2023-12-09 11:13:02
पांच राज्यों के चुनाव परिणामों से साबित होता है कि ये चुनावी परिणाम जमीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। देश के मौजूदा हालातों को देखा जाये तो यहां की अधिसंख्यक जनता मोदी-भाजपा सरकारों को सत्ता में देखना नहीं चाहती। देश में बेरोजगारी व महँगाई चरम पर है, जनता के लिए कोई नए उद्यम व शिक्षण संस्थान स्थापित नहीं हुए हैं। मोदी काल में स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित उपचार व दवाओं की कीमत जनता की पहुँच से बाहर हो चुकी है। सरकारी स्वास्थय सेवाएं मोदी काल में बर्बाद हो चुकी हंै। मोदी जब तेरह वर्षों तक गुजरात के मुख्यमंत्री थे। वहाँ पर भी मोदी ने सरकारी अस्पतालों व संस्थानों को बर्बाद करके निजीकरण की भेंट चढ़ाया था। जिसके कारण आज भी गुजरात की आम जनता को उचित दाम पर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं है। गुजरात में सभी सरकारी संस्थानों को मोदी काल में बर्बाद करके बंद किया गया था या मित्रों को सौंपा गया था। जिस गुजरात को विकास का मॉडल बनाकर मोदी के पाखंडी दोस्तों ने पूरे देश में प्रचार किया था वह वास्तविकता से सैंकड़ों मील दूर था। मोदी के कुशासन में गुजरात में मुस्लिम व दलितों पर अत्याचारों की बाढ़ सी लायी गई थी। शिक्षण संस्थानों का स्तर धरातल पर पहुँच गया था। गुजरात के शिक्षण संस्थानों की शोध उत्पादकता देश के अन्य प्रदेशों के मुकाबले में काफी कम स्तर पर थी जो आज तक उसी के इर्द-गिर्द चल रही है। मोदी जिसे विकास कहकर जनता को बरगलाते हैं वास्तविकता में वह जनता का विनाश है। उनके विकास में सिर्फ हिंदुत्व के नाम पर देश में ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देना हैं। उसके सापेक्ष ब्राह्मणी वर्गीकरण के अनुसार शूद्र (बहुजन) कहे जाने वाले समाज को निम्नतम स्तर पर पहुँचाना है। संघी मानसिकता व उसके प्रचारकों द्वारा देश में छलावों को परोसकर देश की जनता को अंधभक्त बनाया जा रहा है। जिसके द्वारा वे सत्ता में बने रहने के लिए देश की गरीब बनायी गई नासमझ जनता को पाँच किलो अनाज, दो किलो चावल देकर उनका वोट पक्का करना चाहती है। इतना ही नहीं देश की जनता का वोट छलावों के द्वारा भाजपा की तरफ करने में मोदी जी को महारथ है। इस महारथ में उनका पहला कदम यह है कि देश की चुनाव मशीनरी पर काबू किया जाए। इसमें मोदी व उनके संघी दोस्त अव्वल किस्म की महारथ रखते हैं। भारत का चुनाव आयोग संवैधानिक तौर पर स्वतंत्र है उस पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं होता है मगर जब से मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं तब से चुनाव आयोग में काम करने की शैली बदल गई है। अब चुनाव आयोग में आयुक्त उन्हीं को बनाया जाता है जो मोदी जी के मुताबिक काम करते हैं।
चुनाव सम्पन्न कराने के लिए केंद्र और प्रदेशों की जो प्रशासनिक मशीनरी इस्तेमाल होती है वे सभी कर्मचारी छांट-छाँटकर संघी मानसिकता के तैयार किये जाते हैं। इन कर्मचारियों की आंतरिक संरचना पूर्ण रूप से मनुवादी जहर से ओत-प्रोत रहती है। इसी आधार पर चुनाव प्रक्रिया के दौरान बड़े स्तर की हेरा-फेरी की साजिश की जाती है। अगर किसी मौहल्ले-बस्ती के वोटरों के वातावरण से ऐसा प्रतीत होता है कि ये वोट भाजपा को नहीं मिलेंगे तो उन मतदाताओं के वोट मतदाता सूची से ही गायब कर दिये जाते हैं। ऐसी हेरा-फेरी अधिकतर मुस्लिम व दलित मतदाताओं के साथ की जाती है। अगर इससे भी काम नहीं बनता है तो इन बस्तियों के मतदाताओं को 500 से लेकर 2000 रुपए तक प्रत्येक मतदाता को मतदान वाले दिन नकद देकर उनका मत खरीद लिया जाता है। गरीब जनता अपने आम जीवन में जो दस-दस रुपए के लिए तरसते हैं वे हजार या दो हजार रुपए पाकर बहुत अभिभूत होकर अनुग्रहित महसूस करते हैं और अपना वोट मोदी-भाजपा की झोली में डाल देती हंै। अगर ऐसा करने पर भी मोदी-भाजपा को हार का शक लगे तो फिर ईवीएम मशीनों में तकनीकी हेरा-फेरी के माध्यम से वोट बदले जाते हैं और सभी मतदाताओं द्वारा डाले गए वोट भाजपा के खाते में चले जाते हैं। यह मतों की हेरा-फेरी बहुत हाई-लेबल पर हो रही है। देश का मतदाता समझ रहा है कि जब वोट हमने नहीं दिया है तो भाजपा का प्रत्याशी कैसे जीत रहा है? ताजा उदाहरण राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हैं। जहाँ पर भाजपा की जीत का श्रेय तीन प्रकार की हेरा-फेरी को जाता है। पहला-चुनाव कराने वाले प्रशासनिक कर्मचारी; ईवीएम व ए.आई. तकनीक का इस्तेमाल; धर्म की अफीम चटाकर पाखंडी प्रचारकों द्वारा अज्ञान महिलाओं को बहला-फुसलाकर उनका वोट लूटना; ये तीनों कारण भाजपा के लिए चुनाव जीताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। जिसका मुकाबला किसी भी गठबंधन द्वारा नहीं किया जा सकता चूंकि ये सभी प्रकार की हेरा-फेरी अदृश्य तरीके से डंके की चोट पर की जाती है। मतदान होने से पहले ही मोदी-भाजपा के पदाधिकारी चुनावी सभाओं में ऐलान करके बता देते हैं कि इस चुनाव में हमारी पूर्ण बहुमत की सरकारें हर प्रदेश में बनने जा रही है। देश की जनता ने ऐसा ही राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हालही के चुनाव में देखा। इन प्रदेशों के चुनाव परिणाम बतायी गयी सीटों की संख्या के आपपास ही पाये गए।
भाजपा संघी प्रचारक देश की जनता पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए मतदान होने के बाद एग्जिट पोल में तथाकथित एक्सपर्ट पाखंडियों को आमंत्रित करते हैं जो कट्टर संघी मानसिकता के होते हैं और एग्जिट पोल में ये तथाकथित एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां वही संख्या जनता के समाने रखते है जो भाजपा संघियों द्वारा बताई गई होती है। ऐसा करके वे जनता की आँखों में धूल झोंकने का काम करते हैं और फिर जनता में जाकर उसी का प्रचार करते हैं कि एग्जिट पोल भी हमारी अनुमानित संख्या के आसपास ही बता रहा था। मोदी भाजपा के लिए यह कोई नई बात नहीं है वह इसी रणनीति से पिछले दस वर्षों के चुनावों में खेल करके जीत रही है। मोदी भाजपा के पाखंडी प्रचारक जनता के सामने घूम-घूम कर सालों पहले यह कहना शुरू कर देते हैं कि कोई कितना भी विरोधी प्रचार करे; भाजपा सरकारों की गलतियाँ गिनायें, लेकिन आना तो फिर भी मोदी को ही है। इस अहंकार भरे प्रचार में भाजपा संघ के साधारण सदस्य ही ही नहीं है बल्कि मोदी स्वयं देश के प्रधानमंत्री होते हुए भी पंद्रह अगस्त को लाल किले की प्राचीर से घोषणा करते हैं कि अगले साल में फिर झंडा फेराने यहां आऊँगा। मोदी जी का यह कथन औछा ही नहीं अहंकार भरा भी है। जो संघियों द्वारा चलाए जा रहे गहरे अदृश्य षड्यंत्र की ओर इशारा भी करता है।
देश की राजनीति पर मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलांगना के नतीजे अवश्य ही भविष्य में असर डालेंगे। चुनाव परिणामों से संघी भाजपा बहुत उत्साहित है लेकिन देश की जनता उससे अपने आपको ठगा हुआ महसूस कर रही है। भाजपा-संघी रणनीतिकारों का अपनी षड्यंत्रकारी रणनीति पर भरोसा अधिक बढ़ रहा है और आज पूरा विपक्ष संघी-भाजपाइयों के षड्यंत्रों के कारण बेकफुट पर है, मायूस भी है। उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। विपक्ष को जाति जनगणना के कार्ड को भी मोदी-भाजपा के अदृश्य षड्यंत्र ने फेल करके दिखाया है ताकि इंडिया गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव में इससे उत्साहित न दिखे, उस पर अपनी करारी हार का साया ही छाया रहे और आम जनता में यह संदेश जाये कि मोदी है तो सबकुछ मनुवादियों के मन-माफिक मुमकिन है। विपक्ष को गंभीर होकर सोचना होगा कि मोदी-संघी भाजपा के षड्यंत्रों से देश की जनता को कैसे निजात दिलायी जाए।
बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) के राजनैतिक व सामाजिक संगठनों के लिए यह समय गंभीर मंथन करने का है। वे हाशिये पर जाने की न सोचें, उन्हें वर्तमान राजनीति के सेंटर में आकर अपना रोल अदा करना चाहिए। मगर यह तभी संभव होगा जब सभी बहुजन समाज के सामाजिक घटक अपना अहंकार और काल्पनिक क्रमिक जातीय ऊँच-नीच की भावना छोड़कर एक साथ आकर, एक दिखें, सभी मिलकर एक ही अम्बेडकरवादी शक्स को चुनाव में अपना कॉमन उम्मीदवार बनाये, उसे ईमानदारी से चुनाव लड़ाये, और जितायें भी। वर्तमान चुनावी परिणामों में विपक्ष की जो करारी हार हुई है उसका एक अहम कारण तथाकथित गठबंधन में अबाध्य एकता का न होना रहा है, जिसे मनुवादी षड्यंत्र के हिसाब से दुरुस्त करना होगा। जो दल या पार्टी सहमत न हो उसे गठबंधन से बाहर निकालना ही बेहतर विकल्प होगा।
कांग्रेस के इंडिया गठबंधन में आज जितने भी राजनैतिक दल हैं वे सभी ब्राह्मणी संस्कृति और अपनी जाति की काल्पनिक श्रेष्ठता के कारण एक नहीं है, सभी राजनैतिक दल अपने-अपने जातीय स्वार्थ में काम कर रहे हैं। हर घटक अपने-आपको दूसरे से मजबूत करने की मानसिकता से गठबंधन के सदस्य है। इस प्रकार की सोच ब्राह्मणवादी है जिसके कारण एकता के भाव की कमी है। कोई भी गठबंधन बिना अबाध्य एकता के सफल नहीं हो सकता। मोदी-संघियों ने पाँच प्रदेशों के विधान सभा चुनावों के द्वारा देश की जनता को मुख्य रूप से यह संदेश देने की कोशिश की है कि देश में मोदी का कोई विकल्प नहीं है। देश की जनता को विपक्ष के विभिन्न नेताओं के द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और संवैधानिक संदेशों का मोदी-संघी भाजपा ने हवा निकालकर यह दिखा दिया है कि देश में भाजपा-संघी मानसिकता की सरकारें ही राज करेंगी। यह भाजपा-संघी समर्थकों की प्रजातंत्र विरोधी मानसिकता है। मोदी और संघ की छत्र छाया में संघी प्रचारक इस देश में प्रजातंत्र को ध्वस्त कर रहे हैं। मोदी के दस साल के शासन में संवैधानिक व प्रजातांत्रिक सिद्धांतों व मापदंडों को जितना तरोड़ा-मरोड़ा और नुकसान पहुँचाया गया है उतना मोदी से पहले के 70 वर्षों के शासन में किसी ने नहीं पहुँचाया। इसका तात्पर्य यह है कि मोदी संघी सरकारों की मानसिकता प्रजातंत्र विरोधी है। वह सरकारी मशीनरी का दुरुप्रयोग करती है और सरकार पर सवाल उठाने वालों के विरुद्ध उसका इस्तेमाल करके उन्हें प्रताड़ित करती है। देश की जनता को इन पाँच प्रदेशों के विधान सभा चुनाव होने तक विभिन्न माध्यमों से यह प्रतीत हो रहा था कि चुनाव के परिणाम आने के बाद इन प्रदेशों की जनता मनुवादी संघी सरकारों से निजात पा जाएगी। लेकिन मोदी-संघ ने चुनावी सरकारी मशीनरियों के साथ तालमेल करके बढ़े स्तर की धोखाधड़ी को अंजाम दिया है जिसके कारण देश की आम जनता को चुनाव परिणामों पर भरोसा नहीं हो पा रहा है। सरकार और उसकी मशीनरी पर जनता का भरोसा होना बहुत ही अहम और आवश्यक है। अगर किसी भी सरकार पर जनता का भरोसा उठता है तो उस सरकार को प्रजातंत्र में सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं रहता। मोदी सरकार के इस तरह की चुनावी षड्यंत्रों में की गई धांधली से निपटने के लिए अब एक ही उपाय है कि देश की जनता को मोदी शासन के दमनकारी, प्रजातंत्र विरोधी अदृश्य षड्यंत्रों से निपटने के लिए देशभर में मोदी-संघी सत्ता के विरुद्ध जन आंदोलन खड़ा करना चाहिए। और उसमें सभी विरोधी राजनैतिक घटकों को भाग लेना चाहिए। देश की जनता के सामने अब सिर्फ अम्बेडकरवाद ही विकल्प है।
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