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वैज्ञानिक संस्थागत ढांचे को मोदीसंघी सरकार ने किया कमजोर

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2025-09-26 18:24:23

आज जिस दौर से भारत गुजर रहा है वह देशी और विदेशी ताकतों के सामने कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। इसका कारण मोदी-संघियों की मानसिकता में घोर धार्मिक अंधता है; और वे सोचते हैं कि सरकार में निरंतरता के साथ बने रहने के लिए जनता में धार्मिक अंधता, पाखंड, झूठ आधारित प्रचार सबसे बड़ा कारगर हथियार हैं। जिसे देखकर जनता के मन में अनेकों सवाल उत्पन्न हो रहे हैं चूंकि देश के आर्थिक हालात दिन-प्रतिदिन कमजोर होते जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा तथ्य जनता के सामने है कि आज भारत वर्ल्ड बैंक का सबसे बड़ा कर्जदार बन गया है। आज भारत पर 24.4 बिलियन डॉलर्स का कर्ज है जो विश्व में सबसे अधिक है। अंधभक्तों का भारत विश्व गुरु तो नहीं बना बल्कि विश्व ऋणी बनकर विश्व में पहले स्थान पर पहुँच गया है। देश को पहले नंबर पर पहुंचाकर मोदी-संघी सरकार ने पाकिस्तान, बांग्लादेश व अन्य समकक्ष देशों को भी पीछे छोड़ दिया है। संघी विश्व गुरु का करिश्मा यही है कि झूठ बोलो, बार-बार बोलो और जोर से बोलो। हाल ही में मोदी-संघी सरकार ने जीएसटी ‘कर’ में मामूली रियायत देकर अपने लफरझंडिस विधायकों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को बड़े पैमाने पर इसके संघन प्रचार-प्रसार के लिए जनता के सामने उतार दिया है।

जनता मोदी सरकार से करे सवाल? मोदी और उसकी सरकार के लफरझंडिस नेताओं से जनता को सवाल करना चाहिए कि जीएसटी के माध्यम से मोदी सरकार पिछले आठ वर्षों से देश की जनता को लूट रही थी तब मोदी सरकार के लफरझंडिस सांसद, विधायक और मंत्रियों ने जनता की इस लुटाई के संबंध में सवाल क्यों नहीं पूछा? अब सभी कह रहे हैं कि मोदी ने जनता को जीएसटी कर में बड़ी राहत दी है, ऐसा कहने पर इन सबको शर्म आनी चाहिए और उन्हें यह भी बताना चाहिए कि मोदी ने जो पिछले आठ वर्षों से देश की जनता को लूटा है पहले वे उसका हिसाब दें! फिर अपने आपको मोदी का अंधभक्त और गुलाम मानसिकता का व्यक्ति समझें। गोदी मीडिया और उसमें बैठे संघी मानसिकता के लफरझंडिस बार-बार ‘धन्यवाद मोदी जी’ कहकर देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं। अब जनता को ऐसी बातें सुनने में कोई विश्वास नहीं है। जनता को चाहिए ठोस जन कल्याणकारी फैसले और उनसे जनता को मिलने वाला सीधा लाभ। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता और उनके संघी साथी, मंत्रीगण मोदी का रात-दिन गुणगान करने में लगे हैं। दिल्ली की सड़के, गलियाँ और कानून व्यवस्था कितनी गंभीर हालत में है उन पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। दिल्ली सरकार का पूरा सरकारी तंत्र मोदी की जय-जयकार करने में व्यस्त है। जनता अब ऐसे दिखावे और छलावे में फँसने वाली नहीं है।

आजादी से पहले और आजादी के बाद देश में सैंकड़ों वैज्ञानिक, औद्योगिक, तकनीकी संस्थानों की स्थापना हुई, जिनकी आधुनिक भारत की नींव रखने में अहम भूमिका है। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इन सभी संस्थानों को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ की उपाधि दी थी।

आजादी से पहले स्थापित हुए वैज्ञानिक संस्थान: भारत में आजादी से पहले बनी प्रमुख वैज्ञानिक संस्थाओं में भारतीय सर्वेक्षण विभाग (1767), भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) (1861), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) (1909), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) (1911), इंडिया काउंसिल आॅफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) (1929), राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (एनएएसआई) (1930), भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) (1935), और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) (1942) शामिल हैं, जो वैज्ञानिक अनुसंधान और अन्वेषण की मजबूत नींव रखने में सहायक बने। इन वैज्ञानिक संस्थानों को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पूरा समर्थन और संरक्षण देकर आगे बढ़ाया और ये सभी प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान सीधे देश के प्रधानमंत्री के अधीन में रखे गए।

आजादी के बाद स्थापित वैज्ञानिक संस्थान: भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ तब इस देश में केवल 21 विश्वविद्यालय थे और 500 कॉलेज स्तर के संस्थान थे। इन सभी संस्थानों और विश्वविद्यालयों का व्यापक विस्तार किया गया। आज देश में 1000 के करीब विश्वविद्यालय और उनके अधीन करीब 45 हजार कॉलेज हैं। देश में आज 23 IIT और NITs की संख्या 31 हैं जिनकी स्थापना 1951 के बाद कांग्रेस के शासन काल में ही हुई। ये सभी संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं। ये सभी वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थान विश्वभर के बेहतरीन संस्थानों को सभी तरह से आज टक्कर देने में सक्षम है। देशभर में आज AIIMS की संख्या 26 है जो अधिकतर कांग्रेस शासन काल में ही बने हैं। मोदी काल में सिर्फ 3-4 AIIMS बनाने की घोषणा हुई है, लेकिन उनकी न आजतक बिल्डिंग है और न उनमें स्टाफ है। खानापूर्ति के लिए सिर्फ मोदी के जूठे जुमले और घोषणाएँ चल रही है।

वैज्ञानिक व शैक्षणिक संस्थाओं को दो भागों में बांटकर देखना होगा: नेहरू जी की इसी सोच ने देश में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), डिपार्टमेन्ट आॅफ ऐटोमिक एनर्जी (DAE) व अन्य सैंकड़ों की तादाद में वैज्ञानिक संस्थानों की स्थापना की। अगर हम सीएसआईआर को ही लें तो देशभर में उसकी करीब 40 राष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशालाएँ व वैज्ञानिक संस्थानों का संगठन हैं जो देश की जरूरत के हिसाब से विभिन्न क्षेत्रों में शोध व अन्वेषण का कार्य करता है। ये सभी प्रयोगशालाएँ विभिन्न तकनीकी क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखती है, ताकि देश के सामने किसी भी संकट का समाधान ढूँढने में ये प्रयोगशालाएँ अपना विशेष योगदान दे सकें। मगर वर्तमान मोदी-संघी सरकार वैज्ञानिक सोच, शोध और तकनीकी ज्ञान की प्रबल विरोधी है। इन सभी प्रयोगशालाओं को पिछले 10 वर्षों में धीरे-धीरे कमजोर किया गया है। देश में लिथियम का भारी भंडार पाया गया है मगर उसका कैसे उत्खनन किया जाये, उसके लिए मोदी सरकार के पास न सोच है और न वह देश में मौजूद राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं में मौजूद वैज्ञानिकों का सहारा लेना चाहती है और न उन्हें यह काम सौंपना चाहती है। विभिन्न सूत्रों के माध्यम से देश की जनता को मालूम चल रहा है कि जहां-जहां देश में लिथियम के भंडार है उन क्षेत्रों की जमीन को औने-पौने दाम पर अधिग्रहण करके मोदी अपने संघी व्यापारी मित्रों को सौंपना चाहती है ताकि वे उसे वैश्विक जरूरत के हिसाब से प्रयोग में लाने लायक बनाए। देश में इस प्रकार के खनिज सम्पदा के बहुत सारे भंडार है जिनका उत्खनन करके मानवीय जरूरतों के हिसाब से उन्हें प्रयोग में लाने लायक बनाया जा सकता है। जिससे देश में रेयर अर्थ की कमी का भी समाधान हो सकेगा। देश की जरूरत के हिसाब से संसाधनों का भी निर्माण हो सकेगा। इस तरह की देशव्यापी सोच आजादी के पहले, दूसरे और तीसरे दशक के नेताओं में मौजूद थी लेकिन संघी मानसिकता का दौर आने से देश की मानसिकता में धार्मिक अंधता को गहराई तक समाहित किया गया। सभी वैज्ञानिक शोध संस्थानों का भगवाकरण किया गया है। आज पूरे विश्व को मालूम है कि लिथियम एक ऐसी धातु है जिससे विद्युत संचालित परिवहन जगत में क्रांति लाई जा सकती है। इसके लिए देश की सत्ता में बैठे नेताओं में वैज्ञानिक सोच और समझ की घोर कमी है। आज देश में जो वैज्ञानिक संस्थानों का जाल मौजूद है उसे वर्तमान संघी मानसिकता की सरकार कांग्रेस काल की उपलब्धि मानकर ध्वस्त करके उस काल के योगदान को नकारने में लगी है। इस सोच की सच्चाई को मोदी-संघी सरकार देश की जनता के सामने नहीं ला रही है, जिसके कारण देश को अपूर्णीय क्षति हो रही है।

मनुवादियों द्वारा खनिज संपदा की लूट योजना: देश में अनेकों खनिज संपदा के भंडार है उन खनिज सामग्री को अगर देश की राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं को एक निश्चित टारगेट और समय सीमा देकर उनसे कहा जाये कि आपको इस उत्खनन किए गए पदार्थ से अमुख धातु को संशोधित करके मानव उपयोगी बनाना है तो ये सभी राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ खुशी-खुशी इस देश उपयोगी कार्यक्रम में जुट जाएंगी, जिससे देश में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे, आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। भारत को चीन और अमेरिका की तरफ नहीं देखना पड़ेगा। ऐसा करने से देश में आत्मनिर्भरता आएगी और विश्व का कोई भी देश भारत को ब्लैकमेल नहीं कर पाएगा। आज अगर कोई विश्व का देश भारत को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा है तो वह सिर्फ मोदी के पिछले 10-11 वर्षों की विफलता के कारण ही कर पा रहा है। अमेरिका की ट्रम्प सरकार द्वारा H-1B वीजा की फीस एक लाख डॉलर करने से देश के युवाओं पर जो भार पड़ेगा वह अप्रत्याशित होगा। इस सबके पीछे मोदी-संघी शासन की विदेश नीति की घोर विफलता है जो मोदी के अंधभक्तों और देश के गोदी मीडिया को दिखाई नहीं दे रही है। देश की बेरोजगार जनता मोदी शासन में बेहाल हो चुकी है और वह किसी भी तरह से मोदी संघी शासन से छुटकारा चाहती है।

मोदी-संघी शासन के खिलाफ देश में जन-आक्रोश: वर्तमान समय में जनता बेहाल है, वह बेरोजगारी और महंगाई से परेशान है। आज देश के सामने महंगी दवाइयाँ, महंगी शिक्षा, महंगे खाद्यान देश की जनता को बैचेन किए हुए हैं। जनता सरकार से इन सबका समाधान चाहती है लेकिन सरकार उन्हें कोई समाधान न देकर उन्हें पाखंड में धकेलना चाहती है। पूरे देश में पाखंडी बाबाओं, सत्संगकर्ताओं, मनुवादी प्रचारकों, कथावाचकों को जनता में उतारा गया है ताकि जनता अपनी समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर बात न करे वह सिर्फ पाखंडी छलावों व षड्यंत्रकारी जालों में फँसकर अपने आपको भगवान भरोसे मानने के लिए विवश हो जाये। वर्तमान समय में मोदी-संघी सरकार ने देश के शिक्षण संस्थानों का भगवाकरण अभियान चलाया हुआ है। देश की अशिक्षित महिलाओं को कलश यात्राओं, राम-लीला मंचनों में लगाया जा रहा है, ताकि देश की जनता वास्तविक समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर सरकार के सामने कोई सवाल न रखे।

मोदी की कार्यशैली: मोदी के 11 साल के शासन के दौरान देखा गया है कि मोदी के पास न कोई विकास की दृष्टि है, न उसके पास देश की जनता से जुड़े मुद्दों के समाधान हैं। मोदी और उसके लफरझंडिस नेता और मंत्री वर्तमान समय की समस्याओं पर बात नहीं करते वे अक्सर 1947 के बाद बनने वाले भारत की बात करते हैं जिसे न आज तक मोदी-संघियों ने देखा हैं और न उनके अंधभक्तों ने देखा है। इस तरह की मोदी छलावामयी तस्वीरों को दिखाकर देश की भोली-भाली जनता को छलने का काम कर रहे हैं। अब देश की भोली-भाली जनता मोदी-संघियों के इस षड्यंत्र को समझ चुकी है और वह कहने लगी है कि हमें मोदी के न अच्छे दिन चाहिए और न हमें विकसित भारत चाहिए, हमें तो मोदी-संघी शासन हमारे पुराने दिनों को ही लौटा दें। चूंकि अब देश की जनता यह समझ चुकी है कि मोदी के पास झूठ और छलावों के अलावा कुछ भी नहीं है। अब देश की जनता को अपनी वोट की ताकत से ऐसे छलावामयी प्रवृति के षडयंत्रकारी संघी व्यक्ति को सत्ता से हटाना चाहिए। आज देश की जनता अपने वोट की चोरी से भी बड़े पैमाने पर आशंकित है और अपने वोट की चोरी को रोकने के लिए साक्ष्य आधारित सरकार से आश्वासन चाहती है। आज देश की भोली-भाली जनता को मोदी ने ऐसे संघी भंवर जाल में धकेल दिया है कि उसे समझ में नहीं आ रहा है कि वर्तमान शासन व्यवस्था से कैसे निपटा जाये?

आज देश की जनता के सामने जो समस्याएँ हैं, वे मोदी-संघी शासन के पिछले 11 सालों में राजनीतिक सत्ता की शक्ति से ही निर्मित की गई है इसलिए इनसे निपटने के लिए जन-हितैषी राजनीतिक शक्ति की आवश्यकता है। देश में प्रजातंत्र है, सभी जानते हैं कि प्रजातंत्र में राजनैतिक सत्ता की चाबी जनता के पास होती है, जनतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है। इसलिए वर्तमान समस्याओं का समाधान भी राजनैतिक समाधानों में ही निहित है। राजनैतिक समाधान यह होगा कि देश की जनता मोदी को सत्ता से जल्द-से-जल्द बेदखल करें और आगे कभी देश की सत्ता में मनुवादियों को न आने दें। पिछले 11 वर्षों में मोदी, उसके संघी साथियों और व्यापारी मित्रों ने देश की जनता को भरपूर तरीके से लूटा है इसलिए मोदी संघी शासन को बेदखल करना भारत की जनता के लिए आवश्यक हो गया है।

वोट चोरों, गद्दी छोड़ो

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05