा रहा है। यह सिद्ध करता है कि वर्तमान मनुवादी संघी शासन देश को अंधकार युग में धकेल रहा है। देश के नौजवानों के पास न रोजगार है, न अच्छी शिक्षा, ऊपर से महंगाई की मार है। नई शिक्षा नीति-2020 लाकर देश की शिक्षा को इतना महंगा कर दिया गया है कि वह देश के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्र स्वंय ही शिक्षा से बाहर हो जाएँगे।

सीजेआई की कोर्ट में जूता उछालने का प्रदर्शन सीजेआई पर हमला नहीं बल्कि यह देशभर के जागरूक लोगों, संविधान और देश के तमाम बुद्धिजीवियों और बहुजन समाज की अस्मिता पर हमला है। वर्तमान समय में देश की जनता दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक विशेष रूप से आहत है चूंकि आज जो उत्पीड़न के मनुवादी हमले हो रहे हैं वे इन्हीं सामाजिक समुदायों के साथ अधिक हो रहे हैं। जिसमें मनुवादियों-संघियों का छिपा षड्यंत्र है कि इस समुदाय को अधिक से अधिक डराकर रखा जाए और इन वर्गों व देशभर की महिलाओं को मनुस्मृति के अनुसार जीवन जीना सिखाया जाये। मनुस्मृति को मनुवादी संघी लोग अपना धार्मिक ग्रंथ मानते हैं और हर रोज खुलेआम संविधान का उल्लंघन करते है और मनुस्मृति का गुणगान करते हैं। जनता को ऐसी मानसिकता की सरकारों को एक दिन भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए और जितना जल्दी हो सके उन्हें उखाड़ फेंक देना चाहिए।

बहुजन समाज के जातीय घटकों की अपील: बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने हम सभी के उत्थान व प्रगति के लिए देश को संविधान सत्ता सौंपी थी। उनका मन्तव्य था कि संविधान के तहत भारतीय सामाजिक व्यवस्था को सुधारा जा सकता है मगर उन्होंने संविधान सभा में एक चेतावनी भी दी थी कि-‘संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो यदि उसको अमल में लाने वाले लोग बुरे हैं तो वह बुरा ही साबित होगा और यदि संविधान चाहे कितना भी बुरा क्यों न हो उसको अमल में लाने वाले लोग अच्छे हैं तो वह अच्छा ही साबित होगा।’ सुप्रीम कोर्ट की यह घटना मनुवादी संघियों की मानसिकता को स्पष्टता के साथ उजागर करती है और सभी बहुजन जातीय घटकों को यह बताने के लिए पर्याप्त है कि संघी-मनुवादी मानसिकता के लोगों में मनुस्मृति की क्रूर अपराधिक व्यवस्था समाहित है। इसलिए मनुवादी संघी व्यवस्था को एक मिनट भी देश की सत्ता में स्थापित नहीं रहने देना चाहिए। इसके साथ ही हम यह भी अपील करते हैं कि हालही में जो बिहार विधान सभा के चुनाव होने हैं उसमें मोदी-भाजपा और उनके संघी साथी व अन्य पिछड़ी जातियों से संबंध रखने वाले, जिन्हें वे एनडीए कह रहे हैं, इस चुनाव में उनके किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए काम न करें। जो राजनैतिक दल (बीएसपी सहित) उन्हें वोट देने की बात करते हैं असल मायने में वे मनुवादियों संघियों के राजनैतिक दलाल हैं, उन्हें पूरी तरह से नकारा जाये।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

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