2024-10-25 11:46:24
देश में मनुवाद यानि ब्राह्मणवाद चरम पर है और इसके लगातार बढ़ते रहने का कारण देश में मनुवादी सरकारों का होना है। मनुवादी सरकारें देश में मनुवाद (ब्राह्मणवाद) पोषित कर रही है। समाज में पाखण्डों की रचना करके पूरे समाज को पाखंड से दूषित किया जा है। पाखंडवाद के प्रदूषण के कारण पूरा भारतीय समाज प्रदूषित हो रहा है। समाज की आंतरिक संरचना में मनुवादी जहर दिन-प्रतिदिन समाहित होता जा रहा है। देश की वर्तमान केंद्र सरकार बड़े पैमाने पर मनुवादी जहर समाज में फैला रही है और समाज उसके ऐसे कारनामों से दिन-प्रतिदिन बौद्धिक रूप से बीमार हो रहा है। मनुवादी व्यवस्था के कारण ही समाज का बौद्धिक विकास नहीं हो पा रहा है। देश की बौद्धिक क्षमता दिन-प्रतिदिन घट रही है। इस संबंध में वैश्विक आँकड़े भारत की स्थिति को सभी तरह से कमत्तर बता रहे हैं लेकिन केंद्र की मनुवादी सरकार ब्राह्मणवाद को मजबूत करने के उद्देश्य से देश में पाखंडियों (बाबाओं) को शरण देकर देश की बौद्धिक क्षमता को नुकसान पहुँचा रही है साथ में इस पाखंडी तंत्र को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रकार के सरकारी और गैर सरकारी संसाधन मुहैया कराके पाखंडवाद को मजबूत किया जा रहा है।
बढ़ते पाखंडवाद पर लगे लगाम: देश और जनता के हित को सर्वोपरि रखते हुए सोचना होगा कि देश में पाखंडी मानसिकता की सरकारें न बने। ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ की सरकारें न बनाई जाये। देश में ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ ही पाखंड को अधिक पोषित कर रहा है। समाज में किसी न किसी बहाने त्यौहारों का उत्सव लगाकर शहरों की कालोनियों में बड़े-बड़े होडिंर्गों से पाखंड को प्रचारित किया जा रहा है। देश की भोली-भाली जनता को त्यौहारों के बहाने लुभावने, आकर्षक तोहफों का वायदा करके झूठ को प्रसारित किया जा रहा है। त्यौहारों के मौकों पर अधिक प्रचार-प्रसार जो दिखाई दे रहा है उसकी जड़ में ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ ही है। ब्राह्मण धार्मिक तड़का लगाकर जनता को ठगता है और बनिया कम कीमत पर दिखावटी आँकड़े पेश करके जनता को ठगने का काम करता है। इन दोनों की मिलीभगत के कारण देश की भोली-भाली जनता लालच में फँसकर अपना और अपने समाज का नुकसान करती है। जो उसको आसानी से समझ भी नहीं आता। बनियों की षड्यंत्रकारी चाल रहती है कि जनता के उपयोग में आने वाले रोजमर्रा के सामान की कीमतें 50-60 प्रतिशत बढ़ाकर 10 प्रतिशत त्यौहार के बहाने झूठी छूट बताकर बड़े पैमाने पर अपने सामान को बेचा जाये। पहले से बढ़ायी गई कीमतों के आधार पर अद्भुत तरीके से आम जनता को छलकर बड़ा मुनाफा कमाया जाये और इस तरह से कमाये गए धन से धार्मिक अनुष्ठानों के नाम पर ब्राह्मणों को जनता में छल-कपट फैलने के लिए धन मुहैया कराया जाये ताकि वे निरंतरता के साथ जनता को फँसाते रहें। इस तरह का अंधा प्रचार-प्रसार जो देश की बहुजन जनता में किया जा रहा है, जनता भूखे-नंगे रहकर धार्मिक अनुष्ठानों पर जो धन खर्च कर रही है, उसे रोकने के लिए जनता में सदबुद्धि फैलाने के लिए सही प्रचार-प्रसार की अधिक आवश्यकता है। समाज के कुछेक निस्वार्थ सोच रखने वाले स्वाभिमानी और स्वावलंबी प्रचारकों की टोलियाँ तैयार की जाये, इन टोलियों में बहुजन समाज की महिलाओं की भागीदारी आधे से अधिक हो चूंकि बहुजन समाज की भोली-भाली महिलाएँ ही बनिया-ब्राह्मण गठजोड़ के पाखंडी प्रचार में अधिक फंस रही हैं और उनके फँसने का कारण उनमें तार्किक बुद्धि की कमतरता और जागरूकता का अभाव है। इस अभाव की पूर्ति के लिए बहुजन समाज की महिलाओं में शैक्षिक जागरूकता कार्यक्रम चलाने की अधिक आवश्यकता है। सामाजिक कार्यक्रमों के द्वारा अपेक्षित परिणाम आने के लिए समाज में लगातार लंबे समय तक ऐसे कार्यक्रम चलाने पड़ते हैं। चूंकि ऐसे सामाजिक प्रयास तुरंत परिणाम नहीं देते। साथ ही ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ की ताकतें भी बहुजन समाज के ऐसे कार्यक्रमों के विरुद्ध अपने कार्यक्रम चलाते रहते हैं और वे ऐसे कार्यक्रमों पर अपेक्षाकृत अधिक धन खर्च और चमक-दमक दिखाकर जनता को आकर्षित करने का काम भी करते हैं। उनकी इस तरह की षड्यंत्रकारी चाल को कुंद करने के लिए बहुजन समाज की महिला व पुरुषों को अधिक जागरूक और आक्रामक होने की जरूरत है। ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ के पाखड़ों के ऊपर सीधा प्रहार करना भी अब आवश्यक हो चला है।
ब्राह्मण-बनिया मुक्त बनें सरकारें: देश में प्रजातांत्रिक व्यवस्था है, प्रजातंत्र में संख्या बल अधिक महत्व रखता है। भारत में संख्या बल बहुजनों का है और सरकारें ब्राह्मणों की बन रही हंै। संख्या बल को देश का ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ बहुजनों की कम समझ के कारण फेल कर रहा है। उनकी विफलता का कारण बहुजन समाज को जातीय टुकड़ों में बाँटकर रखना हैं और उन्हें एक नहीं होने देना है। छोटे-छोटे जातीय टुकड़ों में बंटे रहने के कारण बहुजन समाज की शक्ति आकार नहीं ले पा रही है। बिना सामाजिक एकता के बहुजन समाज इतने छोटे-छोटे टुकड़ों में बट गया है कि अब ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ उसे एक नहीं होने दे रहा है और एक न होने देने का परिणाम यह हो रहा है कि उनका संख्या बल इस स्थिति में नहीं पहुँच रहा है कि वे प्रजातंत्र में अपने संख्या बल से कोई भी चुनाव जीत सकें। ताजा उदाहरण हम हरियाणा विधान सभा चुनाव का देख सकते हैं। जहाँ पर संख्या बल अपेक्षाकृत जाट समुदाय का है लेकिन जाट समुदाय की मानसिकता में सामंतवादी भावना प्रबलता के साथ मौजूद है जो बहुजन समाज की खेती विहिन जनता को अपने समक्ष कमजोर और सामाजिक दृष्टिकोष से नीच मानती है। बहुजन समाज की खेती विहीन जातियाँ भी जाट समुदाय के ऐसे व्यवहार को देखकर उनसे नफरत का भाव रखती है और उन्हें समाज में दबंग मानती है। चुनाव आने पर जाट समुदाय के प्रत्याशियों को बहुजन समाज के जातीय घटक इसी भावना से आहात होकर अपना वोट जाट प्रत्याशियों को नहीं देते और जाट समुदाय भी अपनी दबंगता के कारण बहुजन समाज के प्रत्याशियों को अपना वोट नहीं देते। जाट समुदाय के वोटर्स जो वास्तविकता के आधार पर बहुजन समाज का ही हिस्सा हंै मगर चुनाव आने पर उनकी दबंगता उनके ऊपर सवार हो जाती है और वे अपना वोट मनुवादी ब्राह्मणों को देना बहुजन समाज के प्रत्याशियों के मुकाबले पसंद करते हैं और उसी आधार पर ब्राह्मणवादी सरकार बनती है। इसी ब्राह्मणवादी व्यवस्था के चलते हरियाणा में पिछले एक दशक के समय से जाट समुदाय का मुख्यमंत्री नहीं बना है। जिसका मुख्य कारण है जाट समुदाय की कम समझ और जाट समुदाय द्वारा ब्राह्मणों को अपना वोट देना। ब्राह्मण समुदाय के लोग कभी भी जाट मुख्यमंत्री नहीं बनाएँगे। यह जाट समुदाय की भूल है कि ब्राह्मण उन्हें कभी अपना मुख्यमंत्री बनायेंगे। देश के जिन-जिन क्षेत्रों में जाट समुदाय की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है वहाँ-वहाँ पर जाट समुदाय का प्रत्याशी जीत नहीं पा रहा है। जाटों को ऐसे परिणाम देखकर अपनी आँखे खोल लेनी चाहिए तथा साथ में बहुजन समाज के जिन जातीय घटकों को वे अपने से छोटा और नीच मानते हैं उनके साथ सामाजिक भेदभाव मिटाकर सामंजस्य बढ़ना चाहिए, आपसी एकता और विश्वास को बहुजन समाज में मजबूत करना चाहिए। कांग्रेस के भूपेन्द्र सिंह हुड्डा की मानसिकता में दोष है। बहुजन समाज के जिन जातीय घटकों को उन्होंने अपने से छोटा मानकर अपना शत्रु बना लिया है वे अब उनको हरियाणा की सत्ता में नहीं आने देंगे। इसका सरल उपाय यही हो सकता है कि जाट समुदाय के जिन लोगों की मानसिकता में दबंगता है। वे बहुजन समाज के जिन जातीय घटकों से ब्राह्मण को श्रेष्ठ मानते हैं हरियाणा का ब्राह्मण भी जाट समुदाय को अपना वोट नहीं देता और न उन्हें कभी भी वहाँ का मुख्यमंत्री बनने देगा। देश में जहाँ-जहाँ जाट बाहुलय क्षेत्र है वहाँ के जाट अच्छी तरह से समझ लें कि बहुजन समाज के अन्य जातीय घटकों के मेल-मिलाप और सामंजस्य के बिना जाट समुदाय के प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सकते। चूंकि इस देश की ब्राह्मणी व्यवस्था जाट समुदाय को शूद्र वर्ग में ही मानती है। अगर जाट समुदाय यह बात मानने को तैयार नहीं है तो वह अपने आपको ही धोखा दे रहे हंै। ब्राह्मणवादी व्यवस्था को तो इससे फायदा ही हो रहा है और वे अपने षड्यंत्र के तहत ब्राह्मणवादी सरकारें बनाने में सफल हो रहे हैं और जाट समुदाय उनके इस षड्यंत्र में फंसकर सत्ता से दूर हो रहे हैं।
आजादी के बाद से देश में ब्राह्मणों की सरकार रही है: ब्राह्मणवाद के इस छिपे षड्यंत्रकारी तिलिस्म को तोड़ने की पहल बहुजन समाज के उपेक्षित वर्ग के जातीय घटकों के महापुरुषों ने की जिसके आधार पर अंग्रेजी सरकारों ने भी ब्राह्मणों के मानसिक षड्यंत्र को समझा और निर्णय किया था कि अंग्रेजी राज में ब्राह्मणों को जज न बनाया जाये। अंग्रेज ये बात तुरंत समझ गए थे और उसी के अनुसार उन्होंने अपना निर्णय लिया था। लेकिन इस देश की बहुजन जनता 77 वर्षों की आजादी के बाद भी यह बात आज तक अच्छी तरह नहीं समझ पाई है। देश की सभी अदालतों में ब्राह्मणों को ही अधिक संख्या में जज बनाया जा रहा है। देश का मुख्य न्यायधीश (डी.वाई. चन्द्रचूड़) भी चितपावन ब्राह्मण है, जिसकी आंतरिक संरचना पूर्णतया ब्राह्मणवादी है और उसके अधिकांश फैसले भी ब्राह्मणवादी संस्कृति के आधार पर है। देश का वर्तमान मुख्य न्यायधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की मानसिकता के फैसले न्यायशास्त्र और संविधान के अनुरूप कम और ब्राह्मणवादी संस्कृति के आधार पर अधिक नजर आते हैं। उनके हालिया बयान ने देश की न्यायिक व्यवस्था को चौंका दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबधित मुकदमा मेरे पास 3 महीने तक रहा और जब इस फैसले का कोई हल निकलता नहीं दिखा तो मैं भगवान के सामने बैठ गया और भगवान से प्रार्थना की कि मुझे कोई फैसला सुझाया जाये। डी.वाई. चंद्रचूड़ के इस बयान से यह साफ है कि अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद फैसला संविधान आधारित नहीं था। यह पूर्णतया ब्राह्मणी संस्कृति की मानसिकता के आधार पर दिया गया था। देश के वर्तमान मुख्य न्यायधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ जी ने अपने व्यवहार और वक्तव्यों से संविधान और न्यायशास्त्र के सिद्धांत को ध्वस्त किया। सीजेआई ने संवैधानिक नैतिकता का हनन करते हुए देश की न्याय व्यवस्था को क्षति पहुँचाई है। ऐसा देखकर साफ हो जाता है कि देश की किसी भी अदालत में ब्राह्मण संस्कृति के न्यायधीशों को नियुक्त न किया जाये। ये न्यायधीश संविधान को सर्वोपरि न मानकर ब्राह्मणी संस्कृति को ही सर्वोपरि मान रहे हैं। देश में संविधान सर्वोपरि है जिसका रक्षक देश का उच्चतम न्यायालय है। जब देश के उच्चतम न्यायालय के न्यायधीशों की मानसिकता में ब्राह्मणवादी जहर घुसा है तो उनसे न्याय की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
मनुवाद मुक्त बने दिल्ली की विधान सभा: दिल्ली की वर्तमान आबादी करीब 1 करोड़ 70 लाख है। जिसमें ब्राह्मणों की आबादी 10-11 प्रतिशत से भी कम है, ओबीसी की जनसंख्या करीब 34 प्रतिशत है, एससी की आबादी करीब 20 प्रतिशत है, गुर्जर करीब 9 प्रतिशत है, मुस्लिम करीब 15-17 प्रतिशत है, पंजाबी करीब 5 प्रतिशत, जाट करीब 5 प्रतिशत, बनिया करीब 4 प्रतिशत है। दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी हंै। जो शायद ब्राह्मण समुदाय से ताल्लुक रखती है। आतिशी से पहले 15 वर्षों तक दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल रहे हैं जो बनिया समुदाय से हैं। आबादी के हिसाब से वे दिल्ली में 4 प्रतिशत हंै जिनके संख्या बल से दिल्ली का एक पार्षद भी नहीं बन सकता वह 15 वर्षों से दिल्ली का मुख्यमंत्री है। केजरीवाल जी बनिया समुदाय से होने के साथ-साथ आरएसएस पृष्ठभूमि के व्यक्ति हैं और अपनी षड्यंत्रकारी नीतियों से दिल्ली की जनता को मूर्ख बनाकर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। केजरीवाल दिल्ली में आरएसएस की पृष्ठभूमि को लागू कर रहे हैं। दिल्ली में ओबीसी (पिछड़ा वर्ग), अनुसूचित जाति, मुस्लिम व अन्य समकक्ष मिलकर बहुजन समाज बनाते हैं जिसका आबादी में हिस्सा करीब 75 प्रतिशत से अधिक है। प्रजातन्त्र के सिद्धांत के अनुसार दिल्ली का मुख्यमंत्री भी बहुजन समाज से ही होना चाहिए, लेकिन ब्राह्मणी षड्यंत्र के कारण पिछले 15 वर्षों से दिल्ली का मुख्यमंत्री ब्राह्मण-बनिया गठजोड़ के कारण केजरीवाल बना हुआ था। इस व्यवस्था को कायम करने में संघियों की अहम भूमिका रही है लेकिन अब देश के ओबीसी/एससी/मुस्लिम और अन्य समकक्ष जातियों को अपनी आँखें खोलकर फैसला करना चाहिए कि दिल्ली का मुख्यमंत्री ब्राह्मण-बनिया और संघी गठजोड़ का व्यक्ति नहीं होना चाहिए। दिल्ली की पूरी जनता को इसी मानसिकता के तहत दिल्ली के आगामी चुनाव में ब्राह्मण-बनिया और संघी गठजोड़ के व्यक्तियों को सत्ता से बाहर रखना चाहिए। ब्राह्मणों से मुक्ति पाने के लिए देश हित में ब्राह्मणों को न प्रत्याशी बनाया जाये और न उन्हें वोट देना चाहिए। बहुजन समाज अपनी बुद्धि से सोचे की क्या कभी ब्राह्मण समाज का व्यक्ति बहुजन समाज के व्यक्ति को सत्ता की कुर्सी पर आसीन करने के लिए अपना वोट देगा, कभी नहीं देगा। इसी को देखकर बहुजन समाज की आंखें खुल जानी चाहिए और दिल्ली के आगामी चुनाव में ब्रह्मण समुदाय के व्यक्ति को वोट न दें। इस बार ब्राह्मण मुक्त दिल्ली विधान सभा बनायें।
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