2023-11-13 11:16:06
बुद्ध काल को छोडकर भारत में मानवतावाद का दौर नहीं रहा, यहाँ पर हमेशा ब्राह्मणवाद का ही वर्चस्व रहा। जातिवाद चरम पर रहा और समाज में एकता और अखंडता कमजोर रही। ब्राह्मणवाद को परिभाषित करते हुए हम यहां बताना चाहते हैं कि ब्राह्मणवाद का अर्थ-ब्राह्मण जाति से नहीं है बल्कि उन सभी लोगों की संकीर्ण मानसिकता से है जो जाति के आधार पर समाज में भेदभाव और क्रमिक ऊँच-नीच की मानसिकता से व्यवहार करते हैं। यदि शूद्र वर्ग का व्यक्ति भी ऐसा ही व्यवहार करता है तो वह व्यक्ति भी ब्राह्मणवादी मानसिकता का ही कहलाएगा। इसलिए वर्तमान में ब्राह्मणवाद को जाति विशेष में न मानकर व्यक्ति की मानसिकता के आधार पर मानना चाहिए। हर वर्ग व जाति में अच्छी और बुरी मानसिकता के लोग पाये जाते हैं। परंतु जिस जाति विशेष में मनुवादी मानसिकता के लोग अपेक्षाकृत अधिक पाये जाते हैं वह जाति विशेष समाज में उसी मानसिकता से जानी जाती है।
मोदी संघी शासन के दस वर्षों में ब्राह्मणवाद व संघी मानसिकता को सत्ता बल से अधिक बढ़ावा मिला है। मोदी शासन की मूल अवधारणा संघी फासिस्ट है जो मनुवाद की पोशक है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ब्राह्मणों को ब्रह्मा के मुँह से पैदा हुए मिथ्या विचार को भी सही मानते हैं। साथ ही वे मनुस्मृति को हिंदुत्व की संहिता व धार्मिक ग्रंथ मानते हैं। मनुस्मृति के अनुसार सभी वर्गों की महिलाओं को नीच व अपवित्र बताकर सभी मानवीय अधिकारों से विहीन रखा गया है। साथ ही शूद्र वर्ग जो देश में बहुसंख्यक है उसके सभी महिला व पुरूषों को भी मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया। इसके अलावा देश की 40 प्रतिशत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अति पिछड़ी जातियों जैसे नाई, कुम्हार, गडरिये, लौहार, बढ़ई व उनके समक्ष जातियों की महिला व पुरुषों को भी सभी अधिकारों से वंचित रखकर पशुओं से भी बदतर जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया था। पिछले दस वर्षों में मोदी व संघियों ने देश में ब्राह्मणवाद की संघी मानसिकता को अधिक मजबूत किया है। देश के शैक्षणिक संस्थानों में संघी मानसिकता के प्रचारकों को स्थापित करके संघी मानसिकता के व्यापारी वर्ग को मजबूत किया है। संघी मानसिकता आधारित देश में नोट बंदी जैसे देश विरोधी फैसले लेकर देश की अधिसंख्यक जनता को बर्बाद किया गया है। संघी मानसिकता ने देश के रोजगार जनक संस्थानों को बेचा गया, देश के नौजवानों के लिए रोजगार के रास्ते बंद किये गए है। देश में जो सम्पदा पिछले 75 वर्षों में देश की कमेरा जातियों बहुजन समाज ने निर्मित की थी वह संघी मानसिकता के लुटेरो ने अपने संघी व्यापारी मित्रों को औने-पौने दामों पर बेच दी है।
आरएसएस की मानसिकता बहुजन विरोधी: आरएसएस निर्विवाद फासिस्ट है। इस विचारधारा के बीज बालकृष्ण शिवराम मुंजे ने देश में रोपित किये थे। मुंजे शुरू में एक कांग्रेसी ब्राह्मण था। 1920 में गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने दो प्रावधानों को जोड़ा, एक अहिंसा और दूसरा धर्मनिपेक्षता। इन दोनों प्रावधानों से बी. के. मुंजे सहमत नहीं थे इसलिए मुंजे इन दोनों प्रावधानों से नाराज थे। इसी मुद्दे पर उन्होंने 1920 में कांग्रेस छोड़ी थी। इसके बाद मुंजे ने बेनिटो मुसोलिनी से इटली में जाकर मुलाकात की थी। बेनिटो मुसोलिनी एक तानाशाह थे मुसोलिनी ने मुंजे को इटली और रोम साम्राज्य का गौरवपूर्ण इतिहास सुनाया था। वहाँ पर उन्होंने बताया था कि रोम के लोग अच्छे हैं। आपस में मिलकर रहते हैं। परंतु वे रोम के गौरवपूर्ण इतिहास पर गर्व नहीं करते इसी बात ने मुंजे की मानसिकता में छिपे संघी कीड़े को सक्रिय कर दिया। उसने भारत वापस आकर अपनी जैसी मानसिकता वाले डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार व अन्य से चर्चा करके इसी मानसिकता के बीज को देश में आरएसएस के रूप में रोपित किया। आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इसी कारण संघी मानसिकता के लोग अंग्रेजों के कभी विरोधी नहीं रहे। बल्कि वे अंग्रेजों के हमेशा सहयोगी रहे। उसके बाद डॉ. बी.के. मुंजे हिंदू महासभा के अध्यक्ष बन गए थे। संघी ब्राह्मणों ने अंग्रेजों का विरोध तब शुरु किया जब अंग्रेजों ने मनुस्मृति आधारित अमानवीय व असमानता के प्रावधानों के विरुद्ध कानून बनाना शुरू किया। इस संक्षिप्त इतिहास से यह स्पष्ट होता है कि मनुवादी मानसिकता के संघी न तब राष्ट्र भक्त थे और न आज है। वे तो सिर्फ इस देश में मनुस्मृति आधारित सामाजिक व राजकीय व्यवस्था का निर्माण छिपे ढंग से करना चाहते हैं। पिछले दस सालों से मोदी-संघियों की यही मानसिकता शासन व्यवस्था में काम कर रही है। इसे देखकर देश के शूद्रों (बहुजन समाज) व अल्पसंख्यकों को संघियों के इतिहास व उनके अंर्तमन में छिपे जहर को समझकर राजनैतिक हितों के फैसले करने चाहिए। किसी बहकावे व लालच में आकर नहीं।
बहुजनों का बने अम्बेडकरी राजनैतिक गठबंधन: वर्तमान में जो राजनैतिक गठबंधन सामने हैं वे कहीं न कहीं पहले मनुवादी व संघी मानसिकता के साथ रहे हैं। उन पर बहुजन समाज विश्वास कैसे करे? संघी मोदी शासन में बहुजन समाज को छिपे ढंग से ध्वस्त करने की योजनाएं चलाई जा रही है। वर्तमान में दो राजनैतिक दल ‘इंडिया’ व मोदी का ‘एनडीए’ चुनाव में आमने-सामने होकर 2024 का लोक सभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं। दोनों गुटों के इतिहास को देखकर लगता है कि इन दोनों गुटों में जो राजनैतिक दल शामिल हंै, वे कहीं न कहीं मनुवादी हैं। वे मोदी व मनुवादी संघियों का मुकाबला दृढ़ता के साथ कैसे कर सकते हैं? इनके पास संघियों को हराने के लिए कोई सटीक जबावी योजना नहीं है। बहुजन समाज के जागरूक लोगों की धारणा है कि आरएसएस मैदान में कम और लोगों के दिल और दिमाग परअधिक काम करता है। इसी व्यवस्था के तहत संघी प्रचारक लाखों की तादाद में देश के स्कूलों, शैक्षणिक व शोध संस्थानों, मंदिरों व मठों में छिपे ढंग से काम कर रहे हैं। जो बहुजन समाज की अति पिछड़ी जातियों की महिलाओं में हिंदुत्ववादी धर्म का रंग चढ़ाकर अपने छिपे उद्देश्य को उनके मस्तिष्क में ठूस-ठूसकर भरके दूषित कर रहे हंै। इंडिया गुट के राजनैतिक नेताओं जैसे ममता बनर्जी, केजरीवाल, नीतीश कुमार, के.सी.आर, शरद पवार, अखिलेश यादव आदि की मानसिकता पहले से ही मनुवादी है जिसके कारण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गुरिल्ला युद्ध में उनके कामयाब होने की संभावना कम है चूंकि वे खुद किसी न किसी स्तर तक संघी मनुवादी रोग से संक्रमित हैं। उनमें भी जातिगत भेदभाव, आपसी ऊँच-नीच व सामंतवादी सोच गहराई तक पैठ बनाये हुए है। जिन नेताओं की सोच में संघी मनुवादी विचारधारा और सामाजिक ऊँच-नीच का भाव आज भी मौजूद है उनमें मोदी और संघी रणनीति से लड़कर सफल होने की संभावना कम हैं। मोदी-संघी राजनैतिक मुकाबले के लिए बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक न्याय की व्यवस्था में विश्वास रखने वाले लोगों को एकजुट होकर सामने आना चाहिए और मनुवादियों से बहुजन सत्ता के लिए मिलकर चुनावी युद्ध करना चाहिए।
मोदी-संघी शासन बनाम अम्बेडकरवाद: बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने इस देश को विश्व का सर्वश्रेष्ठ संविधान देकर यह बताया है कि संघी मानसिकता वाले देश में सामाजिक व्यवस्था और शासन व्यवस्था समता आधारित होनी चाहिए ताकि देश के हर व्यक्ति का सर्वांगीन विकास हो सके। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने अपने संविधान में किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया है। महिला हो या पुरुष सभी को समान अधिकार दिये हैं, सभी को समानता के आधार पर एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार दिया है, देश में कानून के राज्य की व्यवस्था को सर्वोपरि बनाया है। हजारों वर्षों से उपेक्षित समाज को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए आवश्यक आरक्षण का प्रावधान किया है। कानून के समक्ष व्यक्ति गरीब हो या अमीर, उच्च पद के अधिकारी हो या अपदाधिकारी सभी कानून के समक्ष समान है। जबकि संघीयों को मनुस्मृति में अधिकार सभी के लिए समान नहीं है। शूद्रों व सभी वर्गों की महिलाओं के लिए कुछ भी अधिकार नहीं हैं। देश की सभी महिलाओं को अपनी बुद्धि से विचार करके यह तय करना होगा कि क्या वे संघियों की मानसिकता आधारित मनुस्मृति के शासन को अपने ऊपर लागू कराना चाहेंगी? यदि नहीं तो फिर उन्हें संघियों के प्रपंचों में नहीं फँसना चाहिए। संघी लोग जन दिखावे के लिए महिलाओं को देवी, माँ, जगतजननी आदि अलंकारों से पुकारते हैं मगर उनके छिपे अन्तर्मन में महिलाओं के लिए आदर का भाव नहीं है। मोदी-संघियों के दस वर्षों के शासन में महिलाओं व अनुसूचित जाति, जनजाति व अल्पसंख्यकों का अपेक्षाकृत अधिक उत्पीड़न हुआ है। वर्तमान में सटीक उदाहरण महिला पहलवानों के आंदोलन का है, उनके साथ हुए उत्पीड़न को देश व दुनिया ने देखा है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की वैचारिक संस्कृति के अनुसार देश में रहने वाले सभी धर्मो, मान्यताओं और संप्रदायों को एक साथ समता, स्वतंत्रता, न्याय,अभिव्यक्ति की आजादी व भाईचारे के साथ रहने का संविधान देकर देश में एकता और अखण्डता को सर्वोपरि रखा। जबकि मोदी-संघियों की संस्कृति इसके एकदम उलट विषमतावादी है। बाबा साहेब ने संघियों की मानसिकता को देखकर देशवासियों को सावधान किया था कि देश को कभी हिन्दू राष्ट्र नहीं बनने देना। बड़ी मुश्किल से देश एक जुट हुआ है। संघी-मोदी आज देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने का संखनाद कर रहे हैं।
मोदी-संघी शासन संविधान विरोधी: मोदी-संघियों के दस सालों के शासन व उनके वक्तव्यों से स्पष्ट होता है कि वे और उनके पूर्वज शुरु से ही संविधान विरोधी रहे हैं। भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ तभी से वरिष्ठ संघियों ने अपने वक्तव्य देकर जनता में प्रचारित किया था कि हम इस संविधान को नहीं मानते चूंकि इसमें हमारी संस्कृति व आस्था की प्रतीक मनुस्मृति का कुछ भी अंश नहीं है। आज देश में मोदी-संघी मानसिकता के लोग मनुस्मृति के अनुसार आचरण कर रहे हैं। मोदी कहने के लिए अपने आपको पिछड़ा शूद्र बताते हैं निसंदेह वे पिछड़ी जाति से संबंधित हो सकते हैं परंतु उनकी मानसिकता और उनके कार्यकलाप आरएसएस की जहरीली फासिस्ट मानसिकता को कठोरता से भारतीय जमीन पर लागू कर रहे हैं। उनसे पूर्व के संघी प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने एक पत्रकार के सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि ‘मैं पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सदस्य हूँ बाद में देश का प्रधानमंत्री।’ आज वाजपेयी के मुकाबले में मोदी अधिक जहरीला फासीस्ट संघी है। मान्यवर साहब कांशीराम जी ने संघियों को नागनाथ और कांग्रेसियों को साँपनाथ कहा था, जो एक दम सटीक बैठता है।
संघीयों की इन संक्षिप्त व महत्वपूर्ण बातों को देखते हुए वर्तमान समय में भारतीय राजनीति का परिदृश्य मोदी संघी फासीस्ट संस्कृति बनाम बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का समतावादी विचार होना चाहिए। पूरे बहुजन समाज को इस मुद्दे पर मंथन करके योजनाबद्ध तरीके से इसे व्यववारिक रूप देना चाहिए। संघी व्यक्तियों की मानसिकता में मनुस्मृति उनका विधान ग्रंथ है, वे समुद्र की गहराई तक विषमतावादी, जातिवादी, विध्वंशकारी, हिंसावादी, समाज में शांति विरोधी, असमानतावादी, न्याय-विरोधी, असृजनकर्ता सोच के जहरीले फासिस्ट है। सृजनकर्ता सोच के लोग कार्य करने के बाद उसे भूल जाते है मगर संघी मानसिकता के लोग नाग की तरह बदला लेने की फिराक में हमेशा रहते हैं। संघियों का आचरण मानवता विरोधी है।
देश के कट्टर अम्बेडकरवादी, पेरियारवादी, फुलेवादी, मान्यवर साहेब कासीराम जी के अनुयायी व अन्य बहुजन महापुरूषों की विचारधारा से जुड़े नेताओं जैसे- सुश्री बहन मायावती, लालू यादव, एम.के स्टालिन व हेमंत सोरेन आदि को एक साथ आकर एक मजबूत राजनैतिक गठबंधन बनाकर 2024 के लोक सभा चुनाव में बहुजन विचारधारा के उम्मीदवारों को उतारना चाहिए और संघी मनुवादी विचारधारा को देशहित में परास्त करना चाहिए।
जय भीम, जय संविधान
Monday - Saturday: 10:00 - 17:00 | |
Bahujan Swabhiman C-7/3, Yamuna Vihar, DELHI-110053, India |
|
(+91) 9958128129, (+91) 9910088048, (+91) 8448136717 |
|
bahujanswabhimannews@gmail.com |