2025-01-20 08:12:11
मोदी और केजरीवाल संघी फासिस्ट मानसिकता के लोग है, दोनों बचपन से ही संघी संस्कृति में पले-बढ़े हैं। मोदी संघ के हैं, केजरीवाल व उसका परिवार संघी संस्कृति का है। केजरीवाल और मोदी में कुछेक समानताएँ है, जैसे झूठ बोलने में दोनों ही उत्कृष्ट है; लोगों को छलने और बरगलाने में दक्ष है; दोनों उत्कृष्ट कोटि के पाखंडी है; बरगालने के लिए दोनों धार्मिक पाखंडों का सहारा लेते हैं; दोनों जनता को अपने पाखंड फैलाने वाले तथाकथित साधु-संतों को सम्मानित करने का ढोंग करते हैं; दोनों कथित धार्मिक पाखंडियों को राजनैतिक संरक्षण देते हैं; दोनों जनता को झांसों में फंसाकर उनके वोट लेने के लिए मुफ्त की रेबड़ियों से लुभाते हैं; अवैध धन जनता में बाँटकर लुभाने का काम करते हैं; मोदी और केजरीवाल देश और जनहित में कोई काम नहीं करते; जनता में झूठे व काल्पनिक प्रतीकों को दिखाकर समाज को ठगने का काम करते हैं; केजरीवाल और मोदी जनता में मुफ्त का राशन प्रचारित करके गरीब जनता को अपमानित करते हैं; मोदी और केजरीवाल जनता के मुद्दे जैसे-बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महँगाई की बात नहीं करते; मोदी और केजरीवाल दोनों अपने आपको चमकाने के लिए टैक्स के पैसे का भरपूर दुरुप्रयोग करते हैं; मोदी और केजरीवाल दोनों ब्राह्मणवादी मानसिकता के संघी भाई है; मोदी और केजरीवाल दोनों अम्बेडकरवादी विचारधारा के घोर विरोधी है; दोनों ही संघ के बच्चे हैं, कोई भी आपसी विवाद पर दोनों मोहन भागवत के पास जाते हैं; इस तार्किक आधार पर जनता को स्पष्ट तौर पर समझ लेना चाहिए कि मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) में कोई भी वैचारिक भेद नहीं है। दोनों का लक्ष्य है कि किसी भी कीमत पर ब्राह्मणवादी संघी मानसिकता की सरकार को देश में स्थापित करना है। दिल्ली व देश की सत्ता में ब्राह्मणवाद (ब्राह्मण बनिया गठबंधन) अबाध्य और अदृश्य तरीके से चल रहा है। दोनों की मानसिकता में अपने व्यापारी मित्र समुदाय को फायदा पहुँचाना ही मुख्य उद्देश्य है।
व्यापारी और भिखारियों की मानसिकता को देखते हुए आर्य समाज के मशहूर प्रचारक महाशय बेधड़क की लाईने याद आती है, ‘व्यापारी और भिखारी कभी भी देशभक्त नहीं हो सकते’। मोदी और केजरीवाल दोनों अपने आपको कट्टर ईमानदार व देशभक्त होने का प्रमाण पत्र देते हैं, जिसमें तनिक भी सत्यता नहीं है। मोदी और केजरीवाल दोनों ही वैश्य है, जातिवाद दोनों में कूट-कूट कर भरा है। मोदी और केजरीवाल की सरकार आने के बाद देश और दिल्ली में भ्रष्टाचार करीब 5 गुना बढ़ चुका है। अपुष्ट सूत्रों के आधार पर देश का पीएमओ हर परियोजना में 50 प्रतिशत तक हिस्सा चाहता है और ईमानदारी का ढ़ोल पीटकर जनता का उल्लू बना रहा है। ईमानदारी का ढ़ोल पीटने में मोदी और केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाड़ियों में सबसे उत्तम है। इसी संदर्भ में केजरीवाल और मोदी के कुछेक झूठ:
मोदी ने 2014 में प्रधानमंत्री बनने के साथ जनता से वायदा किया था कि हरेक नागरिक के बैंक खाते में 15-15 लाख रुपए डाले जाएँगे, आजतक किसी भी नागरिक के खाते में एक रुपया भी नहीं आया है। मोदी के अंधभक्त समर्थक वायदे पूरा न करने के लिए पाकिस्तान या अन्य को दोष देते हैं और खुद शर्म महसूस नहीं करते हैं बल्कि इस मुद्दे पर जब जनता के द्वारा सवाल पूछा जाता है तो इधर-उधर की अनर्गल बातें करते हैं, सटीक जवाब नहीं देते।
मोदी जब 2014 में सत्ता में आने के लिए प्रयास कर रहे थे तब उन्होंने देश की नौजवान जनता से वायदा किया था कि हर वर्ष 2 करोड़ नौकरी दी जाएगी। मोदी का यह वायदा झूठ और जुमला ही साबित हुआ है। इसके उलट मोदी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में सरकारी कंपनियों का निजीकरण करके उल्टे 2.5 करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष कम किये है जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोदी ने अपने प्रधानमंत्रित्व काल में 25 करोड़ रोजगारों को खत्म कर दिया है और जो व्यक्ति इस दौरान रोजगार पाने के लायक थे उनमें से बहुत सारे प्रतिवर्ष नौकरी पाने की आयु सीमा से बाहर होकर स्थायी तौर पर बेरोजगार बन चुके हैं।
मोदी ने सत्ता में आने के समय देश की जनता से वायदा किया था कि सभी को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। मोदी के दोस्त, देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि हमने देश को सुरक्षा प्रदान की है। अब कोई भी व्यक्ति चाहे महिला हो या पुरुष किसी भी समय दिन हो या रात बेखौफ कहीं भी आ-जा सकता है। जबकि वास्तविक सच्चाई उलट है, देश में जहाँ-जहाँ डबल इंजन की संघी सरकारें हैं वहाँ-वहाँ पर अपराध की संख्या में डबल इजाफा हुआ है। मोदी काल में एससी, एसटी समुदाय की महिलाओं पर बलात्कार की घटनाएँ बेइंतहा बढ़ी है। मुस्लिम समुदाय पर उत्पीड़न की घटनाओं को संघियों द्वारा सुनियोजित ढंग से चलाकर प्रचारित किया जा रहा है।
मोदी संघी मानसिकता के शासनकत्तार्ओं ने 2019 का संसदीय चुनाव जीतने के लिए पुलवामा कांड कराया था। इसमें सुरक्षा बलों से जुड़े 45 जवान शहीद हुए थे। इस घटना के बाद देश के सभी लोगों की भावना राष्ट्र भक्ति के भाव में डूबी हुई थी। जिसको लेकर मोदी के संघी चेले चुनाव में मतदाताओं के बीच जाकर जनता की मर्माहत भावना के बल पर चुनाव जीतकर मोदी-संघियों की सरकार केंद्र में आयी थी।
मोदी-संघी शासन ने नयी शिक्षा नीति-2020 लाकर देश के शूद्रों (एससी/एसटी/ओबीसी) को शिक्षा से दूर करने का ब्राह्मण संस्कृति के तथाकथित धर्मशास्त्रों (मनुस्मृति) के अनुसार न पढ़ने का पक्का इलाज कर दिया है। मनुस्मृति काल में शूद्रों को शिक्षा पाने का अधिकार नहीं था। इसी नीति को अपनाकर मोदी संघी शासन में जहाँ-जहाँ डबल इंजन की सरकारें हैं वहाँ-वहाँ पर 30,000 प्राइमरी स्तर के सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया गया है। डबल इंजन की सरकारें वहाँ के बहुजन समाज को प्रेरित कर रहे हैं कि आप अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाओ तो आपके बच्चे अधिक सुसंस्कृत बनेंगे।
पिछले 10-11 वर्षों में स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे जनता के लिए भयानक बन चुके हैं चूंकि आज की सरकारों में स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्था इतनी लचर और महंगी है कि वह हर आम व्यक्ति की पहुँच से बाहर है। देश में ब्राह्मण-बनिया समुदाय का छिपा अबाध्य गठबंधन चल रहा है। जिसके तहत स्वास्थ्य से जुड़े शिक्षण संस्थान वैश्य समुदाय के लोगों द्वारा अधिक खोले जा रहे हैं। इन संस्थानों में सभी प्रकार की शिक्षा दोयम दर्जे की है इस प्रकार की शिक्षा के बल पर वैश्य समाज अपने बच्चों को स्थापित करके जनता को खुलेआम लूट रहे हैं।
मोदी-संघी शासन में महँगाई और भ्रष्टाचार का मुद्दा बहुजन जनता के लिए श्राप बन चुका है चूंकि इस दौरान महँगाई और भ्रष्टाचार पहली सरकारों की अपेक्षा 5-7 गुना बढ़ चुका है। देश में महँगाई और भ्रष्टाचार बढ़ाकर मोदी और केजरीवाल ने अपने व्यापारी मित्रों को फायदा पहुँचाया है और बहुजन जनता को लगातार निम्न स्तर का जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया है।
मोदी जब 2014 से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने अपने संघी एजेंडे के तहत वहाँ के समाज में नफरत और भेदभाव को चरम पर पहुँचाकर गोधरा कांड कराया था। जिसमें करीब 300 से अधिक लोगों की जानें गई थी। यह कांड इतना भयानक था कि उन घटनाओं को याद करके आज भी हर सभ्य आम आदमी का कलेजा काँप उठता है। मोदी-संघियों के लफंगों ने गोधरा कांड कराने और करने में बढ़-चढ़कर भाग लिया था। जिसमें बच्चे और महिलाओं को भी नहीं बक्सा गया था। बिलकीस बानो की घटना समाज के सभी लोगों के सामने मोदी की क्रूरता को दर्शाती है।
भारतीय जनता में संघी प्रेरकों के द्वारा प्रचारित किया जा रहा है कि सभी वंचित समाज अपने पुश्तेनी (मनुस्मृति आधारित) पेशे को अपनाये। इन अति पिछड़ी जातियों को यह भी बताया और पढ़ाया जा रहा है कि आपका जीवन अपने पुश्तेनी पेशे को अपनाकर ही समृद्ध बन सकेगा जिसके लिए डबल इंजन की सरकारें प्रशिक्षण और उनके लिए जरूरी औजार भी दे रही है। जिससे खुश होकर अति पिछड़ी जातियों के मूर्ख घटक इसे अपने हित में समझ रहे हैं। जबकि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अति पिछड़ी जातियों के लोगों से कहा था कि जिस व्यवसाय को समाज घृणा की दृष्टि से देखता है उसे त्यागकर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देकर अन्य व्यवसाय अपनाओ जिसे देखकर समाज मे नफरत का भाव पैदा ना हो।
आज पूरे देश में मोदी संघी मानसिकता की सरकारें मंदिर संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए अरबों रुपए खर्च कर रही है। जिससे शूद्र वर्ण से जुड़े जातीय घटकों को कोई भी लाभ नहीं है। मंदिर संस्कृति इस देश में पिछले करीब 3 हजार वर्षों से अस्तित्व में हैं जो लगातार ब्राह्मणवाद को समृद्ध करती आ रही है और उससे शूद्रों का शोषण होता आ रहा है। शूद्रों की 3 हजार वर्षों की मानसिक गुलामी यह समझने में असमर्थ रही है कि मंदिर संस्कृति से शूद्रों को कोई लाभ नहीं है और न ही इस संस्कृति से देश और समाज समृद्ध बनता है। दुनिया की जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत भाग भारत में बसता है। मगर जब इस जनसांख्यिकी के सापेक्ष देश की वैज्ञानिक उत्पादिकता को आंका जाता है तो वह कहीं भी तार्किक नहीं लगता है। ज्ञान की दुनिया में नोबल पुरस्कार पूरे संस्कार में उत्कृष्ट माना जाता है। जिसमें देश की जनसंख्या के अनुरूप भारत का हिस्सा नहीं है बल्कि अगर यूँ कहें कि यह पुरस्कार पाने वालों में भारतीयों की संख्या करीब-करीब नगण्य है, जबकि दुनिया के अन्य छोटे-छोटे देश अपनी जनसांख्यिकी के सापेक्ष इसमें अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।
दुनिया में जहाँ-जहाँ धार्मिक पाखंड को बढ़ाने वाली सरकारें हैं वहाँ-वहाँ पर वैज्ञानिक शोध और जन उपयोगी वैज्ञानिक उत्पादकता नगण्य है। इसलिए ऐसी मानसिकता वाली सरकारों को देश की जनता को नहीं चुनना चाहिए। जनता अपने तर्क और बुद्धिबल से सोचे, मोदी-भाजपा व केजरीवाल संघी मानसिकता वाले प्रत्याशियों को चुनाव में अपना वोट न दें। चूंकि इनकी मूल संस्कृति मानव समाज के लिए उपयोगी और कल्याणकारी नहीं है, दोनों ही बराबर के झूठ और छलावे जनता को परोसते हैं। मोदी के झूठ दुनिया भर में मशहूर हैं, मोदी झूठ बोलने में विश्वगुरु हैं। केजरीवाल भी उन्हीं के नक्शेकदम पर हैं, दिल्ली की सत्ता में 10 साल रहने के बाद भी केजरीवाल ब्राह्मणवादी गठबंधन को ही मजबूत कर रहे हंै। केजरीवाल के झूठ और छलावों में न फँसे, वे जो कार्य गिना रहे हैं वे अधिकतर सही नहीं है। मूल रूप से केजरीवाल संघी मानसिकता के व्यक्ति है जो कभी भी बहुजन समाज के हितों के बारे में नहीं सोच सकते और न उनके लिए कोई योजना बना सकते हैं। केजरीवाल ने सत्ता में आने से पहले 500 नए स्कूल खोलने की घोषणा की थी, आज तक एक भी नया स्कूल नहीं बना है। पुराने स्कूलों में कुछेक नए कमरे जोड़कर जनता से ढोंग किया जा रहा है। सरकारी स्कूलों में करीब 40 प्रतिशत अध्यापक व कर्मचारी नहीं है। ठेके पर कुछेक अध्यापक व स्टाफ रखकर जनता के साथ छल किया जा रहा है।
2020 के सांप्रदायिक दंगों में 60 लोग मारे गए थे, ये दंगे केजरीवाल के गुरु भाईयों (संघियों) द्वारा प्रायोजित थे, इसलिए केजरीवाल और उनके मंत्रीगण ने तीन दिन तक दिल्ली की जनता का हाल-चाल जानने की भी कोशिश नहीं की थी, उन्हें सिर्फ मुस्लिमों और एससी/एसटी का वोट चाहिए। उनकी आंतरिक संरचना में मुस्लिम, एससी/एसटी से नफरत के अलावा कुछ नहीं है। केजरीवाल और मोदी को अपना वोट मत दो, दोनों बराबर के झूठे, पाखंडी, संघी मानसिकता के व्यक्ति है।
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