Friday, 15th November 2024
Follow us on
Friday, 15th November 2024
Follow us on

ब्राह्मणी संस्कृति भ्रष्टाचार की जनक

News

2023-09-02 09:20:22

बहुजन समाज को हिंदुत्ववादी परंपराओं से भ्रष्टाचार विरासत में मिला है। उनमें अज्ञानता के कारण भ्रष्टाचार की परख करने का ज्ञान नहीं है, जिस कारण पूरा बहुजन समाज इस भ्रष्टाचार को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सहन करता आ रहा है। ब्राह्मणवादी परंपराओं वाले समाज को लगता है कि वह ‘धर्म’ का काम कर रहा है जबकि उसको यह भी पता नहीं है कि इस धर्म रूपी काम से किसको फायदा और किसको नुकसान है? बहुजन समाज के पूर्वज इस अतार्किक रीत को धर्म का काम समझकर सदियों से ढो रहे हैं। उन्होंने कभी भी इस पर तर्कसंगत विचार नहीं किया। धर्म की अफीम चाटकर वे कुत्ते जैसा व्यवहार करते रहे हैं। जिस प्रकार ‘कुत्ता रास्ते में मिली सूखी हड्डी को अपने मुँह में लेकर चबाता है, सूखी हड्डी होने के कारण खून कुत्ते के मुँह से ही निकलता है मगर कुत्ता यह समझता है कि खून हड्डी से निकल रहा है इसलिए वह लगातार हड्डी को चूसता ही रहता है और अपने मुँह से निकले खून से रसास्वादन करता है।’ कुत्ता तो एक पशु मात्र है उसके पास विकसित मस्तिष्क नहीं है इसलिए वह ऐसा आचरण करता है। परंतु मनुष्य जीवों में श्रेष्ठ इसलिए है क्योकि उसका मस्तिष्क पूर्णतया विकसित है। इसलिए मनुष्य का आचरण उसके मस्तिष्क द्वारा अच्छी तरह से विश्लेषण करके हालातों पर सही संज्ञान लेना है। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में भी बहुजन समाज ऐसा करने में असमर्थ हैं। शायद इसका कारण यह है कि बहुजन समाज पर पिछले पाँच हजार वर्षों से ब्राह्मणी संस्कृति के आवरण को निरंतरता के साथ चढ़ाया गया है। भगवान बुद्ध ने समाज को सही मार्ग सुझाकर बुद्ध धम्म की पहली प्रतिक्रांति की थी। बुद्ध की इस प्रतिक्रांति को देश की जनता ने मानव उपयोगी व कल्याणकारी मानकर उसका आचरण किया था। उस समय के राजाओं ने ‘बुद्ध धम्म’ को बड़े पैमाने पर अपनाया और उसी का अनुशरण करते हुए पूरे भारत वर्ष का जनमानस बुद्ध धम्म में परिवर्तित हो गया था।

समाज में समतावादी विचार मजबूत हो रहा था। आपस में सद्भाव था, मनुष्य अपनी मान्यताओं के अनुसार आचरण करने को स्वतंत्र था। इसी से प्रभावित होकर कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बुद्ध धम्म को मानवतावादी व कल्याणकारी समझकर आत्मसात किया था। सम्राट अशोक ने पूरे विश्व के कल्याण के लिए धम्म को भारत की सीमाओं के अंदर और बाहर प्रचार-प्रसार किया था। मानव इतिहास में यह अकेला उदाहरण है जब किसी राजा ने ‘धम्म’ प्रचार-प्रसार के लिए अपने पुत्र और पुत्री को समर्पित किया हो। अशोक के द्वारा देश व देश के बाहर भी 84 हजार बुद्ध स्तूपों व बौद्ध विहारों का निर्माण कराया गया था। सम्राट अशोक के काल में बुद्धमयी भारत की सीमाएँ और उसका क्षेत्रफल आज के भारत से तीन गुना बड़ा था और देश की जनसंख्या सिर्फ आठ करोड़ थी।

ब्राह्मणी संस्कृति का ‘खुरापाती’ दिमाग: भारत का बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) आज जिसे ब्राह्मणी संस्कृति कह रहा है। वह आर्यों के आगमन काल से भारत भूमि पर है। इस संस्कृति का मूल चरित्र खुरापाती डीएनए के साथ निर्मित है। यह समाज में समता, शांति, सद्भावना, बंधुत्व का दुश्मन रहा है। इसका अस्तित्व और प्रचलन खुरापाती व्यवहार के माध्यम से ही जिंदा है। अपने इसी खुरापाती व्यवहार के कारण जब ब्राह्मणी संस्कृति रसातल की तरफ पहुँच रही थी और बुद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार कमजोर पड़ रहा था तो उस समय बुद्ध धम्म के विरुद्ध पुष्पमित्र शुंग ने 185 ई.पू. दसवें बौद्ध शासक ब्रहद्रथ का शिकार के बहाने जंगल में ले जाकर कत्ल कर दिया था। पुष्पमित्र शुंग एक कुटिल और खुरापाती दिमाग का ब्राह्मण था उसको जनता में बौद्ध धम्म द्वारा स्थापित समता, स्वतंत्रता, बंधुता रास नहीं आ रही थी। इस प्रकार पुष्पमित्र सुंग के द्वारा बुद्ध धम्म के खिलाफ यह एक बड़ी प्रतिक्रांति थी। पुष्पमित्र सुंग ने अपनी इस प्रतिक्रांति में बौद्ध भिक्षुओं का बड़े पैमाने पर कत्लेआम कराया और कत्ल करने वाले अपने अनुयायियों को आदेश दिया था कि जितने बौद्ध भिक्षुओं के सिर काटकर लाओगे उतने ही सोने के सिक्के दिये जाएँगे। इसी के चलते जितने भी पाखंडी-पुजारी थे वे बौद्धों के कत्लेआम में लग गये। पंडे-पुजारियों ने इस वीभत्स घटना में भी भ्रष्टाचार का अविष्कार कर लिया था। जो कटा सिर सरयू नदी में फेंका जा रहा था उसे वे दोबारा उठाकर सोने का सिक्का लेने की चाह में पुष्पमित्र शुंग के दरबार में पहुँच जाते थे। पुष्पमित्र शुंग उनको अपनी घोषणा के मुताबिक एक सिक्का दे दिया करता था। पुष्पमित्र के गुप्तचरों ने जब ब्राह्मणों के पंडे-पुजारियों द्वारा दोबारा नदी से सिर उठाकर लाने की घटना बताई तो पुष्पमित्र शुंग ने आदेश दिया कि बौद्ध भिक्षुओं का सिर पत्थर से पूर्ण रूप से कुचलकर फेंका जाएगा ताकी व पूरी तरह नष्ट हो जाये। मानव इतिहास में यह एक बड़ी वीभत्स अमानवीय घटना थी और उस पर भी ब्राह्मण पंडे-पुजारी सोने का सिक्का लेने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त थे। भारत में भ्रष्टाचार का शायद यह पहला सार्वजनिक दृष्टान्त है। ब्राह्मणी संस्कृति से पहले भ्रष्टाचार का भारतीय समाज में कोई उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। इससे पता चलता है कि भारत में भ्रष्टाचार के जनक ब्राह्मण-पुजारी, कथावाचक, सत्संगकर्त्ता ही हैं। आज भी भारतीय समाज में जितने भी भ्रष्टाचार के घोटाले उजागर हुए हैं उन सभी में ब्राह्मण, बनिया, क्षत्रिय वर्ग के लोग ही अधिक रहे हैं। बहुजन समाज के कोई भी जातीय घटक भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं रहा है।

देश के सुरक्षा तंत्र की मुकबरी: भारतीय इतिहास में आज तक देश की सुरक्षा से संबंधित जितने भी मामले हुए हैं उन सभी में हिंदुत्व के तथाकथित सवर्णों की संलिप्तता रही है। देश की सुरक्षा से जुड़ी मुकबरी में बहुजनों की भागीदारी नगण्य है। आधुनिक भारत में जब देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तो आज के तथाकथित राष्ट्रवादी हिंदुत्व के अलंबरदार देश की सुरक्षा और आजादी की लड़ाई से जुड़ी जानकारी अंग्रेजों को दे रहे थे। जो एक देश विरोधी कृत्य था। उस समय के सभी तथाकथित राष्ट्रवादी हिंदुत्व के अलंबरदार और संघ से जुड़े हुए पदाधिकारी जेल से बाहर आने के लिए अंग्रेजों से लिखित माफीनामा देकर बाहर आ रहे थे। सभी संघियों का यही चरित्र रहा है। वे कभी भी देश भक्त नहीं रहे बल्कि वे देश की मुकबरी करके दुश्मनों का साथ दे रहे थे। वे आज देश की जनता को पाखंड में उलझाकर श्रेष्ठ बने हुए हैं और देश की जनता कम समझ, अज्ञानता और मूर्खता के कारण हिन्दू-मुसलमान, गाय-गोबर में फँसकर इन देशद्रोहियों को देश की सत्ता सौंप रही है।

यह ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदुत्व के अलंबरदार और राष्ट्रीय सवं सेवक संघ से जुड़े नेता हमेशा से अंग्रेजों के मुकबर रहे थे। देश के अंदर की जानकारी अंग्रेजों को देने में दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, सदाशिव राव गोलवरकर, सावरकर व अनेकों संघी ब्राह्मण नेता शामिल थे। शायद ब्राह्मणों के इसी चरित्र को देखकर के आर्य समाजी प्रख्यात प्रचारक-पृथ्वी सिंह बेधड़क अपने प्रचार में मंच से कहा करते थे कि ‘भिखारी और पुजारी कभी देश भक्त नहीं हो सकते हैं’ भिखारी और पुजारी से उनका तात्पर्य ब्राह्मण समुदाय से था। आज समाज में जितने भी देश विरोधी कृत्य हो रहे हैं उन सभी में जो संलिप्तता पाई जा रही उनमें सवर्ण समाज के लोग ही हैं। आजादी के बाद देश में जितने भी घोटाले हुए या आरोप लगे हैं उन सभी में एक वैश्य समाज का व्यक्ति जरूर संलिप्त रहा है। घोटालों के आरोप चाहे मायावती पर लगे या जॉर्ज फर्नेंडिस पर लगे उन सभी से यह पता चलता है कि देश में जो भी भ्रष्टाचार हो रहा है उन सभी में तथाकथित हिंदुत्व के अलंबरदार ही शामिल है।

मोदी-संघी शासन में उठ रहे भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े बुलबुले: मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले से ही लोगों में झूठ और पाखंड का प्रचार करना शुरु कर दिया था। लेकिन 2014 में जब वह प्रधानमंत्री बने तो देश में झूठा प्रचार चरम पर था। वह अपने भाषणों में कहते फिरते थे कि मैं न खाऊंगा और न खाने दूंगा। देश के युवाओं को हर वर्ष 2 करोड़ रोजगार दूंगा। विदेशी बैंकों में जमा देश का काला धन सौ दिन के अंदर वापस लाया जाएगा। देश के प्रत्येक नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपए डालें जाएंगे। देश की जनता पिछले 10 वर्षों से मोदी द्वारा किये गए वायदों के पूरा होने का इंतजार कर रही है और मोदी ने आजतक जनता से किया एक भी वायदा पूरा नहीं किया है। देश की अधिकतर जनता मोदी संघी शासन से त्रस्त है और कह रही है कि मोदी से बड़ा झूठा, प्रपंची अभिनेता आज तक देश की राजनीति में पैदा नहीं हुआ। वे यह भी कह रहे हैं कि मोदी विश्व भर में सबसे अधिक झूठ बोलने वाले व्यक्ति हैं। आज मोदी-संघी शासन में देश की जनता महँगाई, बेरोजगारी, महंगी शिक्षा व स्वास्थ्य का भार झेलकर त्रस्त है। बहुजन समाज की जनता पर महँगाई और बेरोजगारी की मार अधिक है चूंकि इस समाज के पास रोजगार के अलावा न कोई संपत्ति है, न खेती की जमीन है, न अन्य संसाधन है। सत्य है कि यह समाज हिन्दू-मुसलमान के चक्कर में फँसकर हिंदुओं की रक्षा के लिए खड़ा होता है और उसमें मार भी खाता है, और मारा भी जाता है। इस समाज को आज तक यह आभास नहीं हो पाया कि न तो तुम हिन्दू हो, और न मुसलमान और तुम्हारा दुश्मन कौन है? तुम हिंदुओं की रक्षा के लिए क्यों खड़े होते हो? आज तक के इतिहास को देखते हुए मुसलमानों न तुम्हें छोटा बनाया, न नीच समझा, ये सब कार्य तुम्हारे विरुद्ध हिंदुत्ववादी मानसिकता के ब्राह्मणों ने ही किये इसलिए तुम्हें अपनी समझ को सुधारना होगा और हिंदुत्ववादियों का साथ नहीं देना होगा। मोदी काल में भ्रष्टाचार का अजीब खेल चल रहा है, मोदी व संघियों का अपने द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार को जनता से छिपाने पर अधिक जोर है। देश की जनता अपनी खुली आँखों से देख रही है, देश के जो राजनैतिक लोग ईडी और सीबीआई से दागी घोषित हो चुके हैं, जेल जाने वालों की लाईन में थे, बीजेपी का दामन थामते ही, मोदी-संघियों की डबल इंजन की प्रदेश व केंद्र सरकार में शामिल होकर वे सभी पाक-साफ होकर, दूध के धुले हो जाते हैं। जनता सब जानती है, मगर मोदी-संघी सरकार जनता को मूर्ख समझ रही है। मोदी के साथ आने वाले सभी लोग आज के वक्त के सबसे बड़े भ्रष्टाचारी हैं आयुष्मान भारत योजना व अन्य परियोजन्बहुजन समाज को हिंदुत्ववादी परंपराओं से भ्रष्टाचार विरासत में मिला है। उनमें अज्ञानता के कारण भ्रष्टाचार की परख करने का ज्ञान नहीं है, जिस कारण पूरा बहुजन समाज इस भ्रष्टाचार को पीढ़ी-दर-पीढ़ी सहन करता आ रहा है। ब्राह्मणवादी परंपराओं वाले समाज को लगता है कि वह ‘धर्म’ का काम कर रहा है जबकि उसको यह भी पता नहीं है कि इस धर्म रूपी काम से किसको फायदा और किसको नुकसान है? बहुजन समाज के पूर्वज इस अतार्किक रीत को धर्म का काम समझकर सदियों से ढो रहे हैं। उन्होंने कभी भी इस पर तर्कसंगत विचार नहीं किया। धर्म की अफीम चाटकर वे कुत्ते जैसा व्यवहार करते रहे हैं। जिस प्रकार ‘कुत्ता रास्ते में मिली सूखी हड्डी को अपने मुँह में लेकर चबाता है, सूखी हड्डी होने के कारण खून कुत्ते के मुँह से ही निकलता है मगर कुत्ता यह समझता है कि खून हड्डी से निकल रहा है इसलिए वह लगातार हड्डी को चूसता ही रहता है और अपने मुँह से निकले खून से रसास्वादन करता है।’ कुत्ता तो एक पशु मात्र है उसके पास विकसित मस्तिष्क नहीं है इसलिए वह ऐसा आचरण करता है। परंतु मनुष्य जीवों में श्रेष्ठ इसलिए है क्योकि उसका मस्तिष्क पूर्णतया विकसित है। इसलिए मनुष्य का आचरण उसके मस्तिष्क द्वारा अच्छी तरह से विश्लेषण करके हालातों पर सही संज्ञान लेना है। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में भी बहुजन समाज ऐसा करने में असमर्थ हैं। शायद इसका कारण यह है कि बहुजन समाज पर पिछले पाँच हजार वर्षों से ब्राह्मणी संस्कृति के आवरण को निरंतरता के साथ चढ़ाया गया है। भगवान बुद्ध ने समाज को सही मार्ग सुझाकर बुद्ध धम्म की पहली प्रतिक्रांति की थी। बुद्ध की इस प्रतिक्रांति को देश की जनता ने मानव उपयोगी व कल्याणकारी मानकर उसका आचरण किया था। उस समय के राजाओं ने ‘बुद्ध धम्म’ को बड़े पैमाने पर अपनाया और उसी का अनुशरण करते हुए पूरे भारत वर्ष का जनमानस बुद्ध धम्म में परिवर्तित हो गया था।

समाज में समतावादी विचार मजबूत हो रहा था। आपस में सद्भाव था, मनुष्य अपनी मान्यताओं के अनुसार आचरण करने को स्वतंत्र था। इसी से प्रभावित होकर कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बुद्ध धम्म को मानवतावादी व कल्याणकारी समझकर आत्मसात किया था। सम्राट अशोक ने पूरे विश्व के कल्याण के लिए धम्म को भारत की सीमाओं के अंदर और बाहर प्रचार-प्रसार किया था। मानव इतिहास में यह अकेला उदाहरण है जब किसी राजा ने ‘धम्म’ प्रचार-प्रसार के लिए अपने पुत्र और पुत्री को समर्पित किया हो। अशोक के द्वारा देश व देश के बाहर भी 84 हजार बुद्ध स्तूपों व बौद्ध विहारों का निर्माण कराया गया था। सम्राट अशोक के काल में बुद्धमयी भारत की सीमाएँ और उसका क्षेत्रफल आज के भारत से तीन गुना बड़ा था और देश की जनसंख्या सिर्फ आठ करोड़ थी।

ब्राह्मणी संस्कृति का ‘खुरापाती’ दिमाग: भारत का बहुजन समाज (एससी/ एसटी/ ओबीसी/ अल्पसंख्यक) आज जिसे ब्राह्मणी संस्कृति कह रहा है। वह आर्यों के आगमन काल से भारत भूमि पर है। इस संस्कृति का मूल चरित्र खुरापाती डीएनए के साथ निर्मित है। यह समाज में समता, शांति, सद्भावना, बंधुत्व का दुश्मन रहा है। इसका अस्तित्व और प्रचलन खुरापाती व्यवहार के माध्यम से ही जिंदा है। अपने इसी खुरापाती व्यवहार के कारण जब ब्राह्मणी संस्कृति रसातल की तरफ पहुँच रही थी और बुद्ध धम्म का प्रचार-प्रसार कमजोर पड़ रहा था तो उस समय बुद्ध धम्म के विरुद्ध पुष्पमित्र शुंग ने 185 ई.पू. दसवें बौद्ध शासक ब्रहद्रथ का शिकार के बहाने जंगल में ले जाकर कत्ल कर दिया था। पुष्पमित्र शुंग एक कुटिल और खुरापाती दिमाग का ब्राह्मण था उसको जनता में बौद्ध धम्म द्वारा स्थापित समता, स्वतंत्रता, बंधुता रास नहीं आ रही थी। इस प्रकार पुष्पमित्र सुंग के द्वारा बुद्ध धम्म के खिलाफ यह एक बड़ी प्रतिक्रांति थी। पुष्पमित्र सुंग ने अपनी इस प्रतिक्रांति में बौद्ध भिक्षुओं का बड़े पैमाने पर कत्लेआम कराया और कत्ल करने वाले अपने अनुयायियों को आदेश दिया था कि जितने बौद्ध भिक्षुओं के सिर काटकर लाओगे उतने ही सोने के सिक्के दिये जाएँगे। इसी के चलते जितने भी पाखंडी-पुजारी थे वे बौद्धों के कत्लेआम में लग गये। पंडे-पुजारियों ने इस वीभत्स घटना में भी भ्रष्टाचार का अविष्कार कर लिया था। जो कटा सिर सरयू नदी में फेंका जा रहा था उसे वे दोबारा उठाकर सोने का सिक्का लेने की चाह में पुष्पमित्र शुंग के दरबार में पहुँच जाते थे। पुष्पमित्र शुंग उनको अपनी घोषणा के मुताबिक एक सिक्का दे दिया करता था। पुष्पमित्र के गुप्तचरों ने जब ब्राह्मणों के पंडे-पुजारियों द्वारा दोबारा नदी से सिर उठाकर लाने की घटना बताई तो पुष्पमित्र शुंग ने आदेश दिया कि बौद्ध भिक्षुओं का सिर पत्थर से पूर्ण रूप से कुचलकर फेंका जाएगा ताकी व पूरी तरह नष्ट हो जाये। मानव इतिहास में यह एक बड़ी वीभत्स अमानवीय घटना थी और उस पर भी ब्राह्मण पंडे-पुजारी सोने का सिक्का लेने के लिए भ्रष्टाचार में लिप्त थे। भारत में भ्रष्टाचार का शायद यह पहला सार्वजनिक दृष्टान्त है। ब्राह्मणी संस्कृति से पहले भ्रष्टाचार का भारतीय समाज में कोई उदाहरण देखने को नहीं मिलता है। इससे पता चलता है कि भारत में भ्रष्टाचार के जनक ब्राह्मण-पुजारी, कथावाचक, सत्संगकर्त्ता ही हैं। आज भी भारतीय समाज में जितने भी भ्रष्टाचार के घोटाले उजागर हुए हैं उन सभी में ब्राह्मण, बनिया, क्षत्रिय वर्ग के लोग ही अधिक रहे हैं। बहुजन समाज के कोई भी जातीय घटक भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं रहा है।

देश के सुरक्षा तंत्र की मुकबरी: भारतीय इतिहास में आज तक देश की सुरक्षा से संबंधित जितने भी मामले हुए हैं उन सभी में हिंदुत्व के तथाकथित सवर्णों की संलिप्तता रही है। देश की सुरक्षा से जुड़ी मुकबरी में बहुजनों की भागीदारी नगण्य है। आधुनिक भारत में जब देश आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था तो आज के तथाकथित राष्ट्रवादी हिंदुत्व के अलंबरदार देश की सुरक्षा और आजादी की लड़ाई से जुड़ी जानकारी अंग्रेजों को दे रहे थे। जो एक देश विरोधी कृत्य था। उस समय के सभी तथाकथित राष्ट्रवादी हिंदुत्व के अलंबरदार और संघ से जुड़े हुए पदाधिकारी जेल से बाहर आने के लिए अंग्रेजों से लिखित माफीनामा देकर बाहर आ रहे थे। सभी संघियों का यही चरित्र रहा है। वे कभी भी देश भक्त नहीं रहे बल्कि वे देश की मुकबरी करके दुश्मनों का साथ दे रहे थे। वे आज देश की जनता को पाखंड में उलझाकर श्रेष्ठ बने हुए हैं और देश की जनता कम समझ, अज्ञानता और मूर्खता के कारण हिन्दू-मुसलमान, गाय-गोबर में फँसकर इन देशद्रोहियों को देश की सत्ता सौंप रही है।

यह ऐतिहासिक सत्य है कि हिंदुत्व के अलंबरदार और राष्ट्रीय सवं सेवक संघ से जुड़े नेता हमेशा से अंग्रेजों के मुकबर रहे थे। देश के अंदर की जानकारी अंग्रेजों को देने में दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, सदाशिव राव गोलवरकर, सावरकर व अनेकों संघी ब्राह्मण नेता शामिल थे। शायद ब्राह्मणों के इसी चरित्र को देखकर के आर्य समाजी प्रख्यात प्रचारक-पृथ्वी सिंह बेधड़क अपने प्रचार में मंच से कहा करते थे कि ‘भिखारी और पुजारी कभी देश भक्त नहीं हो सकते हैं’ भिखारी और पुजारी से उनका तात्पर्य ब्राह्मण समुदाय से था। आज समाज में जितने भी देश विरोधी कृत्य हो रहे हैं उन सभी में जो संलिप्तता पाई जा रही उनमें सवर्ण समाज के लोग ही हैं। आजादी के बाद देश में जितने भी घोटाले हुए या आरोप लगे हैं उन सभी में एक वैश्य समाज का व्यक्ति जरूर संलिप्त रहा है। घोटालों के आरोप चाहे मायावती पर लगे या जॉर्ज फर्नेंडिस पर लगे उन सभी से यह पता चलता है कि देश में जो भी भ्रष्टाचार हो रहा है उन सभी में तथाकथित हिंदुत्व के अलंबरदार ही शामिल है।

मोदी-संघी शासन में उठ रहे भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े बुलबुले: मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले से ही लोगों में झूठ और पाखंड का प्रचार करना शुरु कर दिया था। लेकिन 2014 में जब वह प्रधानमंत्री बने तो देश में झूठा प्रचार चरम पर था। वह अपने भाषणों में कहते फिरते थे कि मैं न खाऊंगा और न खाने दूंगा। देश के युवाओं को हर वर्ष 2 करोड़ रोजगार दूंगा। विदेशी बैंकों में जमा देश का काला धन सौ दिन के अंदर वापस लाया जाएगा। देश के प्रत्येक नागरिक के खाते में 15-15 लाख रुपए डालें जाएंगे। देश की जनता पिछले 10 वर्षों से मोदी द्वारा किये गए वायदों के पूरा होने का इंतजार कर रही है और मोदी ने आजतक जनता से किया एक भी वायदा पूरा नहीं किया है। देश की अधिकतर जनता मोदी संघी शासन से त्रस्त है और कह रही है कि मोदी से बड़ा झूठा, प्रपंची अभिनेता आज तक देश की राजनीति में पैदा नहीं हुआ। वे यह भी कह रहे हैं कि मोदी विश्व भर में सबसे अधिक झूठ बोलने वाले व्यक्ति हैं। आज मोदी-संघी शासन में देश की जनता महँगाई, बेरोजगारी, महंगी शिक्षा व स्वास्थ्य का भार झेलकर त्रस्त है। बहुजन समाज की जनता पर महँगाई और बेरोजगारी की मार अधिक है चूंकि इस समाज के पास रोजगार के अलावा न कोई संपत्ति है, न खेती की जमीन है, न अन्य संसाधन है। सत्य है कि यह समाज हिन्दू-मुसलमान के चक्कर में फँसकर हिंदुओं की रक्षा के लिए खड़ा होता है और उसमें मार भी खाता है, और मारा भी जाता है। इस समाज को आज तक यह आभास नहीं हो पाया कि न तो तुम हिन्दू हो, और न मुसलमान और तुम्हारा दुश्मन कौन है? तुम हिंदुओं की रक्षा के लिए क्यों खड़े होते हो? आज तक के इतिहास को देखते हुए मुसलमानों न तुम्हें छोटा बनाया, न नीच समझा, ये सब कार्य तुम्हारे विरुद्ध हिंदुत्ववादी मानसिकता के ब्राह्मणों ने ही किये इसलिए तुम्हें अपनी समझ को सुधारना होगा और हिंदुत्ववादियों का साथ नहीं देना होगा। मोदी काल में भ्रष्टाचार का अजीब खेल चल रहा है, मोदी व संघियों का अपने द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार को जनता से छिपाने पर अधिक जोर है। देश की जनता अपनी खुली आँखों से देख रही है, देश के जो राजनैतिक लोग ईडी और सीबीआई से दागी घोषित हो चुके हैं, जेल जाने वालों की लाईन में थे, बीजेपी का दामन थामते ही, मोदी-संघियों की डबल इंजन की प्रदेश व केंद्र सरकार में शामिल होकर वे सभी पाक-साफ होकर, दूध के धुले हो जाते हैं। जनता सब जानती है, मगर मोदी-संघी सरकार जनता को मूर्ख समझ रही है। मोदी के साथ आने वाले सभी लोग आज के वक्त के सबसे बड़े भ्रष्टाचारी हैं आयुष्मान भारत योजना व अन्य परियोजनाओं के घोटाले सबके सामने हैं जिनका जिक्र सीएजी की रिपोर्ट में किया गया है।

आज तक बहुजन समाज के जो लोग अपने आप को हिन्दू मान रहे हैं, उनमें ज्ञान की कमतरता है। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने लंदन में 1931 की गोलमेज सभा में सभी के सामने यह सिद्ध कर दिया था कि यहाँ का बहुजन समाज (एससी/एसटी/ओबीसी) हिन्दू नहीं है। ये सभी भारत के अति विशिष्ठ अल्पसंख्यक समुदाय है जिनके पूर्वज बौद्ध थे।

Post Your Comment here.
Characters allowed :


01 जनवरी : मूलनिवासी शौर्य दिवस (भीमा कोरेगांव-पुणे) (1818)

01 जनवरी : राष्ट्रपिता ज्योतिबा फुले और राष्ट्रमाता सावित्री बाई फुले द्वारा प्रथम भारतीय पाठशाला प्रारंभ (1848)

01 जनवरी : बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा ‘द अनटचैबिल्स’ नामक पुस्तक का प्रकाशन (1948)

01 जनवरी : मण्डल आयोग का गठन (1979)

02 जनवरी : गुरु कबीर स्मृति दिवस (1476)

03 जनवरी : राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले जयंती दिवस (1831)

06 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. जयंती (1904)

08 जनवरी : विश्व बौद्ध ध्वज दिवस (1891)

09 जनवरी : प्रथम मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख जन्म दिवस (1831)

12 जनवरी : राजमाता जिजाऊ जयंती दिवस (1598)

12 जनवरी : बाबू हरदास एल. एन. स्मृति दिवस (1939)

12 जनवरी : उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद ने बाबा साहेब को डी.लिट. की उपाधि प्रदान की (1953)

12 जनवरी : चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु परिनिर्वाण दिवस (1972)

13 जनवरी : तिलका मांझी शाहदत दिवस (1785)

14 जनवरी : सर मंगूराम मंगोलिया जन्म दिवस (1886)

15 जनवरी : बहन कुमारी मायावती जयंती दिवस (1956)

18 जनवरी : अब्दुल कय्यूम अंसारी स्मृति दिवस (1973)

18 जनवरी : बाबासाहेब द्वारा राणाडे, गांधी व जिन्ना पर प्रवचन (1943)

23 जनवरी : अहमदाबाद में डॉ. अम्बेडकर ने शांतिपूर्ण मार्च निकालकर सभा को संबोधित किया (1938)

24 जनवरी : राजर्षि छत्रपति साहूजी महाराज द्वारा प्राथमिक शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य करने का आदेश (1917)

24 जनवरी : कर्पूरी ठाकुर जयंती दिवस (1924)

26 जनवरी : गणतंत्र दिवस (1950)

27 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर का साउथ बरो कमीशन के सामने साक्षात्कार (1919)

29 जनवरी : महाप्राण जोगेन्द्रनाथ मण्डल जयंती दिवस (1904)

30 जनवरी : सत्यनारायण गोयनका का जन्मदिवस (1924)

31 जनवरी : डॉ. अम्बेडकर द्वारा आंदोलन के मुखपत्र ‘‘मूकनायक’’ का प्रारम्भ (1920)

2024-01-13 11:08:05