2025-05-10 16:54:50
14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत आजाद हुआ, इसी के साथ भारत को दो हिस्सों में भी विभाजित होना पड़ा, जिसमें एक भारत और दूसरा पाकिस्तान बना। पाकिस्तान का निर्माण धर्म की बुनियाद पर हुआ जबकि भारत का बुनियादी ढाँचा सर्वधर्म, सर्वसंप्रदाय, सर्वभाषा आदि सभी को मिलाकर लोकतांत्रिक आधार पर हुआ। तत्कालीन कट्टर हिन्दूवादी वैचारिकी वाले नेताओं में अदूरदृष्टि के कारण देश के बंटवारे के अपेक्षित दूरप्रभावों की समझ न होने के कारण ऐसा हुआ। जबकि बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर इन कट्टर हिन्दूवादी नेताओं से भिन्न मत रखते थे, बाबा साहेब का मत था कि देश का विभाजन किसी भी कीमत पर धार्मिक आधार पर नहीं होना चाहिए और अगर ऐसा करना भी पड़ता है तो विभाजन फिर पूर्ण रूप से होना चाहिए। इसका मतलब था कि बंटवारे के बाद जो हिस्सा पाकिस्तान के पास आए, पूरे देश का मुस्लिम समाज पूर्ण रूप से वहाँ हस्तांतरित हो, और बँटवारे के बाद जो हिस्सा भारत के पास रहे उस भू-भाग पर बाकी सभी संप्रदायों, धर्मों के लोग हस्तांतरित हो। मगर गांधी और उनके जैसे ब्राह्मणवादी कांग्रेसी नेताओं ने बाबा साहेब के इस मत को नहीं माना, परिणामस्वरूप बँटवारा हुआ और दो देश बन गए। लेकिन इन दोनों देशों में हिन्दू-मुसलमानों की संख्या जस-कि-तस बनी रही और आज जो कुछ भी आतंकवाद दिखाई दे रहा है वह इन्हीं नेताओं की अदूरदृष्टि का परिणाम है। अगर कमसमझ व अदूरदृष्टि वाले हिन्दू नेताओं ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की बात को मान लिया होता तो हिन्दू-मुसलमान के नाम पर दोनों तरफ नफरत के स्वर नहीं उभरते। आज दोनों देशों को आजाद हुए करीब 78 वर्ष हो चुके हैं मगर दोनों में पारस्परिक धार्मिक नफरत जस-कि-तस बनी हुई है। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने अपनी दूरदृष्टि और सार्वभौमिक ज्ञान के आधार पर यही आंकलन किया था कि अगर धार्मिक आधार पर दो देश अस्तित्व में आते हैं तो दोनों तरफ कट्टर धार्मिकता और अंधभक्तों के कारण अशांति बनी रहेगी।
बैर से बैर शांत नहीं होता: भगवान बुद्ध ने उपदेश में अपने अनुयायियों से साफ कहा था कि ‘बैर से बैर शांत नहीं होता है, बैर से बैर और अधिक बढ़ता है।’ भगवान बुद्ध का यह कथन आज के भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे द्वंद को लेकर सार्थक है। यह इसलिए भी सार्थक है कि दोनों देशों की बुनियाद नफरत और बैर पर ही टिकी है जो निरंतरता के साथ दोनों को शांत नहीं रहने देती। कुछ न कुछ मुद्दा हर वक्त दोनों की तरफ से गरम ही रहता है। आए दिन दोनों तरफ की सेनाओं में बॉर्डर पर झड़पे होती रहती है। हाल ही में 22 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान की तरफ से सुनियोजित आतंकी हमला हुआ जिसमें 26 निर्दोष सैलानियों की मौत हुई। ऐसा बताया गया कि आतंकवादियों ने नाम और धर्म पूछकर उन्हें गोलियाँ मारी। आतंकवादियों ने महिला और बच्चों को नहीं मारा उन्होंने केवल पुरुष सैलानियों को ही मारा। यह बहुत ही दुखद और अप्रत्याशित घटना है, इसके लिए कौन जिम्मेदार है? स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है कि इस घटना के घटने का कारण सुरक्षा एजंसियों की भारी चूक है। जिस स्थान पर हमला हुआ और उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रसारित हुई, उन्हें देखकर लगता है कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां कहीं सोयी हुई थीं। जिस स्थान पर यह घटना घटी वह भारत और पाकिस्तान का बॉर्डर का क्षेत्र है। सुरक्षा के दृष्टि से बॉर्डर के क्षेत्र हमेशा ही संवेदनशील होते हैं। वहाँ पर सुरक्षाकर्मी हमेशा ही मौजूद और मुस्तेद रहते हैं। परंतु इस घटना पर जो देखा गया, उसमें यही पाया गया और सरकार ने भी माना कि घटना के घटने के पीछे सुरक्षा एजंसियों की बड़ी चूक है। इससे यह भी सवाल पैदा होता है कि ऐसी घटनाएँ भविष्य में घटित न हो। उसके लिए जिम्मेदार सुरक्षा एजंसियों को सरकार द्वारा सख्त निर्देश दिये जाये कि ऐसी दुर्दांत घटनाएँ भविष्य में दोबारा न घटे। साथ ही अगर किसी सुरक्षा एजेंसी की चूक स्पष्ट तौर पर नजर आती है तो उसे नियमनुसार दंडित भी किया जाये चूंकि उनकी लापरवाही से देश के 26 सैलानियों ने अपनी जान गँवाई हैं।
दोनों देशों की सरकारों को शांति स्थापित करने के लिए आगे आना होगा: किसी भी तरफ की सरकार को इसे अहम का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। चूंकि दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करना इन दोनों की ही जिम्मेदारी है। यह अलग बात है कि दोनों तरफ कई राजनैतिक नेता अपने-अपने अहम को श्रेष्ठ दिखाने का झूठा प्रदर्शन कर सकते हैं। राजनैतिक नेताओं को इससे फर्क नहीं पड़ता कि किसको कम नुकसान है और किसको ज्यादा। पूरा विश्व जानता है कि नुकसान तो दोनों तरफ की आम जनता का ही होना है, चूंकि मरने वालों में दोनों तरफ की आम जनता ही होती है। राजनीतिक बयानबाजी से मुद्दे हल नहीं होंगे, दोनों तरफ की सरकारों को जमीनी स्तर पर आकर संवेदनशील भाव से जनता के नुकसान को समझकर आपस में बैठकर विचार-विमर्श के साथ समस्या का हल करना होगा। दोनों तरफ की सरकारों को जनहित में सर्वमान्य एक मुद्दे पर ही सहमत होना पड़ेगा और साथ में उस सहमति का पालन भी करना होगा। शांति स्थापित करना दोनों देशों की जिम्मेदारी है और सरकारों को इसे प्राथमिकता के साथ बिना किसी दूसरे देश की मध्यस्थता के हल करना चाहिए। चूंकि दोनों तरफ की जनता भारतीय उपमहाद्वीप का ही भाग है। दोनों तरफ एक जैसी ही समस्याएँ है, और दोनों तरफ की जनता के सामने एक जैसी ही चुनौतियाँ है, उन सबका समाधान आपस में बैठकर, विचार-विमर्श के साथ ही किया जा सकता है।
संभावित शांति ही समाधान: भारतीय उपमहाद्वीप पर करीब 10-11 देशों की संख्या है, इन सभी देशों को युरोपियन देशों की तर्ज पर एक 10-11 देशों की संयुक्त परिषद का गठन करना चाहिए जिसमें ये सभी देश भागीदार हो और इन सभी देशों की संयुक्त परिषद का एक संयुक्त नियंत्रण कार्यालय भी हो। इन 10-11 देशों की संयुक्त परिषद की अपनी एक संयुक्त सरकार भी हो और इस संयुक्त परिषद द्वारा इन देशों में जो आपसी मतभेद हो उन्हें सुलझाने की प्रक्रिया भी होनी चाहिए। इस तरह का तंत्र युरोपियन यूनियन की तर्ज पर बनाना चाहिए और सभी भागीदार देशों के मुद्दे, तनाव आदि को आपस में बैठकर ही सुलझा लेना चाहिए। यहाँ पर यह भी ध्यान रखना होगा कि युरोपियन यूनियन के अधिकांश देश विकसित हैं, सम्पन्न और समृद्ध भी हैं। उनके पास शोध आधारित ज्ञान और तकनीक भी उत्तम किस्म की है। जिनके पास ये सभी चीजें होती है उनमें समझदारी और दूसरों की भावना को समाहित करने की इच्छा भी अपेक्षाकृत अधिक होती है। भारतीय उपमहाद्वीप के इन 10-11 देशों में अधिकांश देश अविकसित और विकासशील है जिनमें समझदारी और दूसरों को समाहित करने की क्षमता कम हो सकती है। परंतु फिर भी इन सभी 10-11 देशों को मिलकर युरोपियन यूनियन की तर्ज पर अपने विवादों को सुलझाने के लिए एक संयुक्त तंत्र की स्थापना करनी चाहिए और इस संयुक्त तंत्र के द्वारा अपने-अपने सभी क्षेत्रीय व व्यवसायिक मुद्दों को आपस में बैठकर विचार-विमर्श के साथ सुलझा लेना चाहिए। इन सभी 10-11 देशों की अतीत की पृष्ठभूमि अधिकांशतया बौद्ध दर्शन की रही है इसलिए इन सभी को बौद्ध दर्शन के अनुसार संयुक्त भाव से अपनी सभी समस्याओं का समाधान आपस में बैठकर सुलझाना चाहिए। भगवान बुद्ध ने कोलिय व शाक्य वंश के आपसी विवाद को निपटाने की शर्त के तहत गृह त्याग करके, दोनों समुदाय के आपसी युद्ध को रोक दिया था और सिद्धार्थ गौतम अपने वचन के अनुसार गृह त्याग करके उन्होंने प्रवज्या ग्रहण की थी। अपने दृढ़ संकल्प के अनुसार दुनिया में सम्यक्संबुद्ध बनकर संसार को बुद्ध धम्म का मार्ग सुझाया और अपनी 80 वर्ष की अवस्था तक पूरे एशिया भू-भाग पर घूम-घूमकर बुद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार करके, शांति का संदेश विश्वभर को दिया। आज भारत और पाकिस्तान को भी अपने अतीत के इतिहास को देखकर दोनों तरफ की जनता के सुख-दुख को ध्यान में रखकर समस्याओं का हल करना चाहिए। अपनी-अपनी सेनाओं की शक्ति के आधार पर कोई भी हल स्थायी नहीं हो सकता।
दोनों देशों की संस्कृति में बराबर का पाखंडवाद: अगर आज हम तार्किकता के आधार पर दोनों देशों की धार्मिक संस्कृति का निष्पक्षता के साथ आंकलन करें तो पाते हैं कि दोनों तरफ बराबर का पाखंडवाद है, यानि दोनों ही समुदाय मुस्लिम हो या हिन्दू वे बराबर के पाखंडी है। उदाहरण के तौर पर हिन्दू मानते हैं कि दुनिया में बिना भगवान की मर्जी के पत्ता तक भी नहीं हिल सकता और दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय भी यही मानता है। यानि दोनों ही मनुष्य को अपने द्वारा किये गए कुकृत्य अपराध से मुक्त करते हैं और भगवान या अल्लाह को ही सभी घटनाओं के लिए जिम्मेदार मानते हैं। ऐसा देखने से लगता है कि दोनों ही समुदायों में बौद्धिक बल और तार्किकता का घोर अभाव है। कोई भी अपराधिक या पुण्य कार्य मनुष्य के द्वारा ही होता है। मगर ये दोनों समुदाय के लोग भगवान या अल्लाह हो ही उस कार्य का कर्ता मानते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि आज दुनिया में जितनी भी अमानवीय अपराधिक घटनाएँ घट रही है, या महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे हैं, वे सभी भगवान या अल्लाह की मर्जी से ही हो रहे हंै। इन सभी कृत्यों के लिए दोनों ही समुदाय की संस्कृति कुकृत्य करने वाले व्यक्ति को दोषी नहीं मानती बल्कि वे इसे भगवान या अल्लाह की ही मर्जी मानते है। तार्किक आधार पर ऐसी सभी बातें अवैज्ञानिक हैं, तर्कहीन है और जनता में भ्रामकता का अंधकार फैलाने वाली हैं, इसलिए जनता को ऐसी बातों पर न ध्यान देना चाहिए और न ही उनपर विश्वास करना चाहिए।
संसार में जो कुछ भी घटित हो रहा है, घटित होने का कारण है और उसका निवारण भी है। इस कारण और निवारण का माध्यम भी मनुष्य ही है इसलिए संसार में जो कुछ भी घट रहा है उसके लिए मनुष्य ही जिम्मेदार है और मनुष्य के द्वारा उस घटना का जनहित में निवारण भी किया जा सकता है। भगवान कहो या अल्लाह ये सभी काल्पनिक और मनगढ़ंत मान्यताएं हैं। मनुष्यों ने इन सभी पाखंड आधारित मान्यताओं की रचना की है और ऐसे सभी लोग इन मान्यताओं के आधार पर अपना धर्म का धंधा चलाकर आम जनता को लूट रहे हैं। आज का युग संचार क्रांति और विज्ञान का युग है हम सभी को बुद्धि बल के आधार पर अपनी और अपने समाज से जुड़ी सभी समस्याओं का हल खोजना चाहिए और उसी के द्वारा आम जनता को भी जागृत करना चाहिए। भारत और पाकिस्तान दोनों को अपनी जनता के हित को देखते हुए युद्ध में नहीं जाना चाहिए इन दोनों को अपने बुद्धिबल और धनबल को जनहित में ही लगाना चाहिए। साथ में भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों को मिलकर एक संयुक्त परिषद का गठन करके उसी के माध्यम से अपने विवादों को सुलझाना चाहिए और अन्य किसी भी देश को मध्यस्थता के लिए मुखिया नहीं बनाना चाहिए। भगवान बुद्ध के उपदेश के अनुसार ‘अपना दीपक स्वयं बनो’ का व्यवहारिक रूप से पालन करना चाहिए।
सब्ब बुद्धानु-धम्मानु-संघानु भावेन सदा सोत्थि भवंतुते॥
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