2024-03-02 10:20:55
भारत में लोकतांत्रिक संवैधानिक सत्ता है, जिसमें जनता की आवाज को सत्ता बल से दबाया जा रहा है। भारतीय संविधान के आर्टिकल 19 में व्यक्ति की अभिव्यक्ति का प्रावधान है। लेकिन मोदी-संघी जब से केंद्र व कुछेक प्रदेशों की सत्ता में हैं तभी से लोगों की आवाज को विभिन्न माध्यमों से बंद किया जा रहा है। सरकार के ऊपर सवाल खड़े करने वालों को अपराधियों की तरह लिया जा रहा है। सवाल खड़ा करने वालों के ऊपर सरकारी एजेंसियों द्वारा पूछताछ के बहाने बुलाकर उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है। सोशल मीडिया साईटों से सरकार के ऊपर सवाल खड़े करने वालों के अकाउंट को बंद करके डिलीट किया जा रहा है। संविधान के आर्टिकल-19 के मुताबिक प्रत्येक व्यक्ति को बोलने की आजादी है। प्रजातंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता एक आवश्यक तत्व है अगर मीडिया स्वतंत्रता के साथ सरकार द्वारा की जा रही सामाजिक गतिविधियों को ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ जनता के सामने रखता है तो उससे लोकतंत्र मजबूत होता है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। मोदी-संघी सरकार ने इस चौथे स्तम्भ को लगातार कमजोर और अपना पालतू भौंपू बना लिया है, आज जो पत्रकार ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ समाज में घट रही परिस्थितियों को जनता के सामने रखता है तो उसे मोदी-संघी सरकार का मित्र मीडिया भिन्न-भिन्न तरीकों से खलनायक बनाने की कोशिश करता है। देश के निष्पक्ष मीडिया घरानों को मोदी-संघी सरकार ने या तो अपना गुलाम बना लिया है या उन्हें मनुवादी-संघी सरकारों की आवाज में तब्दील कर दिया है। बहुत सारे ईमानदार पत्रकार जैसे रवीश कुमार, अजीत अंजुम, अभिसार शर्मा, पुण्य प्रसून वाजपेयी आदि अनेकों लोगों को नौकरी से निकलवा दिया है। जो मोदी-संघियों से तंग आकर अब अपने यूट्यूब चैनल चलाकर वे ईमानदारी से जनता को मोदी शासन की सच्चाई से अवगत करा रहे हैं।
विधायकों की खुली खरीद फरोख्त: मोदी-संघी शासन जब से सत्ता में हैं तभी से वह इस कोशिश में है कि संघी मानसिकता की सरकारें विपक्ष विहीन रहें। मोदी पहली बार जब 2014 में प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपनी संघी मानसिकता का नारा ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ दिया था। जो दर्शाता है कि संघी मानसिकता के लोग विपक्ष विहीन सत्ता चाहते हैं; संघी मानसिकता के लोग अपने किये गए कामों पर कोई सवाल नहीं चाहते। संघियों की यह मानसिकता लोकतंत्र विरोधी है, समृद्ध लोकतंत्र में विपक्ष का होना उतना ही जरूरी है जितना सत्ता पक्ष का। लोकतंत्र को मजबूत और समृद्ध करने के लिए विपक्ष की आवाज का बुलंद होना अति आवश्यक है। राम मनोहर लोहिया ने एक बार संसद में कहा था कि ‘‘जब सड़के सुनी हो जाती है तो संसद आवारा हो जाती है’’ यह कथन आज मोदी-संघी शासन में अधिक सार्थक और सटीक लग रहा है। वर्तमान संसद के शीलकालीन सत्र में मोदी-संघी सरकार ने 145 सांसदों का निलंबन करके दिखा दिया कि सत्ता पक्ष को विपक्ष की कोई जरूरत नहीं है, यही संघी मानसिकता है। संघी मानसिकता के लोग अपने षड्यंत्रकारी छिपे कारनामों में जनता का कोई दखल नहीं चाहते और न ही संघियों के षड्यंत्रकारी कार्यों को बाहर दिखने देना चाहते। मोदी-संघी सरकार ने संसद के दोनों सदनों में ऐसे संघी मानसिकता वाले व्यक्तियों को सभापति बनाया है जिनमें लोकतंत्र की भावना नहीं है बल्कि वे दोनों लोकतंत्र को कमजोर करने का ही काम कर रहे हैं। दोनों सदनों के सभापति मोदी की आंतरिक भावना और इशारों पर ही काम करते दिख रहे हैं। वर्तमान में राज्यसभा के लिए चुनाव चल रहा है जिसमें विधायकों की खरीद फरोख्त, दल-बदल, पाला बदल की घटनाएँ खुलेआम देखी जा रही है। हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है, राज्यसभा के चुनाव में वहाँ पर कांग्रेस के 6 विधायकों ने बीजेपी के उम्मीदवार को अपना वोट दिया और परिणामस्वरूप बीजेपी के न जीतने वाले उम्मीदवार को ही जीता दिया। संघी भाजपा का यह खरीद फरोख्त का खुला खेल चल रहा है और इसी तरह की षड्यंत्रकारी छलनीति में भाजपा संघियों की महारथ है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में सपा के 3 विधायकों ने भाजपा-संघी प्रत्याशी के पक्ष में अपना वोट देकर भाजपा के प्रत्याशी को जिताया। तीसरा उदाहरण है कर्नाटक का जहाँ पर भाजपा का विधायक कांग्रेस के पक्ष में गया। इस तरह की राजनैतिक गतिविधियाँ प्रजातंत्र को कमजोर करती है। ऐसी राजनैतिक घटनाएँ पहले भी होती रही है मगर जब से मोदी-संघी मानसिकता के व्यक्तियों की सत्ता है तब से यह घटनाएँ अधिक और खुलकर घट रही है।
मोदी के 10 साल के शासन में प्रदेशों की सरकारों को डर और लालच दिखाकर विपक्षी सरकारों को अधिक तोड़ा गया है और वहाँ पर सत्ता बल, धन बल और सरकारी एजेंसियों के दुरूप्रयोग से संघी मानसिकता की सरकारें स्थापित की गई है। अभी हाल में चंडीगढ़ मेयर चुनाव में जिस तरह से खुलेआम मतपत्रों को विकृत करके भाजपा प्रत्याशी को फर्जी जीत दिलाई गई उसे देखकर पूरा देश शर्मसार हुआ। जिसे देखकर भारत के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ को मेयर चुनाव की घटना को देखकर कहना पड़ा की यह ‘लोकतंत्र की हत्या’ है। मोदी संघी शासन में केंद्र और प्रदेशों की सरकारों द्वारा हर रोज लोकतंत्र की हत्या की जा रही है। मोदी संघी सरकार में कोई लोक लिहाज नहीं बची है जबकि लोकतंत्र में लोक लिहाज का अधिक महत्व होता है।
जांच एजेंसियों का हथियार के रूप में हो रहा इस्तेमाल: पिछले 10 साल से मोदी-संघी सरकार अपने देशवासियों और विशेषकर विरोधी राजनैतिक पार्टियों के खिलाफ सरकारी एजेंसियों जैसे-ईडी, सीबीआई, इन्कमटैक्स, पुलिस बल को अपने हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। देश के अनेकों भ्रष्टाचारियों को ईडी, सीबीआई, इन्कमटैक्स आदि का डर दिखाकर उनको भाजपा में शामिल किया जा रहा है और उन्हें आरोपों से मुक्त किया जा रहा है। मोदी-भाजपा की कार्यशैली ने आज देश के सभी राजनैतिक भ्रष्टाचारियों को बीजेपी में ला दिया हैं। जांच एजेंसियों द्वारा आए दिन अरविंद केजरीवाल और सपा के अखिलेश यादव को नोटिस इसलिए भेजे जा रहे हैं ताकि वे और उनके साथी प्रताड़ना से बचने के लिए आगामी लोकसभा के चुनाव में संघी-भाजपा को सहयोग करें।
मोदी-संघी सरकार आंदोलन विरोधी: आज देश में मोदी-संघी शासन से तंग आकर पूरा देश आंदोलनरत है। दिल्ली व देश के अन्य भागों में ईवीएम को लेकर विशाल प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन मोदी-संघी सरकार इन सभी प्रदर्शनों को पुलिस बल के माध्यम से दबा रही है। जनता को आंदोलन स्थल तक पहुँचने नहीं दे रही है। पुलिस बल उन्हें रास्ते में ही रोककर और गाड़ी में बैठाकर 6-7 घंटे तक पुलिस हिरासत में रख रही है, साथ ही उनका चालान भी किया जा रहा है। इसी तरह यूपी में हुए अध्यापक भर्ती घोटाले में मोदी-योगी सरकार द्वारा नियुक्ति पत्र देने के बजाय उनपर लाठियां बरसाई जा रही है। देश के कई अन्य हिस्सों में बेरोजगार नौजवानों की भीड़ आंदोलनरत है और सरकार पुलिस बल के माध्यम से उनपर लाठियां बरसा रही है, उनकी माँग और आवाज को नहीं सुना जा रहा है। सारे देश का युवा आज रोजगार पाने के लिए त्रस्त है। मोदी ने सत्ता में आने से पहले देश के नौजवानों को 2 करोड़ रोजगार प्रतिवर्ष देने की गारंटी दी थी मगर आजतक (10 वर्ष पूरे होने पर भी) मोदी ने अपनी उस गारंटी पर कोई अमल नहीं किया है। मोदी-संघी चरित्र के मुताबिक देश की जनता को भविष्य के छलावी सपनों में फंसाकर जनता को गुमराह करते हैं। मोदी ने अपने 10 साल के शासन में जनता से जो वायदे किये उनमें से आजतक एक भी पूरा नहीं किया है। अब चुनावी साल में भी मोदी जी जनता को 2047 तक विकसित भारत बनाने का छलावामयी सपना दिखा रहे हैं। मोदी जी खुद जानते हैं कि वे आज के नौजवानों से झूठ बोल रहे हैं मगर साथ में वे यह भी जानते हैं कि देश की अतार्किक व अज्ञान जनता को छलावामयी भविष्य की झूठी योजनाओं में फँसाकर कुछ हद तक जरूर वोट पा लेंगे। देश के गरीब लोगों को 5 किलो मुफ्त में अनाज बाँटकर उन्हें मानसिक गुलाम बनाया जा रहा है। इस योजना को जारी रखने का मकसद सिर्फ यह है कि मुफ्त में मोदी का 5 किलो अनाज पाने वाले लोग मोदी-संघियों को अपना वोट जरूर करेंगे। ऐसी योजनाओं के पीछे संघियों की मंशा यह होती है कि चिरकाल तक भारत के लोग दरिद्र ही बने रहे और मोदी-संघी सत्ता को वोट देते रहें।
मोदी-संघियों का चल रहा खुला भ्रष्टाचारी खेल: मोदी-भाजपा सरकार ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड के माध्यम से 16 हजार करोड़ के बॉन्ड बेचे जिसमें से 10 हजार करोड़ बीजेपी के खाते में गए। मतलब साफ है कि इलेक्ट्रोल बॉन्ड के माध्यम से जो धन लिया गया उसका 60 प्रतिशत बीजेपी को मिला। इतना ही नहीं जिन कंपनियों ने इलेक्ट्रोल बॉन्ड के माध्यम से धन दिया उनमें से 23 कंपनियां ऐसी पाई गई जिन्होंने इलेक्ट्रोल बॉन्ड के माध्यम से कोई धन नहीं दिया था उन कंपनियों पर ईडी, इन्कमटैक्स के छापे डलवाए गए। उसके बाद इन कंपनियों ने 335 करोड़ रुपया भाजपा को दिया। देश के करीब 700 जिलों में से करीब 400 जिलों में भारतीय जनता पार्टी के आलिशान दफ्तर बन चुके हैं और बचे हुए जिलों में काम चल रहा है जबकि जो पार्टियाँ 100 साल से भी ज्यादा पुरानी हो चुकी हैं उनके दफ्तर इतने आलिशान और व्यापक स्तर पर नहीं है। अधिकतर पार्टियों के दफ्तर किराये के मकानों में चल रहे हैं। इन सब गतिविधियों को देखकर लग रहा है कि देश ‘एक राष्ट्र, एक पार्टी’ की तरफ बढ़ रहा है। मोदी-संघी सरकार सिर्फ संघी भाजपा को ही जिंदा रखना चाहती है और अन्य सभी पार्टियों को ध्वस्त करना चाहती है। देश की जनता को मोदी-संघी सरकार के ऐसे कृत्यों से सावधान हो जाना चाहिए अन्यथा न प्रजातंत्र बचेगा और न संविधान बचेगा।
मोदी-संघी सरकार की नीतियाँ देश को नॉर्थ कोरिया और रूस के शासन व्यवस्था की तरफ ले जा रही है। कहने के लिए इन दोनों देशों में भी प्रजातंत्र है, जैसे-डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक आॅफ कोरिया के नाम की शुरूआत ‘डेमोक्रेटिक’ शब्द से ही शुरू होती है, वहाँ पर भी चुनाव होते हैं; लोग जीतते भी है और सरकार भी बनती है परंतु वहाँ पर अगर कोई व्यक्ति सरकार समर्थित उम्मीदवार को वोट नहीं देता है तो उसे देशद्रोही करार देकर प्रताड़ित किया जाता है या जेल भेज दिया जाता है। इसी प्रकार रूस में भी चुनाव होते हैं परंतु कोई व्यक्ति वहाँ के राष्ट्रपति पुतिन के सामने चुनाव लड़ता है तो वहाँ की सरकार उसे किसी न किसी बहाने से फंसाकर चुनाव लड़ने से रोकती है या फिर उसे मार दिया जाता है।
देशवासियों से अपील: देश के सभी प्रबुद्ध जनो से अपील है कि वे मोदी-संघी शासन की मंशा को समझें और देश को नॉर्थ कोरिया और रूस बनने से रोकें। यह तभी संभव हो सकेगा जब सभी लोग अपने निजी स्वार्थ और मान्यताओं को त्यागकर जनहित और देशहित में सोचें। सभी एकजुट होकर मोदी-संघी सरकार द्वारा उतारे गए प्रत्याशियों को वोट न दें। प्रपंची प्रचारों व छलावों में न फँसे, देश की अजागरूक जनता को मोदी-संघी शासन की असली मंशा से अवगत कराएं। मुफ्त में अनाज लेने की भावना का त्याग करें और अपने वर्तमान व भविष्य को बर्बाद होने से बचाएँ। संविधान और प्रजातांत्रिक व्यवस्था को मोदी-संघी सरकार से खतरा है। मोदी-संघी शासन के अधिनायकवाद को खत्म करने के लिए सभी एकजुट हों और संघी-भाजपाइयों को 2024 के लोकसभा चुनाव में हराने का संकल्प लें।
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