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संघियों की षड़यंत्रकारी कार्यशैली

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2023-12-02 10:04:39

करीब दस वर्षों तक प्रधानमंत्री रहकर भी ‘संघी मोदी’ देश के प्रधानमंत्री नहीं बन पाये हैं बल्कि वह सिर्फ देश में प्रचार मंत्री की तरह भ्रमण व प्रचार करते रहते हैं। संघ के षड्यंत्रकारी प्रपंचों व छलावों ने वर्ष 2013-14 में केंद्र की सत्ता में बैठे मनमोहन सिंह व अन्य केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचारों की रचना की। देश के सामने कैग की रिपोर्ट के माध्यम से झूठ परोसा और यह बताने का प्रयत्न किया कि कांग्रेस की सरकारें भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। इसलिए देश की राजनीति को साफ-सुथरा करने के लिए कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण करना होगा। इस षड्यंत्रकारी मैलोड्रामा के मुख्य कलाकार थे-अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी। इस मैलोड्रामा के निर्देशक थे-संघ प्रमुख मोहन भागवत व उनके अन्य वरिष्ठ संघी साथी थे। यह सारा षड्यंत्रकारी कार्यक्रम विवेकानन्द फाउंडेशन संस्था के माध्यम से जनता में चलाया गया जिसमें अजित डोभाल मोदी सरकार के रक्षा सलाहकार भी एक सक्रिय सदस्य थे। इनका प्रमुख उद्देश्य था कि कांग्रेस की छवि को भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर खराब करना; दलितों व आदिवासियों पर अमानवीय अत्याचार करके उन्हें प्रताड़ित करना और उनकी आरक्षण व्यवस्था पर सवाल खड़े करना; अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलकर जनता में नफरत के भाव का प्रचार-प्रसार करना; धर्म संसदों का देश भर में प्रचार-प्रसार करना और इनके माध्यम से दलितों व पिछड़ों पर धार्मिक आवरण चढ़ाकर उन्हें मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध विशेषकर समाज की अति पिछड़ी जातियों को उनके खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करना; हिंदू धर्म के मठ व मंदिरों का निर्माण करके उन्हें आवश्यक धन मुहैया कराना।

कैग संस्था का मुख्य कार्य है कि संघ और प्रत्येक राज्य तथा संघ शासित प्रदेशों की प्राप्तियों और व्यय की लेखा परीक्षा कराना। 2008 से 2013 तक विनोद राय इस संस्था के डारेक्टर थे, विनोद राय मानसिक रूप से कट्टर संघी थे जिसको उन्होंने अपनी रिपोर्ट में प्रतिबिंबित व परिलक्षित भी किया है। विनोद राय की ये सभी रिपोर्ट देश के न्यायालयों में आधारहीन साबित हुई है। जो यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि विनोद राय संघियों से सुपारी लेकर तत्कालीन कांग्रेस की सरकारों को ध्वस्त करने के संघी षड्यंत्र में शामिल थे। जिसके माध्यम से षड्यंत्रकारी संघियों ने व्यूह रचना करके कांग्रेस की तत्कालीन सरकार के मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए और इन आरोपों के माध्यम से संघी प्रचारकों ने देश के कोने-कोने में घूम-घूमकर प्रचार किया। और जनता को बताया कि देश की वर्तमान मनमोहन सिंह की सरकार महाभ्रष्ट है। इससे देश की जनता को मुक्ति दिलाना होगा। इस प्रचार को धार देने के लिए दिल्ली में अन्ना हजारे के आंदोलन की कृत्रिम तरीके से रचना करके उसे दिल्ली के रामलीला मैदान में चलाया गया। अन्ना हजारे के इस आंदोलन में भीड़ जुटाने का काम संघ के माध्यम से किया गया था। रामलीला मैदान में टैंट आदि की व्यवस्था दिल्ली के वैश्यों (बनिया समाज) के माध्यम से संघियों द्वारा की गयी थी। जिसके माध्यम से दिल्ली व देश की जनता को बताया गया कि मनमोहन सिंह की भ्रष्ट सरकार को सत्ता की गद्दी से हटाना होगा।

2013 में विनोद राय द्वारा दी गई कैग की रिपोर्ट संसद में पेश की गई जिसे लेकर संघियों व उनके सहयोगियों ने हंगामा मचाया और पूरे देश की जनता को भ्रमित करके बताया कि तत्कालीन कांग्रेस आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। इस संबंध में भ्रष्टाचार के झूठे आँकड़े भी पेश किए गए थे। जिसमें प्रमुख थे-2जी घोटाला, कोयला घोटाला, राष्ट्र मंडल खेल (कॉमन वेल्थ घोटाला) आदि। इन तथाकथित घोटालों में भारतीय न्याय व्यवस्था के अंतर्गत सक्षम न्यायालयों में केस दर्ज हुए और न्यायिक जाँच और सुनवाई की गई। तमाम न्यायिक जाँच प्रक्रियों के बावजूद तथ्यों के अभाव में सभी तथाकथित अभियुक्त बरी हुए। जिसे देखकर लगता है कि तत्कालीन महानियंत्रक विनोद राय ने तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों को बदनाम करने व गिराने में एक देश विरोधी खलनायक का काम किया।

2008 से 2014 के चुनाव आने तक देश की अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के समुदायों पर अमावनीय अत्याचारों की बाढ़ सी आयी थी। जो अधिकतर संघी प्रचारकों द्वारा प्रायोजित थे। केजरीवाल जैसे संघियो ने विवेकानन्द फाउंडेशन के बैनर तले आरक्षण पर सवाल उठाकर देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के विरुद्ध व्याख्यान दिये थे। दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू व दिल्ली विश्वविद्यालय में संघी केजरीवाल ने आरक्षण के विरुद्ध छात्र-छात्राओं के सामने संगोष्ठी करके अपने वक्तव्य दिये थे। इसी दौरान अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के समुदायों के विरुद्ध नफरती प्रचार करके उनके विरुद्ध सामाजिक वैमनश्यता को बढ़ाया गया था। परिणामस्वरूप कट्टर संघियों ने इन समुदायों के विरुद्ध अनेकों अत्याचार किए जिनमें इन समुदायों के अनेकों लोग मारे गए थे। देश में आज जहाँ-जहाँ तथाकथित डबल इंजन की सरकार है वहाँ पर इन जातीय समूहों के ऊपर अत्याचार, उत्पीड़न की घटनाएँ अधिक घटित हो रही हंै। संघी प्रचारकों से उत्प्रेरित होकर संघी मानसिकता के लोग अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों के ऊपर सरेआम पेशाब करके यह दर्शा रहे हैं कि संघी सरकार में वे कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र हंै और उन पर ऐसे घृणित कार्य करने पर कोई भी अपराधिक कानून लागू नहीं हो सकता और न ही उन्हें सजा मिल सकती। संवैधानिक अधिकारों की संघियों को कोई परवाह नहीं है। प्रदेश व केंद्र की सरकारें ऐसे अभद्र कार्य करने वालों के खिलाफ सिर्फ लीपा-पोती करती दिखाई पड़ती है। आजाद भारत में इस तरह की अभद्र घटनाएँ सिर्फ डबल इंजन की मनुवादी सरकारों में ही घटित होती दिख रही है। देश में जहाँ-जहाँ इन बेइमानों व झूठों की सरकारें नहीं है वहाँ-वहाँ पर ऐसी घृणित घटनाएँ घटित नहीं हो रही है। इस तरह की सभी अभद्र अमानवीय घटनाएँ संघी मानसिकता के अशिष्ट लोगों के द्वारा जान-बूझकर ही की जा रही हंै।

पिछले कई वर्षों से देखा जा रहा है कि संघी मानसिकता के गुंडों, धर्म-प्रचारकों, मठाधीशों, पुजारियों, कथावाचकों, सत्संगकतार्ओं व धर्म संसद लगाने वालों के द्वारा देश की सामाजिक एकता को ध्वस्त करने के उद्देश्य से तांडव मचाया हुआ है। अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम व दलितों के खिलाफ लिंचिंग की अनेकों घटनाएँ हुई और उनमें अनेकों लोग मारे भी गए हैं। मनुवादी-संघियों के मूल में है कि समाज में एकता स्थापित न हो पाये, लोग आपस में बंटे रहे, एक-दूसरे के विरुद्ध जातीय आधार पर षड्यंत्र रचते रहें, समाज में शांति-व्यवस्था कायम न हो पाये। इस प्रकार की सभी असामाजिक प्रक्रियाओं में संघी मानसिकता के गुण्डे बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। सामाजिक एकता और सद्भाव इनके डीएनए में नहीं है। इसलिए ये हमेशा उपद्रवीय घटनाओं में सक्रिय रहते हैं और ऐसी घटाओं को अंजाम भी देते हैं। संघी मानसिकता के लोग मूल रूप से फॉसिस्ट प्रवृति के होते हैं। जो सामाजिक शांति व एकता के विरुद्ध सक्रिय रहते हैं।

बहुजन समाज की महिला वर्ग में शिक्षा का अभाव है जिसका फायदा उठाकर संघी मानसिकता के गुंडे उन्हें बहला-फुसलाकर धार्मिक अनुष्ठानों के बहाने हिंदुत्ववादी धार्मिक कथाओं में शामिल करते हैं, उन्हें धर्म के नाम पर प्रसाद व अन्य खाद्य सामग्री भी देते हैं। संघी उन्हें धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर एक ही रंग की साड़ी वितरित करके कलश यात्राओं में उनका प्रदर्शन भी करते हैं। यह पाया गया है कि इन महिलाओं में अधिकतर समाज की अति पिछड़ी जातियों जैसे नाई, कुम्हार, लौहार, गडरिये, बढ़ई, चमार, धोबी, गुर्जर, जाट, यादव, सैनी, कुर्मी, कुणबी आदि जातियों से ही होती है। इन सभी महिलाओं का पुरुष वर्ग अपनी रोजी-रोटी के लिए घर से बाहर रहता है और ये सभी महिलाएँ हिंदुत्व के धार्मिक अनुष्ठानों में फँसकर हिंदुत्ववादी पाखंडी प्रचारकों के भाषणों को सुनकर अभिभूत रहती है। इनके बच्चे जो माँ के सानिध्य में पलते या बढ़े होते हैं उनमें भी ये हिंदुत्ववादी जहरीले विषाणु धीरे-धीरे पनप जाते हैं और अंतत: वे हिंदुत्व की जहरीली मानसिकता के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इसी मानसिकता से तैयार हुए युवक युवतियों को ये संघी गुण्डे अपने उद्देश्य प्राप्ति के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नफरती प्रचार के लिए उतार देते हैं। संघी मानसिकता के गुंडों को पता है कि इस प्रक्रिया से यदि पिछड़ी जातियों के युवक युवतियों को कोई नुकसान होता भी है तो वह इन अति पिछड़ी जातियों के युवक-युवतियों का ही होगा। वर्तमान में बजरंग दल का समाज के सामने उदाहरण है जिसमें अधिकतर सदस्य इन्हीं पिछड़ी जातियों के हैं जिनके द्वारा आतंकी घटनाओं को अंजाम दिलाया जाता है और समाज में आपसी नफरत फैलाने के काम को आगे बढ़ाया जाता है।

वर्तमान शासन में धार्मिक प्रचारों, धर्म सांसदों, धार्मिक रथ यात्राओं, पाखंडी बाबाओं के प्रचारकों को अधिक महत्व दिया जा रहा है और उनके द्वारा कोई भी असंवैधानिक कार्य करने पर कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती है। धार्मिक प्रचारों को इन तथाकथित साधु-संतों के द्वारा अधिक बढ़ाया जा रहा है। तथाकथित बाबाओं को अवांछित मान-सम्मान देकर जनता में स्थापित किया जा रहा है। ये तथाकथित साधु संत अपने भ्रामक तथ्यहीन प्रचारों द्वारा भोली-भाली जनता को लूटने का काम कर रहे हैं। जिसका ज्ञान जनता को नहीं है, इसी अज्ञानता के कारण वे इनके जाल में फंस रहे हैं। देश की जनता इन तथाकथित साधु-संतों के मिथ्या प्रचार व अवैज्ञानिक प्रवचनों में फँसकर अपना विवेक खो रही है और साथ ही अपनी समझ की क्षमता भी खो रही है। यह बड़ी विडंबना का विषय है कि वर्तमान मोदी संघी सरकार जनता को पाखंड और अंधविश्वास में धकेलकर अज्ञान बना रही है। इसके पीछे संघियों की सोच है कि बहुजन जनता को अज्ञान रखकर ही इस देश में मनुवादी शासन व्यवस्था को निरंतरता के साथ चलाया जा सकता है। इसी सोच के तहत सभी वर्गों की महिलाओं और बहुजन समाज को पिछले 2500 वर्षों में शिक्षा से वंचित रखा गया, उनमें अज्ञानता और पाखंड को ठूँस-ठूँसकर भरा गया। जिसके कारण सभी क्षेत्रों में वे असक्षम रही। उनका बौद्धिक विकास नहीं हो पाया। बहुजन समाज के महापुरुषों जैसे जोतीबा फुले, माता सावित्रीबाई फुले व अन्य महापुरुषों ने इस मनुवादी रोग को जाना, पहचाना और उसके निराकरण के लिए युक्ति युक्त संघर्ष करने का बीड़ा उठाया। इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को जब भारत का संविधान बनाने का मौका मिला तो उन्होंने पुष्यामित्र शुंग की उस हिंदुत्ववादी प्रतिक्रांति के विरुद्ध प्रतिक्रांति करके संविधान में बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए समान अधिकारों व अवसरों की नींव रखी और देश को पुष्यामित्र शुंग की हिंदुत्ववादी प्रतिक्रांति से मुक्त कराया। बाबा साहब के इस संघर्ष से देश की बहुजन जनता को सभी क्षेत्रों में समान अधिकार मिल गए। जिसके आधार पर अब सभी परस्पर रहकर समान रूप से सभी अपना विकास करने के लिए स्वतंत्र है। आज बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को अपनी स्वतंत्रता, समता व संविधान को अक्षुण रखने के लिए एकजुट होकर अपना वोट सिर्फ बहुजन समाज के अम्बेडकरी व्यक्ति व पार्टी को ही देने और दिलाने का संकल्प लेकर निष्ठा से काम करना चाहिए।

जय भीम-जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05