2025-09-12 18:15:16
शूद्र वर्ग में आने वाले सभी जातीय घटकों का सामाजिक स्तर मनुस्मृति में निम्नतम है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जितने भी हिन्दुत्व की वैचारिकी के धार्मिक ग्रंथ हैं उनमें सभी वर्गों की महिलाओं और शूद्रों को कोई भी मानवीय अधिकार नहीं हैं। इसलिए हिन्दुत्व की वैचारिकी से ओत-प्रोत नागरिकों ने यहाँ पर महिलाओं और शूद्रों का अमानवीय उत्पीड़न किया, और महिलाओं को पाप की योनि तक बताया। इसका तथ्यात्मक उदाहरण रामचरित मानस में तुसलीदास द्वारा लिखित एक चौपाई से समझा जा सकता है।
‘ढ़ोल, गंवार शूद्र पशु नारी।
सकल ताड़न के अधिकारी॥’
हिन्दुत्व की वैचारिकी वालों ने ऐसे तथ्यात्मक धार्मिक ग्रंथों का समाज में प्रचार-प्रसार किया, जिसके कारण जनता में महिलाओं को पैर की जूती समझा गया। देश को आजाद हुए 78 वर्ष का समय बीत चुका है। देश में संविधान सत्ता है जिसके अनुसार हर नागरिक महिला हो या पुरुष समान है। संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने संविधान में महिलाओं के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किये हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का मानना था कि ‘मैं समाज की प्रगति उस समाज की महिलाओं की तरक्की से मापता हूँ।’ इसी संदर्भ में उन्होंने महिलाओं के लिए संविधान में समता, स्वतंत्रता, बंधुता, भाईचारा और धर्मनिरपेक्षता के प्रावधान दिये। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने संविधान के अनुच्छेद-15 में लिंग व धर्म के आधार पर सभी को समानता दी गयी है।
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर से पहले महात्मा ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी माता सावित्रीबाई फुले को साथ लेकर देश में महिलाओं की शिक्षा के लिए सबसे पहले प्रयास किया। जब वे महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रयास कर रहे थे तो ब्राह्मणी संस्कृति के हिन्दुत्ववादी लोगों ने उनके पिता गोविंदराव फुले जी को भड़काया और कहा कि आपका पुत्र धर्म विरोधी कार्य कर रहा है इसलिए उसे इस धर्म विरोधी कार्य करने से रोकिए। इस तरह की धर्मांधता में डूबे हिन्दुत्व की वैचारिकी के लोगों के द्वारा बार-बार दबाव देने के बाद महात्मा ज्योतिबा फुले के पिता गोविंद राव ने पति-पत्नी दोनों को घर से निकाल दिया था। ऐसी परिस्थिति आने पर महात्मा ज्योतिबा फुले न निराश हुए और न हार मानी, उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया, अपनी पत्नी को सुशिक्षित करके शिक्षिका बनाया और उन्होंने सभी वर्गों की महिलाओं के लिए पुणे में 1848 में स्कूल खोला था। महात्मा फुले के इस आंदोलन में हिन्दुत्व की वैचारिकी वाले लोगों ने साथ नहीं दिया था, उनकी इस मुहिम में साथ देने वाले पुणे के ही उनके एक दोस्त उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा शेख आगे आये और उनका साथ दिया था, साथ ही उन्होंने अपने घर में उनके रहने का बंदोबस्त भी किया।
हिन्दुत्व की वैचारिकी के कर्णधारों ने हमेशा महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों का समर्थन किया और कभी भी इस प्रकार की भयंकर प्रताड़नाओं का विरोध नहीं किया। हम यहाँ यह भी याद दिलाना चाहते हैं कि जब केरल में दलित व पिछड़े वर्ग की महिलाओं को ब्राह्मणी संस्कृति के अनुसार उन्हें अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा ढकने का अधिकार नहीं था तब मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने इस ब्राह्मणवादी सोच और जघन्य अमानवीय क्रूरता के खिलाफ करीब 9 हजार पुरोहित-ब्राह्मणों को दंड दिया था। टीपू सुल्तान का यह कदम बहुत ही मानवीय दृष्टि का था। जिसके कारण दक्षिण के राज्यों में महिलाओं को अपना ऊपर का आधा तन ढकने का अधिकार मिला। इस ऐतिहासिक कदम के पीछे दलित वर्ग से आने वाली वीरांगना नांगेली का भी बड़ा योगदान है चूंकि उस समय शूद्र वर्ग की महिलाओं को स्तन के आकार को देखकर ब्राह्मण-पुजारियों द्वारा कर (टैक्स) लिया जाता था और उसे चुकाना भी पड़ता था। वीरांगना नांगेली ने तब इसका विरोध किया और टैक्स अधिकारी द्वारा टैक्स मांगने पर उन्होंने अपने स्तन काटकर पलेट में रखकर सौंप दिये थे। देश में ऐसी अमानवीय घटनाओं को हिन्दुत्ववादी वैचारिकी के अंधभक्तों ने अंजाम दिया है। उस समय के समाज को शिक्षा का अधिकार नहीं था, शिक्षा का अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों के पास ही था जिन्होंने सही इतिहास को नहीं दर्शाया है। हर वर्ष टीपू सुलतान के खिलाफ ब्राह्मण संस्कृति के अंधभक्त ‘टीपू सुल्तान’ को देशद्रोही बताकर गलत प्रचार करते हैं। माननीय टीपू सुल्तान देश के पहले ऐसे शासक हुए हैं जिन्होंने उस समय रॉकेट का आविष्कार किया जिसका इस्तेमाल उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ किया था। उसके बाद अगले 200 वर्षों तक भारत में रॉकेट का विकास नहीं देखा गया। अंग्रेजों ने भी टीपू सुल्तान के रॉकेट आविष्कार से प्रेरित होकर ही अपने यहाँ रॉकेट का आविष्कार किया। आज की परिस्थिति में देश के नागरिकों को निष्पक्ष होकर सोचना चाहिए कि टीपू सुल्तान मुस्लिम समुदाय से आने वाले एक वीर योद्धा व देशभक्त थे। मनुवादी व्यवस्था से संक्रमित होकर हिन्दूवादी विचारधारा के लोग नकली देशभक्त है जो हर रोज मालेगाँव, पहलगाम, पुलवामा हमला जैसी घटनाएँ करा रहे हैं और देश में हिन्दू-मुसलमान का नाम लेकर नफरत फैला रहे है। साथ ही दलितों के ऊपर अत्याचार भी मोदी शासन में अधिक बढ़ रहे हैं, और देखा जा रहा है कि जहां-जहां डबल इंजन की सरकारें हैं वहाँ-वहाँ पर दलित, महिलाओं के ऊपर अपेक्षाकृत अत्याचार व बलात्कार जैसे घटनाएँ भी अधिक बढ़ गई है। जिसकी पुष्टि देश के अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को देखकर होती है।
2014 के बाद, जबसे भाजपा सत्ता में आई है महिलाओं के खिलाफ अपराधों की घटनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 2014 में 3,37,922 से बढ़कर 2022 में 4,45,526 हो गई, जो लगभग 31 प्रतिशत की वृद्धि दिखाती है। प्रति लाख महिलाओं पर अपराध दर भी 56.3 से बढ़कर 66.4 हो गई। 2021 में यह संख्या 4,28,278 थी, जो अब तक का सबसे अधिक दर्ज किया गया आंकड़ा है। यह वृद्धि बलात्कार, घरेलू हिंसा, अपहरण और एसिड अटैक जैसी घटनाओं में स्पष्ट है। एनसीआरबी के वार्षिक आंकड़े निम्नलिखित हैं। ध्यान दें कि 2024 के पूर्ण आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन 2023-24 के प्रारंभिक डेटा से अपराध दर में 4 प्रतिशत की वृद्धि बनती है।
बलात्कार के मामले: 2014 से 2022 तक औसतन 86 बलात्कार प्रतिदिन दर्ज हुए। 2022 में 31,516 मामले थे, जो 2014 के 36,735 से कम हैं लेकिन कुल अपराधों में वृद्धि के साथ चिंताजनक है। उत्तर प्रदेश सबसे अधिक मामलों वाला राज्य रहा है, जहां 2022 में 58.6 की दर थी।
अन्य अपराध: घरेलू हिंसा (31.4 प्रतिशत), अपहरण (19.2 प्रतिशत), छेड़छाड़ (18.7 प्रतिशत) प्रमुख हैं। एसिड अटैक के 2014-2018 में 1,483 मामले दर्ज हुए, लेकिन दोष सिद्धि दर घट रही है। जिसका मतलब होता है कि जांच करने वाली प्रदेश की पुलिस अपराधों की जांच ठीक से नहीं कर रही है। इसका मतलब यहाँ यह भी हो सकता है कि वर्तमान पुलिस योगी शासन के हिन्दुत्ववादी एजेंडे के तहत काम कर रही है और अपराधों की संख्या घटाकर दिखा रही है। अगर दोष सिद्धि की दर घटती है तो जांच एजेंसियां किसी न किसी राजनैतिक व जातिगत दबाव के तहत काम कर रही है और निर्दोष व्यक्तियों के ऊपर झूठे मुकदमें लाद रही है। दहेज हत्या के मामले 2021 में 6,589 थे।
दलित महिलाएं के साथ अपराध की घटनाएँ: 2015-2020 में बलात्कार के मामलों में 45 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। जिसका औसत करीब 10 मामले प्रतिदिन है। ये आंकड़े केवल दर्ज मामलों को दर्शाते हैं; वास्तविक संख्या कहीं अधिक हो सकती है चूंकि महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में महिलाएं और उनके सगे-संबंधी शर्म-हया और दबंगों के डर के कारण अपने ऊपर हुए आधे से अधिक मामले दर्ज ही नहीं कराते है, चूंकि दलित वर्ग के लोगों को उन्हीं के बीच रहकर अपना जीवन यापन करना है और मजबूरी में अपने साथ अपराधों को भी सहन करना पड़ता है।
राजनीतिक संरक्षण: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, वर्तमान में 134 सांसद/विधायक महिलाओं के खिलाफ मामलों में आरोपी हैं, जिनमें भाजपा के 44 है जो सबसे अधिक है। बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई (2022), बृजभूषण शरण सिंह (कुश्ती खिलाड़ियों पर आरोप), और मणिपुर हिंसा (2023) में महिलाओं पर अत्याचार पर मोदी व संघियों की चुप्पी।
राज्य-स्तरीय विफलता: भाजपा शासित उत्तर प्रदेश और ओडिशा में अपराध सबसे अधिक है। 2024-25 में ओडिशा में 3,054 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, जो 2023 से अधिक है। मणिपुर में महिलाओं को नंगा घुमाने की घटना सर्वविदित है परंतु मौजूदा सरकार ने वहाँ पर इंटरनेट बंद कर दिया था जो प्रजातंत्र में भाजपा का सबसे शर्मनाक और नंगा प्रदर्शन था। मणिपुर में ही अल्पसंख्यक ईसाइयों के 100 से अधिक चर्च फूंके गए थे जो आजाद भारत में एक शर्मनाक घटना है। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि भारत के संघी प्रधानमंत्री मोदी ने मणिपुर में इतने जघण्य अपराध होने पर भी मणिपुर का दौरा नहीं किया था अभी हाल ही में मणिपुर का दौरा करके आए हैं जो उनके घड़ियाली आंसू है, इसलिए संघी सरकार पर विश्वास नहीं करना चाहिए। इन सभी घटनाओं से साफ है कि मोदी संघी सरकार दलित और अल्पसंख्यक विरोधी है। इसलिए दलित व अन्य अल्पसंख्यकों को संघी सरकार को अपना वोट देकर सत्ता में नहीं लाना चाहिए।
दलित महिलाएं इन घटनाओं से कैसे निपटे? दलित समुदाय के सभी जातीय घटक कामगार श्रेणी में आते हैं। जो मुख्य रूप से कृषि व अन्य तकनीकी क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले औजारों का निर्माण करते हैं। जैसे फसल काटने के लिए उनके पास हसिया या दराती, पेड़ काटने या छाटने के लिए कुल्हाड़ी या दाव होते हैं। गन्ने की खेती करने वालों के पास गन्ने काटने के लिए खरपाली व गन्ना छीलने के लिए विशेष धार वाली दराँती होती है। खेती के काम में आने वाले हल में कुश इत्यादि का इस्तेमाल होता है जो लोहे से बना बड़ा मजबूत धारदार हथियार होता है। जन-जातीय इलाकों में काम करने वाली महिलाओं के पास बरछी, भाले, तीर इत्यादि बनाने व चलाने की भी योग्यता होती है जिनसे वे अपने ऊपर हुए हमलों से अपनी रक्षा कर सकती है।
आत्मरक्षा संवैधानिक अधिकार: सभी दलित वर्ग की कामकाजी महिलाओं को ऐसे अमानवीय अपराधों से निपटने के लिए मानसिक रूप से मजबूत होना चाहिए और उनका हौसला भी बुलंद होना चाहिए। दलित वर्ग की सभी महिलाओं को अपने जातीय घटक की वीरांगना फूलन देवी से सबक लेना चाहिए और उसी के अनुसार अत्याचार का हर कीमत पर बदला भी लेना चाहिए। ऐसा करने से ही संघी हिन्दुत्व की वैचारिकी के गुंडों का हौसला पस्त हो सकता है। इन गुंडों के राजनैतिक संरक्षक सभी मनुवादी पार्टियों में हैं, मनुवादी भाजपा में ऐसे नेताओं की संख्या अधिक है। हम बार-बार बहुजन समाज के जातीय घटकों को याद दिलाकर आगाह कर रहे हैं कि मनुवादी गुंडों से मनुष्य को खुद ही निपटना पड़ेगा। चूंकि मनुवादी संघी सरकारों से दलित महिलाओं की इज्जत बचना मुश्किल है। मनुवादियों का मकसद अपराध की घटनाएँ बढ़ाकर दलित वर्ग के हौसले को कमजोर व असहाय करके उनके मनोबल को तोड़ना है। इसलिए आप उनको ऐसा करने न दे, भगवान बुद्ध के संदेश के अनुसार हमें अपना दीपक स्वयं ही बनना पड़ेगा, अपनी रक्षा स्वयं ही करनी पड़ेगी और मनुवादी गुंडों से निपटने के लिए खुद ही अपना रक्षक बनना पड़ेगा, तभी इन मनुवादी गुंडों को सही सबक मिल पाएगा और तब ये ऐसे जघन्य अपराध करने से डरेंगे।
हिन्दुत्व की वैचारिकी में खोट: हिन्दुत्व की वैचारिकी में गंभीर खोट है जिसको सुधारने के लिए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने हिंदुओं को सलाह दी थी कि देश में जितने भी मनुवादी-संघी वैचारिकी के पाखंडी ग्रंथ हैं उन सभी को डायनामाइट लगाकर ध्वस्त कर देना चाहिए, तभी हिन्दू धर्म में सुधार संभव है अन्यथा नहीं। वर्तमान सरकार में सबकुछ इस धारणा के विपरीत चल रहा है, मनुवादी संघी मोदी शासन में हिदुत्व के पाखंड को बहुत बढ़ा दिया गया है। हिन्दुत्व की वैचारिकी के मूर्ख प्रति वर्ष करोड़ों की धन-संपत्ति से निर्मित रावण की प्रतिमा को जलाते हैं, जो हिन्दुत्व की वैचारिकी की मूर्खता को दर्शाता है। विश्वभर में हर मनुष्य गलती से कुछ न कुछ सबक लेता है और उसमें सुधार भी कर लेता है, लेकिन हिन्दुत्व की वैचारिकी के मूर्ख हजारों वर्षों से रावण के पुतले जलाते आ रहे हैं। देश के किसी भी व्यक्ति को आज तक ऐसी मूर्खता पूर्ण प्रथा से कोई फायदा नहीं हुआ है।
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