2024-06-28 13:29:03
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा संसद भवन के परिसर में भारत की सरकार ने नहीं लगाई थी बल्कि इस प्रतिमा को संसद भवन के परिसर में स्थापित कराने के लिए अम्बेडकरवादियों ने तीन साल तक कड़ा संघर्ष व आंदोलन किया था। इस संघर्ष में करीब 3 लाख 60 हजार लोग रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया के नेता बुद्धप्रिय मौर्य जी के नेतृत्व में जेल गए थे। उन्होंने पुलिस व सरकार की बहुत सारी प्रताड़नाएं भी झेली थी तब जाकर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की यह प्रतिमा संसद भवन परिसर में लगी थी। संसद परिसर में प्रतिमा का स्थान चुनने के लिए एक कमेटी भी बनी थी जिसमें उस समय के रिपब्लिकन नेता बी.पी. मौर्य जी भी एक सदस्य थे। शिल्पकारों ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा के तीन मॉडल बनाकर पेश किये थे जिसमें से एक मॉडल रिपब्लिकन पार्टी के नेता मान्यवर बुद्धप्रिय मौर्य जी व उनके साथियों ने चुनकर पसंद की थी। यह प्रतिमा 2 अप्रैल 1967 को संसद भवन के परिसर में लगाई गई थी। जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन ने किया था।
1967 तक बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के जागरूक अनुयायी की संख्या काफी हो चुकी थी। उन सभी ने बाबा साहेब की प्रतिमा की स्थापना के लिए समाज से चंदा इकट्ठा किया था। वर्तमान मनुवादी-संघी सरकार या उनके अंधभक्त यह न सोचे की इस प्रतिमा की स्थापना सरकारी धन से की गई थी। वर्तमान समय में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों की संख्या 1964-65-66 और 1967 के मुकाबले काफी अधिक बढ़ चुकी है जिनकी संख्या अब देश की कुल आबादी में 70% से भी अधिक हो सकती है। चूंकि हिंदुत्व के तथाकथित धर्मशास्त्र मनुस्मृति में देश की आधी आबादी (महिलाओं) को कोई भी अधिकार नहीं थे। महिलाओं को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था, सभी वर्णों की महिलाएँ स्वतंत्र नहीं थी, उन्हें बोलने का अधिकार भी नहीं था। मनुस्मृति में महिलाओं के लिए जितनी अनर्गल बातें लिखी गई है उन्हें आज सभ्य समाज के लोग पढ़कर और सुनकर शर्मसार होते हैं। शर्म से उनका सिर नीचे हो जाता है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान में महिलाओं के लिए अधिकार पुरुषों के बराबर है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने महिलाओं को पुरुषों से कम नहीं आंका है। उन्होंने अपने एक वक्तव्य में कहा भी है कि ‘किसी समाज की प्रगति मैं उस समाज में महिलाओं की प्रगति से आँकता हूँ’ यह दर्शाता है कि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का सामाजिक दर्शन किसी वर्ग विशेष या जाति विशेष के लिए नहीं था। उनका दर्शन भारत के सभी नागरिकों के लिए था। जिसकी झलक बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित भारतीय संविधान में मिलती है।
सम्मान की लड़ाई में एकजुट हुआ बहुजन समाज: 26 जून 2024 को जंतर मंतर, दिल्ली पर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की प्रतिमा विस्थापित करने के विरोध में बाबा साहेब के अनुयायियों ने एक विशाल सांकेतिक विरोध प्रदर्शन किया। जहाँ पर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों की काफी भारी भीड़ जुटी और वहाँ पर सामाजिक और राजनैतिक नेताओं ने बाबा साहेब के सम्मान में यह संकल्प लिया कि मनुवादी और ब्राह्मणी संस्कृति की सरकारों द्वारा बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का जो अपमान किया जा रहा है उसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। साथ में यह भी कहा कि अब समाज मनुवादी-ब्राह्मणी संस्कृति के छलावों को पूरी तरह जान चुका है और वह अब इन संघी छलावों में नहीं फँसेगा और न ही हिंदुत्व के एजेंडे के साथ खड़ा होगा। बाबा साहेब के अनुयायी आज ब्राह्मणी संस्कृति के षड्यंत्रों को अच्छी तरह से समझने में सक्षम है। अब बहुजन समाज की अत्यंत पिछड़ी जातियों के जातीय घटकों के नौजवान उनके मनुवादी प्रपंची हिंदुत्ववादी आयोजनों, कथाओं, सत्संगों आदि में कम जा रहे हैं। जिसे देखकर संघी मानसिकता के ब्राह्मणवादी लोग इस बात से चिंतित है और वे इन अत्यंत पिछड़ी जातीय घटकों को अपने जाल में फंसाये रखने के लिए हर रोज नए-नए तरीके इजाद कर रहे हैं। उधर इन सब चालों को बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायी भी भली-भांति समझ रहे हैं और ब्राह्मणवादियों के बुने हुए किसी भी जाल में नहीं फंस रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन के शुरूआत के एक घंटे में बहुजन समाज के (एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक) जातीय घटकों के दो मंच लगे थे। एक की अगुआई समता सैनिक दल के वॉलेंटियर (सैनिक) कर रहे थे और दूसरे मंच की अगुआई उदित राज के कुछेक समर्थक कर रहे थे। एक घंटे के करीब यह आंदोलन दो खेमों में बंटकर चला लेकिन 11 बजे के करीब जब डॉ. उदित राज प्रदर्शन स्थल पर पहुँचे तो उन्होंने प्रदर्शन के दो मंचों को देखकर अपने मंच के समर्थकों व अनुयायियों को संदेश दिया और घोषणा की कि आंदोलन एक ही मंच से चलेगा इसलिए हम अपने मंच को समता सैनिक दल के संचालकों के साथ ही विलय करते हैं। उनका कहना था कि पूरा समाज एक है हमें इसे जाति-उपजाति में बाँटकर नहीं रखना चाहिए इससे समाज कमजोर होता है। इसी का फायदा संघी मनुवादी लोग उठाकर हमारी सामाजिक शक्ति को कमजोर करते हैं। उदित राज का यह कथन बिल्कुल सत्य है, समाज की एकता और समृद्धि को लगातार मजबूत करने के लिए हमें हर समय एक ही रहना होगा और मनुवादी-ब्राह्मणवादी शक्तियों को अपनी इस प्रकार की सामाजिक एकजुटता से ही हराना होगा। हमारे समाज को हजारों जातियों-उपजातियों में बाँटने का काम ब्राह्मणों ने अपने वर्चस्व की प्रभुत्व को बनाए रखने की मानसिकता से किया है। अब जैसे-जैसे समाज जागरूक हो रहा है वह ब्राह्मणों के इस षड्यंत्रकारी जाल से मुक्त होता जा रहा है। जितना जल्द समाज ब्राह्मणों के षड्यंत्रों से मुक्त होगा उतना ही जल्द समाज सशक्त और समृद्ध बन पाएगा। हमारे समाज के महापुरुषों ने किसी एक जाति घटक के लिए काम नहीं किया है वे हम सबके थे उन सभी ने पूरी मानवता के लिए काम किया है, इसलिए महापुरुषों के सम्मान की लड़ाई भी हमें मिलकर ही लड़नी होगी और मनुवादी ब्राह्मण संस्कृति को परास्त करना होगा।
अम्बेडकरवादियों ने दी गिरफ्तारी: जंतर-मंतर पर यह प्रदर्शन अल्प नोटिस पर एक सांकेतिक प्रदर्शन था। विरोध प्रदर्शन में इकट्ठा हुए लोगों का मत था कि इस सांकेतिक प्रदर्शन के बाद हम ठीक से योजना बनाकर एक देशव्यापी आंदोलन की तैयारी करेंगे। चूंकि वर्तमान मोदी संघी सरकार बहुत ही निर्लज्ज व बेशर्म है। इनको देश के गरीब, पिछड़े, मजदूर, किसान आदि के आंदोलन की भाषा समझ में नहीं आती है क्योंकि इनकी आंतरिक संरचना का निर्माण फॉसिस्ट, मनुवादी, संघी हैं। जो कहते कुछ हंै और करते कुछ और हैं। इनका मूल चरित्र मानवता विरोधी है, विषमतावादी है, ये उथल-पुथल की राजनीति में विश्वास करते हैं। इनको समाज में शांति और सद्भावना पसंद नहीं है और उनकी सभी योजनाएं इसी बात को ध्यान में रखकर रची जाती हैं कि समाज में अशांति और उथल-पुथल रहे। विरोध प्रदर्शन के स्थल पर काफी पुलिस बल तैनात किया गया था। पुलिस बल और प्रदर्शनकारियों के बीच नौंंक-झौंक भी देखी गई और काफी संख्या में बाबा साहेब के अनुयायियों ने प्रतिमा हटाये जाने के विरोध में गिरफ्तारियाँ भी दी। अनुयायियों की गिरफ्तारियाँ यह दर्शाने के लिए पर्याप्त है कि अब बाबा साहेब के अनुयायी अपने महापुरुषों का मनुवादी-संघियों द्वारा किया जा रहा अपमान सहन नहीं करेंगे।
आंदोलन की व्यवस्था में खामियाँ: यह आन्दोलन गैर राजनीतिक था। समाज के सभी जातीय घटकों के सामाजिक संगठनों ने इसे स्वत: आयोजित किया था। कोई भी संगठन इसका मुख्य नेतृत्वकर्ता नहीं था इसलिए यह कुछ हद तक सफल रहा, परंतु फिर भी आंदोलन में व्यवस्था संबंधित कुछेक कमजोरियाँ देखने को मिली। समता सैनिक दल के बहुत सारे सैनिक मंच के आसपास खड़े होकर फोटोजीवी की तरह व्यवहार कर रहे थे और वे अपने फोटो खिंचाने और सोशल मीडिया के यू-ट्यूब संचालकों को अपनी-अपनी बाइट देने की प्रतियोगिता में व्यस्त थे। आंदोलन की पूरी व्यवस्था अनुशासनहीनता का परिचय दे रही थी। मंच संचालक अकेले ही अपने आपको मंच से प्रदर्शित कर रहे थे और उनका प्रदर्शन यह दर्शा रहा था कि इस आंदोलन के संचालक सिर्फ आर. एल. कैन ही हैं। बाकी सभी सामाजिक संगठनों के लोग उनकी बात सुने, माने और वे जैसा चाहे वैसा ही करें। वर्तमान युग में समाज में ऐसा नहीं होता है आज सबको साथ लेकर चलने की जरूरत है और ऐसे आंदोलन करने के लिए कोडिनेटरस की एक संयुक्त समिति का निर्माण करना होता है। संयुक्त समिति के कोडिनेटर सभी जातीय घटकों से होने चाहिए किसी भी सामाजिक घटक को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वह या उसका समाज इस आंदोलन में भागीदार नहीं है। ऐसे आन्दोलन को सफल बनाने के लिए सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना सामाजिक संगठनों का काम है। राजनीति पार्टियों से जुड़े समाज के छद्म नेताओं को ऐसे आंदोलनों से दूर रखना ही बेहतर रहता है अन्यथा वे ऐसे आंदोलनों को बैशाखी बनाकर राजनैतिक फायदा उठाने का प्रयास करते है। जिसे भाँपकर सामाजिक संगठनों के लोग विरोध प्रदर्शनों में शामिल नहीं होते हैं।
आंदोलन को कारगर व सार्थक बनाने के लिए सुझाव: समाज के सभी जातीय घटकों को आपस में मिलकर इस देशव्यापी आंदोलन के लिए आपस में विचार-विमर्श व संगोष्ठी आदि का आयोजन करके एक संयुक्त मोर्चे का गठन करना चाहिए और इस देशव्यापी आंदोलन को कारगर बनाने के उद्देश्य से समाज के सभी छोटे-बड़े जातीय घटकों को सम्मलित करके हर जातीय घटक में अपनत्व का भाव पैदा करना चाहिए। इस संयुक्त संगोष्ठी में ही विचार-विमर्श करके सरकार व राष्ट्रपति को एक ज्ञापन भी देना चाहिए और इस ज्ञापन में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के अनुयायियों की मंशा के मुताबिक समाज को अपनी मांगों का उल्लेख करना चाहिए।
1. बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की प्रतिमा जहाँ पूर्व में स्थापित थी उसे उसी स्थान पर उसी मुद्रा में जल्द-से-जल्द स्थापित कराया जाये।
2. बाबा साहेब की विशालकाय प्रतिमा नई संसद भवन के प्रांगण में प्रमुख स्थान पर स्थापित कराई जाये।
3. नए संसद भवन का नाम बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के नाम पर अविलम्ब रखा जाये।
4. नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर मनुवादी-संघी विचारधारा के समर्थक पीएम नरेंद्र मोदी के द्वारा हिंदुत्व की विचारधारा वाले जिस ‘सेंगोल’ को स्थापित कराया गया, उसे नई संसद से शीघ्र हटवाया जाये, चूंकि सेंगोल प्रतीक असंवैधानिक है। चोल साम्राज्य के अधिनायकवादी शासकों का प्रतीक है।
उपरोक्त सभी बिदुओं पर विचार-विमर्श के लिए एक देशव्यापी आंदोलन चलाने हेतु संयुक्त समिति का गठन करके विचार विमर्श होना चाहिए और विचार-विमर्श के बाद एक संयुक्त ज्ञापन सरकार व देश की महामहिम राष्ट्रपति महोदया श्रीमती द्रोपदी मुर्मु जी को दिया जाना चाहिए। इस संबंध में आन्दोलन की संयुक्त टीम का उपयुक्त प्रतिनिधि मंडल को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व विपक्ष के नेताओं से मिलने के लिए समय भी माँगना चाहिए। और उनको बहुजन समाज की भावनाओं से अवगत भी करना चाहिए।
जय भीम, जय संविधान
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |