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विपक्ष पर संसद नहीं चलने देने का आरोप असंगत

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2025-08-29 18:42:22

देश की आम जनता को समझाने के उद्देश्य से बताना चाहते हैं कि संसद या विधानसभा देश का वह स्थान है जहां पर जनता, जनता के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया के द्वारा प्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है। इस प्रक्रिया द्वारा चुने गए प्रतिनिधि वहाँ बैठकर देश या प्रदेश की सरकार का निर्माण करके, जनता से जुड़े मुद्दों पर बहस करके, सरकार का संचालन करते हैं। संसद या विधानसभा किसी खाली स्थान या जगह का नाम नहीं है, सरकार के निर्माण और वहाँ पर चुनकर आए प्रतिनिधियों द्वारा विचार-विमर्श और बहस के तहत जनता से जुड़े मुद्दों पर जो सहमति बनाई जाती है उसे जनकल्याण के लिए लागू करने का फैसला भी यही पर लिया जाता है। इसलिए संसद या विधानसभा एक सुनिश्चित भवन का नाम होता है जहां से देश का शासन-प्रशासन संचालित होता है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में यह स्थान सत्ता का केंद्र बिन्दु होता है। जनता के मुद्दों को संसद/विधान सभाओं में विपक्ष द्वारा उठाना और उस पर गरमा-गरम बहस को सत्ता पक्ष द्वारा हंगामा करार देना, उचित नहीं है बल्कि वह सत्ता पक्ष का अलोकतांत्रिक तानाशाही का प्रतीक है।

भारत में प्रजातांत्रिक व्यवस्था है, सरकार का संचालन भारतीय संविधान के तहत होता है। भारत में संविधान सत्ता है, संविधान ही सर्वोपरि है, संविधान के ऊपर सरकार का दूसरा कोई अंग या नामित व्यक्ति नहीं है। भारतीय समाज में सामाजिक विविधता है, यहाँ पर सभी धर्मों, कबीलों, क्षेत्रों, बहुत सारी बोले जाने वाली भाषाएँ व बोलियाँ है, सभी को समतामूलक अधिकार प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 25-30 में धर्म से जुड़े प्रावधानों की व्याख्या है। भारत में संविधान के मुताबिक सभी धर्म, सभी सम्प्रदाय, सभी क्षेत्रीय जातियाँ-जनजातियाँ सब समान है, सबको किसी भी आधार पर असमान नहीं माना जाता है, सभी के लिए एक समान कानून है। ये सब बातें देश में एकता और अखंडता स्थापित करने के लिए संविधान में निहित की गई है। केंद्रीय सत्ता को अधिक महत्व दिया गया है चूंकि जब भारत के संविधान का निर्माण बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा किया जा रहा था तब संविधान सभा में चुनकर और नामित होकर कुल 389 सदस्य आए थे, जिनमें से 299 सदस्य भारत के राज्यों से निर्वाचित होकर आए थे। शेष 90 सदस्य रियासतों के राजाओं-महाराजाओं द्वारा नामित थे। राज्यों के सदस्यों को वयस्क मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से चुना गया था। रियासतों के सदस्यों का चयन उनके संबंधित रियासतों के शासकों द्वारा नामित किया गया था। संविधान निर्माण प्रक्रिया के तहत कई सदस्यों का मत था कि संविधान में कुछेक वर्गों, समुदायों आदि को विशेष अधिकार दिए जाए। जिसे बहस के दौरान संविधान सभा ने असहमति जताकर खारिज कर दिया था। संविधान निर्माण के वक्त भी मनुवादी संस्कृति और मानसिकता के लोग मौजूद थे जिनका मुख्य काम संविधान सभा की बहसों में नकारात्मक विषयों को उठाकर जोर-जोर से बहस करना और संविधान प्रक्रिया में बाधा डालना रहा था। कुछेक ब्राह्मणी-मनुवादी संस्कृति के लोगों द्वारा बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का तीखा विरोध किया जा रहा था। लेकिन बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने मनुवादी संस्कृति के लोगों के सवालों का अपनी बौद्धिक तर्कवादी क्षमता से जवाब दिया और सभी को संतुष्ट भी किया था। फिर भी मनुवादी संस्कृति के लोग अपनी खुराफाती हरकतों से बाज न आकर अक्सर शोर-शराबा करते थे, जिसके तत्व आजतक उनमें मौजूद है। इस संस्कृति के लोगों का मुख्य मकसद था कि देश के सभी नागरिकों को संविधान में समान अधिकार न दिये जाएं। खुराफातियों द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों को झेलकर भी बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए थे। उन्होंने अपने लक्ष्य के मुताबिक भारत को समतामूलक संविधान दिया और उसको क्रियान्वित करने के लिए भारतीय शासन को चेताया भी। 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में दिये गए अपने अंतिम भाषण में उन्होंने देश की जनता को चेताया था, कि ‘‘मैं यह महसूस करता हूं कि संविधान चाहे जितना बेहतर हो, अगर उसे लागू करने वाले लोग गलत हुए तो वह बुरा संविधान साबित होगा। इसी तरह एक संविधान चाहे जितना बुरा हो लेकिन अगर उसे लागू करने वाले लोग अच्छे हुए तो वह अच्छा संविधान साबित होगा।’’ 76 वर्षों से देश में संविधान सत्ता है लेकिन मनुवादी संघी संस्कृति की सामाजिक वैचारिकी में दलितों, महिलाओं, पिछड़ी जातियों व अल्पसंख्यकों के साथ किये जा रहे उत्पीड़न व भेदभाव पूर्ण व्यवहार में कोई कमी नहीं आयी है।

जनता की समस्याओं पर सरकार का ध्यान नहीं: देश की वास्तविक समस्याओं पर चर्चा करने के लिए सरकार के पास समय नहीं है उनके पास समय सिर्फ अनर्गल बातें करके, जनता में गलत प्रचार करके, जनता में भ्रम फैलाना है कि विपक्ष संसद को चलने नहीं दे रहा है, विपक्ष सदन को बाधित कर रहा है, जिस पर देश का करोड़ों रुपया हर घंटे बर्बाद हो रहा है। इन गलत बातों को जनता में प्रचारित और प्रसारित करने के लिए मनुवादी सरकार के पास संघी प्रचारक और तंत्र है, जिसका इस्तेमाल 24७7 किया जा रहा है। आज जनता की असली समस्याएँ हैं, महंगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, भ्रष्टाचार, यातायात आदि से जुड़े मुद्दे। जिनपर सरकार संसद में कोई चर्चा करने के लिए तैयार नहीं है। उल्टे विपक्ष को संसद में जब समय दिया जाता है तो उसे मनुवादी संस्कृति के तहत बार-बार बाधित करने की कोशिश की जाती है। जो सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संघर्ष बन जाता है। जिसे सरकार का सारा तंत्र जनता में इस प्रकार प्रसारित करके पेश करता है कि विपक्ष सदन को चलने नहीं दे रहा है। जिसके कारण देश को करोड़ों रुपए का हर रोज नुकसान हो रहा है। देश की कम समझ जनता में नुकसान होने की बात उनके मस्तिष्क में घर कर जाती है, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया जाता कि जनता से जुड़े मुद्दे संसद में नहीं उठाए जाएँगे तो वे कहाँ उठाए जाएंगे? जिसे सत्ता पक्ष विरोधियों द्वारा संसद में हंगामा करने का आरोप लगाकर अपने गोदी मीडिया द्वारा जनता में प्रचारित करता है।

सरकार और संविधान: वर्तमान में मनुवादी मानसिकता की सरकार है जिसका मूल आधार विषमतावादी है, समाज में नफरत और भेदभाव को बढ़ावा देना है, सांप्रदायिकता के आधार पर जनता में डर के भाव को निहित करना है। देश की वर्तमान सरकार के पास हिन्दू-मुसलमान, गाय-गोबर के अलावा कोई दूसरा मुद्दा नहीं है। वे हर समय हिन्दू-मुसलमान, गाय-गोबर का ही राग अलापते हैं। वर्तमान सरकार ने देश के प्रत्येक शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में मनुवाद को गहराई तक स्थापित कर दिया है। विश्वविद्यालयों में जहां पर ज्ञान-विज्ञान की चर्चा होनी चाहिए वहाँ पर गाय-गोबर और गौमूत्र से जुड़े अनुसंधानों को महत्व दिया जा रहा है। देश में वास्तविक तकनीकी शोध व अनुसंधान पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है। वर्तमान सरकार का फोकस सिर्फ मंदिर निर्माण, गाय-गोबर और कथावाचकों पर है जिससे देश की जनता को कोई लाभ नहीं होने वाला है और न ही देश तरक्की के मार्ग पर अग्रसर होकर आगे बढ़ सकता है। वर्तमान सरकार की प्राथमिकता में पाखंडी बाबाओं, सत्संगकर्ताओं, प्रचारकों व अन्य पाखंड फैलाने वाले तंत्रों पर है, ये सभी पाखंड फैलाने वाले लोग सत्ता बल के सहारे आगे बढ़कर देश की जनता में अवैज्ञानिकता का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। मनुवादियों का एक ही मन्तव्य है कि देश की जनता में जितना पाखंड व अंधविश्वास फैलाया जाएगा, मनुवाद को उतना ही फायदा होगा। पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनुवादियों की सरकारें बनती रहेंगी और देश के बहुसंख्यकों का शोषण मनुवादी विचारधारा के तहत होता रहेगा।

मोदी शासन में पाखंड का पुर्नजागरण: चौदहवीं शताब्दी में यूरोपीय समाज में पुर्नजागरण की भावना जाग्रत हुई थी जिसके तहत चर्चों द्वारा फैलाये और प्रचारित किए जा रहे पाखंड के खिलाफ जनता में तर्क आधारित बातों को बल मिला था। इन सब बातों के चलते चर्च में बैठे पादरी यूरोप के पुर्नजागरण का विरोध कर रहे थे। उस वक्त यूरोप में चर्च/पोप का शासन था यूरोप के लोग पोप की बातों को अंतिम मानते थे और वहाँ की सामाजिक स्थिति आज के भारतीय समाज जैसी ही थी। आज भारतीय समाज में पाखंडी बाबाओं जैसे-बाबा रामदेव, बागेश्वर धाम, राम भ्रदराचार्य, प्रेमानंद, सत्य साई बाबा, निर्मल बाबा, स्वामी नित्यानंद, जग्गी वासुदेव, देवकीनन्द ठाकुर, अनिरुद्धचार्य, आदि को सम्मान देकर जनता में स्थापित किया जाता है और उनके पाखंड का अनुशरण किया जाता है। बदले में उनको दान-दक्षिणा देकर माला-माल किया जा रहा है। आज देश में हजारों की तादाद में बाबा हंै जिनके पास अरबों की अथाह संपत्ति है। वर्तमान सरकार में बैठे मंत्री, प्रधानमंत्री आदि इन सभी बाबाओं के सामने नतमस्तक होते हैं उन्हें यथासंभव आश्रम आदि बनाने के लिए जमीन इत्यादि भी दी जाती है। जो बदले में इन राजनैतिक नेताओं को फायदा पहुँचाने के लिए चुनाव के दौरान इनका प्रचार भी करते हैं, और सत्ता में पहुंचाने के लिए सभी वैध-अवैध कार्यों को अंजाम भी देते हैं।

जनता की मूर्खता से बढ़ रहा पाखंडवाद: बाबाओं और कथावाचकों में कुछेक बाबा और कथावाचकों का इतिहास अपराधी है, जो अपने अपराधिक कृत्यों के कारण जेलों में बंद है। लेकिन भारतीय समाज के सामने विडम्बना यह है कि जिन महिलाओं या उनके सगे-संबंधियों के साथ तथाकथित बाबाओं ने शारीरिक शोषण देखा और झेला है वे अभी तक भी इन तथाकथित पाखंडी बाबाओं के प्रचार से मुक्त नहीं हो पाये हैं। देश की विभिन्न राजनैतिक पार्टियों में बैठे राजनेता इन पाखंडियों के समागम में समय-समय पर शामिल भी होते हैं और उन्हें आगे बढ़ाने का काम भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर भाजपा के जितने भी वरिष्ठ राजनेता हैं उनमें अधिकतर इन बाबाओं के समर्थक हैं। मनुवादी शासन में सिर्फ बाबा ही शामिल नहीं बल्कि उनमें बहुत सारी साध्वी कहे जाने वाली महिलाएं भी हैं जो देश के संदिग्ध मामलों में लिप्त होने के कारण जेल भी काट चुकी हैं। वर्तमान समय में केंद्र और प्रदेशों की सरकारों में मनुवादी सरकारें हैं जो इन अपराधिक साध्वियों को अपराध से मुक्ति दिलाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हंै और इन साध्वियों को देश की धरोहर भी बता रहे हैं।

संसद चलाने की जिम्मेदारी किसकी? संसद को संचालित करना सत्ता पक्ष का काम है विपक्ष का नहीं। विपक्ष का कार्य सरकार को जनता की समस्याओं से अवगत करना है और उससे जुड़े मुद्दों पर सरकार के साथ गंभीर बहस करके समाधान निकालना है। विपक्ष द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों को संख्या बल के आधार पर सत्ता दल द्वारा कुचलना संसदीय प्रणाली का हिस्सा नहीं होना चाहिए। अगर सत्ता पक्ष अपने सांसदों की संख्या बल और मनुवादी हठी संस्कृति के कारण जनकल्याण से जुड़े मुद्दों को कुचलना चाहता है तो वह असंसदीय, अवैज्ञानिक और अलोकतांत्रिक भी है। सत्ता पक्ष को समझना होगा कि विपक्षी दल सदन में जो मुद्दे उठा रहे हैं उन पर सरकार गंभीर विचार और विमर्श करे अगर सरकार ऐसा न करके संसद न चलने का दोष विपक्षी दलों पर मढ़ने की कोशिश करती है तो यह उनकी कुटिलता और धूर्तता को ही प्रदर्शित करती है। वर्तमान मनुवादी सरकार को पता है कि आम जनता संविधान और संसदीय प्रणाली की बारीकियों को समझने में विफल हो सकती है इसीलिए वर्तमान मनुवादी सरकार देश की जनता के सामने मुद्दा सिर्फ यह उठाती है कि विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है जिसके कारण प्रति घंटे देश को करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। जिन व्यक्तियों को मनुवादी सरकारों की यह बात आसानी से समझ आ रही है, वे यह भी समझ ले कि संसद को चलाने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की होती है, विपक्ष की नहीं। इसलिए संसद में हंगामे करके विपक्ष को दोष देना गलत है। अगर संसद नहीं चल पा रही है तो इसमें विफलता सिर्फ और सिर्फ सत्ता में बैठी मोदी सरकार की है, न कि विपक्ष की।

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 16:38:05