2024-04-27 09:24:34
2024 लोकसभा चुनाव में विरोधी राजनैतिक दल व सत्तारूढ भाजपा चुनावी रथ पर सवार होकर अपने-अपने प्रचार में व्यस्त है। विपक्षी राजनैतिक दल जनता को बता रहे हैं कि मोदी-भाजपा ने अपने 10 साल के शासन में एक भी काम जनहित का नहीं किया है और न आगे करने की उसकी मंशा है। तथ्यों के आधार पर विरोधी राजनैतिक दलों का ऐसा कहना सही है। विरोधी राजनैतिक दलों का भाजपा-संघी सरकार पर उसकी नाकामियों को लेकर जितना तीखा प्रहार होना चाहिए उतना जनता को दिख नहीं रहा है। उसका एक कारण यह भी हो सकता है कि विरोधी पार्टियों के पास चुनावी संसाधन अपेक्षाकृत कम हैं जबकि मोदी भाजपा के पास वैध-अवैध व जबरन वसूली के द्वारा चुनावी बॉन्ड के माध्यम से इकट्ठा किया गया अकूत धन है जिसे वह अपने चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेविल प्लेयिंग फीड की बात की थी मगर वह जमीन पर नजर नहीं आ रहा है। चुनाव आयोग की कार्यशीलता संदेह के घेरे में हैं जो अब गोदी आयोग बन गया है। मोदी की विशिष्ट योग्यता-झूठ बोलने, नाटक करने, जनता को बरगलाने और देश की जनता के मुद्दों पर बात न करने में है। मोदी उसी का सहारा लेकर देश में नफरत, सांप्रदायिकता व हिन्दू-मुसलमान का राग अलाप रहे हैं। चुनाव प्रक्रिया से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पत्रकारों के सवालों के जवाब भी दिये थे। उन्होंने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से देश की जनता को भरोसा दिलाया था कि सभी चुनाव लड़ने वाले लोगों के लिए लेविल प्लेयिंग फील्ड मुहैया कराया जाएगा और चुनाव लड़ने वाले लोग नफरत भरे बयानों से बचें, सांप्रदायिकता की बातें नहीं करें, सामाजिक सद्भाव बनाएँ, धार्मिक टिप्पणियों से बचें। मगर इन सबके बावजूद मोदी संघी भाजपा सांप्रदायिकता व नफरत युक्त भाषण दे रहे हैं। मोदी खुद जनता में झूठ फैला रहे हैं जिसका ताजा उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान को तोड़-मरोड़कर जनता को परोसा गया। मोदी स्वयं यह कहते हुए नजर आ रहे हैं कि अगर कांग्रेस की सरकार आयी तो वह आपकी संपत्ति छीनकर मुस्लिमों को बाँट देगी। मोदी ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को नीचता के स्तर पर ले जाकर यह भी कहा कि महिलाओं के गले से सोना व मंगलसूत्र आदि उतारकर मुस्लिमों को देने का काम कांग्रेस करेगी। इस तरह के बयान स्पष्ट तौर पर नफरत और सांप्रदायिकता को दर्शार्त हैं मगर चुनाव आयोग ने ऐसे नफरत भरे बयानों का अभी तक मोदी को नोटिस तक नहीं दिया है। यह अपने आप में जनता के समझने के लिए काफी महत्वपूर्ण साक्ष्य है। चुनाव आयोग की मोदी व भाजपा के विरुद्ध एक्शन लेने की हिम्मत नहीं है। चुनाव आयोग द्वारा कोई भी एक्शन न लेना आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन है। जिससे सिद्ध हो रहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार की मानसिकता व सोच न्यायिक नहीं है और वे सरकार के दबाव में है। वह आचार संहिता की प्रतिबद्धता को चुनावी जमीन पर उतारने में विफल हो रहे हैं। उनकी कार्यप्रणाली में ये साफ नजर आ रहा है कि वह देश के चुनाव आयुक्त नहीं बल्कि वे गोदी चुनाव आयुक्त बनकर काम कर रहे हैं। अगर वे अपने मन से ऐसा ही करना चाहते हैं तो चुनाव आयुक्त के पद से इस्तीफा देकर भाजपा संघियों की बिग्रेड में शामिल हो जायें।
विरोधी दलों में सक्रिय ऊर्जा की कमतरता: चुनाव प्रचार को देखकर यह साफ नजर आ रहा है कि सत्ता विरोधी दलों में चुनावी ऊर्जा की कमी दिख रही है। वे जनता से संवाद करके जनता को यह तो बता रहे हैं कि मोदी संघी-शासन ने जनता से जुड़े मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, महँगाई, भ्रष्टाचार आदि पर कुछ काम नहीं किया। जनता से जुड़े मुद्दों पर मोदी-भाजपा बात नहीं कर रही है। वह सिर्फ मुद्दों पर भ्रामकता का लेप लगाकर गैर जरूरी मुद्दों के जंगल में जनता को घुमा रही है तथा उन्हें भविष्य के झूठे सपने दिखा रही है। इस चुनाव में मोदी-भाजपा की यह सबसे बड़ी विफलता बनेगी। जनता रोजगार की बात करती है तो मोदी जी कहते हैं कि हमें तीसरी बार सत्ता में लाओ, हमें देश के लिए बड़े-बड़े काम करने हैं। जनता अब सीधे मोदी व उसके अन्धभक्तों से पूछ रही है कि हमें वर्तमान का जवाब दो, भविष्य के मुगेरी लाल के सपने मत दिखाओ। जनता मोदी से जानना चाहती है कि आपने 10 साल में क्या किया, पहले वह बताओं? मोदी जी इसका जवाब देने के बजाए पुलवामा की बात करते हैं, 370 व तीन तलाक की बात करते हैं परंतु जनता को वर्तमान में बताने और दिखाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। इसलिए अब देश की जनता ने मोदी के झूठ और छलावों के आधार पर वोट न करने का मन बना लिया है। हरियाणा व देश के कई अन्य स्थानों पर तो मोदी संघी चुनावी प्रचारकों को गाँवों व कस्बों में घुसने भी नहीं दिया जा रहा है। उनका बहिष्कार किया जा रहा है। इन सबको देखकर चुनाव में जनता का मूड स्पष्ट है कि अब देश की जनता मोदी-संघियों को वोट नहीं देगी और न उन्हें सत्ता में लौटने देगी।
भाजपा के प्रति गुस्से का फायदा उठाना चाह रहे विरोधी दल: विरोधी राजनैतिक दलों को साफ दिख रहा है कि देश में मोदी विरोध की आंतरिक लहर है। अब इस देश की जनता मोदी और उसके गुलामों को फूटी आँख भी देखना नहीं चाह रही है। इसी को देखकर विरोधी राजनैतिक दल बाई डिफाल्ट (अकर्मक क्रिया) आश्वस्त है कि बिना कुछ ज्यादा किये रिजल्ट मोदी के विपरीत ही रहेगा। देश की जनता अब मोदी को तीसरी बार सत्ता में आने नहीं देगी। मगर विरोधी राजनैतिक दलों को यह भी याद रखना चाहिए कि मोदी संघी मानसिकता के चुनावी प्रत्याशी जनता के किसी काम के हों या न हों मगर वे चुनाव में पूरी ताकत के साथ साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाकर किसी भी कीमत पर चुनाव जितना चाहेंगे। वर्तमान चुनाव आयोग भी मोदी-चुनाव आयोग बन चुका है। हाल ही में गुजरात की सूरत लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार को एक सोचे-समझे षड्यंत्र के तहत निर्विरोध जीताकर यह दिखा दिया है कि मोदी संघी भाजपा 2024 का चुनाव साम, दाम, दंड, भेद के आधार पर जीतना चाहती है। विरोधी दलों को इसी से सावधान होकर मोदी संघियों की रणनीति को विफल करने की योजना पर काम करना चाहिए।
मोदी-संघी सरकार धीरे-धीरे संविधान को कर रही निष्क्रिय: सत्ता विरोधी राजनैतिक दलों को जनता में जाकर मोदी-संघियों की मानसिकता के षड्यंत्र को बताना चाहिए कि ये लोग षड्यंत्रकारी हैं। संघियों ने भारतीय संविधान को लागू होने के पहले दिन से ही स्वीकार नहीं किया था। संघियों के पूर्व प्रचारक दीन दयाल उपाध्याय ने देश की जनता में जाकर बताया था कि ‘‘हम इस संविधान को नहीं मानते, चूंकि इसमें हिंदुत्व की विचारधारा और उनकी आस्था का कुछ भी अंश नहीं है’’ इसी आधार पर उन्होने संघ के दफ़्तरों में राष्ट्रीय ध्वज को भी नहीं अपनाया था। केंद्र में भाजपा संघियों की सरकार बनने के बाद भाजपाईयों ने राष्ट्रीय ध्वज को लगाना और फैराना शुरू किया। संघियों की मानसिकता फासिस्ट प्रवृति की है, वे अपनी इस फासिस्ट मानसिकता के कारण समाज में न भाईचारा, न मेल-मिलाप और न एकता चाहते हैं। उनकी मानसिकता में तार्किकता कम और झूठी आस्थाओं पर विश्वास अधिक है। संघी मानसिकता के लोग देश में सहिष्णुता, धर्म-निरपेक्षता और मानवता विरोधी है। इसलिए वह देश के जनमानस में सांप्रदायिकता का तड़का लगाकर धार्मिक आधार पर जनता के वोटों का ध्रुवीकरण करते हैं और इसी आधार पर सत्ता में आने का प्रयास करते हैं। देश की आम जनता को पता है कि मोदी-संघी लोग इस चुनाव में जीतते है तो उनके निशाने पर दलितों व पिछड़ों का आरक्षण सबसे पहले होगा। विरोधी राजनैतिक दलों ने मोदी-संघियों द्वारा आरक्षण खत्म करने की बात अपने प्रचार माध्यम से जनता को बताई तो मोदी ने स्वयं सामने आकर बताया कि भाजपा सरकारे एसटी, एसटी व ओबीसी के आरक्षण को खत्म नहीं करेगी। साथ में मोदी ने विवेकहीन आवेश में यह भी कह दिया कि हम संविधान को खत्म नहीं करेंगे अगर बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर आज खुद भी आ जायें और संविधान को बदलने की बात करें तब भी संविधान नहीं बदला जाएगा। सभी जागरूक देशवासियों से निवेदन है कि वे मोदी-संघियों के झांसे में न आयें और न इनकी बात पर यकीन करें। मोदी-संघी तानाशाहों की कार्यप्रणाली हमेशा षड्यंत्रकारी और छिपी हुई होती है। वे जनता को सामने से जो कहते है उनका कृत्य उसके 180 डिग्री उलट होता है। जनता को इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि अगर मोदी तीसरी बार जीतकर आते हैं तो सबसे पहले उनके निशाने पर संविधान के कल्याणकारी प्रावधानों को ही बदला जाएगा और इसके बाद उनके निशाने पर दलितों व पिछड़ों का आरक्षण होगा। जिसे संघी मानसिकता के लोग खत्म करने की बात शुरू से ही करते रहे हैं। सत्ता के अहंकार में अब उनके प्रचारक यहाँ तक कहने लगे हैं कि भाजपा के नीतिगत फैसले तुरंत लागू होने चाहिए चूंकि अब नहीं तो फिर कभी नहीं। संघी मानसिकता के बहुत सारे भाजपाई प्रत्याशी साफ-साफ 400 पार का नारा देकर यह जनता को बता रहे हैं कि 400 पार हमें संविधान में बदलाव करने के लिए चाहिए। अब बहुजन समाज की जनता को संविधान में बदलाव या उसे खत्म करने के मुद्दे पर कोई संदेह नहीं होना चाहिए। वर्तमान चुनाव की पृष्ठभूमि को देखने से अब साफ नजर आने लगा है कि सत्ता विरोधी लहर के चलते मोदी जी चुनाव बड़े अन्तर से हार रहे हैं और इस सबका अकर्मक फायदा विरोधी पार्टियों को मिलने जा रहा है।
चुनाव आयोग अदृश्यता के साथ मोदी-संघियों के साथ: चुनाव प्रचार व उसकी प्रक्रिया में सरकार का पूरा तंत्र दबाव में भाजपा को मदद कर रहा है और चुनाव आयोग भाजपा प्रत्याशियों के खिलाफ एक्शन नहीं ले रहा है। भाजपाईयों द्वारा आचार संहिता की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं और विरोधियों को शांति पूर्ण ढंग से भी प्रचार नहीं करने दिया जा रहा है। विरोधियों के प्रचार में न चुनाव सामग्री बांटने दी जा रही है और न ही प्रचार की गाड़ियों पर झंडे व बैनर लगाने दिये जा रहे हैं। विरोधी दलों के प्रचारकों को सड़कों पर चलना भी प्रतिबंधित किया जा रहा है। बहुजन स्वाभिमान संघ की टीम ने उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों का दौरा किया जिसमें पाया कि उत्तर प्रदेश की डबल इंजन की सरकार का पूरा सरकारी अमला संघी भाजपाईयों के साथ मिलकर उनके चुनाव का प्रचार कर रहा है। पूरे प्रदेश में आचार संहिता का पालन करना सिर्फ विरोधियों तक सीमित है। भाजपा संघी प्रचारक आचार संहिता को ध्वस्त करते हुए खुले सांड की तरह घूमते नजर आ रहे हैं। मोदी और शाह खुले आम हेट स्पीच और सांप्रदायिकता फैला रहे हैं जो गुलाम चुनाव आयोग को नजर नहीं आ रहा है। जनता इसका संज्ञान ले रही है और इस सबका जवाब वह मोदी संघियों को वोट न करके देगी।
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