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राजनीतिक गठबंधन बनाम बसपा

News

2023-09-23 12:16:30

देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य से यह साफ दिखने लगा है कि वर्तमान भाजपा संघी मानसिकता ने 38 राजनीतिक दलों के साथ मिलकर 2024 का लोक सभा चुनाव साथ में लड़ने के लिए गठबंधन किया है। दूसरी तरफ 28 राजनीतिक दलों का ‘इंडिया’ नाम का गठबंधन है। बसपा जो देश में तीसरे नंबर की राजनीतिक पार्टी है उसने ऐलान किया है कि हम अकेले ही बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के सिद्धांतों के अनुसार चुनाव लड़ेंगे। साथ में यह भी कहा कि हम जातिवादी, धर्मांध मानसिकता वाले राजनीतिक दलों के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे। अभी तक राजनैतिक दलों के गठबंधनों से यही प्रतीत हो रहा है कि दोनों राजनैतिक गठबंधन बसपा को छोड़कर अपनी-अपनी शक्ति को बढ़ाने के मुद्दे पर ही केंद्रित हैं। किसी भी राजनीतिक गठबंधन ने ‘बहुजन समाज पार्टी’ को अभी तक सम्मान के साथ गठबंधन में शामिल होने का निमंत्रण भी नहीं दिया है। इससे यही लगता है कि इन दोनों तथाकथित गठबंधनों के नेताओं की मानसिकता में कहीं न कहीं मनुवादी भाव छिपा हुआ है। बसपा को दबे-पिछड़े, अति शूद्र जातियों व अल्पसंख्यकों की पार्टी मानकर शायद वे बराबर का भाव नहीं दे रहे हैं। जबकि देश में शायद ऐसा कोई भी प्रदेश, गाँव व कस्बा नहीं होगा जहाँ पर बसपा से जुड़े वोट नहीं है। वास्तविकता के आधार पर बसपा ही अकेली ऐसी देशव्यापी राजनीतिक पार्टी है जिसका जनाधार और मतदाता हर जगह मौजूद है। जाति आधारित मानसिकता की प्रबलता के कारण मनुवादी राजनीतिक नेताओं ने मतदातों के मन में यह बैठा दिया है कि बसपा दलितों की पार्टी है और दलित हिन्दू विरोधी है, आपको (मतदाता) धर्म की रक्षा के लिए बसपा को अपना वोट नहीं देने चाहिए। उन्होंने बसपा के सभी मतदाताओं पर धार्मिक आवरण चढ़ा रखा है। दलित विरोधी मनुवादी पार्टियाँ बसपा के मतदाताओं का वोट अपने संघी उम्मीदवार को दिला रहे हैं। जिन समुदायों को भाजपा-संघी मानसिकता के लोगों ने कभी भी अपने बराबर नहीं माना है। उन्हें वे वोट के समय श्रेष्ठ हिन्दू बताते हैं, और उन्हें हिन्दू धर्म के रक्षक भी बना देते हैं। करीब एक हफ्ते पहले मध्य प्रदेश की घटना नवभारत टाइम्स में छपी थी जिसमें ठाकुर समुदाय के लोगों ने नाईयों (अति पिछड़ी जाति) से कुम्हार (प्रजापति) जाति के लोगों के बाल नहीं काटने को कहा था। समाज की अति पिछड़ी जातियों जैसे नाई, कुम्हार, गडरिये, बढ़ई, लौहार, माली, तेली, तमोली और इनके समकक्ष अन्य जातियाँ समाज की वास्तविकता के आधार पर सभी दलित जातियाँ है। जो अधिकतर भूमिहीन हैं, ये सभी प्रकार की संपत्ति से विहीन है, मगर ब्राह्मणों की मनुवादी संस्कृति के तहत इन्हें दो कारणों से हिन्दू बताया जाता रहा है। पहला कारण है कि देश की आबादी में ब्राह्मण सिर्फ 3.5 प्रतिशत है अगर संख्या बल के आधार पर देखा जाये तो वे अल्पमत है इसी तथ्य के कारण वे सभी पिछड़ी जातियों को जान-बूझकर अपने साथ हिन्दू बताकर अपनी संख्या बढ़ाकर दिखाना चाहते हैं। दूसरा कारण है कि वे इन सभी अति पिछड़ी जातियों व दलितों को जो अपने आपको स्वयं हिन्दू मानते और समझते हैं वे इन सभी जातियों के नौजवानों को मुसलमानों से खतरा बताकर उन्हें मुस्लिमों के सामने सांप्रदायिक झगड़ों में झोंकना चाहते हैं। उनकी मनुवादी मानसिकता का छिपा एजेंडा यह है कि अगर झगड़े घातक होते हैं और झगड़ों में यदि जान-माल की हानि होती है तो वह इन अति पिछड़ी जातियों से शामिल हुए नौजवानों की ही होगी। मनुवादी ब्राह्मणों व सवर्णों के बच्चे सुरक्षित रहेंगे। इस बात को ठीक से समझने के लिए बहुजन समाज की सभी दलित, पिछड़ी व अलसंख्यक जातियों को आपस में मिलकर सामूहिक चर्चा करनी चाहिए और मुसलमानों को अपना दुश्मन नहीं समझना चाहिए। मुसलमानों को भी बहुजन समाज के इन घटकों को अपना दुश्मन नहीं मानना चाहिए। बहुजन समाज की इन अति पिछड़ी जातियों के नौजवानों को देश के वास्तविक तथ्यों व इतिहास से अवगत कराना चाहिए। ब्राह्मणों की जातिवादी मानसिकता के कारण ही इन अति पिछड़ी जातियों के नौजवानों में हिंदूवादी षड्यंत्र के तहत सांप्रदायिकता का जहर भरा जा रहा है। धर्म की रक्षा के नाम पर उन्हें उग्र बनाया जा रहा है। बहुजन समाज की इन जातियों के जागरूक लोगों से निवेदन है कि वे अपने बच्चों को मनुवादी शिक्षा के आधार पर दंगाई बनने से रोकें। उन्हें शिक्षा के रास्ते पर चलायें। उन्हें अपने महापुरुषों की शिक्षा से अवगत कराएं। सभी जागरूक लोगों का फर्ज बनता है कि वे अपने बच्चों को मनुवादियों द्वारा निर्मित धार्मिक उन्माद में न फँसने दे। उन्हें हिंदुत्व के नशे में बर्बाद होने से बचाएं।

सभी पिछड़ी जातियों को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि इस देश में मनुवादी व्यवस्था के कारण ही दलित व अति पिछड़ी जातियाँ गरीब व संसाधन विहीन है। आपके पास मनुवादी संस्कृति ने कोई भी धन नहीं छोड़ा है। ऐसी अवस्था में आपके बच्चे ही आपका धन है। उन्हें सुशिक्षित करके व बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा बताए शिक्षा के मार्ग पर चलाकर ही उन्हें समृद्ध बनायें, शिक्षित बनाएं, मंदिरों के पाखंडी प्रचार व कथावाचकों से दूर रखें; मंदिरों में पूजा-पाठ करने व चढ़ावा चढ़ाने से आज तक एक भी आदमी सरकार में चपरासी तक नहीं बन पाया है। जो भी बन पाओगे वह संविधान में दिये गए अधिकारों के बल पर ही बन पाओगे।

चुनाव में वोट किसको दें: प्रजातंत्र में चुनाव का होना जनता के लिए महत्वपूर्ण है चूंकि चुनाव में मतदाताओं के वोट के आधार पर ही सत्ता का सर्जन होता है। जनता विरोधी सत्ताधारियों को सत्ता से हटाया भी जाता है। बहुजन समाज के पास न कोई धन है, न कोई संपत्ति है लेकिन संविधान द्वारा दिया गया उनके पास सिर्फ अपना वोट का अधिकार है। जिसे वे अपनी संपत्ति मान सकते हैं। चूंकि इसी से सत्ता बदलेगी, बिगड़ेगी, बनेगी। बहुजन समाज के पास वोट का अधिकार एक अमूल्य संपत्ति है। जिसे बहुजन समाज ने अभीतक ठीक से समझा ही नहीं है। अब उसे गंभीरता के साथ सोच-समझकर अपने महत्वपूर्ण वोट के अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। कम समझ व लालच में आकर इस अमूल्य संपत्ति (वोट) को यूँ ही न जाने दें। चूंकि इसी से आपका और आपकी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य का निर्माण होता है। याद रखें कि बाबा साहेब ने कहा था कि ‘यह वोट का अधिकार बड़ी मुश्किल से आपको मिला है और आप सभी सूझ-बूझ के साथ इसका इस्तेमाल करें।’ आप सभी अपना वोट सिर्फ ईमानदार और अम्बेडकरवादी व्यक्ति को ही दें, किसी बहकावे व छलावे में न फँसे। मनुवादी संस्कृति वाले लोगों से दूर रहे और आप अपना वोट कभी भी मनुवादियों को न देने का संकल्प लें। आप सभी यह भी समझ ले कि आपके सामने एक तरफ 38 मनुवादियों पार्टियों का समूह है और दूसरी तरफ ब्राह्मणी संस्कृति की छद्म मानसिकता रखने वाले 18 दलों के लोग हैं। दोनों ही समूह बहुजन समाज के लोगों को बहकाने व छलने का काम वर्षो से कर रहे हैं। किसी के साथ भी जाने में बहुजन समाज के घटकों का हित सुरक्षित नहीं लगता है। शायद इसी तथ्य को ध्यान में रखकर बसपा सुप्रीमो बहन मायावती जी अपने आपको दोनों राजनैतिक दलों से अभीतक अलग रख रही हैं। बहुजन समाज के सभी घटकों को यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि मान्यवर साहेब कांशीराम जी ने इन दोनों विचारधारा वाले लोगों को ‘नागनाथ’ और ‘साँपनाथ’ की संज्ञा दी थी। आप सभी को पता है कि यहाँ पर नागनाथ मोदी-भाजपा का 38 पार्टियों वाला ‘एनडीए’ गठबंधन है और दूसरी ओर ‘इंडिया’ की 28 पार्टियों का समूह ‘साँपनाथ’ है। हमारे लिए दोनों ही बराबर के दुश्मन है लेकिन वर्तमान राजनैतिक वातावरण को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी को मान्यवर साहेब कांशीराम जी के राजनीतिक कौशल दांव-पेंच को भी आजमाना चाहिए। उनका राजनीतिक दांव था कि हमें अपना समर्थन कमजोर दल या व्यक्ति को देना चाहिए और हमें सरकार में शामिल होकर बहुजन समाज के हित से जुड़े सभी कार्यों को कराने का दबाव भी बनाना चाहिए। अगर गठबंधन बहुजन समाज हितैषी कार्य करने में विफल रहे तो उस गठबंधन से तुरंत बाहर हो जाना चाहिए। चूंकि बहुजन समाज को मजबूत सरकार नहीं, बल्कि मजबूर सरकार चाहिए। सरकार का जीवन बहुजन समाज की बैसाकी पर निर्भर रहना चाहिए। बैसाकी हटने से अगर सरकार गिरती है तो गिर जाने देना चाहिए। मान्यवर साहेब कांशीराम जी के इस सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक गठबंधनों को बहुजन समाज की बैसाकी के सहारे खड़े होने के लिए मजबूर रखना चाहिए और उनके चरित्र और चाल को देखकर बैसाकी हटाने या रखने का फैसला उचित समय पर लेना चाहिए। ऐसा करने के लिए बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को अपना कीमती वोट अपनी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी ‘बहुजन समाज पार्टी’ को ही देना चाहिए। वोट देते समय बहुजन समाज के मतदाता के जहन में जाति व संप्रदाय का ध्यान नहीं आना चाहिए। हमारा लक्ष्य सिर्फ देश में बहुजन समाज की सत्ता स्थापित करना होना चाहिए। ऐसा करने से आप बहुजन सत्ता इस देश में स्थापित कर सकते हैं और हिंदुत्व के उत्पीड़न से मुक्ति पा सकते हैं।

सत्ता ही बहुजनों के उत्पीड़न को खत्म कर सकती है: बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने सभी घटकों (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) को कहा था कि ‘सत्ता की चाबी से कोई भी (किसी भी समस्या का) ताले को खोला जा सकता है।’ इसी को ध्यान में रखकर जाति या संप्रदाय महत्वपूर्ण नहीं होता बल्कि आपकी हर वोट सत्ता के लिए अधिक महत्वपूर्ण बन जाती है। मनुवादी संस्कृति के प्रचारक अपने प्रचारों के माध्यम से बहुजन समाज की बस्तियों, कालोनियों, मौहल्ले आदि में आपका वोट हड़पने के लिए झूठा व प्रपंचकारी प्रचार करेंगे, लालच भी देंगे, शराब भी बांटेंगे और नगद 500 रुपए के नोट भी बांटेंगे। ताकि उनकी दिखावटी हमदर्दी में फँसकर आप अपना कीमती वोट उनके द्वारा चुनाव में उतारे गए मनुवादी व्यक्ति को दे दें और वे सत्ता में आ जाएँ। सत्ता मिलने के बाद वे आपके पास भटकेंगे भी नहीं और न ही आपसे चुनाव के समय जैसा व्यवहार करेंगे। उनकी उद्देश्य पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण आप (मतदाता) नहीं है, महत्वपूर्ण सिर्फ आपका वोट है। जिसे पाकर वे सत्ता में आएँगे और मनुवादी संस्कृति (मनुस्मृति) के अनुसार अपना आचरण करेंगे। उनके मनुस्मृति आधारित आचरण से महिलाओं सहित पूरे बहुजन समाज का शोषण व उत्पीड़न होगा। इस देश में बहुजन समाज बहुसंख्यक है जिसके अनुसार आप देश में बहुजन सत्ता स्थापित कर सकते हैं और ऐसा करके समस्त बहुजन समाज के उद्धारक बन सकते हैं। आप सभी अपना कीमती वोट बसपा को देकर बहुजन सत्ता स्थापित करने में अपना अमूल्य महत्वपूर्ण योगदान दें।

जय भीम, जय संविधान

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05