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शूद्रों को अपना दीपक स्वयं बनना होगा

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2025-07-04 19:11:06

मनुवादी वर्गीकरण के अनुसार भारतीय समाज चार वर्णों में विभक्त है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। मनुवादी व्यवस्था में ब्राह्मण को सबसे ऊंचे प्रथम पर रखा गया है, दूसरे स्थान पर क्षत्रिय, तीसरे स्थान पर वैश्य और चौथे पायदान पर शूद्रों को रखा गया है। इस सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है और बाकी तीनों वर्ण क्रमश: निचले पायदानों पर है। ब्राह्मण वर्ण को सर्व अधिकार प्राप्त है और बाकी वर्णों को उससे कम अधिकार प्राप्त है। शूद्र वर्ण को मनुवादी सामाजिक व्यवस्था में सबसे नीचे पायदान पर रखा गया है और उसे सभी मानवीय अधिकारों से वंचित भी रखा गया है। शूद्र समाज को ऊपर के तीनों वर्णों का सेवक बनाया गया है वह भी बिना किसी मानदेय के। जिसका अर्थ है कि शूद्र अपने से ऊपर की तीनों वर्णों की सेवा मुफ्त में करेगा। वह पूरी तरह से ऊपर के तीनों वर्णों की दया पर ही पलेगा। शूद्र वर्ण में दो उपवर्ग भी बनाए गए हैं जिनमें एक सछूत और दूसरा अछूत। सछूत वर्ण वह है जिसे सवर्ण समाज के अन्य लोग छू सकते हैं, लेकिन उससे अन्य किसी प्रकार का सामाजिक रिश्ता नहीं रख सकते हैं, अछूत शूद्र वर्ण का वह उपवर्ग है जिसे मनुवादी व्यवस्था के अनुसार छूना, सार्वजनिक रास्तों पर चलना और सार्वजनिक तालाबों, कुंए आदि का इस्तेमाल करना पूर्णतया वर्जित था। कुंए, तालाब व सार्वजनिक स्थानों पर कुत्ते, बिल्ली चल सकते थे लेकिन अछूत वर्ण के लोगों के लिए ऐसा करना वर्जित था। अछूत वर्ण अति उत्पीड़ित, उपेक्षित और पशुओं से भी बदतर जीवन जीने के लिए विवश था।

भारत में वर्ण-व्यवस्था के साथ-साथ जाति-व्यवस्था भी प्रबलता के साथ है। शूद्र वर्ण में जातियों की संख्या अधिक है परंतु मनुवादी वर्गीकरण के अनुसार पूरा शूद्र समाज 6 हजार से अधिक जातियों में विभक्त है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि हमारा देश जाति प्रधान देश है, कृषि प्रधान नहीं। मनुवादी वर्गीकरण ने जाति को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग माना है, मनुवादी मानसिकता के भारतीय नेता जैसे गांधी ने भी जाति को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग बताया और उसका पूरे जोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी किया। 1928 में साइमन कमीशन जब भारत की सामाजिक व्यवस्था का सर्वेक्षण करने के लिए आया था तो गांधी जैसे मनुवादी मानसिकता के नेता ने अछूत वर्ण के लोगों को खादी के नए सफेद कपड़े पहनाकर साइमन कमीशन के सामने यह कहलवाने के लिए पेश किया था कि हमारे साथ न कोई भेदभाव हैं और न कोई छुआछूत हैं, हम सभी हिन्दू धर्म के ही अंग है और उसी के अनुसार आचरण करते हैं। गुजरात के अछूत वर्ग के लोगों द्वारा ऐसा बयान देने के कारण गुजरात के दलितों को आरक्षण का लाभ 1980 तक नहीं मिल पाया। 1980 तक आरक्षण का लाभ काफी हद तक अनुसूचित जातियों को मिल चुका था और उन्हें उसका फायदा भी हुआ था। ऐसे हालात देखकर गुजरात के अछूत वर्ग के लोगों ने 1980 में आरक्षण प्राप्ति के लिए आंदोलन किया, यह आंदोलन माननीय योगेन्द्र मकवाना जी के नेतृत्व में चला जो उस समय केंद्र सरकार में मंत्री थे। इस आंदोलन के पश्चात ही गुजरात के अछूत वर्गों को आरक्षण की श्रेणी में लाया गया। काफी हद तक आरक्षण के लाभ की धार उस समय तक काफी कुंद पड़ चुकी थी। इस प्रकार गांधी जैसे मनुवादी कांग्रेसी नेता ने गुजरात के अछूत वर्ग को आरक्षण के लाभ से वंचित किया। गुजरात देश का अकेला राज्य रहा है जहां पर आरक्षण का लाभ मनुवादी षड्यंत्र के चलते 1980 के बाद ही मिल पाया।

अपना दीपक स्वयं बनो: भगवान बुद्ध का मानव कल्याण के लिए उपदेश है कि प्रत्येक मनुष्य को समृद्ध बनने के लिए अपना दीपक स्वयं ही बनना पड़ेगा। इसी सिद्धान्त को अपनाते हुए शूद्र वर्ग के सभी लोगों को महिलाओं सहित जीवन में उत्कृष्टता और समृद्धता प्राप्त करने के लिए अपने मानसिक और शारीरिक संघर्ष के बल पर स्वयं ही अपना दीपक बनना पड़ेगा। भारत की सामाजिक व्यवस्था में मनुवाद ने इतने लपेट लगाए हुए हैं कि मनुष्य इस मनुवादी जाल से मुक्त हो ही नहीं पाता। मनुवादी व्यवस्था में मानसिक डर को अहम हथियार बनाया गया है। जिसके द्वारा पाखंडी किस्म के मनुवादी मानसिकता के लोग देश की भोली-भाली जनता में डर को मानसिक रूप में स्थापित करते हैं और उसी डर के माध्यम से वे जो चाहते हैं देश की भोली-भाली जनता से वे वैसा ही करवा लेते हैं। इस प्रकार के मनौवैज्ञानिक डर के पाखंड से देश की शूद्र जनता को बाहर निकालना होगा और तार्किक आधार पर अपने बुद्धि बल से अपने जीवन को आगे बढ़ना होगा। शूद्र वर्ग के सभी लोगों को सोचना होगा कि सदियों से हम मनुवादी व्यवस्था को ढो रहे हैं मगर किसी को कुछ भी फायदा क्यों नहीं मिला? शूद्र वर्ग के लोगों को यह भी आंकलन करना चाहिए कि मनुवादी व्यवस्थाओं ने शूद्र वर्ग में आजतक एक चपरासी तक भी पैदा नहीं किया जबकि जो लोग मनुवादी व्यवस्था को नहीं मान रहे हैं और वे अपने तार्किक और वैज्ञानिक बल के आधार पर जीवनयापन करने का प्रयास कर रहे हैं वे अपेक्षाकृत अधिक सुखी और सम्पन्न हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान लागू होने के पश्चात शूद्र वर्ण के लोग आज बड़े-बड़े सरकारी पदों पर स्थापित हैं, उन सभी का जीवन दूसरों के मुकाबले अधिक सम्पन्न है। इसे देखकर दूसरे शूद्र समाज के लोगों को सबक लेना चाहिए और यह संकल्प भी करना चाहिए कि हम मनुवादी व्यवस्था को न मानेंगे और न उसे अपने रोजमर्रा के जीवन में अंदर आने देंगे।

मानव समृद्धि के लिए पाखंड को छोड़ना एकमात्र रास्ता: मनुष्य अपने जीवन में प्राय: सुख और समृद्धि की कामना करता है। भारत में मनुवादी व्यवस्था को चिरायु बनाने के लिए मनुवादियों ने अनगिनत पाखंडों और प्रपंचों का षड्यंत्रकारी जाल खड़ा किया हुआ है जिसमें देश की भोली-भाली जनता जाने-अनजाने में हर समय निरंतरता के साथ उसमें फँसती रहती है और अपने श्रम के द्वारा कमाए गए धन को भी इन मनुवादी पाखंडों में खर्च करती रहती है। जिसका लाभ शूद्रों को नहीं बल्कि सीधा मनुवादी व्यवस्था वालों को मिलता है। शूद्र वर्ण बिना किसी लाभ के निरंतरता के साथ मनुवादियों की सेवा में लगा रहता है। भगवान बुद्ध के उपदेश के अनुसार शूद्र वर्ग के लोगों को इस मनुवादी जाल से निकलने के लिए अपना दीपक स्वयं ही बनना पड़ेगा अन्य कोई तथाकथित काल्पनिक भगवान और शक्ति आपके जीवन को सुखी और समृद्ध नहीं बना पाएगी।

वैज्ञानिक सोच और समझ गरीबी मिटाने का एकमात्र रास्ता: हम सभी देशवासी सरकारी आंकड़ों के आधार पर जानते हैं कि देश में गरीबी चरम सीमा पर है, लोगों के पास रोजगार नहीं है, देश में बच्चों की शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल नहीं है, इलाज के लिए अच्छे अस्पताल नहीं है और देश में आपसी सौहार्द व सामाजिक एकता नहीं है। यह सब दर्शाता है कि मनुवादी व्यवस्था के चलते देश की अधिकतर जनता बदहाली, कंगाली की कगार पर है। वर्तमान मोदी संघी सरकार बड़े गर्व के साथ कहती और प्रचारित करती है कि हम देश में 85 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन खिला रहे हैं। शूद्र वर्ग की जनता को अपने विवेक आधारित आंकलन से मनुवादी सरकारों से पूछना चाहिए कि जब भाजपा के अमृत काल में सबकुछ बढ़िया तरीके से चल रहा है तो फिर 85 करोड़ जनता भूखी क्यों हैं? और इनको फ्री का राशन क्यों दिया जा रहा है? अगर 85 करोड़ जनता को अनाज सरकार द्वारा बांटा जा रहा है तो इसका सीधा संकेत है कि देश में अपार गरीबी है, बेरोजगारी है और देश में भ्रष्टाचार भरपूर है वहीं शिक्षा का अभाव है, जो मोदी व संघियों के अमृत काल में अधिक फला-फूला व विकसित हुआ है।

वैज्ञानिक व तकनीकी सोच की कमी: देश में जब-जब मनुवादी संघी सरकारें रही हैं तब-तब वैज्ञानिक व तकनीकी शोध को कमजोर किया गया है। इसके आंकड़े अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है। मनुवादी संघी लोग जब-जब सत्ता में होते हैं तब-तब वैज्ञानिक व तकनीकी शोध को कमजोर किया जाता है। मनुवादियों की आंतरिक संरचना में यह गहराई तक बैठाया गया कि देश के शूद्र समाज में वैज्ञानिकता को बढ़ने न दिया जाये चूंकि वैज्ञानिकता के आधार पर शूद्र समाज के लोग समृद्ध होंगे और मनुवादियों के मुकाबले में खड़े होने की क्षमता प्राप्त करेंगे। इसलिए इनको वैज्ञानिक सोच से दूर ही रखना है। वैज्ञानिक सोच के आधार पर ही ये लोग अपनी गरीबी से बाहर निकल पाएंगे जो मनुवादी नहीं होने देना चाहते। देश की आजादी के बाद का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब केंद्र और राज्यों की सरकारों में मनुवादी मानसिकता की सरकारें आई हैं तब-तब वैज्ञानिक और तकनीकी सोच को षड्यंत्रकारी तरीके से ध्वस्त किया गया है। पूरा विश्व गवाह है कि जिन-जिन देशों में वैज्ञानिक और तकनीकी शोध को बढ़ावा दिया गया है उन-उन देशों में वहाँ की जनता समृद्ध और खुशहाल है और जहां-जहां वैज्ञानिक और तकनीकी शोध को नकारा और अनदेखा किया गया है वे सभी देश आज गरीबी के जाल में बुरी तरह फंसे हुए हैं। भारत और मध्य एशिया के कुछेक धर्मांध मुस्लिम देश इसके जीते-जागते उदाहरण है। इन सभी देशों में अंधश्रद्धा के कारण गरीबी चरम पर है और गरीबी से लड़ने के लिए बेरोजगार व अक्षम है।

शूद्र समाज अपने महापुरुषों के रास्तों को नहीं अपनाता: शूद्र समाज में सदियों से यह भयंकर कमी देखने को मिली है, यह समाज अपने महापुरुषों द्वारा बताएं गए रास्ते को आत्मसात नहीं करता, पूरा समाज मनुवादी प्रेरकों की बातों को ध्यान से सुनता है और उनके द्वारा बताये गए रास्ते पर ही चलता है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने समाज की ऐसी स्थिति को देखकर कहा था कि हमारा समाज हमारी बात न सुनता है और न मानता है, वह मनुवादी ब्राह्मणों की बातों को सुनता भी है और मानता भी है। अगर हमारा समाज हमारी बात सुने और माने तो समाज में इससे बढ़कर सुधार नहीं हो सकता। शूद्र समाज में बहुत सारे समाज सुधारक और चिंतक पैदा हुए हैं जिन्होंने समय-समय पर समाज को जागरूक और सशक्त बनाने के उद्देश्य से बहुत सारे प्रेरक उपदेश दिये, उनसे आग्रह भी किया कि आप मनुवादियों द्वारा बताये हुए रास्ते पर मत चलो, आप सभी तर्कशील बनो, शिक्षित बनो। आज शूद्र समाज में अधिकांशतया देखा जा रहा है कि उनमें अपने महापुरुषों की न जानकारी है और न उनके द्वारा बताये गए रास्तों का ज्ञान है। शूद्र समाज में शायद यह सबसे बड़ा कारण है कि उनमें वैज्ञानिक सोच और समझ की कमतरता है जो उनमें गरीबी और भुखमरी का सबसे बड़ा कारण है। गरीबी दूर करने के लिए वैज्ञानिक सोच और समझ का होना एक आवश्यक तत्व है। इसलिए शूद्र समाज के युवकों से आग्रह है कि वे अपने अंदर ज्ञान और विज्ञान की सोच और समझ को विकसित करें और अपने काम-धंधे मजबूत करें। पाखंडी आयोजनों (जैसे-काँवड़, भागवत कथा, सुंदर कांड आदि) में शामिल होकर अपना समय और धन बर्बाद न करें। इस समय और धन को अपने नियोजित विकास में लगाएँ और उसे अपने बुद्धिबल से आगे बढ़ाएँ।

भगवान बुद्ध के उपदेश ‘अपना दीपक स्वयं बनो’ की सार्थकता विश्वव्यापी कल्याण के लिए कारगर है जो भारत के शूद्र समाज के उत्थान के लिए तभी समग्र रूप से कारगर हो सकती है जब भारत का समस्त शूद्र वर्ण मनुवादी षड्यंत्रकारी पाखंड का संकल्प के साथ त्याग करें और अपने बुद्धि बल के आधार पर अपने आपको समग्र रूप से विकसित और सम्पन्न करने का निरंतर प्रयास करें। दुनिया में आज तक जितने मनुष्य आर्थिक रूप से सशक्त बने हैं वे सभी अपने बौद्धिक बल के आधार पर ही धनाड्य बन पाये हैं किसी काल्पनिक देवी-देवता और भगवानों की कृपा से नहीं।

जय भीम, जय संविधान, जय विज्ञान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05