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वर्तमान राजनैतिक परिवेश में ‘एकला चलो’ की नीति ही उपयुक्त

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2024-02-02 11:28:06

भारतीय समाज की मानसिकता में गहराई तक जातिवाद और ब्राह्मणवाद है। बिना जाति व ब्राह्मणवाद की मानसिकता के समाज का कोई भी अंग अछूता नहीं है। 2024 में होने जा रहे लोक सभा चुनाव को देखते हुए सात-आठ महीने से देश के विभिन्न राजनीतिक दलों में गठबंधन की सुगबुगाहट हर रोज रंग बदलती दिख रही है। अभी तक भाजपा संघी-एनडीए के गठबंधन को छोड़कर दूसरे ‘इंडिया’ नाम के गठबंधन ने पक्का आकार नहीं लिया है। ‘इंडिया गठबंधन’ 28 राजनैतिक दलों का गठबंधन कहा जा रहा था जो अब 27 दलों का गठबंधन रह गया है। गठबंधन का वर्तमान हाल तराजू के पलड़े में मेढकों को इककट्ठे करके तोलने जैसा है। इंडिया के प्रमुख घटक दल के नेता नीतीश कुमार का पलटी मारने का चरित्र सबके सामने आ गया है। नीतीश कुमार की ऐसी गतिविधियों के कारण ही उसको पलटू राम कहा जाता है। अभी तक वे छ: बार पलटी मार चुके हैं। किसी भी दल के मुखिया का इस प्रकार से बार-बार पलटी मारने से अकेले उनकी पार्टी का नुकसान नहीं होता बल्कि इसका असर दल के कार्यकर्ताओं पर भी पड़ता है, दल के मुखिया की विश्वसनीयता कम होती है। नीतीश कुमार अब लालू के गठबंधन को छोड़कर मोदी के भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए है। नीतीश कुमार ने अपने इस प्रकार के चरित्र से जनता में अपनी विश्वसनीयता और भरोसा खोया है। बहुजन स्वाभिमान संघ ने अपने बहुजन स्वाभिमान साप्ताहिक अखबार में हिंदूवादी मानसिकता वाले राजनैतिक दलों के बारे में जनता को चेताया था कि जिन राजनैतिक दलों के डीएनए में हिंदुत्व और ब्राह्मणवाद निहित है। उन पर बहुजन समाज की राजनैतिक पार्टी (बीएसपी) व उसके समर्थकों को विश्वास नहीं करना चाहिए। इंडिया गठबंधन में अखिलेश यादव की एसपी, अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ का चरित्र भी मनुवादी हैं। इन पार्टियों के डीएनए में ब्राह्मणवाद, जातिवाद, संघी व सामंतवादी चरित्र का घालमेल है। इन राजनैतिक पार्टियों के साथ कोई भी राजनैतिक गठबंधन बहुजन समाज के हित में नहीं हो सकता। ऐसी सोच के पीछे इन दलों के डीएनए में मनुवादी चरित्र का होना है। जो इनको सोचने और स्थिर नहीं रहने देता है। ये सभी राजनैतिक दल अपने स्वार्थवश मेढक की तरह ही उछल-कूद करते रहते हैं। इसीलिए इन मेढ़क प्रवृति के स्वार्थी, मनुवादी रूपी राजनैतिक दलों को एक पलड़े में रखा नहीं जा सकता।

बहन जी की एकला चलो नीति सही है: इस देश में मनुवाद का मुकाबला आज आंबेडकरवाद से ही संभव है। चूंकि आज के राजनैतिक परिदृश्य में दोनों विचारधाराओं का टकराव चल रहा है। इस व्यवस्था का सटीक इलाज आंबेडकरवाद से ही संभव है। जो राजनैतिक दल और कार्यकर्ता अपनी भ्रामक मानसिकता के कारण दो नाव में सवार होकर चलने की नीति बनाये हुए हैं वे अपनी मानसिक भ्रामकता के कारण अवश्य ही डूब जाएँगे। देश में बड़ी अजीब सी स्थिति है, जिन राजनैतिक दलों ने कांग्रेस को ध्वस्त किया अब कांग्रेस उन्हीं को साथ लेकर 2024 का लोकसभा चुनाव जीतकर सत्ता में आने का सपना देख रही है। बहुजन समाज का कांग्रेस की अगुआई में बनने वाले राजनैतिक दलों से आग्रह है कि अगर उनमें थोड़ी भी शर्म-हया, मान-मर्यादा बची है तो वे केजरीवाल जैसे संघी खलनायक को इंडिया गठबंधन से दूर रखें। केजरीवाल कांग्रेस को फायदा कम और नुकसान ज्यादा करेगा। आज के सामाजिक व राजनैतिक परिवेश को देखकर लगता है कि नीतीश का भाजपा के साथ जाने से नीतीश का ही नुकसान होगा। उनकी विश्वसनीयता घटेगी और जनता के मस्तिष्क पटल पर नीतीश का राजनैतिक भार आज नगण्य हो चुका है। नीतीश कुमार का यह ताजा राजनैतिक कदम उनके लिए आत्मघाती सिद्ध होगा। ममता बनर्जी की टीएमसी का चरित्र भी पूरे देश को पता है कि ममता बनर्जी एक राजनैतिक लड़ाका है, उनकी जीवन शैली भी अन्य के सापेक्ष सादगी भरी है। अन्य राजनैतिक दलों की तरह उनके ऊपर राजनैतिक भ्रष्टाचार के आरोप भी न के बराबर है। लेकिन ममता बनर्जी जाति से बंगाल की ब्राह्मण है और उनके डीएनए में भी किसी हद तक ब्राह्मणवाद जरूर बसता है। जिसका सबूत वाजपेयी की संघी सरकार में उनका शामिल होना है। वाजपेयी की संघी सरकार में शामिल होना यह दर्शाता है कि उनकी मानसिकता में कहीं न कहीं ब्राह्मणवाद है। ममता बनर्जी की बंगाल में पिछले 12 साल से सरकार है और बंगाल देश का ऐसा राज्य है जहाँ पर दलितों और मुस्लिमों की आबादी अन्य प्रदेशों से अपेक्षाकृत अधिक है। बहुजन समाज के दलित व मुस्लिम समुदायों को इककट्ठा होकर सोचना चाहिए कि जब समाज में दलित-मुस्लिम अधिसंख्यक हैं तो फिर ब्राह्मण समाज से आने वाला व्यक्ति प्रदेश का मुख्यमंत्री क्यों? यह ऐसा सवाल है जिस पर बहुजन समाज के दलित और मुस्लिम धड़ों को मिलकर सोचना चाहिए।

इंडिया गठबंधन का तीसरा प्रमुख दल अखिलेश की सपा का है जिसका पारिवारिक चरित्र गहराई तक ब्राह्मणवादी, मनुवादी और सामंतवादी है। बहुजन समाज उनके इस चरित्र को मुख्यमंत्री काल के व्यवहार से समझ सकता है। 2007 में बहन जी की सरकार जाने के बाद जब अखिलेश यादव 2012 में मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने बहन जी के आंबेडकरवादी कार्यों को पलटना शुरू किया था। जिन कस्बों, शहरों, पार्कों के नाम अम्बेडकरी मिशन के तहत रखे गए थे उनके नाम बदले और बहन जी के मुख्यमंत्रित्व काल में जिन दलित कर्मचारियों को पदोन्न्ति दी गई थी अखिलेश सरकार ने प्रदेश का शासन सँभालते ही उन सभी कर्मचारियों को तुरंत प्रभाव से पदोच्छित किया था। शासन के पुलिस विभाग में जो दलित समुदायों के कर्मचारी मैदान में तैनात थे, उन्हें ट्रांसफर करके दफ़्तरों में बैठाया गया था। दलित व कमजोर वर्गों के ऊपर सामाजिक उत्पीड़न की घटनाएँ बेतहाशा बढ़ी थी। कुल मिलकर यूँ कहें कि अखिलेश यादव जाति के आधार पर शूद्र तो है मगर वे शूद्रों में आने वाली कमजोर जातियों के ऊपर सामाजिक उत्पीड़न की घटनाओं को प्रोत्साहित करते हैं। उनका पारिवारिक चरित्र उनके पिता मुलायम सिंह यादव, चाचा शिवपाल यादव व अन्य सगे-संबंधियों का मूल पैदायसी चरित्र दंगाइयों और चोर-उचक्के का रहा है। उनके साथ राजनैतिक गठबंधन बनाकर सरकार चलाना संदेहास्पद ही रहेगा।

इंडिया का चौथा सबसे खतरनाक व मौका परस्त घटक केजरीवाल की आप पार्टी का है जो जन्म और कर्म से संघी व मनुवादी है। उसे सिर्फ बहुजन समाज का वोट चाहिए मगर वे अपने शासन में बहुजनों की संख्या के हिसाब से साझेदारी नहीं देना चाहते। केजरीवाल ने अपनी संघी मानसिकता से बहुजन समाज को दिखा दिया है कि मैं अपनी ब्राह्मणवादी-मनुवादी मानसिकता के तहत शूद्रों को राजनैतिक फायदा नहीं दे सकते वह उन्हें सिर्फ आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने के लिए उनके कमसमझ, कमजोर व लालची लोगों को टिकट तक ही सीमित रखेंगे। केजरीवाल सरकार ने पहली बार आप सरकार से तीन संघी मानसिकता के व्यक्ति संजय सिंह, सुशील गुप्ता और एन.डी. गुप्ता को राज्य सभा में भेजा था जिसमें एक ठाकुर और दो वैश्य थे। अभी हाल में दूसरी टर्म के लिए दिल्ली से संजय सिंह (ठाकुर), सुशील गुप्ता (वैश्य), स्वाती मालीवाल (वैश्य) को भेजा है। ऐसे राजनैतिक लाभ समाज को देते वक्त उन्हें दलित व मुस्लिम याद नहीं रहते। पंजाब में आप की संघी सरकार बनने के बाद भी केजरीवाल ने अपने मूल संघी चरित्र की मानसिकता का ही प्रदर्शन किया। वहाँ से भी दलित या मुस्लिम समाज से राज्य सभा में एक भी व्यक्ति नहीं भेजा गया। पंजाब के दलितों को यह याद रखना चाहिए कि पंजाब में दलितों की आबादी 30 प्रतिशत से ज्यादा है। इसलिए वे सब आपस में एक होकर एकता की प्रतिबद्धता के साथ सामूहिक फैसला लें कि आने वाले लोकसभा या विधान सभा चुनाव में अपनी पूरी निष्ठा के साथ भाजपा की संघी सरकार को हराने का काम करेंगे। इस प्रकार के संकल्प को केवल कागज तक ही सीमित न रखें इसे समाज में प्रचारित भी करें और परिणाम में भी बदले।

बहन जी पूरे देश में बहुजनों की एकमात्र ऐसी नेता है जो सच्ची आंबेडकरवादी, संघर्षशील व समझदार है। वे अपने महापुरुषों के विचार, बताएँ गए रास्ते पर चलकर पूरे समाज को सुरक्षित रखकर विकास के आंबेडकरवादी कार्य करती है। महापुरुषों के नाम पर देश में शिक्षण संस्थानों, पार्कों आदि का भी निर्माण करती है। इतना ही नहीं वे प्रदेश की सभी जनता को उनकी संख्या बल के हिसाब से प्रदेश की नौकरियों में स्थापित भी करती है। उनके पिछले कार्यकाल के कामों को देखते हुए बहुजन स्वाभिमान संघ की हैसियत से हम देश के सभी जातीय घटकों से उम्मीद करते हैं कि वे प्रदेश में मनुवादी पाखंडों और जातीय उत्पीड़नों को प्रदेश में न पनपने दें। समाज में ऐसी सामाजिक व्यवस्था को कायम करने के लिए बहन जी को केंद्र की सत्ता में लाएँ और देश का सर्वमुखी विकास सुनिश्चित कराएं। अगर वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में कोई निष्पक्ष राजनैतिक गठबंधन आकार लेता है तो बहन जी को उस गठबंधन के केन्द्र में रखा जाये। तभी यह गठबंधन देशव्यापी होकर मनुवादी, पाखंडवादी व ब्राह्मणवादी राजनैतिक गठबंधन को हराकर बहुजनों को सत्ता में ला सकेगा। वर्तमान समय में बहन जी सर्वसमाज के उत्थान की बात कर रही है। यह देश की सामाजिक व्यवस्था व देश की आंतरिक संरचना को देखते हुए आवश्यक है कि देश में सभी सामाजिक घटकों का सर्वांगीण विकास हो। देश में जातिवाद और ब्राह्मणवाद कमजोर पड़े और देश की जनता में वैज्ञानिक सोच और तार्किक संवाद बढ़े। आज देश के शिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों में ब्राह्मणवाद और पाखंड को अधिक बढ़ावा दिया जा रहा है। मंदिरों में सरकार के माध्यम से पूजा-पाठ व अन्य धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक लगानी चाहिए। देश के सक्षम न्यायालयों को सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष और अहिंसावादी बनाना चाहिए। बहन जी की सरकार ही सत्ता के माध्यम से ऐसे कार्य को कर सकती है, मनुवादी मानसिकता के लोग नहीं। अन्य लोगों के मन में कहीं न कहीं मनुवाद और ब्राह्मणवाद के अवशेष विद्यमान है। वर्तमान मोदी-संघी सरकार संविधान को ताक पर रखकर सरकारी ताकत से धार्मिक उन्माद का देश भर में नंगा नाच कर रही है। क्या यह सब कुछ सक्षम न्यायालयों हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बैठे माननीय न्यायधीशों को दिखाई नहीं देता? यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है कि जिन न्यायालयों पर संविधान की रक्षा का दायित्व है, वे मौन क्यों हैं? इन न्यायालयों को संविधान के अंदर अधिकार प्राप्त है कि सरकार के असंवैधानिक कृत्यों को रोका जाये और न मानने पर ऐसी सरकारों को बर्खास्त भी किया जायें। अभी तक हम और हमारे जैसे हजारों लोग यह सोचते थे कि बहन जी को इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना चाहिए था। मगर अब गठबंधन के हालातों को देखकर लगता है की बहनजी का एकला चलो का फैसला दूरगामी सोच का था। आज इंडिया गठबंधन के घटकों के चरित्र ने बहन जी फैसले को सही सिद्ध कर दिया है।

संविधान बचाओ, मोदी हटाओ

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05