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मोदी व ब्राह्मणवाद से देश के लोकतंत्र को बड़ा खतरा

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2023-03-17 11:14:41

भारत में लोकतंत्र की जड़े बुद्ध काल से ही हंै। बुद्धकालीन महाजनपदों में लोकतंत्र था, वे सभी खुशहाल और सम्पन्न थे। बुद्ध काल के पूर्व में, भारत का शासन सामाजिक-व्यवस्था व ब्राह्मणों के अत्याचारों से दुखी थी। ब्राह्मणी संस्कृति ने समाज में इसका बीजारोपन किया था और देश को मानवता विरोधी अंधकार में धकेला था। इस अमानवीय अंधकार के विरोध में भगवान बुद्ध ने धम्म की स्थापना की थी। जनता ब्राह्मणी संस्कृति के असंख्य यज्ञों में नर बलि, पशु बलि व अमानवीय प्रचलन से निजात पाना चाह रही थी। बुद्ध धम्म में पशुओं सहित जीव कल्याण सर्वोपरि था। जिससे प्रभावित होकर जनता ने बुद्ध धम्म को बड़े पैमाने पर अंगीकार करके उसका आचरण किया। बुद्ध धम्म अच्छाई के कारण स्वत: ही उस समय के राजाओं व प्रजा में स्थापित हो गया था। राजाओं ने बुद्ध धम्म को राजसत्ता बल से भारत-भूमि पर स्थापित किया था। जिनमें सबसे बड़ा नाम महान सम्राट अशोक का है। अशोक महान ने धम्म के लिए अपने पुत्र और पुत्री को समर्पित कर दिया था। दुनिया में शायद सम्राट अशोक अकेले ऐसे शासक रहे हैं जिन्होंने धम्म क्रांति में अपने पुत्र और पुत्री को समर्पित किया। अशोक महान ने बुद्ध धम्म को भारत में ही नहीं, विदेशों में भी फैलाया। सम्राट अशोक ने मानव कल्याण से संबंधित 84 हजार शिलालेख लिखवाये। अशोक ने मानव कल्याण के लिए बुद्ध के उपदेशों को देश के विभिन्न प्रांतों में स्थापित कराया। सम्राट अशोक महान की दूरदृश्यता का परिचय सहज ही लगाया जा सकता है कि उन्होंने बुद्ध के संदेशों को लोक कल्याण के लिए राजकीय आदेशों से पत्थर के शिलालेखों पर उत्कीर्ण कराया था। जो 2500 वर्षों के बाद भी सम्राट अशोक की अग्रिम उत्कृष्ट सोच का परिचय देता है।

बुद्ध धम्म के बढ़ते प्रभाव और ब्राह्मणी संस्कृति की घटती साख को देखकर कुटिल ब्राह्मणों ने एक बड़े षड्यंत्र की रचना की थी। उन्होंने 10वें बौद्ध सम्राट बृहद्रत के शासन में पुष्यमित्र शुंग (ब्राह्मण) को मुख्य सेनापति नियुक्त किया। जिसने अपने पद का दूरप्रयोग करके षड्यंत्र के तहत राजा बृहद्रत का कत्ल करके खुद शासक बन बैठा था। बुद्ध शासन की समतावादी व्यवस्था के विरोध में ब्राह्मणी संस्कृति की यह पहली प्रतिक्रांति थी। इस प्रतिक्रांति के फलस्वरूप ब्राह्मणी संस्कृति ने बुद्ध विहारों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त करके उनके स्थान पर अपने प्रपंची देवी-देवताओं के अवतारों में परिवर्तित कर दिया था। लाखों बौद्ध भिक्षुओं व अनुयायियों का कत्ल हुआ। कहा जाता है कि पुष्यमित्र की ब्राह्मणी क्रांति में इतने बौद्ध भिक्षु मारें गए थे कि सरयू नदी का पानी भी लाल रंग का हो गया था। ये सभी घटनाएँ ऐतिहासिक सत्य है, संदेह होने पर कोई भी शोधकर्ता इन सभी घटनाओं का अवलोकन कर सकता है।

पुष्यमित्र शुंग द्वारा क्रूर ब्राह्मणी विध्वंस के बाद देश में राजसत्ता के बल पर प्रपंची ब्राह्मणी संस्कृति की जड़े स्थापित की गयी और काल्पनिक देवी-देवताओं को समाज में स्थापित किया गया। देश में धीरे-धीरे ब्राह्मणी संस्कृति के प्रपंचों का साम्राज्य स्थापित हो गया, तदुपरांत ब्राह्मणी संस्कृति के कुटिल ब्राह्मणों ने देश में ‘ब्राह्मण धर्म’ स्थापित किया। जिसमें पूर्ण रूप से अंधविश्वास और अतार्किकता थी। समाज के बहुजनों को पढ़ने-लिखने से बेदखल कर दिया और उनकी पढ़ाई-लिखाई पर कठोर प्रतिबंध लगा दिये थे। पढ़ाई-लिखायी को धर्म से जोड़ा गया। बहुजन समाज के दो उपवर्ग बनाये गए-सछूत और अछूत। सछूत आज की अति पिछड़ा जातियाँ है; और अछूत आज के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग है। यह ध्यान देने और सोचने वाली बात है कि जब कोई शासक किसी पर आक्रमण करता है तो वहाँ पर जिन लोगों से उसे कठोर विरोध झेलना पड़ता है; उन्हें जीतने के बाद वह कठोर दंड देता है और जिन लोगों से कम विरोध होता है उन लोगों को मामूली दंड दिया जाता है। इसलिए प्रस्थितिकी साक्ष्यों के आधार पर निष्कर्ष यह है कि जिन समुदायों से ब्राह्मणी संस्कृति को अधिक विरोध झेलना पड़ा उनको सबसे नीचे के पायदान पर रखा और उन्हें कठोर दंड के तहत अछूत बना दिया गया। जिन समुदायों ने कम विरोध किया उन्हें सछूत (पिछड़ा वर्ग) की श्रेणी में रखा गया। कुटिल ब्राह्मणों ने समाज में अपना वर्चस्व व श्रेष्ठता बनाए रखने के लिए पूरे समाज को 6743 जातियों में विभाजित किया। पूरे समाज के इन जातीय घटकों में क्रमिक ऊँच-नीच की व्यवस्था की गई ताकि ये सभी सामाजिक घटक जाति के आधार पर अलग-अलग रहें और आपस में रोटी-बेटी का संबंध भी न रखें। ताकि ब्राह्मणी संस्कृति को यहाँ के मूलनिवासियों से कोई खतरा कभी भी न हो पाये।

आज जातीय विभाजन के कारण पिछले ढाई हजार साल से देश में ब्राह्मण ही श्रेष्ठ बना हुआ है। देश में आजादी के बाद सत्ता ब्राह्मणी संस्कृति के लोगों को हस्तांतरित हुई। जिन्होंने ब्राह्मण सर्वोच्चता को अदृश्यता के साथ समाज में चोरी-छिपे स्थापित रखा। इतनी कुटिलता से ब्राह्मणों ने अपनी सर्वोच्चता के लिए ऐसे अदृश्य तरीकों का इस्तेमाल किया कि वह किसी को दिखाई न दें और न किसी को समझ आये। शासक वर्ग की इसी ब्राह्मणी मानसिकता ने बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर को भारत-भूमि पर आजादी के बाद चालीस वर्षों तक भारतीय जनता में स्थापित नहीं होने दिया। जिसके परिणामस्वरूप पूरा बहुजन समाज बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर के संविधान और उनके सामाजिक और राजनैतिक दर्शन को जानने में वंचित ही रहा। बहुजनों को वंचित रखना आकस्मिक नहीं था, यह एक सोची-समझी साजिश थी। चूंकि बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने भारत के संविधान की रचना की थी। जिसमें उन्होंने सभी को बराबरी का स्थान दिया गया है। उनके संविधान के अनुसार न कोई छोटा और न कोई बड़ा है। सभी व्यस्क पुरुष व महिलाओं को एक वोट का अधिकार है। सभी को बराबर के अवसर प्राप्त है। सभी के लिए शिक्षा के द्वार खोले गए है; जो ब्राह्मणी हिंदुत्व की संस्कृति में बंद थे। सभी को स्वतंत्रता व न्याय प्राप्त है; तथा सभी प्रकार के व्यवसाय करने का अधिकार है। कोई कहीं भी देश में जाकर बस सकता है, रह सकता है, व्यापार कर सकता है। इस तरह की स्वतंत्रता बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में सभी के लिए की है। उस समय के ब्राह्मणी दिग्गजों ने संविधान सभा में बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का विरोध किया था और कई सवाल भी खड़े किये थे। लेकिन उनके सभी विरोध और सवालों का बाबा साहब ने अपने उत्कृष्ट ज्ञान के बल पर सकारात्मक तथ्यों के साथ जवाब देकर ब्राह्मणों को निउत्तर कर दिया था। संविधान सभा में बाबा साहब के द्वारा दिये गए तर्कों के साथ उनके ज्ञान के सामने नतमस्तक होकर संविधान को सभी ने सहर्ष स्वीकार किया था। लेकिन संविधान को कुछेक संघी ब्राह्मणों ने संविधान सभा से पास होने के बाद भी यदा-कदा जनता में जाकर अपनी असहमति जाहिर की थी जिनमें प्रमुख संघी थे दीनदयाल उपाध्याय, कृपात्री महाराज आदि।

कुटिल ब्राह्मणों ने संविधान में सबके कल्याण और समानता को देखकर खुशी जाहिर नहीं की थी, वे शायद इस बात से आहत थे कि सभी को संविधान ने बराबर कर दिया है। ब्राह्मणों को संविधान में कोई सर्वोच्चता नहीं दी गयी है। जिन समुदायों के लोगों को ब्राह्मणवादियों ने सत्ता, संपत्ति, और शिक्षा से हजारों वर्ष वंचित रखा था उन सभी को बाबा साहब ने समानता का अधिकार देकर हर क्षेत्र में बराबर कर दिया। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने भारत को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान देकर ब्राह्मणी व्यवस्था की सर्वोच्चता के लिए देश में एक मजबूत प्रतिक्रांति की है। ब्राह्मणी मानसिकता के लोग आजादी के 75 वर्षों के बाद भी अभी तक समझने में कमत्तर हैं। लेकिन 75 वर्षों के बाद महिलाओं और पिछड़े वर्ग के कुछेक घटकों में उनकी शिक्षाओं और संविधान के प्रति समाज में कहीं-कहीं रोशनी की किरण दिखाई देने लगी है। इसे देखकर अब ऐसा लगने लगा है कि समाज का पिछड़ा वर्ग, सभी वर्गों की महिलाएँ तथा एससी/एसटी समुदाय बाबा साहब के द्वारा दिये गए संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक हो रहा है। किसी हद तक उनमें एकता का भाव भी उत्पन्न हो रहा है। समाज में इस तरह की उत्पन्न होती सोच आगे चलकर विस्फोटक बन सकती है जो कृत्रिम ब्राह्मणी श्रेष्ठता और उनके प्रपंची आडंबरों को एकता के विस्फोट से ध्वस्त कर देगी।

मोदी-संघी शासन इस सामाजिक स्थिति को देख रहा है और संभावित परिणामों का भी आंकलन कर रहा है। इसलिए ब्राह्मणी संस्कृति के कर्णधारों, पुजारियों, पाखंडी, तथाकथित साधुओं, कथावाचकों आदि के द्वारा अध्ययन करके मोदी के देश विरोधी संघी शासन को स्थापित किया जा रहा है। उसके द्वारा बड़े पैमाने पर नोटबंदी, विभिन्न माध्यमों से सरकारी तंत्रों में भ्रष्टाचार को अदृश्य तरीके से स्थापित किया जा चुका है। भ्रष्टाचार और सत्ताबल से मित्रों को जो फायदा पहुँचाया गया है उसके एवज में अदृश्य रूप से धन लेकर बेईमान तंत्र देश में खड़ा कर दिया है। जिसको जो कीमत चाहिए उसे वह देकर गुलाम बनाया जा रहा है। सरकारी सिस्टम को बर्बाद किया जा रहा है सभी संस्थानों का निजीकरण किया जा रहा है, सभी शैक्षणिक, शोध व अन्य संस्थानों में कुटिल संघी स्थापित कर दिये गए हैं। सत्ताबल की बात न मानने वालों को ईडी, सीबीआई से प्रताड़ित कराया जा रहा है। देश में प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया की स्वतंत्रता को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया गया है। देश में अघोषित आपातकाल है और जनता पूरी तरह से त्रस्त है। किसी को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। विपक्ष को सत्ताबल और धन बल से निष्क्रय करके टुकड़ों में तोड़कर बाँट दिया गया है।

देश में चारों तरफ हिंदुत्व के गुण्डे मुँह बाहे घूम रहे हैं जो देश में हिंदू-मुसलमान, गाय-गोबर, पाकिस्तान के नाम पर नफरत बिखरे रहे हैं। देश में चारों तरफ तनाव है। आमजन महँगाई, बेरोजगारी की मार से पीट रहा है, मोदी-संघी शासन में करीब 15 करोड़ नौजवानों को जीवन भर के लिए स्थायी रूप से बेरोजगार बना दिया गया है। चूंकि अब वे आठ वर्षों के बाद रोजगार पाने की उम्र खो चुके हैं। देश में मोदी-योगी ने हिंदूवादी प्रपंचों की बाढ़ सी ला दी है। हिंदूवादी असंख्य ‘भगवा वस्त्र’ पहनकर शहर-गाँव की गलियों में घूम रहे हैं और मोदी-योगी के आतंकी हिंदुत्व का प्रचार कर रहे है। अभी हाल में योगी संघी सरकार ने उत्तर प्रदेश के सभी जिला अधिकारियों को आदेश दिया है कि नवरात्रों के दौरान नवरात्रि से संबंधित संगीत को बड़े पैमाने पर जनता में प्रचारित करना है। इस काम के लिए प्रदेश के हर मंदिर को एक लाख रुपए दिया गया है। यह संविधान के धर्म निरपेक्षता के प्रावधान का खुला उल्लंघन है। ऐसा करना समाज में विषमता और नफरत को बढ़ावा देना है। बहुजन समाज के सभी जातीय घटकों को ऐसे असंवैधानिक कृत्यों से सावधान होकर अपने समाज को जागरूक रखकर गुमराह होने से बचाना है।

मोदी शासन में 2014 से 2023 के बीच कुल कर्ज 55 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 155 लाख करोड़ रुपए हो गया है। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से देश में प्रति व्यक्ति कर्ज 43 हजार रुपए से बढ़कर 1 लाख 9 हजार रुपए हो गया है। इसका मतलब मोदी शासन में प्रति व्यक्ति कर्ज 2.5 गुना बढ़ गया है। इतनी भयानक स्थिति में मोदी-संघी तथाकथित प्रपंची साधू के वेश में गुण्डे फुले नहीं समा रहे हैं। देश के बहुजन समाज को इस सभी का संज्ञान लेकर इन लोगों से दूर रहकर समाज को जागरूक करने का काम बड़े पैमाने पर करना चाहिए। अगर समाज को इस सब असलियत का ठीक से ज्ञान नहीं होगा तो वे अज्ञानता वश मोदी-संघी जाल में फँसते ही रहेंगे। मोदी-योगी मनुवादी सरकारों से पीछा छुटाना लोकहित व देशहित में है। इन्हें जल्द से जल्द सत्ता से भगाओ और देशहित में काम करो। जय संविधान, जय बहुजन राष्ट्रवाद

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01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05