2023-12-22 13:38:44
गुप्तकाल की चौथी से छठी शताब्दी में मंदिरों का निर्माण व विकास शुरु हुआ था। इससे पहले लकड़ी के मंदिर बनते थे लेकिन जल्दी ही भारत के अनेक स्थानों पर पत्थर और ईंट से मंदिर बनने लगे। 7वीं शताब्दी तक देश के आर्य (ब्राह्मण) संस्कृति वाले भागों में पत्थरों से बने मंदिरों का निर्माण पाया जाता है। चौथी से छठी शताब्दी में मंदिरों का निर्माण बहुत तीव्र गति से हुआ। मूल रूप से हिन्दू मंदिरों की शैली बौद्ध मंदिरों से ली गयी है उस समय के पुराने मंदिरों में मूर्तियों को मंदिर के मध्य में रखा होना पाया गया है और जिसमें बौद्ध स्तूपों की भांति परिक्रमा मार्ग हुआ करता था। गुप्तकालीन बचे हुए लगभग सभी मंदिर अपेक्षाकृत छोटे हैं, जिनमें काफी मोटा और मजबूत कारीगरी किया हुआ एक छोटा केंद्रीय कक्ष होता है, जो मुख्य द्वार पर या भवन के चारों और बरामदे से युक्त है। गुप्तकालीन आरंभिक मंदिर जैसे सांची के बौद्ध मंदिरों की छत सपाट है; मंदिरों की उत्तर भारतीय शिखर शैली भी इस काल में ही विकसित हुई और शनै:-शनै: इस शिखर की ऊँचाई बढ़ती रही। 7वीं शताब्दी में बोध गया में निर्मित बौद्ध मंदिर की बनावट और ऊँचा शिखर गुप्तकालीन भवन निर्माण शैली के चरमोत्कर्ष का प्रतिनिधित्व करता है।
बौद्ध और जैन पंथियों द्वारा धार्मिक उद्देश्यों के लिए कृत्रिम गुफाओं का प्रयोग किया जाता था और हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा भी इसे आत्मसात कर लिया गया था। फिर भी हिंदुओं द्वारा गुफाओं में निर्मित मंदिर बौद्धों के सापेक्ष बहुत कम हैं और गुप्तकाल से पूर्व का तो कोई भी साक्ष्य इस संबंध में नहीं पाया जाता है।
भगवान बुद्ध के समय तक भारत में हिन्दू या ब्राह्मण मंदिर संस्कृति नहीं थी। उस समय तक यहाँ के मूलनिवासी बुद्ध के धम्म प्रवचनों को सुनकर अधिक प्रभावित थे और ब्राह्मण धर्म की भावना रसातल में पहुँच चुकी थी। भगवान बुद्ध ने उस समय के समाज को समता, एकता और भाईचारे की शिक्षा से शिक्षित किया था। बुद्ध के उपदेशों से यहाँ की जनता का आचरण सुसंस्कृत हुआ था। सभी लोग समाज में अहिंसक थे और मिल जुलकर रहने की संस्कृति समाज में बन चुकी थी। इस सारी व्यवस्था को देखकर यूरेशिया से आए आर्य (ब्राह्मण) चकित थे और उनके मन में यहाँ की संस्कृति को देखकर अहम सवाल भी उठे थे- पहला यहाँ के लोगों पर आर्यों (ब्राह्मणों) का आधिपत्य कैसे स्थापित किया जाये? आर्यों ने इसे पाने के लिए दो प्रकार की व्यवस्थाओं का निर्माण किया जिनमें एक थी कि लोगों को आपस में अधिक से अधिक बाँटकर रखो, और दूसरी यहाँ के समाज में पाखंडवाद की फसल उगाने के लिए पाखंडवादी संस्कृति निर्मित करो पाखंडवाद फैलाने के काल्पनिक देवी-देवताओं के मंदिरों का निर्माण करो। इन दोनों सांस्कृतिक व सामाजिक हथियारों के द्वारा आर्यों (ब्राह्मणों) ने यहाँ के मूलनिवासी समाज को मानसिक रूप से गुलाम बनाया। इस समय तक भारत में सिर्फ बौद्ध संस्कृति ही थी, ब्राह्मणों के मंदिर नहीं थे। बौद्धों में चलन था कि उपासक अपने वरिष्ठ ज्ञानवान व श्रेष्ठ विद्वानों की याद और सम्मान में छोटे-छोटे चबूतरे नुमा चैत्यों का निर्माण कर लिया करते थे और वहाँ पर उनकी स्मृति में इकट्ठा होकर सभी लोग जिनके नाम पर चैत्य का निर्माण हुआ है उनको और उनकी शिक्षाओं को समाज में प्रचारित व प्रसारित करते थे। शायद इसी से संकेत पाकर ब्राह्मणों के दिमाग में पाखंडवादी मंदिरों के निर्माण करने की भावना जागी होगी? यही से पाखंडवाद को इस जमीन पर स्थापित करने के लिए उस समय के चालक प्रवृति के ब्राह्मणों ने कई प्रकार के काल्पनिक तथाकथित देवी-देवताओं, भगवानों आदि की कल्पना से मंदिरों का निर्माण करना शुरू किया होगा?
बुद्धकाल से लेकर गुप्तकाल तक आर्यों (ब्राह्मणों) द्वारा मंदिर संस्कृति को भारत में स्थापित किया गया लेकिन मंदिर संस्कृति की गति गुप्तकाल तक धीमी ही थी। चूंकि समाज में अधिसंख्यक लोग बुद्ध धम्म में आस्था रखते थे और बुद्ध के प्रवचनों व विचारों को ही श्रेष्ठ मानते थे। बुद्ध धम्म और प्रचारकों को उस समय के शासकों ने भी श्रेष्ठ मानकर जनहित में अपनाया था और देश में जगह-जगह बुद्ध मंदिरों (बुद्ध विहार) आदि का निर्माण कराया था। जनता बुद्ध धम्म से प्रभावित थी और बुद्ध के धम्म को ही श्रेष्ठ मानकर प्रचार-प्रसार कर रही थी। उस समय ब्राह्मणवाद भारत भूमि पर अपने पैर नहीं जमा पा रहा था चूंकि ब्राह्मणवाद (ब्राह्मण धर्म) को मानवीय और लोकहित की दृष्टि में हीन माना जाता था। ब्राह्मण धर्म की सामाजिक व्यवस्था में असमानता थी, पशुओं की बलि देना एक आम प्रथा थी, यहाँ तक कि नर बलि देने का भी प्रादुर्भाव हो चुका था। इन सब कुप्रथाओं के चलते ब्राह्मण धर्म जनता में अशिष्ट माना जा रहा था और बुद्ध धम्म जन कल्याण के लिए बड़े पैमाने पर जनता में स्थापित हो चुका था और शासक वर्ग भी उसे अपना सहयोग कर रहे थे। शासकों में बुद्ध धम्म को अपनाने वाले अनेकों शासक हुए हैं मगर इनमें सबसे मुख्य थे सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232)। जिन्होंने कलिंग युद्ध के बाद बुद्ध धम्म को जन कल्याणकारी मानकर उसके प्रचार-प्रसार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। यहाँ तक कि उन्होंने अपने बेटे और बेटी को भी धम्म के काम में लगाया था। सम्राट अशोक ने बुद्ध धम्म के प्रचार-प्रसार के लिए 84000 शिलालेखों का निर्माण कराया था और बुद्ध के उपदेशों को फैलाने के उद्देश्य से सम्राट अशोक ने उन्हें शिलालेखों पर लिखवाया था। जो स्थायी रूप से आज भी बुद्ध धम्म के उपदेशों को फैला रहे हैं। बुद्ध धम्म की फैलती ख्याति और रफ्तार से ब्राह्मण (आर्य) काफी उदासीन थे और उन्हें अपने आपको यहाँ श्रेष्ठता के रूप में स्थापित करने का कोई रास्ता नहीं मिल पा रहा था। इसी से ब्राह्मण वर्ग दुखी था और बुद्ध धम्म के प्रति षड्यंत्र की रचना में लगा हुआ था। इसी बीच पुष्यमित्र सुंग (ब्राह्मण) ने एक वीभत्स षड्यंत्र की रचना की और देश के दसवें बौद्ध शासक ब्रहदत्त की शिकार के बहाने जंगल में ले जाकर हत्या की थी। पुष्यमित्र सुंग (ब्राह्मण) बौद्ध शासक ब्रहदत का मुख्य सेनापति था। जो ब्रहदत्त की हत्या करके उसके सिंहासन पर शासक बन बैठा था। इतिहास में बुद्ध धम्म के विरुद्ध ब्राह्मण धर्म की यह पहली क्रांति थी। इस क्रांति के बाद पुष्यमित्र सुंग ने बड़े पैमाने पर बुद्ध धर्मावलंबियों का कत्लेआम कराया और बुद्ध विहारों को बड़े पैमाने पर ध्वस्त किया गया था और बुद्ध विहारों को हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिरों में परिवर्तित किया गया था।
बुद्ध काल में अयोध्या का नाम साकेत था। पुष्यमित्र सुंग ने ही बुद्ध की संस्कृति इतिहास को जनता से ओझल करने के उद्देश्य से साकेत का नाम अयोध्या रखा। अयोध्या का शाब्दिक अर्थ है कि बिना युद्ध के जीता हुआ शहर। इस ब्राह्मणी क्रांति के तहत पुष्पमित्र सुंग ने देशभर के बुद्ध विहारों को ध्वस्त करके काल्पनिक देवी-देवताओं के मंदिरों में परिवर्तित किया और देश में ब्राह्मण संस्कृति को उगाने की शुरूआत की। जिसके तहत आज पूरे देश में मंदिरों के माध्यम से पाखंड को फैलाया जा रहा है। काल्पनिक देवी-देवताओं और भगवानों का प्रचार किया जा रह है। देश में अवैज्ञानिकता को झूठ के प्रचार-प्रसार से बढ़ाया जा रहा है। जिसके फलस्वरूप पाखंडवाद के जाल में जनता दिन-प्रतिदिन फँसती जा रही है। मोदी और संघ देश में ब्राह्मणवाद को मजबूत करने के लिए पाखंडी बाबाओं, पुजारियों, धर्म संसद आदि को बड़े पैमाने पर समाज में प्रचारित किया जा रहा है, जो रात-दिन मोदी-संघ की सत्ता के सहारे फल रहा है। मोदी-संघी शासन समाज की तार्किक बुद्धि को नष्ट कर रहे हैं। आज देश मोदी-संघियों की इस ब्राह्मणवादी संस्कृति में फँसता जा रहा है। मोदी देश की जनता के लिए काम न करके देश में ब्राह्मणवाद के लिए काम कर रहे हैं।
मोदी की कार्यशैली को देखकर ऐसा लगता है कि उनका एकमात्र उद्देश्य ब्राह्मणवाद को इस देश में स्थापित करना है। देश के लोगों को इसे शीघ्र अति शीघ्र समझना चाहिए नहीं तो इस देश में ब्राह्मणवाद को स्थापित होने से कोई नहीं रोक सकेगा। अगर 2024 में मोदी दोबारा सत्ता में लौटते हैं तो यहाँ पर बड़ी मुश्किल से स्थापित किया गया लोकतंत्र नहीं बचेगा, न संविधान बचेगा और न यहाँ चुनाव होंगे? मोदी के तीसरी बार सत्ता में लौटने पर भारत में ब्राह्मणवादी व्यवस्था के तहत मनुस्मृति को शासन व्यवस्था का ग्रंथ मानकर देश की शासन व्यवस्था चलाई जाएगी। यह सब कार्य मोदी और संघियों द्वारा छिपे ढंग से किया जा रहा है ताकि 2024 में देश की जनता का विशेषकर पिछड़ों का वोट उनकी आँखों पर अपारदर्शी चश्मा चढ़ाकर और ईवीएम में हेरा-फेरी करके सत्ता में अवश्य ही आना है। मोदी ओर शाह का यही कथन है कि हम सत्ता में जरूर आएँगे। इस कथन के पीछे संघी मनुवादियों का बहुत बड़ा षड्यंत्रकारी खेल छिपा हुआ है। बहुजन जनता को और सभी वर्गों की महिलाओं को मनुस्मृति आधारित प्रावधानों से सचेत हो जाना चाहिए। सभी को मोदी संघी उम्मीदवारों को आने वाले 2024 के लोकसभा चुनावों में किसी भी कीमत पर वोट नहीं देना चाहिए।
मोदी और संघ ने अपने दस साल के शासन में छिपे ढंग से मनुस्मृति को शासन की मानसिकता में धीरे-धीरे उतारना शुरू कर ही रखा है। जनता को उसे देखकर गंभीर हो जाना चाहिए, उदाहरण के तौर पर अदालतों में बैठे ब्राह्मणी मानसिकता के न्यायधीश अपने फैसलों में यह कहते देखे जा रहे हैं कि महिलाओं को अपनी वाशनाओं पर काबू रखना चाहिए। ऐसे वक्तव्य मनुस्मृति आधारित प्रावधानों की याद दिलाते हैं। ऐसे वक्तव्यों को देखकर देशभर की महिलाएं अपनी सजगता और बुद्धि से सोचे कि अभी तो देश में संविधान सत्ता है तब ये न्यायधीश ऐसे वक्तव्य देने की हिम्मत दिखा रहे हैं। अगर 2024 में मोदी-संघियों की सत्ता आयी तो संविधान का जो कुछ भी आज लागू है, उसे हटाकर मनुस्मृति पूर्ण रूप से लागू कर दी जाएगी। तब मनुस्मृति आधारित सभी सामाजिक प्रावधान शूद्रों और महिलाओं पर लागू किये जाएँगे। महिलाएँ और पूरा शूद्र वर्ग जो आज धर्म नाम की अफीम खाकर अपने आप में मदमस्त है और पाखंडी छलावों के तहत सामाजिक कठिनाइयों जैसे महंगाई, शिक्षा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य आदि से जुड़ी कठिनाइयों को अनदेखा कर रहे हैं वे ही इस देश में मनुस्मृति लागू कराने के लिए जिम्मेदार होंगे। महिलाएँ और शूद्र समाज ब्राह्मणवादी काल की तरह प्रताड़ित होकर पशुवत जीवन जीने को मजबूर होगा।
समय रहते जागो।
जय भीम, जय संविधान
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